विदेश में प्रवासी भारतीयों की छवि ऐसी है कि हम शांतिप्रिय लोग हैं; मेहनत से काम करते हैं और अपने अपनाए हुए देश के करों का शराफ़त से भुगतान करते हैं। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस भारतीय डॉक्टरों के सिर पर चल रही है तो अमरीका की सिलिकॉन वैली भी हमारे एक्सपर्ट ही चला रहे हैं। मगर जो नैरेटिव भारत से विदेशों में जाता है वो हमें कटघरे में खड़ा करता है। भारत के राजनीतिक दलों से हमारी एक ही प्रार्थना है कि हम पर दया कीजिये और भारत के बाहर ऐसे संदेश न भेजिये कि हमारा जीवन यहां असुरक्षित होने लगे।

इसी साल सितम्बर में ब्रिटेन के शहर लेस्टर और बाद में बर्मिंघम में हिंदू मंदिरों पर हमला बोला गया और दोनों शहरों में ख़ासी हिंसा हुई। ब्रिटेन के सोशल मीडिया और मुख्यधारा के समाचारपत्रों ने इस हिंसा के पीछे आर.एस.एस. और भाजपा को दोषी ठहराया। और अंग्रेज़ी मीडिया ने इसे Leicester Communal Clashes कहा। 
आमतौर पर सांप्रदायिक दंगों में दो मज़हबों के गुट आपस में हिंसा करते दिखाई देते हैं। मगर जो भी वीडियो टीवी चैनलों पर चलाए गये, उनमें एक ही मज़हब के लोग दूसरे मज़हब के धर्मस्थलों पर हुड़दंग मचाते और भद्दी भाषा का इस्तेमाल करते दिखाई दे रहे थे। 
हैरानी की बात यह भी है कि लेस्टर के मेयर सर पीटर सौलस्बी ने भी बिना किसी पुलिस जांच के इसी अवधारणा के साथ सहमति जताई थी। उन्होंने कहा, “हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हुआ क्या और क्यों हुआ… और क्या यह कहीं और से आयातित चर्म विचारधाराओं से प्रेरित था। हमारा प्रयास होगा कि भविष्य में दोबारा ऐसा न हो… यह भी सोचना होगा कि यह सुनिश्चित करने के लिये हम क्या कर सकते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि पूरे मामले की गहरी जांच करवाई जाएगी। वो जांच अभी जारी है।  
इस बीच ब्रिटेन की एक स्वतंत्र मानवाधिकार संस्था हेनरी जैक्सन सोसायटी की एक रिसर्च फेलो शार्लट लिटिलवुड ने इस हिंसा को लेकर लेस्टर के मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों के बीच जाकर विभिन्न माध्यमों से एक सर्वे करवाया। शार्लट की रिपोर्ट में लिखे गये नतीजे न केवल ब्रिटेन एवं विश्व के अन्य देशों की आँखें खोलने के लिये काफ़ी हैं बल्कि भारत के कुछ पत्रकारों एवं राजनीतिक हस्तियों को भी आईना दिखाने का काम कर सकते हैं। 
लेस्टर में हिंदू-मुसलमानों के बीच तनाव की शुरुआत एशिया कप मैच में 28 अगस्त को पाकिस्तान की हार से हुई थी। इसके बाद छह सितंबर को लेस्टर में गुस्साए पाकिस्तानी मुसलमानों ने हिंदूओं को निशाना बनाया था। इसी दौरान एक मंदिर का झंडा भी उखाड़ने की घटना सामने आई। 
शार्लट ने लेस्टर पुलिस अधिकारियों से भी इस विषय में चर्चा की। शार्लट लिटिलवुड ने अपनी रिपोर्ट में का है कि हिंसा भड़काने के लिए संगठित हिंदुत्व चरम पंथ और आतंकवाद का एक झूठा नैरेटिव बनाया गया था। हिंदुत्व चरम-पंथ का नैरेटिव गढ़ने वालों में एक सज़ायाफ़्ता आतंकी अंजुम चौधरी भी है। इसने तालिबान और ISIS आतंकियों के लिए दुआ माँगी थी। इस्लामी खिलाफत का ख्वाब देखने वाले प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिज्ब-उर-तहरीर की भूमिका भी सामने आई है। इसके बाद से मामला बिगड़ता चला गया और हिंसा की चिंगारी भड़क उठी।
शार्लट की रिपोर्ट में सोशल मीडिया इंफ़्लुएंसर पर फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाकर सामुदायिक तनाव को भड़काने का आरोप भी लगाया गया है। रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि राजनीतिक नेताओं के सहयोग से मुख्यधारा के मीडिया द्वारा सहानुभूति हासिल करने के लिये फ़र्ज़ी नैरैटिव गढ़ा गया। इसी के परिणाम-स्वरूप हिंदूओं के पूजा-स्थलों पर हमले बढ़े और हिंदू समुदाय की सुरक्षा को भी ख़तरा पैदा हो गया था।
बीबीसी जैसे ज़िम्मेदार ऑनलाइन पोर्टल ने भी घटनाओं के बारे में भ्रामक कवरेज करते हुए लिखाः
ब्रिटेन के लेस्टर शहर में बीते शनिवार को हिंदू और मुसलमान युवाओं के बीच झगड़े के बाद तनाव पैदा हो गया था। इस तनाव की शुरुआत 28 अगस्त को भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गए क्रिकेट मैच से हुई थी।
इंग्लैंड के पूर्वी मिडलैंड्स में स्थित लेस्टर शहर की आबादी में लगभग 37 फ़ीसद लोग दक्षिण एशियाई मूल के हैं। इनमें से ज़्यादातर भारतीय मूल के। शनिवार को एक-दूसरे पर हमला करते दोनों पक्षों के युवाओं को रोकने के दौरान 16 पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
