होम लेख डॉ रुचिरा ढींगरा का लेख – शब्द शिल्पी भगवती चरण... लेख डॉ रुचिरा ढींगरा का लेख – शब्द शिल्पी भगवती चरण वर्मा की कहानी कला द्वारा डॉ. रुचिरा ढींगरा - October 17, 2021 498 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet भगवती चरण वर्मा ने अपने साहित्यिक जीवन का प्रारंभ एक कवि के रूप में किया था । इन्होंने पहली कहानी 18 वर्ष की अल्पायु में लिखी थी जो सन् 1921 में ‘हिंदी मनोरंजन ‘ पत्रिका में प्रकाशित हुई । इनकी प्रारंभिक कहानियां उपलब्ध नहीं हैं। उनकी तदविषयक स्वीकारोक्ति है-” कहानियां मैंने बहुत कम लिखी हैं और जितनी लिखी हैं उतनी भी मेरे पास नहीं हैं, ना जाने कितनी छपी हुई कहां खो गई हैं “(1) उनकी समस्त उपलब्ध कहानियां ‘ मेरी कहानियां ‘ (1971) में संकलित हैं जो उन्हें कहानीकार के रुप में प्रतिष्ठित करने के लिए पर्याप्त हैं। वर्मा जी कहानी को शब्दों में बंधी कल्पना से उत्पन्न ऐसी रचना मानते थे जिसका मूल बिंदु छोटी से छोटी घटना हो सकती है किंतु उसमें भावात्मक संवेदना का होना अनिवार्य है । वर्मा जी कहानी गढ़ने और छोटी– सी घटना को विस्तार देने में सक्षम थे। उन्होंने अपनी ‘वह फिर नहीं आई‘ तथा ‘ पैसा तुम्हें खा गया ‘ कहानियों को क्रमशः उपन्यास तथा नाटक का रूप दिया। एक ही विषय को द्विविध संवेदना प्रदान करने में भी हैं वे सिद्धहस्त हैं । ‘ मेज की तस्वीर‘ तथा ‘ राख और चिंगारी ‘की संवेदना कतिपय परिवर्तनों से एक ही है । अंतर केवल इतना है कि ‘मेज की तस्वीर‘ का अंतर्द्वंद ग्रस्त नायक ‘राख और चिंगारी‘ में अकेला ना होकर अपनी पत्नी के साथ है। कहानी के अवयवों की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा है-” कहानी के तीन प्रमुख अवयव हैं। घटना , घटना के चरित्र और घटना के अंदर निहित भावात्मक संवेदना बिना किसी घटना के किसी कहानी की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती । xxx भावात्मक संवेदना उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी घटना और यह भावात्मक संवेदना उत्पन्न होती है कहानी के चरित्रों के प्रति। बिना चरित्र के ना तो घटना घटित हो सकती है और ना भावात्मक संवेदना उत्पन्न हो सकती है– घटना ,चरित्र और भावात्मक संवेदना के ऐसे सामंजस्य के रूप में कहानी ही सशक्तता और समर्थता ऐसी है जिसमें पाठक इन तीनों को अलग–अलग ना देख सके “(2) वर्मा जी की कहानियों में न्यूनतम घटनाएं मिलती हैं। एक छोटा सा बिंदु ही अपने अंदर पूरी कहानी के फैलाव की संभावना समेटे रहता है। पात्रों की क्रिया– प्रतिक्रियाओं के मध्य जीवन की विकृतियां और विद्रूपताएं स्वयं को खोलती चलती हैं । सामाजिक पृष्ठाधार पर आधारित कहानियों में उन्होंने समाज में व्याप्त विकृतियों , बदलते समय के साथ तेजी से बदलते जीवन मूल्यों , सभ्यता के मानदंडों और तदनुरूप व्यक्तियों के परिवर्तित आचरण– व्यवहार पर पैनी दृष्टि डाली है।