Saturday, July 27, 2024
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संपादकीय – ‘पापी’ ‘जेबकतरा’ तो ‘पनौती’ हो गया!

पनौती की व्युत्पत्ति यानी ‘विशेष उत्पत्ति’ को समझने के लिए उसके इतिहास, स्वरूप और अर्थ के बारे में हमने यहां बताया है। ‘पनौती’ शब्द बनने को स्वरूप को समझते हुए हम कह सकते हैं कि इसका अर्थ विस्तार मुसीबत के रूप में है. पनौती का अर्थ बताता है कि यह डरावनी और विनाश की सूचक है। हम तो मानव श्रेष्ठ आदरणीय राहुल गाँधी जी का धन्यवाद इसलिये भी करना चाहेंगे कि उनके कारण पुरवाई के पाठकों को ‘पनौती’ जैसे महान शब्द के अर्थ और व्युत्पत्ति के बार में कुछ जानकारी मिल पाई।

पूरा क्रिकेट जगत इस गुत्थी को हल नहीं कर पा रहा कि आख़िर भारत लगातार दस मैच जीतने के बाद विश्व कप 2023 के फ़ाइनल में बुरी तरह से कैसे हार गया। तमाम विशेषज्ञ, भूतपूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और कमेंटेटर बुरी तरह से हैरान थे कि आख़िर हुआ क्या। रोहित शर्मा ने बढ़िया शुरूआत की; कोहली और राहुल ने अर्ध-शतक जमाए मगर फिर भी लगा जैसे भारतीय टीम जीतने के लिये नहीं खेल रही।
कारण खोजने की दौड़ में वो लोग भी जुड़ गये जिन्हें क्रिकेट की सहीं स्पैलिंग भी नहीं आती। भारत के अगले प्रधानमंत्री बनने का सपना आँखों में पाले माननीय राहुल गाँधी ने भी अपना ‘दिमाग़’ लगाया और पाया कि उन्हें सही मायने में मालूम है कि भारतीय टीम मैच क्यों हारी। जब उनके दिमाग़ में महात्मा बुद्ध ने ज्ञान की ज्योति जगाई उस समय वे राजस्थान के शहर जालोर में एक रैली में अपने मुखारविंद से मोती बरसा रहे थे।
उन मोतियों की एक माला बन कर उपस्थित जन-समूह के सामने उभर कर सामने आ गई। रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, “अच्छा भला हमारे लड़के वहां वर्ल्ड कप जीत जाते, लेकिन वहां पर पनौती ने हरवा दिया, लेकिन टीवी वाले यह नहीं कहेंगे… यह जनता जानती है।” पनौती शब्द को राहुल गाँधी ने कई बार दोहराया।
कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से राहुल के पनौती वाले बयान को लेकर एक वीडियो पोस्ट किया गया है, जिसके बैकग्राउंड में राहुल गांधी पनौती बोल रहे हैं और स्क्रीन पर स्टेडियम में बैठे नरेंद्र मोदी को दिखाया गया है।
अब राहुल गाँधी कोई छोटे नेता तो हैं नहीं। वे कांग्रेस पार्टी के अभूतपूर्व अध्यक्ष हैं जो अपनी पार्टी को चालीस से ऊपर चुनाव हरवा चुके हैं। उनकी बात तो हवा में भी उछाली जाती है तो गूगल बाबा उसे सिली-पाइंट पर लपक लेते हैं। और गूगल पर ‘पनौती’ शब्द हो गया वायरल। पूरे देश में इस शब्द की चर्चा होने लगी। गूगल बाबा को शब्द खोजते हुए गुदगुदी भी हो रही थी… कि आख़िर कौन है वो ‘पनौती’ जिसने भारतीय टीम को जीतता हुआ मैच हरवा दिया।
पता किया जाने लगा कि आख़िर यह शब्द आया कहां से। ये शब्द है तो  हिंदी भाषा का ही। भाषाविद डॉ सुरेश पंत के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में दी गई जानकारी के मुताबिक ‘पनौती’ शब्द हिंदी में ‘औती’ प्रत्यय से बना है… जैसे कि कटौती, चुनौती, मनौती, बपौती। ‘पनौती’ शब्द ‘पन’ + ‘औती’ से बना है। ‘पन’ यानी अवस्था या दशा।
