Saturday, July 27, 2024
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संपादकीय – बिगड़ा मुण्डा बिगाड़े रिश्ते

विश्व में भारत की बढ़ती साख और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता शायद अमरीकी प्रशासन को चुभने लगी है। वरना क्या कारण है कि गुरपतवंत सिंह पन्नु जैसे घोषित आतंकवादी के लिये अमरीका भारत से अपने रिश्ते ख़राब करने को तैयार हो गया है। मन में यह सवाल भी उठता है कि कहीं पन्नू सी.आई.ए. का एजेन्ट तो नहीं है!

हमेशा कहा जाता रहा है कि अमरीका किसी का दोस्त नहीं हो सकता। जैसे भारत में कहा जाता है कि पुलिस की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी अच्छी। अमरीका का इतिहास बताता है कि उसने कभी अपने मित्रों का साथ नहीं दिया, बल्कि उन्हें धोखा ही दिया है। अमरीका दोस्ती नहीं करता, अपना उल्लू साधता है।
ईरान के बादशाह रज़ा शाह पल्लवी अमरीका का सबसे गहरा दोस्त था। ईरान में शराब की दुकानें होती थीं नाइट क्लब होते थे। मगर जब वहां ख़ोमेनी का इंकलाब आया और शाह को अपनी पत्नी के साथ भागना पड़ा तो अमरीका ने आंखें फेर लीं। यहां तक कि उसे अमरीका में घुसने नहीं दिया और उसके तमाम अकाउण्ट भी सील कर दिये।
फिलीपीन्स के राष्ट्रपति मार्कोस,  अंगोला का विद्रोही सरदार जूनास सुमोनी, चिली के फौजी चीफ जनरल अगस्टो पिनोशे, निकारागुआ के अनास-तसिसु जैसे कई नामों की लम्बी सूची है जो अमरीका के धोखे का शिकार हुए।
सद्दाम हुसैन की कहानी तो पूरी दुनिया जानती है, अमरीका के कहने पर ईरान पर हमला किया और 8 वर्ष तक जंग लड़ी जिसमें 10 लाख से अधिक लोग मारे गये। 1990 तक अमरीका दोस्त रहा, मगर अमरीका ने तेल की लालच में इराक पर हमला कर दिया और फिर पूरी दुनिया ने देखा कि अमरीका के इशारे पर 2006 में उसे किस बेदर्दी से फांसी दे दी गयी। अमरीका ने ओसामा बिन लादेन की मदद से अल-कायदा को बनाया और रूस के खिलाफ उसका इस्तेमाल किया, जब रूस बर्बाद हो गया और अल-कायदा से कोई मतलब नहीं रहा तो उसे आतंकी संगठन घोषित कर दिया। फिर ओसामा बिन लादेन अमरीका का दुश्मन हो गया और अमरीका ने उसे पाकिस्तान में घुस कर मार गिराया।
पाकिस्तान ने भी अमरीका की दोस्ती का स्वाद चखा। जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो अमरीका ने अपनी समुद्री बेड़ा हिन्द महासागर में भारत के विरुद्ध ला खड़ा किया। आज पाकिस्तान आर्थिक बदहाली के कगार पर खड़ा है और अमरीका को महसूस हो रहा है कि पाकिस्तान से अब उसे कुछ नहीं लेना है।
पिछले कुछ वर्षों से भारत और अमरीका के रिश्ते कम से कम ऊपरी तौर पर प्रगाड़ होते दिखाई दे रहे हैं। दोनों देश रक्षा से लेकर व्यापार तक के मुद्दे पर साथ आए हैं. दोनों देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने लगातार एक-दूसरे के मुल्कों की यात्रा की है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और अब जो बाइदेन के आपसी रिश्ते दो देशों को निकट लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिस तरह जो बाइदेन और नरेन्द्र मोदी हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर गले मिलते दिखते हैं, तो लगता है जैसे अमरीका और भारत दुनिया के सबसे अच्छे मित्र हैं।
कभी-कभी हम अपनी आंखों से जो देखते हैं वो सच नहीं होता और जो सच होता है, वो देख नहीं पाते। राजनीति में न तो कोई स्थाई मित्र होता है और न ही कोई स्थाई शत्रु। इसलिये आवश्यक यह है कि चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हों, उसकी सोच के केन्द्र में देश का हित होना चाहिये न कि पार्टी और चुनाव। यदि देश के हित के लिये कुछ कठोर अप्रिय कदम भी उठाने पड़ें तो भी पीछे नहीं हटना चाहिये।
सबसे पहले ब्रिटेन के समाचारपत्र फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि अमेरिका में पन्नू की हत्या की साजिश रची गई थी, जिसे अमेरिका ने नाकाम कर दिया… रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अमेरिकी सरकार ने पन्नू की हत्या की साजिश का मामला भारत सरकार के समक्ष उठाया था। इस मामले में भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता चेक गणराज्य में गिरफ़्तार किया गया है।
आरोप यह है कि निखिल गुप्ता ने अमरीका के किसी व्यक्ति से संपर्क किया और उसे एक प्रोफ़ेशनल हत्यारे का इन्तज़ाम करने के लिये कहा। यह व्यक्ति अमरीका की ड्रग कंट्रोल एजेंसी का ख़बरी था। उसने एक अंडर-कवर एजेन्ट की मुलाक़ात निखिल गुप्ता से करवाई। निखिल ने उसे एक लाख डॉलर दिये और पन्नू की हत्या का काँट्रेक्ट दिया। आरोप यह भी है कि निखिल गुप्ता ने रॉ के तीन अधिकारियों के समक्ष इस अंडर-कवर किलर से वीडियो बातचीत भी की।