‘ वरना हम भी आदमी थे काम के‘; ‘खिलावन का नरक‘; ‘बेकारी का अभिशाप ‘; ‘अर्थ पिशाच‘; ‘कुंवर साहब का कुत्ता‘ कहानियों में पूंजीपतियों के अर्थ बल तथा आर्थिक विपन्नता में जी रहे व्यक्तियों की विवशता और दयनीयता व्यक्त हुई है । धनाभाव मनुष्य के आत्माभिमान ही नहीं मनुष्यता तक को मार देता है। ‘अर्थ पिशाच ‘ में जीवन भर दूसरों का खून चूसनेवाला व्यक्ति मौत को भी धन से खरीदने का प्रयास करता है। ‘ तिजारत का नया तरीका ‘ कहानी का नायक उचितानुचित ढंग से अर्थोपार्जन का ही प्रयास नहीं करता अपितु दूर्व्यसनी और क्रूर बन जाता है । प्रेम से जुड़ी कहानियों के अंतराल में भी अर्थ की ही मुख्य भूमिका रहती है। ‘ इंस्टॉलमेंट‘; ‘विवशता‘ ; ‘उत्तरदायित्व‘; ‘ बॉय एक पैग और ‘कहानियों में अर्थाभाव पात्रों को पतन के गर्त में धकेल देता है । ‘प्रेजेन्टस ‘; ‘ दो रातें ‘; ‘बाहर –भीतर ‘; ‘पराजय अथवा मृत्यु ‘ कहानियों में काम की समस्या को उठाया गया है । पुरुष द्वारा छली गई अथवा असंतुष्ट दांपत्य जीवन भोगती स्त्रियां तथा प्रेमिकाओं द्वारा तिरस्कृत पुरुष सहज जीवन नहीं जी पाते। उनकी कुंठा अन्ततः मानसिक विकृति का रूप ले लेती है। नैतिक मूल्यों की स्थापना के प्रति उनका आग्रह ‘ दो रातें‘ ; ‘ परिचयहीन यात्री ‘ ; ‘दो पहलू ‘ ; ‘एक विचित्र चक्कर ‘; कहानियों में स्पष्ट व्यंजित हुआ है। हास्य –व्यंग्यात्मकता तथा विनोद प्रियता उनकी समस्या प्रधान कहानियों में भी मिलती है। वैचारिकता को क्षति पहुंचाए बिना उन्होंने रोचकता की सृष्टि की है। ‘ प्रायश्चित ‘ ; ‘मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘ ; ‘ तिजारत का नया तरीका ‘ तथा ‘लाला तिकड़मी लाल ‘ केवल हास्य विनोद की सृष्टि करती हैं । ‘ प्रायश्चित ‘ में पंडित राम सुख का कर्मकांडी लोभी स्वभाव उनके द्वारा दिए गए निर्देश तथा सहसा बिल्ली का उठकर भाग जाना हास्य पूर्ण लगता है। ‘मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘ में ऐतिहासिक सत्य के अंश को हीरो जी अत्यंत रोचक से प्रस्तुत करते हैं। ‘ तिजारत करने का नया तरीका ‘ में खुशबख्त राय के तिजारत के मूर्खता पूर्ण नए तरीके पाठकों को हंसाते हैं । ‘लाला तिकड़मी लाल ‘ में मूर्ख छद्मवेशी कवियों और उनको दाद देने वाले चाटुकारों पर , ‘ दो बांके ‘ में लखनऊ के बांकों और उनके शागिर्दों के खोखले अहं हास्यास्पद हैं। वर्मा जी की कहानियों का प्रारंभ– स्थान, परिवेश , पात्रों के चित्रण, दार्शनिक टिप्पणियों के साथ हुआ है । स्थान का चित्रण स्वयं लेखक ने किया है। जहां यह अंश आवश्यकता से अधिक विस्तृत हो गए हैं वहां खटकने वाले हैं। उदाहरणार्थ ‘ दो बांके‘ कहानी में लखनऊ का चित्रण ढाई पृष्ठों का है । लेखक बीच–बीच में दो बांकों तथा इक्के वाले के विषय में भी बताता चलता है। “शायद ही ऐसा कोई अभागा हो जिसने लखनऊ का नाम ना सुना हो और युक्त प्रान्त में ही नहीं बल्कि सारे हिंदुस्तान में, और मैं तो यहां तक कहने को तैयार हूं कि सारी दुनिया में लखनऊ की शोहरत है ।“(4) ‘ लाला तिकड़मी लाल ‘ कहानी में कवि सम्मेलन के परिवेश का वर्णन तथा ‘छै आने का टिकट‘ में संपादक किशोर जी के दफ्तर का परिवेश अत्यंत विस्तृत है ।‘बतंगड़‘ कहानी विस्तृत परिवेश अंकन के कारण कहानी ही प्रतीत नहीं होती । यद्यपि यह वर्णन कहीं–कहीं आवश्यकता से अधिक लंबे हैं तथापि इनके द्वारा कहानी की मूल संवेदना और उद्देश्य का पूर्वाभास देकर लेखक ने पाठक को आगे की घटना जानने के लिए उत्सुक बनाया है । इसके बाद कहानी तीव्र गति से विकसित हो मध्य भाग तक पहुंचती है। यह कहानी की चरम सीमा भी है। पात्र परिचय के साथ प्रारंभ होने वाली कहानियों में ‘ मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘;’ रहस्य और रहस्योद्घाटन‘ ; ‘इंस्टॉलमेंट‘ ; ‘ बॉय एक पैग और ‘ का उल्लेख किया जा सकता है ।