वहीं लेस्टर के पुलिस प्रमुख की ज़िम्मेदारी संभाल रहे रॉब निक्सन ने बीबीसी को बताया था कि सोशल मीडिया ने यहां आग भड़काने में बड़ी भूमिका निभाई है।
दरअसल भारत में हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर लगातार राजनीतिक टिप्पणियां होती रही हैं। ज़ाहिर है कि आज के सोशल मीडिया के ज़माने में वो टिप्पणियां केवल भारत तक सीमित नहीं रहती हैं। 
कोई नेता कहता है कि “जिहाद की अवधारणा न सिर्फ इस्लाम में है, बल्कि भगवद्गीता और ईसाई धर्म में भी है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को जिहाद की शिक्षा ही देते हैं। तो कोई कहता है कि ‘हिंदू’ शब्द फ़ारसी का है और इसका अर्थ बहुत गंदा होता है। कोई हिंदू आतंकवाद की बात करता है तो कोई भगवा आतंकवाद की। किसी-किसी ने तो मुंबई के आतंकवादी हमले के लिये आर.एस.एस. को ही दोषी ठहरा दिया था। कहीं ऐसी शपथ दिलाई जाती है कि “मैं किसी हिंदू देवी देवता की पूजा नहीं करूंगा।”
भारत के तमाम राजनीतिक नेताओं को समझना होगा कि उन्हें अपनी वाणी को लगाम देना आवश्यक है। मैं एअर इंडिया के माध्यम से 20 वर्ष और लंदन में बसने के बाद 25 वर्षों से विदेशों में भारतीय डायस्पोरा से जुड़ा हूं। पिछले 45 वर्षों में कभी ऐसा समाचार पढ़ने या सुनने को नहीं मिला कि हिंदूओं ने किसी भी देश में हिंसक गतिविधियों में हिस्सा लिया। यह पहला मौक़ा है जब सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे समाचार अफ़वाह बन कर हिंसा फैलाने का कारण बने। 
शार्लट लिटिलवुड ने भारत के बहुत से टीवी चैनलों पर लाइव इंटरव्यू देते हुए अपनी संस्था की ओर से लेस्टर की घटनाओं का विस्तृत बयौरा दिया।  जाँच रिपोर्ट में कहा है कि जिन लोगों पर  ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आतंकवादी’ होने का आरोप लगाया गया था, उनका न तो दक्षिणपंथी संगठन से कोई संबंध था और न ही उसके बारे में उन्हें पता था।
उनकी रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मुख्यधारा की मीडिया ने घटनाओं का सही एवं तथ्यात्मक विश्लेषण करने के बजाए हिंदुत्व और भारत की राजनीति पर इन इंफ्लुएंसर के बयानों को अपनी रिपोर्ट में शामिल करके मुद्दे को और उलझा दिया।
एक इंफ्लुएंसर ने एक रैली की अगुआई करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसके कैप्शन में लिखा था, ‘मुस्लिम पेट्रोल इन लेस्टर’ और मुस्लिमों को बाहर आकर ‘हिंदू फासीवादियों’ का मुकाबला करने के लिए उकसाया था। इ ,सल लववस इंफ्लुएंसर के सोशल मीडिया पर 8 लाख फॉलोअर्स हैं।
सोशल मीडिया में इन लोगों ने एक मुस्लिम लड़की और हिंदू लड़के के मामले के दौरान फर्जी खबरें फैलाई थीं। शार्लट की रिपोर्ट के मुताबिक, यूके में सक्रिय आरएसएस और हिंदुत्व संगठनों पर लगाए गए ग़लत आरोपों के कारण वहां हिंदू समुदाय के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर नफ़रत, बर्बरता और हमले के बड़े खतरे को पैदा कर दिया है। 
मामला केवल लेस्टर तक सीमित नहीं रहा। इसके बाद इसी तरह की एक अन्य घटना में  20 सितंबर को बर्मिंघम में यूनाइटेड किंगडम के स्मेदिक क्षेत्र में दुर्गा भवन मंदिर के बाहर मुस्लिम युवकों की भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किया था। जिसके बाद हिंसा की आशंका और बढ़ गयी थी। 
ग़ौरतलब है कि इस सांप्रदायिक हिंसा के बाद ब्रिटेन की तत्कालीन (और वर्तमान) गृहमंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने लेस्टर शहर का दौरा भी किया था। उन्होंने अपने दौरे के दौरान वहां के पुलिस अधिकारियों, हिंदू व मुस्लिम समुदाय के नेताओं से बात की थी। गृहमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया था कि इन हिंसक झड़पों के पीछे के दोषियों को कानूनों का सामना करना पड़ेगा। 
विदेश में प्रवासी भारतीयों की छवि ऐसी है कि हम शांतिप्रिय लोग हैं; मेहनत से काम करते हैं और अपने अपनाए हुए देश के करों का शराफ़त से भुगतान करते हैं। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस भारतीय डॉक्टरों के सिर पर चल रही है तो अमरीका की सिलिकॉन वैली भी हमारे एक्सपर्ट ही चला रहे हैं। मगर जो नैरेटिव भारत से विदेशों में जाता है वो हमें कटघरे में खड़ा करता है। भारत के राजनीतिक दलों से हमारी एक ही प्रार्थना है कि हम पर दया कीजिये और भारत के बाहर ऐसे संदेश न भेजिये कि हमारा जीवन यहां असुरक्षित होने लगे। 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