सच तो यह है कि रॉ के अधिकारी कभी अपनी पहचान किसी को नहीं बताते। जबतक कोई अधिकारी रॉ का प्रमुख नहीं बन जाता उसकी फ़ोटो भी गूगल पर नहीं मिलती। फिर ये रॉ के अधिकार सूट-टाई पहन कर निखिल गुप्ता के फ़ोन से वीडियो कॉल कैसे कर रहे थे। रॉ के दफ़्तर में तो किसी को मोबाइल फ़ोन ले जाने की इजाज़त ही नहीं है। मामला इतना सीधा नहीं जितना कि ऊपरी सतह पर अमरीका बता रहा है।
अमरीका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और व्हाइट हाउस प्रवक्ता जॉन किर्बी ने मामले की गंभीरता को रेखांकित करते हुए बयान दिये हैं। मगर दोनों ने भारत के साथ अमरीका के रिश्तों को ध्यान में रखते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तरह सीधे भारत सरकार पर आरोप नहीं लगाया। मगर कनाडा के प्रधानमंत्री ने अमरीका के आरोप की डोर पकड़ते हुए अपने आरोपों को दोहराया कि निज्जर की हत्या के मामले में भारत सरकार के अधिकारी दोषी हैं।
देखने में आया है कि जब कभी कोई देश मज़बूत होता दिखाई देता है अमरीका वहां सत्ता परिवर्तन के लिये काम करना शुरू कर देता है। विश्व में भारत की बढ़ती साख और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता शायद अमरीकी प्रशासन को चुभने लगी है। वरना क्या कारण है कि गुरपतवंत सिंह पन्नु जैसे घोषित आतंकवादी के लिये अमरीका भारत से अपने रिश्ते ख़राब करने को तैयार हो गया है। मन में यह सवाल भी उठता है कि कहीं पन्नू सी.आई.ए. का एजेन्ट तो नहीं है!
आख़िर है कौन यह गुरपतवंत सिंह पन्नू जिसे लेकर अमरीका और कनाडा दोनों ही देश परेशान हुए जा रहे हैं। दरअसल अमरीका और कनाडा में सक्रिय एक खालिस्तान समर्थक आतंकवादी संस्था है जिसका नाम है – सिख फ़ॉर जस्टिस। पन्नू उसका मुखिया भी है और सबसे अधिक कुख्यात चेहरा भी। ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया – इन चार देशों में सिखों की कुल आबादी लगभग बीस लाख है। जबकि भारतीय पंजाब में करीब 1.80 करोड़ सिख रहते हैं। इन्हीं चारों देशों में खालिस्तान समर्थक सिख भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों और हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसात्मक गतिविधियां करते रहे हैं। कनाडा और अमरीका अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में उन पर कोई भी कार्यवाही करने से बचते रहे हैं।
कनाडा के साथ तो भारत के रिश्तों में खासी दरार आ चुकी है। मगर अमरीका और भारत को इस मामले को बहुत परिपक्वता से हल करना होगा। अमरीका और कनाडा को समझना होगा कि वो दिन हवा हुए जब यूरोप और अमरीका का दर्द सारे जहां का दर्द होता था और बाकी दुनिया की परेशानी से अमरीका और यूरोप को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था।
अमरीका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पन्नू मामले पर भारत के रुख की सराहना करते हुए कहा कि भारत ने बिल्कुल सही फैसला लिया है। साथ ही उन्होंने इसे गंभीर बताते हुए भारत से एक्शन लेने की भी उम्मीद की है। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी घटना है, जिसे हमने बहुत गंभीरता से लिया है। इस मामले को हमने इसे सीधे भारत सरकार के सामने उठाया। भारत सरकार की ओर से अब इसकी जांच की घोषणा की गई है। यह एक अच्छा और उचित कदम है। मैं अब ये देखने को उत्सुक हूं कि इस जांच के नतीजे क्या निकलते हैं।
भारत सरकार को भी इसी भाषा में कहना होगा, “अमरीका जिस तरह भारत के घोषित आतंकवादियों की रक्षा कर रहा है उसे भारत बहुत गंभीरता से ले रहा है। जिस तरह एअर इंडिया के विमानों को उड़ा देने की धमकी भरे वीडियो पर अमरीका कोई ध्यान नहीं दे रहा उससे लगता है कि आतंकवाद की लड़ाई के विरुद्ध अमरीका गंभीर नहीं है।”
ऐसा नहीं चलेगा कि अमरीका अपने आतंकवादियों की तो दूसरे देशों में घुस कर हत्या करे और पूरी बेशर्मी से करे मगर दूसरे देशों के आतंकवादियों को अपने देश में पनाह देकर नागरिकता की दुहाई देते हुए सुरक्षा प्रदान करे। आतंकवाद का न तो कोई रंग होता है और न ही कोई नागरिकता… आतंकवाद के बारे में अमरीका की हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान के बारे में कहा था, “यदि कोई अपने घर में साँप पालता है तो वह यह न सोचे कि साँप केवल पड़ोसी को डसेगा और घर वालों को छोड़ देगा।” भारत के विरुद्ध जिस आतंकवाद की आज अमरीका रक्षा कर रहा है, कल यह आतंकवाद अमरीका को ही डसेगा।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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28 टिप्पणी