‘ मुगलों ने सल्तनत बख्श दी‘ में हीरो जी का विस्तृत वर्णन प्रथम पुरुष की शैली में दिया गया है ।” हीरो जी को आप नहीं जानते , और यह दुर्भाग्य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्य है, दुर्भाग्य हीरो जी का भी है । यदि आपका हीरो जी से परिचय हो जाए तो आप निश्चय समझ लें कि आपका संसार के एक बहुत बड़े विद्वान से परिचय हो गया…. हीरो जी पहले जन्म में विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक अवश्य रहे होंगे और अपने किसी शाप के कारण उनको इस जन्म में हीरो जी की योनि प्राप्त हुई …।“(5) ‘इंस्टॉलमेंट‘ कहानी की प्रारंभिक कुछ पंक्तियों के उपरांत लेखक चौधरी विश्वम्भर सहाय तथा उनके पिता चौधरी हरसहाय का परिचय करीब दो पृष्ठों में देते हैं जिसमें पाठक की कोई विशेष रुचि नहीं रहती । ‘ विक्टोरिया क्रॉस ‘ ; ‘ प्रेजेण्टस ‘;’ कायरता ‘; उत्तरदायित्व ‘ ‘एक विचित्र चक्कर‘ तथा ‘ राख और चिन्गारी‘ कहानियों के प्रारंभ में दी गई दार्शनिक, तार्किक या व्यवहारिक टिप्पणियां ना केवल ऊपर से थोपी गईं प्रतीत होती हैं बल्कि अंत का पूर्वाभास भी करा कर पाठक के सारे कौतुहल को समाप्त कर देती हैं । ‘पराजय अथवा मृत्यु ‘कहानी की पंक्तियां इस दृष्टि से अवलोकनीय हैं -” आप लोगों में से कितने अपने जीवन का लक्ष्य जान सकें हैं ? मेरा आपसे यह प्रश्न है, पर इस प्रश्न से पहले एक और प्रश्न उठता है , क्या जीवन का कोई लक्ष्य भी है? मैं जानता हूं कि आप इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दे सकते । ****धारा में बहते हुए धारा की गति को देखना और समझना अथवा धारा का विश्लेषण करना असंभव है; जीवित रहकर जीवन को समझना भी असंभव है। जीवन को समझने के लिए हमें जीवन से पृथक होकर उसे देखना पड़ेगा , और जीवन से पृथक होना ही अस्तित्व का विनाश है – मृत्यु है ।“(6) वर्मा जी की कहानियों में कथा– विकास विभिन्न प्रकार से हुआ है। कहीं कथाकार ने स्वयं ही पूरी कहानी सुनाई है।‘ लाला तिकड़मी लाल‘ चार खंडों में विभक्त कहानी है जिसमें पात्रों के परस्पर संवादों का आधार लेकर लेखक ने लाला विक्रमी लाल द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन , उसमें दिए जाने वाले पुरस्कारों की योजना के पीछे छिपे स्वार्थ , पुरस्कार पाने की परस्पर प्रतिद्वंदिता और अंत में तिकड़मी लाल की सारी चालों का उद्घाटन किया है। ‘ मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘ कहानी में हीरो जी गोवर्धन शास्त्री द्वारा सुनाई राजा बलि की दानवीरता को मुगलों की दानवीरता के सम्मुख श्रेष्ठ बताते हुए श्रोताओं की जिज्ञासा को उकसाकर एक मनगढ़ंत कहानी सुनाने का अवसर निकाल ही लेते हैं। बीच–बीच में ‘अच्छा तो फिर सुनो‘,’ हां तो जनाब‘ कहकर वे कथा के ढीले पड़ते सूत्र को फिर से तानते और कथा आगे बढ़ा देते हैं । ” हीरो जी ने कौन सा नया इतिहास बनाया ? आंखें कुछ अधिक खुल गईं। कान खड़े हो गए। मैंने कहा-‘सो कैसे‘?