23 टिप्पणी

  1. गम्भीर चिंतनीय विषय है, आम हिन्दू की छवि शांति प्रिय है भारत मे तो यह काम सालों से चल रहा है कि आरएसएस को बदनाम किया जाय गीता को हिंसा के लिए प्रेरित करने वाली पुस्तक बताई जाए। मेरा एक लेख भी इस विषय पर है कि रामायण महाभारत हिंसा फैलाते है और बौद्ध अहिंसा। यह जो बदनाम करने का नरेटिव है उसे सब भारतीयों के एक जुट प्रयास से ही दूर होगा।

  2. जब तक खुलकर मुस्लिम समुदाय की कट्टरता और उसकी हिंसा का विरोध नहीं करेंगे, विश्व खासतौर पर हिंदु खतरे में रहेगा और इसके लिए पूरी लेफ़्ट बिरादरी या यूं कहें कि अपने को सेक्युलर कहने वाले लोग पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं जिन्हें मुस्लिमों को कट्टरता, उनकी हिंसा दिखती ही नहीं है

  3. हिंदू समुदाय भारत सहित शेष विश्व में चेतन हो रहा है।सदियों से गुलाम रहे भारत के बहुसंख्यक हिन्दू आजादी के बाद भी इसलिए चेतन नही हो पाये थे क्योंकि सत्तारूढ़ कांग्रेस ने आधुनिकता और विकास का वादा करके इसकी आड़ में मुस्लिम वोट के लालच में छद्म सेक्युलर विचारधारा थोपी।कांग्रेस के पराभव और भाजपानीत मोदी सरकार के प्रचंड बहुमत से उद्भव के साथ ही हिंदू समुदाय में अपनी दबाई गई संस्कृति और सभ्यता तथा अपने स्वाभिमान के लिए खड़े होने का साहस भी जागा है।
    यही साहस उन सभी शक्तियों को रास नहीं आ रहा जिन्होंने हिंदुओं और हिंदुस्तान को गुलाम बनाया था वो चाहे मुसलमान हों या ईसाई (क्रिश्चियन)। जैसे जैसे हिंदू समुदाय समर्थ और सशक्त होगा भारत के अंदर और बाहर विश्वपटल पर हो रहे ये वैचारिक और शारीरिक संघर्ष आगे और बढ़ेंगे इसके लिए तैयार रहना होगा।
    लेस्टर की झड़प तो अभी शुरुआत भर है।