  1. आज का संपादकीय एक कहावत कि याद दिलाता कि ठाडे का डर मारे भी और रोने भी ना दे?! अमेरिका की भी यही स्थिति है। हर जगह अपनी चौधराहट और चीन के साथ या किसी सहयोगी देश के साथ बस नूरा कुश्ती। अमेरिका की दोस्ती कभी स्थाई नहीं रही।कई देश इसका परिणाम सत्ता परिवर्तन या तख्ता पलट या फिर आर्थिक दिवालियेपन पर आ कर चख या भुगत चुके हैं।इस संपादकीय में आदरणीय डॉक्टर तेजेंद्र शर्मा जी ने तर्कसंगत और युक्तिसंगत अंदाज़ ए बंया से भारत और वैश्विक पटल पर इस ओर बताने की कोशिश की है।
    आज भारत में जन बहुल लोकतंत्र की सरकार है।जनता जन्नार्दन ने दो बार इसी सरकार को भारत को तकदीर सौंपी है और आज भारत की स्थिति अलग है और मजबूत है।सही कहा हैं कि महाशक्ति भारत को मजबूत स्थिति में देखना नहीं चाहती हैं। यूं भी अब हमारा देश चुनाव mode में है और अमेरिका इस बात को समझ रहा है तभी वह आपसी संबंधों को ताक पर रख कर अपना उल्लू साधने और भारत की छवि को खराब करने में लगा है।
    क्या ही अच्छा होता कि यही आलेख अंग्रेजी के किसी बड़े मंच से आता तो एक बड़े जन समूह से प्रतिक्रियाओं का तांता बंध जाता।
    सलाम इतना बोल्ड संपादकीय लिखने के लिए।

  2. अमेरिका कभी भी किसी का दोस्त नही रहा है। 1971 में पाकिस्तान का दोस्त था परंतु केवल ये भेज रहा हूँ वो भेज रहा हूँ करता रहा, वह केवल अपने हथियार बेचने का ही कार्य करता है आज यूक्रेन के साथ भी यही किया।

