सोनू सूद ने साबित कर दिखाया कि चाहे वे सिनेमा के पर्दे पर खलनायक का रोल निभाते हैं, मगर असल ज़िन्दगी के हीरो केवल वे ही हैं। सिनेमा के बड़े पर्दे के सुपर स्टार जब घरों में बैठे थे; राजनेता जब मज़दूरों पर अपनी अपनी सियासत खेल रहे थे, ऐसे समय ने सोनू सूद ने वो कर दिखाया जो उन्हें इन्सान से मसीहा बना गया।

हम भारतीय बहुत सेंटिमेंटल होते हैं। जिसे जब चाहें आसमान पर बिठा देते हैं और उसकी एक छोटी सी ग़लती से उसके मरने की दुआएं मांगने लगते हैं।
छः साल पहले उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के हँड़िया गाँव में नरेन्द्र मोदी का मंदिर बनने की मुहिम चल रही थी। यह मुहिम वहां की कृष्ण सेना ने शुरू की थी। मगर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी एवं भारतीय जनता पार्टी के कड़े रुख़ के चलते उन्हें अपना अभियान रोकना पड़ा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने अभियान के नेता पुष्पराज यादव को समझाने में सफलता प्राप्त की और मंदिर निर्माण की सोच ठप्प हो गयी। 
मगर हाल ही में किसान आंदोलन के चलते ‘मर जाए मोदी!’… ‘मर जाए मोदी!’ के नारे औरतें लगा रही थीं और प्रधानमन्त्री का सियापा करती दिखाई दे रही थीं। 
जीवित व्यक्तियों का मंदिर बनाने में जहां दक्षिण भारत के लोग अधिक उत्साही हैं वहीं उत्तर प्रदेश में मायावती ने अपने पुतले अपने जीवन काल में ही प्रदेश भर में बनवा कर अपने आप को अमर कर लिया है।

वैसे भारत भर में अब तक महात्मा गान्धी (संबलपुर, ओड़िसा), सोनिया गान्धी (मलियाल, आन्ध्र प्रदेश), नरेन्द्र मोदी (कोठारिया गाँव, राजकोट), अमिताभ बच्चन (बालुगंज, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल), सचिन तेंदुलकर (कैमूर डिस्ट्रिक्ट, बिहार), एम.जी. रामचन्द्रन (नाथमेदु गाँव, तमिलनाडु), ख़ुश्बू (तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु), नमिथा (तिरुनेलवेली, तमिलनाडु), मायावती (महोबा डिस्ट्रिक्ट, बुंदेलखण्ड, उत्तर प्रदेश)। 
मगर दक्षिण के मेगास्टार रजनीकान्त का मामला थोड़ा अलग है। उनके लिये अलग मंदिर का निर्माण न करते हुए उनका लिंगम स्थापित किया गया है ताकि लोगों के प्रिय सितारे का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और वे अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करें। कर्नाटक के कोलार ज़िले के प्रतिष्ठित शिव मंदिर कोटिलिंगेश्वर में यह लिंग मंदिर के पुजारियों ने विशेष पूजा के बाद स्थापित किया है। 
इस सूची में नया नाम शामिल हुआ है मुंबई के लोकप्रिय फ़िल्म कलाकार सोनू सूद का। सोनू को यह सम्मान उनके फ़िल्मी कैरियर की वजह से नहीं मिला है। दरअसल हाल ही में कोरोना विश्वमारी के चलते भारत भर में मज़दूरों को उनके गाँवों तक पहुंचाने में सोनू सूद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस सामाजिक कार्य के चलते तेलंगाना में उनकी मूर्ति एक मंदिर में स्थापित की गयी है। 
सोनू सूद ने कोरोना काल में इतने लोगों की मदद की है कि उन सब लोगों के ल‍िए वो क‍िसी मसीहा से कम नहीं हैं। उनके प्रति अपना आभार जताने के लिए क‍िसी ने अपने बच्‍चे का नाम उनके ऊपर रख ल‍िया तो क‍िसी ने अपनी दुकान उनके नाम से खोल ली है।  ऐसे में अब तेलंगाना के गांव डुब्बा टांडा के लोगों ने 47 वर्ष के सोनू को भगवान के दर्जे पर बैठा द‍िया है। गांव वालों ने इस मंदिर का निर्माण सिद्दीपेट जिला अधिकारियों की मदद से करवाया है। 
सोनू सूद अपने ल‍िए लोगों का ये प्‍यार देखकर काफी व‍िनम्र महसूस कर रहे हैं। सोनू ने अपने बयान में कहा, “ये मेरे ल‍िए भावुक कर देने वाला पल है, लेकिन मैं ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि इसकी ज़रूरत नहीं है। मैं बस एक आम आदमी हूं ज‍िसने ज़रूरत पड़ने पर अपने भाइयों और बहनों की मदद की है।”
तेलंगाना के सिद्धिपेट जिले में स्थित गांव के एक लीडर गिरि कोंडा रेड्डी ने कहा कि ग़रीबों की मदद करने के लिए सच में सोनू सूद के नाम से एक मंदिर बनना चाहिए था। वे इसके हक़दार हैं। उन्होंने लॉकडाउन में ग़रीबों की खूब मदद की थी। यहां तक कि वह अब भी लोगों की मदद कर रहे हैं।
सोनू सूद ने साबित कर दिखाया कि चाहे वे सिनेमा के पर्दे पर खलनायक का रोल निभाते हैं, असली ज़िन्दगी के हीरो केवल वे ही हैं। सिनेमा के बड़े पर्दे के सुपर स्टार जब घरों में बैठे थे; राजनेता जब मज़दूरों पर अपनी अपनी सियासत खेल रहे थे, ऐसे समय ने सोनू सूद ने वो कर दिखाया जो उन्हें इन्सान से मसीहा बना गया।
वैसे साहित्यिक क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। यहाँ मन्दिर निर्माण तो नहीं होता मगर अपने ही जीवन में बहुत से लेखक अपने नाम पर पुरस्कार सम्मान शुरू कर देते हैं और फिर अपने ही हाथों से साहित्यकार को  सम्मानित करते हैं। मज़े की बात है कि साहित्यकार ऐसे सम्मान ले भी लेते हैं।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. सम्पादक जी को नमन
    आपने सोनू सूद के आपदा काल में मानवीय सहयोग और सेवा का जिक्र किया निश्चित ही अपने सुख सुविधा को त्यागकर सेवा करना व्यक्ति की महानता है ,साहित्यकारों के महान सोच पर टप्पणी अद्भुत है, यथार्थ है स्वकेन्द्रित होती यह सोच देखकर
    आश्चर्य होता है कि क्या ऐसे साहित्य सृजक “समाज के दर्पण हैं”।
    कयानी अब आईना बदलने की जरूरत है ।
    मर्म है संपादकी में । साधुवाद
    प्रभा मिश्रा

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