(7) बीच–बीच में श्रोताओं के प्रश्न और हामी भी कथा को गति देते हैं । इससे एक ही व्यक्ति के लगातार बोलने से उत्पन्न नीरसता का परिहार हो जाता है। ‘ एक अनुभव ‘ कहानी में परमेश्वरी के पूछने पर पृथ्वीनाथ वहां उपस्थित लोगों की अनुमति लेकर अपना अनुभव बताता है जो पूरी कहानी बन जाता । कुछ कहानियों में मुख्य वक्ता पात्र विशेष से प्रश्न करके कथा का सूत्र उसके हाथ में पकड़ा देता है। ‘दो बांके‘कहानी में लेखक इक्के वाले से उसकी जीविका और रकाब गंज के पास एकत्रित भीड़ का कारण पूछता है जिससे इक्का वाला ही वाचक की भूमिका में आकर बांकों की विचित्र प्रतिद्वंदितापूर्ण कथा सुनाता है । ‘मेज की तस्वीर ‘ कहानी में कोई वाचक नहीं है। कहानी अत्यंत छोटी है और रामनारायण के मोनोलॉग (आत्म संवाद)के रुप में है। संयोगात्मक घटनाओं द्वारा भी कथा का विकास करने तथा उसे वांछित दिशा में मोड़ने के विविध उद्देश्य लेखक द्वारा साधे गये हैं।‘ प्रायश्चित ‘ कहानी में बिल्ली ठीक उसी समय उठकर भागती है जब प्रायश्चित के लिए सभी व्यवस्था निश्चित हो चुकी हैं। इससे कहानी में हास्य की सृष्टि हुई है तथा बाह्य कर्मकांडों और अंधविश्वासों की निस्सारता उद्घाटित करने का लेखकीय मंतव्य भी सिद्ध हो जाता है।‘विक्टोरिया क्रॉस‘कहानी में सुखराम फौजी ट्रेंच में से गोलाबारी शुरू करने पर निकलकर भागे थे किंतु उसी समय संयोग से एम्यूनिशन खत्म हो गई। सुखराम जब डेंज़र जोन से किसी तरह भागकर कर्नल साहब के खेमे पर पहुंचे तो उनके मुंह से बदहवासी में गोली– गोली शब्द निकले जो संयोगावश उनके द्वारा दी गई सूचना समझ उन्हें विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया गया। वर्मा जी की कहानियों के अंत भी अत्यंत प्रभावोत्पादक और मर्मस्पर्शी हैं। लेखकीय निष्कर्ष के साथ समाप्त होने वाली कहानियां प्रभावी हैं। ‘ एक अनुभव ‘ कहानी में लेखक होटल में देह व्यापार के लिए आई युकती को उस घृणित काम से रोकने के लिए पूरे महीने मिल जाने वाले पैसे दे देता है। रुपए लेकर जाती युकती के ‘भगवान आपका भला करें‘ कहने पर चिंतित लेखक की अंतिम उक्ति अत्यंत प्रभावी है। “अरे किस भगवान से यह मेरा भला करने को कह गई है ? xxxउसी भगवान से, जो उसे गिराता ही जा रहा है? उसी भगवान से जिसने इसको उठाना तो दूर रहा है, इसे पशु बना दिया है? क्या वह भगवान इसके कहने से मेरा भला कर सकता है ?(8) यह अंत लेखक द्वारा पूछे गए एक अनुत्तरित प्रश्न के कारण बहुत ही प्रभावी हो गया है। पात्र विशेष के आत्मकथन से समाप्त होने वाली कहानियों के अंत अपनी मार्मिकता से पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं । ‘पराजय अथवा मृत्यु‘ कहानी में प्रतिपल मृत्यु के शिकंजे में कसी जा रही भुवनेश्वरी देवी उसी युवक को पुकारती हैं जिससे विवाह करने को वे अपनी पराजय या गुलामी समझती हैं। ‘प्यारी ‘ कहानी में प्यारी पति नारायण के जेल जाने के बाद अर्थाभाव में देह व्यापार करने के लिए बाध्य होती है। वह पति की प्रतीक्षा करते करते बूढ़ी और अंधी हो जाती है और चौराहे पर भीख मांगने लगती है । ‘ बेकारी का अभिशाप‘, ‘ बॉय एक पैग और ‘,’कुंवर साहब मर गए‘ आदि कहानियों का अंत अधूरे वाक्यों से हुआ है जो पात्रों के मानसिक उद्वेलन को अभिव्यक्त करता है। ‘ खिलावन का नरक‘ तथा ‘ कायरता ‘ कहानियों के अंत सांकेतिक हैं जहां पाठक वास्तविकता से परिचित हो जाता है तथा लेखक कहानी के सभी बिखरे सूत्रों को ग्रथित भी कर देता है । उदाहरणार्थ ‘कायरता ‘ कहानी के अंत में स्पष्ट हो जाता है कि वेटिंग रूम में चलने वाली गप्पबाजी