  3. प्रत्येक रविवार की प्रतीक्षा में रहती हूँ कि आपका संपादकीय पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होगा… सादर नमस्कार सर राजनीति पर मेरा ज्ञान अत्यंत स्वल्प है.. किंतु सर इसका आरोह अवरोह समझती हूँ…..
    यह खेल युगों से होता आ रहा है…. कुछ दिन पहले मैं अपने बच्चों को कह रही थी…कि हमारा देश ज्ञान एवं विद्या का अनंत भंडार है…. इसे लूटने हेतु प्रत्येक युग में राक्षस जन्म हुए हैं… युग के परिवर्तन के साथ साथ इनके चेहरे की आकृति का परिवर्तन तो हुआ है किंतु मानसिकता नहीं… शिक्षित राक्षस हो चुके हैं…. भारत पर किसी भी प्रकार आक्रमण करने पर सदैव तत्पर रहते हैं… इसकी संस्कृति का विनाश उनकी विजय है…. और दुख तो इस बात का है कि इस दशा के लिए हमारे ही देश में हम में छुपे वे स्वार्थी एवं निर्दय लोग ही उत्तरदायी हैं। जो निज स्वार्थ हेतु सदैव देश को दाव पर लगा दिए। यह पीड़ा यह संताप कदाचित सर्वस्व हर लेगा…. ध्वंसाभिमुखी मानवों को नैतिक मूल्य क्या दें सर?

    आपको आंतरिक धन्यवाद कि आप इतने संतुलित शब्दों में अपने गूढ़ विचारों को पाठकों के समक्ष रखते हैं एवं इस पर विचार करने को प्रेरित करते हैं

    • हर एक संपादकीय एक रचनात्मक साहित्यिक संपत्ति है। कोई एक अच्छी कहानी ,कोई कोई संस्मरण, कोई रेखाचित्र तो कोई रिपोर्ताज और कोई व्यंग्य- निबंध जैसा आस्वाद देता रहता है।

  4. सम्पादकीय मेंअमेरिका की रीति नीति की
    ऐतिहासिक व्याख्या सटीक है ।
    ये सच है कि विश्व में बदलते हुए हालात का प्रभाव उस पर अपने आप दिखाई देने लगा है ।
    अतःअपने सन्दर्भो में अमरीका शासन को पुनः चिंतन की जरूरत है ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  5. अमेरिका के दोहरे चरित्र का सही विश्लेषण किया गया है,पुरवाई के संपादक जी को सादर धन्यवाद।।

  6. एकदम सही संपादकीय, अमेरिका का यही सच है अब भारत को साफ़ साफ़ कहना होगा कि वो भी अपने आतंक वादियों को मारने का हक रखता है

  7. आदरणीय संपादक महोदय
    विश्व पटल पर भारत की सशक्त छवि के प्रति विश्वास और अमेरिका -कनाडा के स्वार्थपूर्ण व्यवहार को पुष्ट करता आपका संपादकीय हृदय को आनंदित कर गया, बधाइयां
    अमेरिका के लिए सदा से निम्न भारती मुहावरे सटीक बैठते हैं –
    १-गांव में आग लगा के जमालो दूर खड़ी
    (देशों को युद्ध में झोंक ,अपने हथियार बेचकर अमेरिका वहां से हट जाता है)
    २-मतलबी ‘यार’ किसके? खाया पिया खिसके।
    (जैसे मकड़ी अपने जाल में मक्खी को फंसा कर उसका रस चूस लेती है और फिर वहां से हट जाती है। )

  8. आतंकवाद के खिलाफ लिखा गया बहुत ही बढ़िया लेख विश्व पटल पर भारत की साख बढ़ रही है जय हिंद जय भारत

  9. अब तक जिस प्रकार मोदी जी ने पुतिन और बाइडेन दोनों को हैंडल किया है वह काबिल-ए-तारीफ़ है। आशा है भविष्य में ऊँट सही करवट बैठेगा ।

