साभार : Live Law

मगर भ्रष्टाचार के केसों से लड़ाई करती चौदह राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से राहत एक मुश्त तमाम राजनीतिक दलों के लिये मांगी। ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी किसी याचना की सुनवाई कैसे कर सकती है। अभिषेक मनु सिंघवी ने स्थिति को समझते हुए यही ठीक समझा कि इससे पहले कि याचना सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दी जाए, इसे वापिस ले लेने में ही भलाई है। कम से कम नाक तो नहीं कटेगी। कहा तो यही जाएगा कि इन राजनीतिक दलों ने अपनी याचिका वापिस ले ली।  मगर यह तो तय है की विपक्षी दलों को राहत मिलना इतना आसान नहीं है। 

आजकल कांग्रेस के संगीत पर तेरह राजनीतिक दल – जैसे तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), द्रविड़ मुनेत्र कषगम, राष्ट्रीय जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जनता दल (यूनाइटेड), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी और जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस एक ही गीत गा रहे हैं – “हम दर्द के मारों का इतना ही फ़साना है / सीबीआई लगी पीछे, ईडी ने डराना है।” म्यूज़िक अरेंजर हैं अभिषेक मनु सिंघवी।
हैरानी इस बात पर होती है कि ये दल चुनावों में एकजुट नहीं हो पाते। उसका कारण एक ही है कि आपसी ईगो और मुद्दों पर असहमति उन्हें एक होने नहीं देती। मगर सुप्रीम कोर्ट में याचना दाखिल करने के लिये यदि ये 14 दल एक साथ खड़े हो गये तो कारण क्या हो सकता है? कारण बस एक ही है कि भ्रष्टाचार पर पड़ रही है जो मार, इन सभी दलों को लग रहा है अत्याचार… अत्याचार। 
विपक्षी दलों की तरफ से वरिष्ठ एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश की। सिंघवी ने कहा- साल 2013-14 से लेकर 2021-22 तक सीबीआई और ईडी के मामलों में 600% की वृद्धि हुई है। ईडी ने 121 नेताओं की जांच की, जिनमें से 95% विपक्षी दलों से हैं। वहीं सीबीआई ने 124 नेताओं की जांच की, जिसमें से 95% से अधिक विपक्षी दलों से हैं।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा, क्या हम इन आंकड़ों की वजह से कह सकते हैं कि कोई जांच या मुकदमा नहीं होना चाहिए? क्या यह बचाव का कारण हो सकता है? कोर्ट ने कहा कि एक राजनीतिक दल का नेता मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिका की वैधता और व्यावहारिकता पर संदेह व्यक्त किया। उन्होंने सिंघवी से पूछा कि क्या वह जांच और केस से विपक्षी दलों के लिए सुरक्षा की मांग कर रहे हैं? क्या उनके पास नागरिक के रूप में कोई विशेष अधिकार है?
विपक्षी दलों की अपील में गुज़ारिश की गई थी कि – 1. गिरफ़्तारी और रिमांड के लिए सीबीआई व ईडी अधिकारी ट्रिपल टेस्ट का इस्तेमाल करें। 2. कोर्ट गंभीर शारीरिक हिंसा छोड़ अन्य अपराधों में गिरफ्तारी पर रोक लगाए। 3. अगर आरोपी तय शर्तों का पालन नहीं करता तो उन्हें कुछ घंटों की पूछताछ या फिर हाउस अरेस्ट की अनुमति ही दी जानी चाहिए। 4. ज़मानत एक अपवाद वाले सिद्धांत का पालन अदालतों द्वारा ईडी व सीबीआई के केसों में भी किया जाना चाहिए। 5. जहां पर ट्रिपल टेस्ट का पालन किया गया है, वहां पर ज़मानत से इनकार किया जाना चाहिए।
भारत में एक ऐसा समय भी था कि आम आदमी यह मान कर चलता था कि राजनीतिज्ञ तो भ्रष्ट होते ही हैं। पहला झटका लगा था जब इंदिरा गांधी पर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में नागरवाला काण्ड सामने आया। तब तक हमारी पीढ़ी यह सोच भी नहीं सकती थी कि देश का प्रधानमंत्री भ्रष्ट हो सकता है। नेहरू जी की छवि ‘चाचा नेहरू’ वाली थी। लाल बहादुर शास्त्री तो ईमानदारी की पराकाष्ठा थे। गुलज़ारी लाल नंदा और मोरारजी देसाई के बारे में भी कोई ग़लत बात दिमाग़ में नहीं आती थी। मगर बोफ़ोर्स के बाद तो नेताओं पर विश्वास उठना शुरू हो गया। बंगारू लक्ष्मण जैसे किस्सों ने इस बात पर सील लगा दी कि हमाम में सब नंगे हैं। 
मनमोहन सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे बहुत ईमानदार हैं। यह सच भी है मगर उनके इर्द-गिर्द भ्रष्ट नेताओं का जमावड़ा था। हर महीने किसी न किसी भ्रष्टाचार से जुड़ा नेता किसी न किसी केस में लिप्त दिखाई देता। लालू प्रसाद यादव तो नब्बे के दशक में ही पशुओं का चारा खाने के चक्कर में कारागार पहुंच कर बिहार की जनता पर राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री के रूप में लाद कर जेल से सरकार चलाने लगे। आज वो भी अडानी-अंबानी का गीत गाते दिखाई दे रहे हैं जबकि उनका नवीं पास बेटा (क्रिकेट में फ़ेल होने के बाद) बिहार का उप-मुख्यमंत्री बन कर बैठा है। मगर पूरा परिवार अभी भी जांच एजेंसियों के सामने सवाल-जवाब करवा रहा है। 