    • आपका विश्लेषण बिल्कुल सही है। आख़िर कब तक अपने देश में हम डर कर रहेंगे? विश्व में जाने वाले नैरेटिव की चिन्ता का बोझ हिन्दुओं पर ही क्यों? सेक्युलरिज्म की सभी धारणाएं हिन्दू ही क्यों अपने ऊपर लादें?

  4. आपका विश्लेषण बिल्कुल सही है। आख़िर कब तक अपने देश में हम डर कर रहेंगे? विश्व में जाने वाले नैरेटिव की चिन्ता का बोझ हिन्दुओं पर ही क्यों? सेक्युलरिज्म की सभी धारणाएं हिन्दू ही क्यों अपने ऊपर लादें?

  5. पुरवाई की संपादकीय
    ” लेस्टर दंगों पर पहली रिपोर्ट जारी ”
    के अंतर्गत संपादक महोदय तेजेन्द्र जी द्वारा
    इंग्लैंड के मिडलैंड स्थित लेस्टर दंगों पर शार्लेट लिटिलवुड की जारी जांच रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है , वहीं बीबीसी के पोर्टल की भी रिपोर्ट का उल्लेख है । बीबीसी की रिपोर्ट में दंगों का कारण 28 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच को बताया है।
    आप ने लिखा है, आमतौर पर संप्रदायिक दंगे दो मज़हबों के दो गुटों के बीच लोग परस्पर हिंसा करते दिखते हैं। यह सच है,
    उक्त संदर्भ में मेरा विचार है कि ,…
    ” दरअसल किसी सांप्रदायिक दंगों या हिंसा का मूल कारण किसी ख़ास मज़हब के प्रति , दूसरे मज़हब के , वोट की राजनीति करने वाले चतुर स्वार्थी ,राजनीतिज्ञों की साज़िश और कुछ मज़हबी कट्टरपंथियों की घातक चालबाज़ी ज़्यादा होती है। जिसमें अक्सर वो अकारण ही द्वेष भाव से ग्रस्त , कौमी दुर्भावना से उपजी ईर्ष्या, जलन की आग अपने अनुयायियों में भड़का कर दंगा फसाद कराते हैं। इसमें ये लोग माहिर होते हैं।
    दर असल , दंगों/हिंसा का मूल कारण इन लोगों के मन में अदृश्य पनपती , किसी जाति धर्म कौम विशेष के प्रति ये दुर्भावनाएं प्रत्यक्ष सामने नहीं आ पाती है। क्योंकि आमतौर पर सांप्रदायिक दंगों या हिंसा में शामिल लोग , जो दंगा या हिंसा करतें हैं , उनके बीच कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं होती। ”
    आप द्वारा शार्लेट लिटिलवुड द्वारा ब्रिटेन के लेस्टर दंगों पर प्रस्तुत जांच रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है , जिसमें विश्वसनीयता अधिक है।
    आपने अपने 25 साल ब्रिटेन में रहते प्रवासी भारतीय के अनुभव के आधार पर लिखा है कि ,…
    ” आमतौर पर प्रवासी भारतीयों की छवि ऐसी है कि , . हम शांतिप्रिय लोग हैं ,हम मेहनत से काम करते हैं , और अपने अपनाए हुए देश के करो का शराफ़त से भुगतान करते हैं। नेशनल हेल्थ सर्विस भारतीय डॉक्टरों के सिर पर चल रही है । अमेरिका की सिलिकॉन वैली भारतीय एक्सपर्ट ही चला रहे हैं।”
    यक़ीनन आप की यह निष्कर्ष रिपोर्ट भारतीयों की असली छवि को उजागर करती है। सनातनी हिंदुत्व की वास्तविकता यही है।
    संपादक तेजेन्द्र जी आपको हार्दिक बधाई !
    अनंत शुभकामनाएं आप ऐसे ही , स्पष्ट, स्वस्थ आलेख लिखते रहें।
    धन्यवाद !
    डा० तारा सिंह गाजियाबाद