में एक वृद्ध द्वारा सुनाई जाने वाली आपबीती के श्रोता के रूप में उपस्थित जज साहब विश्वम्भर दयाल ने ही वृद्ध की भावज और भतीजे से रिश्वत लेकर उनके पक्ष में निर्णय सुनाया था जिससे वृद्ध का पूरा जीवन यातनापूर्ण हो गया था। पत्र शैली में लिखी गई कहानियों के अंत पत्रों के विवरण के साथ अथवा पत्र लेखक अथवा लेखिका के उल्लेख के साथ हुए हैं और उनके मानसिक उद्वेलन को व्यक्त करते हैं । ‘मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘ तथा ‘ प्रेजेण्टस ‘ कहानियों का अंत संवाद के साथ हुआ है जबकि ‘अनशन ‘ कहानी में सात दिन तक हवालात में अनशन करते पांडे जी को नली से दूध पिलाया जाता रहा और अंत में उन्हें छोड़ दिया जाता है । वर्मा जी की अधिकांश कहानियां दुखांत हैं। पात्रों की लाचारी , निस्सहायता छटपटाहट पाठक पर भी हावी होने लगती है किंतु जहां पात्र सशक्त और समर्थ होकर भी जानबूझकर निर्बलता और कायरता ओढ़ते हैं तथा भाग्य और भगवान की दुहाई देते हैं वहां लेखक का आक्रोश तीखे व्यंग्य के रूप में अभिव्यक्त हुआ है ।‘ राख और चिंगारी ‘,’पराजय अथवा मृत्यु ‘, ‘बॉय एक पैग और‘ इत्यादि कहानियों का अंत इसी प्रकार का है । वर्मा जी कहानी को ऐसे स्थल पर समाप्त करते हैं जहां व्यंग्य अधिक से अधिक तीखा और तिलमिलाने वाला हो। कहीं–कहीं दृष्टांत की प्रेरणा भी अंत में है। केवल एक कहानी ‘वरना हम भी आदमी थे काम के‘ का अंत मियां राहत के शेर के साथ हुआ है– ” इश्क ने हमको निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के “(9) वर्मा जी की कहानियों के शीर्षक कहानी की मूल संवेदना , घटना व पात्रों पर आधारित हैं । अधिकांश संक्षिप्त है किंतु लंबे शीर्षक भी आकर्षक और जिज्ञासावर्धक हैं । एक अनुभव , मेज की तस्वीर ,कायरता , उत्तरदायित्व , अर्थ पिशाच, पराजय अथवा मृत्यु, राख और चिंगारी तथा बॉय एक पैग और कहानियों के शीर्षक कहानी की मूल संवेदना को व्यक्त करते हैं । प्रायश्चित , मुगलों ने सल्तनत बख्श दी , तिजारत का नया तरीका‘, इंस्टॉलमेंट – शीर्षक घटना प्रधान हैं । दो बांकें , ,नाज़िर मुंशी , कहानियों के शीर्षक मुख्य पात्र पर आधारित हैं। मुगलों ने सल्तनत बख्श दी‘, वरना हम भी आदमी थे काम के ,बेकारी का अभिशाप ,जैसे शीर्षक किंचित लंबे हैं पर कहानी की मूल संवेदना से जुड़ने तथा कौतूहल उत्पन्न करने के कारण खटकते नहीं हैं। लेखक ने कहानी कहते समय शीर्षक की आवृत्ति करके रोचकता में वृद्धि की है। प्रायश्चित, मुगलों ने सलतनत बख्श दी , राख और चिंगारी, बॉय एक पैग और कहानियों में शीर्षक की अनुगूंज आद्यन्त बनी रहती है। वर्मा जी ने अपनी कहानियों में विषयानुरूप पात्रों की योजना की है । उनके अनेक चरित्रों की क्रियाप्रतिक्रिया से घटनाएं जन्म लेती हैं और उनसे भावात्मक संवेदना सघन हो जाती है। मुगलों ने सलतनत बख्श दी कहानी में केवल एक मुख्य पात्र हीरो जी हैं। वही कहानी के वाचक भी हैं। शेष पात्र श्रोता हैं जिनकी जिज्ञासा कथा को आगे बढ़ाती है। वर्मा जी ने नारी –पुरुष दोनों प्रकार के विभिन्न स्तर और व्यवसाय के पात्रों की सृष्टि की है । कुछ पात्र वर्गगत विशेषताओं से युक्त अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्मा जी के अधिकांश पात्र उच्च वर्गीय धनाढ्य अथवा उच्च मध्य वर्ग के हैं क्योंकि वे उनके बीच