जब अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया था तो आम आदमी को उम्मीद बंध चली थी कि शायद भारत की राजनीति का एक नया चेप्टर शुरू होने जा रहा है। मगर उनके परम-शिष्य केजरीवाल ने जब अपनी पार्टी से किरण बेदी, शाज़िया इल्मी, कुमार विश्वास जैसे विश्वसनीय नेताओं को निकाल बाहर किया तो उम्मीदों पर पानी फिरना महसूस होने लगा। प्रशांत भूषण जैसे धुर मोदी विरोधी भी आम आदमी पार्टी से अलग हो गये। एक सवाल अवश्य उठता है कि जो नेता कहा करता था कि आरोप लगते ही नेताओं को इस्तीफ़ा दे देना चाहिये, वह अपनी पार्टी के नेताओं को चरित्र प्रमाणपत्र कैसे जारी कर रहा है। 
आज विपक्ष के बहुत से नेता ज़मानत पर रिहा हैं तो बहुत से नेताओं को ज़मानत भी नसीब नहीं हो रही। नेता लोग यह नहीं कहते कि वे निर्दोष हैं। उनका कहना है कि “यदि हम भ्रष्ट हैं तो फ़लां भी तो भ्रष्ट है। भला उस पर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही?”
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर कोई भी गाइड-लाइन अलग से जारी नहीं हो सकती है। चीफ़ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने साफ़ कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। उनका मानना है कि  कि देश में वैसे भी सज़ा की दर कम है और इस याचिका को प्रभावित लोगों ने दाखिल नहीं किया है। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले राजनीतिक दलों से कहा कि जब आपके पास कोई व्यक्तिगत आपराधिक मामला हो या कई मामले हों तो हमारे पास वापस आएं।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब सूरत के एक न्यायालय ने राहुल गान्धी पर मोदी-समाज के विरुद्ध टिप्पणी पर राहुल को दोषी ठहराया तो कपिल सिब्बल समेत विपक्षी वकीलों की राय में यह निर्णय एकदम ग़लत था क्योंकि जिन तीन मोदियों का नाम लिया गया था – यानी कि ललित मोदी, नीरव मोदी, नरेन्द्र मोदी – उन्होंने इस बयान पर मुकद्दमा दायर नहीं किया। जिस व्यक्ति ने मुकद्दमा दायर किया है, उसके विषय में तो राहुल गान्धी ने कुछ कहा ही नहीं।
मगर भ्रष्टाचार केसों से लड़ाई करती चौदह राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से राहत एक मुश्त तमाम राजनीतिक दलों के लिये मांगी। ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी किसी याचना की सुनवाई कैसे कर सकती है। अभिषेक मनु सिंघवी ने स्थिति को समझते हुए यही ठीक समझा कि इससे पहले कि याचना सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दी जाए, इसे वापिस ले लेने में ही भलाई है। कम से कम नाक तो नहीं कटेगी। कहा तो यही जाएगा कि इन राजनीतिक दलों ने अपनी याचिका वापिस ले ली। मगर यह तो तय है की विपक्षी दलों को राहत मिलना इतना आसान नहीं है। 
विपक्षी दलों की दलील कि उनके ज़माने में विपक्ष पर जांच नहीं बैठाई जाती थी। सच तो यह है कि अभी भी विपक्ष पर जांच नहीं बिठाई जा रही। दरअसल विपक्ष के पास तो घोटाले करने का अवसर ही नहीं होता। घोटाले तो सत्तारूड़ पक्ष ही करता है। पहले भी यही होता था और आज भी यही हो रहा है। सत्येन्द्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय राऊत, नवाब मलिक अपने-अपने राज्य में सत्तारूड़ सरकारों में शामिल थे। लालू यादव का परिवार और गांधी परिवार जिन मुकद्दमों को झेल रहा है वो भी पुराने हैं… आज नहीं शुरू किये गये। 
वैसे अभिषेक मनु सिंघवी की दलील नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के मामले में सही साबित नहीं होती। गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए भी जांच एजेंसियों ने जिस तरह नरेन्द्र मोदी को घंटों पूछताछ के लिये घेरा और सवाल किये, उससे यही साबित होता है कि शायद अन्य भाजपा नेताओं के विरुद्ध शायद कुछ मामला बना नहीं पा रहे होंगे।  
हां भारतीय जनता पार्टी के नेता कांग्रेस और तेरह अन्य पार्टियों को धन्यवाद अवश्य दे रहे होंगे कि वे सब भाजपा को क्लीन चिट दे रहे हैं। वरना सोचिये यदि भाजपा के नेताओं ने विपक्ष में रहते हुए घोटाले किये होते तो कांग्रेस और उनके साथी उनका क्या हाल कर रहे होते ?
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