  6. डा तारा सिंह अंशुल

    पुरवाई की संपादकीय
    ” लेस्टर दंगों पर पहली रिपोर्ट जारी ”
    के अंतर्गत संपादक महोदय तेजेन्द्र जी द्वारा
    इंग्लैंड के मिडलैंड स्थित लेस्टर दंगों पर शार्लेट लिटिलवुड की जारी जांच रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है , वहीं बीबीसी के पोर्टल की भी रिपोर्ट का उल्लेख है । बीबीसी की रिपोर्ट में दंगों का कारण 28 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच को बताया है।
    आप ने लिखा है, आमतौर पर संप्रदायिक दंगे दो मज़हबों के दो गुटों के बीच लोग परस्पर हिंसा करते दिखते हैं। यह सच है,
    उक्त संदर्भ में मेरा विचार है कि ,…
    ” दरअसल किसी सांप्रदायिक दंगों या हिंसा का मूल कारण किसी ख़ास मज़हब के प्रति , दूसरे मज़हब के , वोट की राजनीति करने वाले चतुर स्वार्थी ,राजनीतिज्ञों की साज़िश और कुछ मज़हबी कट्टरपंथियों की घातक चालबाज़ी ज़्यादा होती है। जिसमें अक्सर वो अकारण ही द्वेष भाव से ग्रस्त , कौमी दुर्भावना से उपजी ईर्ष्या, जलन की आग अपने अनुयायियों में भड़का कर दंगा फसाद कराते हैं। इसमें ये लोग माहिर होते हैं।
    दर असल , दंगों/हिंसा का मूल कारण इन लोगों के मन में अदृश्य पनपती , किसी जाति धर्म कौम विशेष के प्रति ये दुर्भावनाएं प्रत्यक्ष सामने नहीं आ पाती है। क्योंकि आमतौर पर सांप्रदायिक दंगों या हिंसा में शामिल लोग , जो दंगा या हिंसा करतें हैं , उनके बीच कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं होती। ”
    आप द्वारा शार्लेट लिटिलवुड द्वारा ब्रिटेन के लेस्टर दंगों पर प्रस्तुत जांच रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है , जिसमें विश्वसनीयता अधिक है।
    आपने अपने 25 साल ब्रिटेन में रहते प्रवासी भारतीय के अनुभव के आधार पर लिखा है कि ,…
    ” आमतौर पर प्रवासी भारतीयों की छवि ऐसी है कि , . हम शांतिप्रिय लोग हैं ,हम मेहनत से काम करते हैं , और अपने अपनाए हुए देश के करो का शराफ़त से भुगतान करते हैं। नेशनल हेल्थ सर्विस भारतीय डॉक्टरों के सिर पर चल रही है । अमेरिका की सिलिकॉन वैली भारतीय एक्सपर्ट ही चला रहे हैं।”
    यक़ीनन आप की यह निष्कर्ष रिपोर्ट भारतीयों की असली छवि को उजागर करती है। सनातनी हिंदुत्व की वास्तविकता यही है।
    संपादक तेजेन्द्र जी आपको हार्दिक बधाई !
    अनंत शुभकामनाएं आप ऐसे ही , स्पष्ट, स्वस्थ आलेख लिखते रहें।
    धन्यवाद !
    डा० तारा सिंह गाजियाबाद

  7. सही अर्थ में ‘हिन्दू विचारधारा’ का संपादकीय,
    साधुवाद, तेजेन्द्र जी!
    जब तक राजा ने धर्मानुसार राजनीति की तब तक देश उन्नति करता रहा और विश्व कीअगुआई की,जब धर्म और राजनीति पृथक माने गए तब सामाजिक मानसिकता का अधोगमन आरम्भ हुआ ।अब स्थिति यह है कि भारत में धार्मिक होना गाली बनता जारहा है।’जो धारण करने योग्य है वही धरम है’ सूक्ति का मर्म भाव तिरोहित हो गया है।
    ईश्वर सबको सद्बुद्घि दें।

  8. बेहद चिंतनीय और विचारणीय संपादकीय। दरअसल छदम धर्मनिरपेक्षता की नीति ने हिन्दुओं को भारी क्षति पहुंचाई है। हिन्दू आपने ही देश में दोयम दर्जे के हैं। हिंदुओं में सहनशीलता इतनी है कि कोई कुछ भी भी कह दे, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता। इस सम्बन्ध में देश कि सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी को चिंतन मनन करना चाहिए जो आपने राजनैतिक लाभ के लिए न केवल अपने कृत्ययों से देश विदेश में रह रहे हिन्दुओं पर अंगुली उठाने का अवसर दे रही है वरन देश की छवि को भी धूमिल कर रही है।