पनौती की व्युत्पत्ति यानी ‘विशेष उत्पत्ति’ को समझने के लिए उसके इतिहास, स्वरूप और अर्थ के बारे में हमने यहां बताया है। ‘पनौती’ शब्द बनने को स्वरूप को समझते हुए हम कह सकते हैं कि इसका अर्थ विस्तार मुसीबत के रूप में है. पनौती का अर्थ बताता है कि यह डरावनी और विनाश की सूचक है। हम तो मानव श्रेष्ठ आदरणीय राहुल गाँधी जी का धन्यवाद इसलिये भी करना चाहेंगे कि उनके कारण पुरवाई के पाठकों को ‘पनौती’ जैसे महान शब्द के अर्थ और व्युत्पत्ति के बार में कुछ जानकारी मिल पाई।
राहुल गाँधी यहीं नहीं रुके उन्होंने समझा दिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गौतम अडानी मिल कर भारतीय नागरिकों की जेब काट रहे हैं… राहुल ने जेब काटने की पूरी प्रक्रिया ऐसे समझाई जैसे उन्होंने जेब काटने पर डॉक्टरेट की उपाधि ले रखी हो। उनके अनुसार नरेन्द्र मोदी जनता का ध्यान भटकाते हैं और गौतम अडानी जेब काट लेता है। जैसे दोनों मिल कर एक जेबकतरा एसोसिएशन चला रहे हों।
इससे पहले उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय भी इंडिया टीम की हार को लेकर पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। एक बयान में उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी को मैच देखने नहीं जाना चाहिए थे। उन्हें देखकर खिलाड़ी तनाव में आ गए थे। उनकी वजह से ही हम हार गए। अगर उन्हें खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाना था तो एक दिन पहले ही मिल लेते।
भला अखिलेश यादव कैसे पीछे रह जाते। चुनाव तो उनके यहां भी हो रहा हैं। ज़ाहिर है कि उन्होंने भी प्रतिक्रिया दी। अखिलेश ने कहा कि मैच हुआ ही ग़लत जगह पर। मैच अगर अहमदाबाद की जगह लखनऊ में होता तो भारत वर्ल्ड कप ज़रूर जीत जाता। यूपी के इटावा में एक सार्वजनिक बैठक में बोलते हुए, सपा प्रमुख ने कहा कि अगर मैच लखनऊ में होता, तो टीम इंडिया को भगवान विष्णु और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आशीर्वाद मिलता।
इंडी एलाएंस की एक और साथी ममता बनर्जी को ख़तरे की घंटी बजती सुनाई दी। भला वह कैसे पीछे रह जातीं। उन्होंने दावा किया कि अगर क्रिकेट विश्व कप का फाइनल मैच कोलकाता या मुंबई में खेला जाता तो भारत जीत जाता। उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का भगवा-करण करने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
ममता बनर्जी ने किसी का नाम लिए बिना कहा, “भारतीय टीम ने इतना अच्छा खेला कि उन्होंने विश्व कप में सभी मैच जीते, सिवाय उस मैच को छोड़कर जिसमें पापी लोगों ने भाग लिया था।’’
कोलकाता में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख बनर्जी ने आरोप लगाया, “उन्होंने (बीजेपी) भगवा जर्सी पेश करके टीम का भगवाकरण करने की भी कोशिश की। खिलाड़ियों ने विरोध किया और परिणामस्वरूप, उन्हें मैचों के दौरान वह जर्सी नहीं पहननी पड़ी।”
ज़ाहिर है  कि भारतीय जनता पार्टी यह सब सुन कर चुप रहने वाली नहीं थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय शर्म हैं… वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में विद्वेष से इतने भरे हुए हैं कि उन्होंने देश की हार पर प्रसन्नता व्यक्त की।