26 टिप्पणी

  1. बहुत ही प्रांसगिक आज की राजनीतिक गतिविधियों के संदर्भ में

  2. सौ बातों की एक बात,चोर-चोर मौसेरे भाई।
    चोर की दाढ़ी में तिनका !!
    सटीक, विश्लेषक सम्पादकीय।

  3. आदरणीय संपादक महोदय, सत्तारूढ़ दल द्वारा विपक्षी दलों की जांच कराना एकदम स्वाभाविक और प्रतिक्रिया है और सत्तारूढ़ पक्ष द्वारा भ्रष्टाचार किया जाना शायद भारत के लिए स्वाभाविक क्रिया भी। प्रशासन स्वच्छ हो इसके लिए होना तो यह चाहिए कि सत्ता का हस्तांतरण हर चुनाव के बाद विपक्ष को मिले। आपने स्वच्छता छवि वाले जिन नेताओं के नाम गिनाए हैं ,वे तो अब इतिहास बन चुके हैं, पता नहीं हमारे देश में कभी वह इतिहास दोहराया भी जा सकेगा या नहीं ।
    आज ही रेलवे स्टेशन से घर आते हुए जो टैक्सी ड्राइवर हमें लेकर आया ,उसका मानना था कि बढ़ती महंगाई के लिए केवल और केवल नेताओं की रिश्वतखोरी और उनके द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार है।
    काश! भारत कभी इस शाप से मुक्त हो!

  4. Your Editorial of the day rightly points out the absurdity of the plea presented to the Supreme Court against the Central Probe by the 14 opposite parties
    of our country while also citing the questions that the Chief Justice had asked their lawyer,Manu Singhvi.
    The plea had to be withdrawn.
    Very objectively written with absolute clarity about the subject.
    Regards
    Deepak Sharma