  9. नमस्कार
    सम्पादकीय के माध्यम से दो राष्ट्रों के बीच सामाजिक सद्भावना, शांति, सामंजस्य के लिए
    कामना है, एक आशावादिता भी है ।
    “पैग़ाम जहाँ तक पहुँचे “। नमन
    Dr Prabha mishra

  10. बहुत ही चिंताजनक स्थिति है, धर्म और राजनीति के नाम पर न जाने कितने उन्माद फैलते रहेंगे,मानवता शर्मशार होती है तो परवाह नहीं,, सचमुच इन स्थितियों में सोशल मीडिया और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को जो उचित कार्रवाई कर शांति का माहौल बनाना था वैसा नहीं हुआ, बहुत ही सारगर्भित और वस्तुस्थिति से अवगत कराता है आपका संपादकीय, बहुत बहुत धन्यवाद भाई, इस के लिए हम सबको मिलकर आवाज उठानी होगी,अब यही एक मात्र मार्ग बचा है,,*, शांति, सद्भाव और बसुधैव कुटुंबकम् की

  11. अनुराधा ‘अनु’
    13 नवम्बर 2022 ,शाम 9.00 बजे

    श्री तेजेन्द्र शर्मा जी द्वारा लिखित संपादकीय में सनातन धर्म की मूल अवधारणा की झलक मिलती है । जहां भी भारतीय जाते हैं वहां वे ‘वसुधैव कुटुंबकम् ‘की भावना का ही विस्तार करते हैं जो कि एक श्रेष्ठ भावना है इसमें किसी के अहित की बात नहीं होती ।अब प्रश्न उठता है कि दंगे फसाद क्यों हुए।तब आपने स्पष्ट किया है कि भारत विरोधी ताकतें जो भारत में रहकर तथा भारत के बाहर रहकर आग उगलती हैं जिसका मीडिया के माध्यम से सच -झूठ करके आधा -अधूरा पहुंचा दिया जाता है ।उस आधार पर जिसको जैसा समझ आता है,वह वैसा काम कर बैठता है । हिन्दू मुस्लिम में लड़ाई -झगड़ा आज से नहीं है ,यह तो देश की गुलामी और उससे पहले जो यहां के निवासियों पर बीती वहीं जान सकते हैं ।जरा चिंगारी लगी और आग भड़क उठती है।इसे रोकने में ब्रिटेन सरकार असफल रही। आशा है आपके सम्पादकीय से ब्रिटेन सरकार कुछ सबक सीखेगी और भविष्य में इस प्रकार के दंगे नहीं होंगे और भारतीयों पर उसका विश्वास बढ़ेगा।

  12. यह गलत नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि आर एस एस आतंकवादी संस्था है और भागवत काफिर बनाती हैं।
    हिंदू जाति में तो वसुधैव कुटुंबकम का मूल्य है, वहां काफ़िर शब्द के लिए कोई जगह ही नहीं है। दूसरा आर एस एस केवल कुछ साल से आतंकवाद फैला रही है ? इससे पहले आर एस एस के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा था ।आर एस एस के बारे में कुछ नैरेटिव नहीं चलाया जा रहा था। एक बात और गौर करने वाली है की हमले मंदिरों पर ही हुए किसी मस्जिद पर नहीं।

  13. हमने सबसे बड़ी गलती यह की, कि हम पर जो हमले करते रहे, करवाते रहे हमने उनका मुखर विरोध नहीं किया. ऐसा अपराध करने वालों का आज भी स्पष्ट रूप से नाम लेने से कतराते हैं. कम से कम अब हमें खुलकर ऐसे हर व्यक्ति का स्पष्ट रूप से नाम लेकर उसका प्रतिकार करना चाहिए, उसे बेनकाब करना चाहिए.
    हिंदुओं को असहिष्णु, धर्मांध, हत्यारा, दंगाई स्थापित करने का प्रयास वामपंथी और कांग्रेसी कोई आज से नहीं कर रहे हैं. चाहे इतिहास हो या साहित्य इन्होंने हर जगह हर तरह से सदैव हिंदुओं की गलत छवि स्थापित कर उसे निरंतर नुकसान पहुंचाने का ही प्रयास किया है. मुख्य समस्या की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराने का आपका यह प्रयास महत्वपूर्ण है. सराहनीय है.

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