उन्होंने एएनआई से बात करते हुए कहा, “जब पूरी जनता की आंखों में आंसू थे, तब राहुल गांधी आनंद ले रहे थे। बुद्धि-हीनता का इससे बड़ा उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता। राहुल बाबा अपने ऐसे बयानों से कांग्रेस को समाप्त कर के मानेंगे।”
उधर ऑस्ट्रेलिया में शायद अपने उप-प्रधानमंत्री रिचर्ड मार्ल्स को भाग्य का सितारा घोषित किया जा रहा होगा क्योंकि वे भी मैच में उपस्थित थे। सोचना यह भी पड़ेगा कि कहीं उनकी उपस्थिति तो भारत के लिये अपशकुन साबित नहीं हुई !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘पनौती’ बताने वाले कमेंट को लेकर चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आयोग ने उन्हें शनिवार (25 नवंबर) शाम 6 बजे तक जवाब देने को कहा है। इस बीच मामले में राजनीतिक बयान-बाज़ी भी शुरू हो गई है।
नोटिस को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एएआई से कहा, ”उन्हें (राहुल गांधी को) नोटिस भेजने दीजिए, हम इसका जवाब देंगे। यह कोई बड़ी बात नहीं है। किसी पर इतनी गंभीर टिप्पणी नहीं हुई है। लेकिन चूंकि चुनाव चल रहे हैं इसलिए हाइप बनाई जा रही है. हम नोटिस का जवाब देंगे।”
दरअसल सट्टाबाज़ार और ‘बेटिंग शॉप्स’ वाले हैरान हैं कि उन्हें अब तक कुछ नहीं मालूम था कि मैच किन कारणों से जीते और हारे जाते हैं। वे भारतीय राजनीतिक नेताओं के पीछे भाग रहे हैं। उनसे मिलने का समय मांग रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि किस प्रतियोगिता में कौन सा देश विजयी होगा और क्यों। यह भी जानना चाहेंगे कि कौन पापी है और कौन पनौती! ऊपर से पहले टी-20 मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया। चारों ओर उलटे-पुलटे भ्रम फैल रहे हैं। भारत की जीत के कारणों को खोजा जा रहा है।
उधर पुजारी, मौलवी, पादरी सब ख़ुशियां मना रहे हैं। अब वे आसानी से अंधविश्वासों और भ्रांतियों का व्यापार कर पाएंगे। जब देश के नेता ही अंधविश्वासों को हवा देंगे, तो जिनका धंधा ही ऐसी गतिविधियों पर चलता हो, वे भला क्यों पीछे रहेंगे? अब काली बिल्ली के रास्ता काटने पर; अचानक छींक आ जाने पर; अनलक्की 13 के आंकड़े पर, और लक्की-7 पर भी बातें होंगी। यह तो सर्व-विदित ही है कि बीजिंग में पिछले ओलंपिक्स के आरंभ होने की तिथि क्या थी – 08-08-08; समय था रात्रि के 08:08 बजे।
पुरवाई का मानना है कि भारतीय राजनीति में भाषा का स्तर बहुत निम्न स्तर तक पहुंच गया है। कोई भी राजनीतिक दल अपने आपको पाक-साफ़ घोषित नहीं कर रहा। कांग्रेस, भाजपा, सपा, टी.एम.सी., वामपंथी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल या फिर जे.डी.यू. जैसे तमाम दलों के नेताओं ने अपने विरोधियों को घटिया भाषा में कुछ न कुछ जुमले कहे हैं। मगर टीवी डिबेट में हर राजनीतिक दल का प्रवक्ता कहता है कि अमुक पार्टी के नेता भी तो निचले स्तर की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। याद रहे यदि तमाम पार्टियों के नेता ग़लत भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, तो भी भाषा ग़लत ही रहेगी। सुधार की आवश्यकता सब को है… पहले अपने घर में चिराग़ जलाओ फिर दूसरे के घरों के अंधेरे की बात करो।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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34 टिप्पणी