ही पले –बढ़े थे अतः उनकी रग– रग से परिचित थे। ये लोग डॉक्टर , जज, व्यवसायी हैं जो अपने कार्य में दक्ष होने के बाद भी उचितानुचित ढंग से धन कमाने, पीने –पिलाने , जुआ खेलने, वेश्या गमन आदि से पीछे नहीं हटते अतः व्हिस्की बीयर , व्हाइट हॉर्स आदि का उल्लेख लेखक ने बार–बार किया है। धनाढ्य और शिक्षित आधुनिकाएं भी वर्मा जी की कहानियों में हैं। वे उच्श्रृंखल, धनलोलुप, पुरुषों की समकक्षता करनेवाली, पथभ्रष्ट हैं। प्रेजेण्टस, बॉय एक पैग और , कहानियों की नायिकाएं इसी प्रकार की हैं। लाला तिकड़मी लाल कहानी में कवियों की परस्पर प्रतिद्वंदिता का अंकन कथाकार ने किया है। । ‘आवारे ‘ कहानी में पात्रों के माध्यम से निम्न मध्यवर्गीय पात्रों जीवन व्यंजित हुआ है । इस वर्ग के युवक– युवती ना चाह कर भी अनुचित मार्ग अपनाते और ठोकर खाते हैं। ‘ काश कि मैं कह सकता ‘, ‘ वह फिर नहीं आई ‘, ‘एक अनुभव ‘ कहानियों की नायिकाएं सात्विक होने पर भी देह व्यापार करने के लिए विवश हैं। ‘पराजय अथवा मृत्यु ‘ कहानी की भुवनेश्वरी देवी का पुरुष जाति पर से ही विश्वास उठ जाता है। पात्रों के चरित्रोद्घाटन के लिए कहानीकार ने विविध प्रवृत्तियों का अवलंब लिया है । पात्रों के बाह्याकृति और विशेषताओं का रेखाचित्रात्मक अंकन उन्होंने स्वयं किया है। ‘ प्रायश्चित ‘ कहानी में पंडित परमसुख का चित्र भी अत्यंत सजीव है। परिस्थितियों के घात– प्रतिघात पात्रों के चरित्र को परिवर्तित करते हैं। पात्रों के आत्मकथन भी उनके चरित्र को प्रकाशित करते हैं । कहीं–कहीं एक पात्र दूसरे के विषय में भी बताता है। ‘ विक्टोरिया क्रॉस ‘ कहानी में सुखराम का साथी उन्हें विक्टोरिया क्रॉस मिलने की सारी कथा कहता है जिससे सुखराम की कायरता पर प्रकाश पड़ा है। ‘दो रातें ‘ कहानी में वेश्या अपने विषय में स्वयं जीवन बापू को बताती है। ‘छै आने का टिकट ‘ कहानी में रामखेलावन शरण नारायण प्रसाद सिंह तथा संपादक किशोर जी की परस्पर वार्ता– रामखेलावन शरण नारायण प्रसाद सिंह को मुफ्त खोरी और गले पड़ जाने की वृत्ति और किशोर जी की सदाशयता और लाचारी को व्यक्त करती है। अधिकांश पात्रों के नाम रमेश , परमेश्वरी इत्यादि हैं किंतु कुछ नाम पात्रों के चरित्र का संकेत भी करते हैं जैसे पंडित परमसुख , सुखराम, तिकड़मी लाल आदि। वर्मा जी ने छोटे नाटकीय संवादों की योजना की है। उनके संवाद कथा विकास और चरित्रोद्घाटन में सहायक रहे हैं किंतु अधिकांश स्थानों पर लेखक ने स्वयं ही कथा का वाचन किया है । वर्मा जी के जीवन का अधिकांश समय लखनऊ में व्यतीत हुआ जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है अतः उनकी भाषा में उर्दू के शब्द अधिक हैं। सरल, सहज, नित्य प्रति के व्यवहार की भाषा ने उनकी कहानियों को सर्वसामान्य में लोकप्रिय बनाया है । कैफ़ियत , क़यास, काबिल, इत्तिला, इज्ज़त, दर्ज, , ख़ैरात, जैसे शब्द उनकी भाषा में अत्यंत स्वाभाविक रूप से घुले मिले हैं । पात्रों के नाम नाज़िर मुंशी , खुदा बख्श , रहमत अली भी उर्दू के हैं । वर्मा जी ने भाषा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए अंग्रेजी के शब्दों का निसंकोच प्रयोग किया है– policy, socialist, mill, decency, middle class, fatalist, tuition, station, compartment, , hotel, club, agency, आदि शब्द प्रसंगानुसार प्रयुक्त होने के कारण अखरते नहीं हैं। सूक्तियों के प्रयोग ने भाषा में गंभीरता की सृष्टि की है यथा ‘ संयोग का नाम जीवन और वियोग का नाम मृत्यु है।