  5. क्या अभी तक काँग्रेस और सिंघवी की नाक चेहरे पर है???? उसकी चिन्ता तो छोड़ ही देनी चाहिए। रही बात तार्किक होना, तो उसकी कोई historical Precedence है नहीं।
    ईमानदार और नेता ये शब्द साथ-साथ आ ही नहीं सकते। कौटिल्य से लेकर आधुनिकतम राजनीतिक विचारकों के मत से कुछ ऐसी ही ध्वनि निकलती है।
    जो नेता जनता और देश के हित में अधिक काम करे उसे अपने दायित्वों के प्रति ईमानदार कहा जा सकता, अन्यथा स्वयं में पूर्ण ईमानदार व्यक्ति का नेता बनना असम्भव है।
    राहुल बाबा, ममता, लालू, केजरीवाल बोलने से पहले तो triple test करते नहीं, उनपर जाँच होने से पहले ऐसा क्यों किया जाना चाहिए? भारतीय राजनितिज्ञों का रोचक और सटीक ख़ाका खींचा आपने बहुत-बहुत धन्यवाद।

  6. आदरणीय आपका यह संपादकीय लोकतंत्र में जन-जन की चेतना और विचारों को बेबाकी से कलमबद्ध करता है, क्योंकि लोकतंत्र का मूल ही सभी के लिए समान दिशा निर्देश व व्यवस्था का है। अतः सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सर्वथा उचित है, राष्ट्र के सभी जन के लिए समान विधान का पालन सर्वोच्च है, फिर चाहे वह राजनीतिक हो या आम जनता और या ही ऊँचे पहुंच के लोग, नैतिकता के विपरीत भ्रष्ट आचरण सभी के लिए दंडनीय है। आप जैसे बुद्धिजीवी के प्रखर संपादकीय हमारे राष्ट्र के आदर्शों का वास्तविक प्रकाश स्तंभ है, जिनके उजास में प्रत्येक क्षेत्र की कलुषितकालिमा अनावृत हो जाती है।

    साधुवाद
    डॉ.ऋतु माथुर

  7. सम्पादकीय का मर्म अंतिम पैराग्राफ में व्यक्त है
    सटीक, सारगर्भित और सामयिक विषय पर
    बात है ।

    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  8. आज का आपका संपादकीय आँखें खोलने जैसा है। हम बचपन से सुनते आये थे कि ये नेता लोग कितने भी भ्रष्टाचारी या अपराधी ही क्यों हों इन पर कोई हाथ ही नहीं डाल सकता, इन्हें सजा हो ही नहीं हो सकती। इनमें आपस में एक समझौता है कि तुम्हारे भ्रष्टाचार के बारे में हम कुछ नहीं बोलेंगे, वहीं तुम हमारे भ्रष्टाचार के बारे में नहीं बोलोगे। किन्तु नरेन्द्र मोदी की सरकार भ्रष्टाचार पर समझौता न करने के अपने सिद्धांत पर कायम रहते हुए, ज़ब इनके कारनामों की जाँच कराने लगी तो एक दूसरे के विपरीत मूल्यों वाले, स्वयं को आम आदमी से अलग समझने वाले 14 विपक्षी दल सर्वोच्च न्यायलय पहुँच गये। यह तो अच्छा हुआ न्यायाधीशों ने इन्हें आयना दिखा दिया। कट्टर ईमानदारों की पार्टी की ईमानदारी भी शक के दायरे में आ गईं है।

    भारत से बाहर रहकर भी भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर आपकी नजर अचंभित करती है, वहीं इस बात को सिद्ध करती प्रतीत होती है कि भारतीय दुनिया के किसी भी देश में रहें, देश की मिट्टी की सुगंध उन्हें कभी अपने देश से दूर नहीं जाने देती। देश की घटती घटनायें कभी उन्हें ख़ुशी देतीं हैं तो कभी उद्देलित करती हैं।
    आज के संपादकीय के लिए आपको बधाई।

    • सुधा जी आप हमेशा समय निकाल कर पुरवाई संपादकीय पर सार्थक टिप्पणी देती हैं। हार्दिक आभार।

  9. तेजेन्द्र जी
    नमस्कार
    हर बार की भाँति चेतना जागृत करता हुआ संपादकीय! समसामयिक विषयों पर सटीक, खुलकर कहना आपकी विशेषता है।
    साधुवाद आपको

  10. विपक्षी पार्टियों की नाक का सवाल गहन विश्लेषणात्मक ढंग से आपने उठाया, वस्तुस्थिति को रूपायित करता सटीक संपादकीय।

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