  1. बहुत खूब ।मै भी इसका अर्थ जानना चाहती थी। विस्तार से लिखा आपने। बधाई हो।

  2. क्रिकेट, चुनाव और राजनीतिक कटाक्ष का एक रोचक प्रसंग मनोरंजन के लिए अपनी जगह बना गया। मुद्दातों से शब्दकोशो में दर्ज एक शब्द पनौती अचानक सब की नज़रों में आकर प्रचलित हो गया। इस प्रसंग ने पिछले वर्षों में क्रिकेट में हार जीत का ठीकरा जो सट्टा बाजार के मत्थे फूटता था, इस बार कहानी से लुप्त हो कर अपना धंधा कर पतली गली से निकल गया।
    वर्तमान विषय पर अति सुन्दर सटीक सम्पादकीय सराहनीय ज्ञानवर्धन और मनोरंजन करने वाला

    • आभार कैलाश भाई। मेरा प्रयास रहा कि संपादकीय बोरिंग न बन जाए। इसीलिए व्यंग्य का सहारा लिया।

  3. एक और चुटीला मर्यादित श्रेष्ठतम व्यंग्य संपादकीय जो बताता है कि खराब से खराब बात को शोभनीय तरीके से कैसे कहा जाए।
    बहुधा देखा जाता है कि राजनीति और राजनीतिज्ञ जैसे विषयों में असंतुलित या एक पक्षीय झुकाव हो जाता है।परंतु इस संपादकीय की खासियत यही है कि सही बात और निरपेक्ष भाव से लिखा गया है।
    पुरवाई की टीम और संपादक डॉक्टर तेजेंद्र शर्मा जी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

  4. दुःखद सर… इन दिकभ्रष्ट नेताओं को… क्या कहा जाए… सत्ता इन दिनों भयानक नशा सी बन चुकी है…. आपका संपादकीय इतना सुंदर एवं संतुलित लिखा गया है कि तिर्यक उक्ति के साथ संभावनाएँ भी दृष्ट होती है….. अशेष धन्यवाद सर

  5. क्रिकेट के बहाने देश के पीएम की पनौती, पापी कहना नेताओं का दिमागी दिवालियापन है , ये गंवारो की भाषा है, लेकिन मुझे लगता है कि बाद में ऐसे बयानों में सबको एक साथ समेटकर सहज नहीं बनाना चाहिए था, सच कहें तो कि राहुल गांधी ख़ुद ऐसे बयानों से अपनी पार्टी कांग्रेस के लिए पनौती बने हुए हैं इसे कोई कहेगा नहीं पर जानते सब हैं।
    एक संदर्भ बता दूं कि 1980 हैं दिल्ली में एशियन गेम्स के हॉकी फाइनल मैच में भारत, पाकिस्तान से हार गया था और इसे देखने के लिए पीएम इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जी देखने गए थे, तब क्या ये पनौती हो गए? और तो और इंदिरा गांधी जी गुस्से में स्टेडिम से चली गई, इसे क्या कहेंगे?

  6. उम्दा और आन्नदमयी,कहते हैं जब हम एक उंगली किसी पर उठाते हैं तो दो उंगली स्वयं की तरफ उठती हैं पनौती कौन किसके लिए बन रहा है यह कांग्रेस को अपनी करम्यान में झांक कर देखना होगा।

  7. राम- राम, कैसे एक आदरणीय ‘पापी’ ‘पनौती’ हो गया?
    नेताओं की भाषा को यह कैसा भीषण रोग हो गया!!
    खेल में तो हार- जीत बस दो ही होती हैं
    एक खेल के बहाने कवि, कहानीकार ,संपादक
    हास्य-व्यंग्य लिख गया ।।

    अति रोचक , साधुवाद

  8. रविवार की सुबह का सम्पादकीय, गूगल बाबा की तरह थोड़ा गुदगुदा गया और थोड़ शर्मिंदा कर गया। विश्व पटल पर हमारे राजनीतिज्ञों की निमस्तरीय बातें भारत की छवि को कितना म्लान करती हैं, कल्पना से भी सिर झुक जाता है।
    मोदी से खार खाये बैठा विपक्ष, किसी भी स्तर तक गिर सकता है। राहुल गाँधी तो, ‘चौकीदार चोर है’ के नारे भी लगा चुके हैं। लेकिन मतिभ्रम ऐसा कि परिणाम याद ही नहीं रहता।
    ममता बनर्जी सत्ता के उन्माद की अन्तिम सीढ़ी पर पहुंँच गई हैं। असंख्य चुनावी हिंसा के बाद वह पुण्यात्मा हैं, बाकी सभी पापी।
    विश्व कप हारने के दुःख तो था ही, ऐसी प्रतिक्रियाओं ने कोढ़ में खाज पैदा कर दी।
    लेकिन सम्पादकीय में लगा हास्य का तड़का, कुछ देर के लिए आह्लादित कर गया। धन्यवाद सम्पादक जी।

  9. आपका हर संपादकीय सामयिक रहता है। राजनेताओं की भाषा इतनी द्वेष पूर्ण और दुराग्रह से भरपूर होती जा रही है कि कभी -कभी लगता है कि हम सभ्य समाज रह ही नहीं रहे हैं। राहुल के नाम में गाँधी लगा है लेकिन अपनी भाषा से उन्होंने उनका भी मान नहीं रखा।
    पनौती शब्द मैंने भी नहीं सुना था। मोदी जी से इतनी नफरत!! क्या आज के सभ्य समाज में ऐसे शब्दों को प्रयुक्त करना उचित है?
    आपने सही लिखा है कि सुधार की आवश्यकता सब को है… पहले अपने घर में चिराग़ जलाओ फिर दूसरे के घरों के अंधेरे की बात करो।