‘ , ‘वास्तविकता कल्पना से कहीं अधिक कुरुप होती है ।‘ इसी प्रकार कहावतों का प्रयोग यथा स्थान हुआ है। यथा ‘जल्दी का काम शैतान का काम‘; ‘ पत्थर पर सर पटकने से सर फूटता है पत्थर नहीं ‘। मुहावरों में जान है तो जहान है, दिमाग चाटना , आड़े हाथों लेना, दूर की हांकना , दिया तले अंधेरा इत्यादि का प्रयोग भाषा पर उनकी पकड़ को अभिव्यक्त करता है । वर्मा जी ने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। पात्र अपने शैक्षिक स्तर के अनुरूप भाषा का प्रयोग करते हैं। ‘खिलावन का नरक‘ कहानी में सुखिया की भाषा उसके स्तरानुरूप है ।” तुम्हें क्या– मुसीबत तो हमारी है । अम्मा जी पुछि हैं कहाँ रही–तब का कहब ? और अम्मा जी दद्दा जी से एक एक की सौ सौ जहि हैं।“(10) वर्मा जी कहानी में विषय वस्तु की अपेक्षा शैली का उत्कृष्ट होना अधिक आवश्यक मानते थे । उनकी अधिकांश कहानियां वर्णात्मक शैली में लिखी गई हैं। इस दृष्टि से वे प्रेमचंद के अधिक समीप हैं । ‘प्रायश्चित‘ कहानी में बिल्ली के मरने की पृष्ठभूमि वर्णात्मक शैली में हैं । “अगर कबरी बिल्ली घर भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से ,और अगर रामू की बहू घर भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से ।रामू की बहू दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी । पति की प्यारी और सास की दुलारी चौदह वर्ष की बालिका । भंडार घर की चाबी उसकी करघनी में लटकने लगी,नौकरों पर उसका हुक्म चलने लगा और रामू की बहू घर में सबकुछ। सास जी ने माला ली और पूजा पाठ में मन लगाया ।“(11) रेखाचित्रात्मक शैली का प्रयोग पात्रों , वस्तुओं, परिवेश एवं वातावरण अंकन में मिलता ‘दो बांकें‘ कहानी में पुल पर की गयी लड़ाई और मुर्दा उठाने की व्यवस्था का,’ पराजय अथवा मृत्यु‘ कहानी में भुवनेश्वरी देवी का रेखाचित्र भी लेखक ने अत्यंत मनोयोग से अंकित किया है। नाटकीय शैली का प्रयोग पात्रों के आत्मकथन तथा परस्पर वार्तालाप में मिलता है। ‘ दो बांके‘ कहानी में बांकों की लड़ाई के लिए की गई व्यवस्था ,बांकों का एक–एक पग आगे बढ़ना और एक दूसरे को ललकारना , पंजे लड़ाना और फिर सलाम कर हट जाना अत्यंत नाटकीय है।‘ मुगलों ने सल्तनत बख्श दी ‘ कहानी में हीरो जी का कथा वाचन तथा ‘अर्थ पिशाच‘ कहानी में पात्रों का एक–एक कर प्रवेश करना और दीवार में लुप्त हो जाना भी अत्यंत नाटक है। वर्मा जी ने पत्र शैली का प्रयोग दो प्रकार से किया है । कहीं तो पूरी कहानी पत्र रूप में ही है जिसमें पत्र लिखने वाले की मानसिकता व्यक्त हुई है जैसे ‘राख और चिंगारी ‘ कहानी का प्रारंभ और अंत गीता चौधरी के पत्र के साथ होता है जिसमें उसने अपने भावी पति को अपने जीवन और उत्तरदायित्व के विषय में बताते हुए विवाह करने की अपनी असमर्थता व्यक्त की है। ‘पराजय अथवा मृत्यु‘ कहानी में नारी स्वातंत्र्य की उद्घोषिका भुवनेश्वरी के दो पत्र हैं। प्रथम पत्र वे अपनी और अपनी सहेली की गुंडों से रक्षा करने वाले व्यक्ति को धन्यवाद स्वरूप लिखती हैं और दूसरा पत्र अत्यंत द्वंदग्रस्त मानसिकता में उसी व्यक्ति को लिखा गया है जिसे उन्होंने विवाह