  10. हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
    वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती
    वाह रे भारत के so called सच्चे दोस्त अमरीका। एक दूसरे देश के आतंकवादी को आतंकवादी न मान कर अपने देश की नागरिकता देकर उसके लिये उस देश से झगड़ा कर रहे हो जिस के प्रधान मन्त्री से कुछ दिन पहले ही जप्फियां डाल डाल कर और हंस हंस कर गले मिल रहे थे। क्या वो सब ड्रामेबाज़ी थी या दिखावा था? अरे वो शख़्स जो अपने मुल्क का नहीं हो सका वो तुम्हारा क्या होगा। मत भूलो, भारत वो देश है जिसके सपूत तुम्हारे देश की बड़ी बड़ी कम्पनियां चला रहे है। इस देश की बागडोर आज उस कमाञ्डर के हाथ में है जिस ने इस धर्ती से आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने का बीड़ा उठाया है।

  11. : एक बार पुनः आपके संपादकीय क्लास से मुखातिब हैं आदरणीय तेजेंद्र जी! क्लास इसलिए कि हर बार इसमें कुछ न कुछ नया जानने व सीखने को भी मिलता है।

    पिछले कई सालों से हमने अपनी टी वी से तौबा कर ली है। कोरोना काल से न्यूजपेपर का मोह और ललक भी छूट गई। राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ाव अब उतना नहीं रहा।देश की भी और विदेश की भी।मुख्य खबरें मोबाइल से थोड़ी बहुत पता चल जाती हैं।

    आपके संपादकीय से मोह ,लगाव और उसका इन्तज़ार इसलिए भी रहता है कि यह हमारे लिये इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहता है कि इससे हम एक लंबी अवधि के बाद देश ही नहीं, दुनिया की भी प्रमुख चर्चित, विशिष्ट खबरों के बारे में न केवल जान ही रहे हैं बल्कि तथ्यगत जानकारी के साथ विस्तार से समझ भी रहे हैं। इसके लिए तो आपका बेहद शुक्रिया बनता है वह भी दिल से।

    अमेरिका तो शुरू से ही धोखेबाज ही रहा। आज हालात बदल गए वरना वह भारत के साथ था ही नहीं ।उसके प्रति विश्वास स्वयं को धोखा देना ही है और इस संपादकीय में जिस तरह आपने अमेरिका के क्रिया-कलापों का ब्योरा‌ दिया यह तो उसके प्रति अविश्वास को और भी दृढ़ करता है। हमारे प्रधानमंत्री कूटनीतिक चालों के धनी हैं,वे चाणक्य से कम नहीं,निश्चित ही वे इससे अनभिज्ञ न होंगे। हालांकि हम लिंकन के जबरदस्त फैन रहे। फिर क्लिंटन और फिर बराक ओबामा के भी।

    आपके संपादकीय को पढ़कर विश्वास होता है कि निश्चित ही विदेश में भारत की बढ़ती साख और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अमेरिका को खटक रही होगी , किन्तु अगर उसने भारत के खिलाफ कुछ करने का प्रयास किया और वह सोचे कि भारत या मोदी खामोश रहेंगे, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।

    पन्नू से आपके पूर्व के कनाडा वाले एक संपादकीय से परिचित हुए थे ऐसा याद आ रहा‌ है ;बाकी आतंकवाद के खिलाफ सारी दुनिया को एक मत होना चाहिये। अमेरिका भले ही आतंकवादियों को शरण दे;पर उसे समझना होगा कि सांँप को चाहे जितना भी दूध पिलाओ मौका पाते ही डस लेता है और जब उगलेगा तब विष ही उगलेगा ।
    हर बार की तरह अपेक्षित बेहतरीन संपादकीय के लिए बहुत-बहुत आभार आपका तेजेन्द्र जी!

  12. अमेरिका भारत का मित्र कभी रहा है नहीं।बचपन में सुनते थे कि रूस भारत का मित्र है और अमेरिका दुश्मन।रूस को टुकडों में बांट कर अमेरिका नायक बन बैठा।अब कोई भी उन्नति करे तो उसका सिंहासन डोलने लगता है।यही कारण है कि अब वह भारत से घात करेगा ही।
    आपका संपादकीय सदा की भांति सटीक व संतुलित।विश्व परिदृश्य का जायजा लेता हुआ।शाबास तेजेन्द्र भाई।

  13. निवेदिता जी, डोलने के मामले में अमरीका की हालत कुछ इंद्र के सिंहासन की तरह है ‌! टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

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