  10. हमेशा की तरह एक ज़रूरी मुद्दे पर धारदार और चुटीलेपन का शानदार सम्मिश्रण है ये सम्पादकीय भी।
    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ

  11. Your Editorial of today voices the opinion of most of us who feel very strongly that objectionable n unseemly remarks should never be made on public platforms.
    It is unfortunate that Rahul Gandhi used the ominous word ‘Panauti ‘without thinking twice.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  12. पुरवाई के इस अंक का संपादकीय भले पनौती शब्द को लेकर लिखा गया हो लेकिन लिखने के पीछे राजनीति में भाषा के गिरते स्तर की गहरी पीड़ा है। राजनीति में साहित्य को ज्ञानार्जन या सभ्य व्यंग्य के रूप में न लेकर सड़क छाप टुच्चेपन की तरह लिया जाना भी लेखकाें, कवियों की तौहीनी है। माना पक्ष विपक्ष के दायरे में एक दूसरे पर शब्द बाण छोड़ने का चलन पुराना है लेकिन उसकी छवि अब बिलकुल उलट चुकी है। अटल बिहारी वाजपायी भी अपने वक्तव्य में कविताएं, लोकोक्तियां, मुहावरों का प्रयोग करते थे लेकिन उन सबका गहरा अर्थ होता था, मौजूदा घटनाओं से ताल्लुक होता था। ये नहीं …कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा….! इस लेख के माध्यम से लेखन और साहित्य के प्रति या भाषा के प्रति लेखक की मंशा साफ है कि भाई राजनीत के दायरों में कम से कम भाषा को मेरे ढोर की तरह मत घसीटिये। खेल के आंतरिक स्वभाव में हारना और जीतना ही है और जो इसकी परिधि में आएगा वह दोनों का स्वाद लेगा ही। या लेना ही पड़ेगा। हां, ये बात और रहेगी कि हम हारना चाहते कभी नहीं। पनौती शब्द पलेथन से निकलना होगा। खैर जो भी हो। लेख मानीखेज है। लेखक को अनेक शुभकामनाएं!

  13. बहुत बढ़िया व्यंग्य की धारा संग बहता, जानकारी से युक्त
    हमारे समय के महान राजनीतिज्ञों की व्याख्या करता, देश के महान शख्सियतों के मुखारविंद से झरते शब्दों की वर्षा से पूरित संपादकीय।

    ऐसे ही ज्वलंत मुद्दों पर लिखा जाना चाहिए था।
    गजब हैं ये राजनेता
    साधुवाद कि पूरा विश्लेषण रोचक अंदाज में पेश।
    – अनिता रश्मि

  14. आदरणीय तेजेन्द्र जी

    इस बार का संपादकीय अकल्पनीय लगा। क्योंकि इस तरह के विषय की कल्पना ही नहीं थी।वैसे तो आपके विषय हमारे लिये हमेशा से ही अकल्र्पनीय ही रहते हैं। राजनीति में भ्रष्टाचार और बदजुबानी इस तरह लिप्त है कि कोई भी किसी को भी कुछ भी बोल सकता है। राजनीति में भाषा बोलचाल के मामले में अपने निम्नतम स्तर पर नजर आ रही है। सब मौका ढूंढते हैं जरा सी चूक हुई नहीं के शब्दों के बाण चलने शुरू हो जाते हैं। उसके बाद भी संभल कर बोलना है यह बात किसी के समझ में नहीं आती।

