यह कहानी एक धोबन की है जो युद्ध के बाद हालिया चार्ल्सटन पहुंची थी।जैसे ही रात को बारह बजे का गजर बजता उसकी नींद सड़क से गुजरते पहियों की आवाज से खुल जाती।उस धोबन का घर ऐसी जगह था जहाँ पर सड़क ख़त्म होती थी।पहियों की वे आवाजें भी उसके लिए रहस्य  बनी हुई थी।

“देखो! जब भी पहियों की आवाजें आयें खिड़की  खोलकर तुम बिलकुल मत झांकना” इन शब्दों में धोबन के पति ने सख्त निर्देश दे रखा था।अकेले रहने पर खिड़की के पास भी खड़े रहने को मनाही थी।आखिर एक दिन धोबन ने अपने मन की बात एक अन्य महिला से कही जो उसके साथ ही कपडे धोया करती थी।सारा किस्सा सुनने पर उस महिला ने कहा ,” रात को तुम्हारे कानों में गूंजने वाली आवाजें सेना के मृत जवानों  की हैं।यह वे फौजी हैं जिन्हें पता ही नहीं था की युद्ध समाप्त हो गया है।बेचारे  अमेरिकी सैनिक अस्पताल में ही मर गए।”दूसरे अमरीकी राज्य के इन मृत सिपाहियों की आत्माएं रोज मध्य रात्रि को कब्र से जागकर बाहर आती हैं।सभी फौजी जवानों की यह टुकड़ी फिर इस दक्षिणी शहर ( साउथ केरोलिना)के जवानों को चुस्त-दुरुस्त- बनाने वर्जिनिया जाकर सारी कवायद करती है।

दूसरी रात जैसे ही रात बारह बजे का गजर बजा नींद से उठकर वाह धोबन रहस्यमय आवाजें सुनने खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी।धूसर कुहासे के बादल गुजर रहे थे ।भीतर जैसे-तैसे अपनी साँसे रोककर धोबन खड़ी थी।उसकी फटी आँखें कुहासा चीरकर देख रही थीं।-घोड़ों की आकृतियाँ , फौजियों  की सरल और अख्खड़ आवाजें तथा सड़क से खींचकर ले जा रही  तोपों की चर्र..मर्र…और गड गडाहट  के स्वर। सबसे आखिर में थीं कदमताल करते जवानों की टुकड़ी। पैदल जवान… घुड़सवार…एम्बुलेंस..गाड़ियाँ और तोपें उस धोबन की आँखों से धीरे- धीरे ओझल होती रहीं ;पर सारा दृश्य धुंधलके और कुहासे भरा था।

चर्र -मर्र …खटर-पटर…फटाक-फटाक…गड़गड़-गड़गड़… ऐसा लगा मानों कई घंटे गुजर गए हों।फिर गूंजी बिगुल की कर्कश ध्वनि और पसर गयी एक लम्बी निस्तब्धता ।थकान और घबडाहट के मिश्रित सम्मोहन  से जब वाह धोबन बाहर आकर अपने आप में लौटी -उसने महसूस  किया -” मेरे ईश्वर!एक बाहँ तो मेरी ऐसे सुन्न हो गयी है मानो उसे लकवा मर गया हो।”उस दिन के बाद धोबन ने सारा दिन कपड़ों की धुलाई का काम फिर कभी नहीं किया।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आधा दर्जन से अधिक भाषांतर और संकलन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं में सृजन जारी है.

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