करने की स्वीकृति दी है। उद्धरणात्मक शैली का प्रयोग उन स्थानों पर हुआ है जहां पात्र अपने पक्ष को पुष्ट करने के लिए उदाहरण देते हैं। ‘रहस्य और रहस्योद्घाटन ‘ कहानी में मिस्टर गौतम , चांडाल की भविष्यवाणी पर विश्वास कर चुनाव लड़ने का निश्चय करते हैं और उसके यहां दक्षिणा भिजवाते हैं। ‘एक अनुभव‘, ‘वरना हम भी आदमी थे काम के‘,’ आवारा‘ इत्यादि कहानियों में भी उद्धरण शैली का प्रयोग हुआ है। तुलनात्मक शैली के प्रयोग की दृष्टि से ‘विवशता ‘ कहानी उल्लेखनीय है। लेखक द्वारा व्यक्त की गई दार्शनिक व्यावहारिक टिप्पणियों में भी इसका प्रयोग हुआ है। पुरुष– नारी, सुख –दुख , सुंदरता– कुरूपता आदि में स्थान –स्थान पर तुलनात्मक टिप्पणियां मिलती हैं । वर्मा जी का हास्य व्यंग्य सोद्देश्य है। उनकी कहानियों के शीर्षक और पात्रों के नाम हास्यपूर्ण हैं पर वे कथा की मूल संवेदना और पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को व्यक्त करते हैं जैसे लाला तिकड़मी लाल, तिजारत का नया तरीका । लाला तिकड़मी लाल अपने नाम के अनुरूप ही तिकड़म बाज हैं। बांके‘ कहानी में बांकों की लड़ाई का नाटकीय वर्णन हास्य पूर्ण है। लेखक ने उसके माध्यम से बांकों और उनके शागिर्दों के झूठे अहं पर व्यंग्य किया है। वर्मा जी संकलन त्रय के निर्वाह को अनिवार्य नहीं मानते थे । उन्होंने प्रभाव की एकता को ही अधिक महत्व दिया है । उन्होंने भीड़ भाड़ से भरे हल–चल युक्त स्थानों का चित्रण अधिक किया है जैसे होटल , क्लब, चाय की दुकान, इत्यादि । प्रकृति का चित्रण बहुत कम और केवल पात्रों की मानसिकता को व्यक्त करने के लिए हुआ है। ‘ लाला तिकड़मी लाल ‘ कहानी में कवि फटीश जी का कमरा उनके नाम के अनुरूप फटे हाल था। ‘ खिलावन का नरक‘ कहानी में वर्षा का चित्रण खिलावन की मानसिकता के अनुरूप है। कह सकते हैं कि कतिपय न्यूनताओं के होते हुए भी भगवती चरण वर्मा की कहानियों के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। वे अपनी कहानियों में पाठक को पहले कुरुप ,अशिव से परिचित कराते हैं और फिर शिव की ओर अग्रसर करते हैं। शिव स्वतः ही सुंदरम् का मार्ग निर्देशित कर देता है। उनकी मान्यता है कि साहित्य कुरुपताओं के प्रति मनुष्य में ग्लानि उत्पन्न कर सुंदरता के प्रति मनुष्य में आकर्षण उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने वेश्याओं, अर्थाभाव में पतित होती विवश नारियों, धन लोलुप ,भ्रष्ट युवक–युवतियों के सजीव चित्र अंकित किए हैं। हिंदी कहानी कारों में भगवती चरण वर्मा की कहानी कला मुख्यतः प्रेमचंद संस्थान के समीप है । सन्दर्भः 1 मेरी कहानियां , भगवती चरण वर्मा, प्रथम संस्करण , राजकमल प्रकाशन, भूमिका2 साहित्य के सिद्धांत और रूप, भगवती चरण वर्मा ,पृष्ठ 172 – 173 3-11 . देखिए, मेरी कहानियां ,भगवती चरण वर्मा पृष्ठ 15 – 17, 15, 21,182, 23. 115. 107.118. 9 संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रेखा श्रीवास्तव का लेख – एक पहल ऐसी भी! वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – कदम बढ़ाइये, फिर देखिए…! वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – अपने आप पर भरोसा करें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. 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