उषा साहू की बालकथा – अगस्त और त्यौहार

हम सभी के दिल में एक बच्चे का दिल छिपा रहता है। कहते हैं खुश रहना है दिल में छिपे बच्चे की बात मानो। मेरे दिल में भी एक छोटा बच्चा बैठा है। हमेशा जिद करता है, ‘… मेरे लिए लिखो...मेरे लिए लिखो...’ मैंने...

उषा साहू की बाल-कहानी – मजदूर दिवस

यही कोई पाँच बजे का समय था, दीदी अपनी बालकनी में बैठी कोई पुस्तक पढ़ रहीं थी । चेहरा उन्होने दीवार की तरफ कर लिया था, जिससे आँखों पर धूप न पढ़े । अचानक ज़ोर से आवाज सुनाई दी, “दीदी... दीदी...” आवाज इतने ज़ोर...

उषा साहू की बाल कहानी – शहीद जयंती

शाम के पाँच बज रहे थे । दीदी बस से उतरकर घर की तरफ जा रही थी । बस स्टॉप से उनके घर का अच्छा खासा 10 मिनट का रास्ता है । उनके आगे-आगे उनकी ही सोसायटी के बच्चे, कुणाल और तान्या चल रहे...

उषा साहू की बाल-कहानी – देश प्रेम

बड़े शहर की एक कालोनी है, जिसमें अधिकांशत; सभ्रांत परिवार रहते हैं। बहुत सारे बच्चे भी हैं । उसी कालोनी में एक दीदी भी रहती हैं । बच्चे , दीदी के मनोरंजन के साधन हैं और दीदी बच्चों के लिए ज्ञान का भंडार। बच्चों...

कुसुम अग्रवाल की बाल कहानी – अनोखा जादू

टन- टन-टन घंटी की आवाज आई और सभी बच्चे अपनी-अपनी किताबें बंद करके बस्तों में रखने लगे यह खाना खाने की घंटी थी। "सभी बच्चे अपना-अपना लंच बॉक्स लेकर लॉन में चले जाओ। सर्दी का मौसम है, धूप में बैठकर खाना खाने से तुम्हें अच्छा...

अरविंद कुमार साहू की बाल कहानी – बाशी और मुर्मू

बाशी और मुर्मू साथ पढ़ते – पढ़ते अच्छी सहेलियाँ बन गयी थी | वह दोनों स्विट्जरलैंड के रॉयल इन्टरनेशनल स्कूल में कक्षा तीन की छात्राएँ थी | ये एक बड़ा और मंहगा स्कूल था, जिसमें कई देशों के बड़े अधिकारियों और उद्योगपतियों के बच्चे...