भोपाल में 'तुमसे मिलकर'.... का लोकार्पण 7

विश्व मैत्री मंच के तहत “तुमसे मिलकर” पर चर्चा का आयोजन

‘मुक्त छंद में लिखे गीत हैं ये कविताएँ’
भोपाल, गुरुवार 20 जून 2019 आर्य समाज भवन में आयोजित कार्यक्रम में प्रसिद्ध गीतकार नरेंद्र दीपक ने कहा, “वैसे तो मुक्त छंद की समकालीन कविताएँ बहुत अच्छी हो ही नहीं सकतीं, लेकिन संतोष श्रीवास्तव ने मुक्त छंद में  लिखकर यह सिद्ध कर दिया कि यह मुक्त छंद में लिखे गीत हैं।”
दिल्ली से आए वरिष्ठ लेखक सुभाष नीरव ने कहा, “इस संग्रह की कमाल की बात भोपाल में 'तुमसे मिलकर'.... का लोकार्पण 8यह है कि पहली कविता जो पाठक की उंगली थामती है तो अंतिम कविता तक का सफर करा देती है। जिसे पढ़कर पाठक बंध जाए, डूब जाए, व संवाद करे वही कविता की सार्थकता है। इन कविताओं ने छीजती संवेदना को उठाकर प्रेम के बीज बोए हैं।”
संतोष श्रीवास्तव ने अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ करते हुए कहा, “कविता में जो घटता है वह अवधारणा में बदल जाता है।”
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने संग्रह की कविताओं का उल्लेख करते हुए ‘नमक का स्वाद’ , ‘बदलाव ’भोपाल में 'तुमसे मिलकर'.... का लोकार्पण 9और ‘बचा लेता है ’  कविता को सर्वश्रेष्ठ कविता बताया। उन्होंने इन तीनों कविताओं का विस्तार से ज़िक्र किया।  ‘बचा लेता है ’ कविता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि काग़ज़ जब नोट बनता है तो पावर में आते ही नष्ट कर डालता है मानवीय रिश्तो को, संवेदनाओं को, जीवन मूल्यों को। ज्ञान वर्धन की कविता पिकासो में इसी पावर का जिक्र है कि दुनिया की किसी भी करेंसी से महंगा वह चार इंच का कागज है जिस पर पिकासो के हस्ताक्षर हैं। लेकिन किताब  का पन्ना बनते ही  वह सब कुछ को सहेज लेता है। मैं  संतोष जी को साधुवाद देता हूँ कि उन्होंने कागज को किताब का पन्ना बनाने की महत्वपूर्ण कोशिश की है।”
डॉ राजेश श्रीवास्तव, डॉ स्वाति तिवारी, हीरालाल नागर, बलराम अग्रवाल, योगेश शर्मा ने भी संग्रह पर अपनी बात रखी ।
समारोह में  भोपाल के संपादकों, लेखकों, पत्रकारों सहित झांसी, रतलाम, ग्वालियर से आए लेखक भी शामिल थे । समारोह का जीवंत संचालन धर्मेंद्र सोलंकी ने किया।

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