    पनौती शब्द अभी दो-तीन सालों की मध्य से ही ज्यादा हुआ सुनाई देना शुरू हुआ है। सबसे पहले हमने इसे अपने एक व्यापारी के मुंँह से सुना था।उसने नीले रंग के लिए कहा था कि घरों में नीला रंग नहीं पुतवाना चाहिये यह रंग पनौती है।बर्बाद कर देता है घरवालों को।
    दूसरी बार अपनी पोती इति के मुंँह से सुना। वह किसी टीचर के लिए कह रही थी। हमने पूछा यह शब्द कहांँ से सुना और कहांँ से सीखा। तो बताया स्कूल में बच्चे लोग बोलते हैं।
    यह हमारे लिए सबसे बड़े आश्चर्य की बात थी। बच्चे जो सीखना है वह तो सीख नहीं रहे और ऐसे- ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं बातों में कि पूछो ही मत।
    हम पनौती को देशज शब्द ही समझते थे। उसके अर्थ के कारण क्योंकि डिक्शनरी में यह शब्द नहीं है।
    हमने कई लोगों से इस शब्द के बारे में जानना चाहा। फिर कमलेश कमल जी से पूछा । वे इन मामलों में बड़े जानकार‌ हैं। हमने बताया कि हम इसको देशज शब्द मानते हैं लेकिन यह नहीं पता कि यह किस क्षेत्र में बोला जाता होगा। थोड़ी देर बाद ही उनका जवाब आया कि गुजरात में। अचानक ही दिमाग में आया कि गुजरात का यह शब्द था गुजराती को ही भेंट में दे दिया गया।खैर…. यहाँ आपके माध्यम से संधि करके इसे अलग तरह से समझा। अर्थ तो वहीं है।
    मैच के जीतने और हारने के पीछे अगर इस तरह के कारण हों तो इससे बड़ा कोई आश्चर्य दुनिया में नहीं।
    लेकिन यह बात राहुल गांँधी ने कही है तो वे कह सकते हैं। जिन्हें हिंदी भाषा का ही पूरा ज्ञान ना हो वह कब क्या कह दे इसे कोई नहीं समझ सकता।
    बहरहाल इतनी सब बातों के बाद यह तो निश्चित हो गया कि अब यह शब्द डिक्शनरी में जरूर आ जाएगा क्योंकि उसे बड़ी प्रसिद्धि हासिल हुई है।
    इस समय वाक्युद्ध के मामले में स्थिति बहुत गंभीर है। सारे नेता सारी नैतिकता व मर्यादाएं भूल कर पद की गरिमा की मिट्टी पलीत करने में लगे हैं।
    अफवाहों का बाजार गर्म है और भी बहुत सी अफवाहें फैल रही हैं मैच को लेकर की रोहित शर्मा आउट नहीं था अंपायर चीटर था इत्यादि। लेकिन मैच अगर हार गए तो हार गए यही मानकर चलना चाहिए कि हमने अच्छा नहीं खेला।
    इस बार आपके संपादकीय में हास्य-व्यंग्य की धार का पैनापन महसूस हुआ।वैसे शैली में विषय के अनुरूप विविधता रहती है।
    पुनः एक अच्छे संपादकीय के लिए शुक्रिया आपका तेजेन्द्र जी।

    • नीलिमा जी इस टिप्पणी के बाद हमारे पाठकों को संपादकीय का हर पहलू समझ आ गया होगा।

  15. हँसाता -गुदगुदाता संपादकीय अपने पीछे भाषा के गिरते स्तर का महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा कर गया l अब हम अपने दोष देखने और सुधार करने की जगह बच्चों की तरह यह कहने में लगे रहते हैं कि वो भी तो कर रहा है l इस तरह से हर गलत बात जायज हो जाती है l इस बचकाने बहाने से यह तो अवश्य हो गया है कि हम बढ़ती उम्र के साथ विवेक समृद्ध होने की जगह विवेक बचपने की ओर लौटा रहे हैं … असली पनौती तो यही है 🙂 शानदार संपादकीय के लिए बधाई

  16. मैं यही नहीं कहूंगी कि यह हमेशा की तरह एक बेहतरीन संपादकीय है, मैं यह कहूंगी कि हमेशा की तरह से हटकर और भी बेहतरीन संपादकीय है। क्या हो गया है भारतीय राजनीति को, राजनेताओं को! क्रिकेट एक खेल है उसे खेल भावना से देखना चाहिए हार और जीत लगी रहती है। यह क्या कम है कि भारतीय टीम किसी से भी नहीं हारी और एक मैच हार जाने पर इतनी बड़ी तोहमत देश के प्रधानमंत्री को ही लगा दी! पनौती का अर्थ अच्छी तरह बताने के लिए बहुत धन्यवाद पुरवाई और इस अच्छे अंतरमन को छू जाने वाले संपादकीय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

    • निर्देश आपकी टिप्पणी ने मेरा दायित्व और बढ़ा दिया है। उम्मीद है कि हर नया संपादकीय आप सब की अपेक्षा पर खरा उतरेगा।

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