विद्या राजपूत एक ट्रांसवुमेन हैं। ‘मितवा’ समिति के माध्यम से उन्होंने एलजीबीटी और विशेष रूप से ट्रांसजेंडर्स के लिए अनेक सामाजिक व शैक्षिक कार्य सम्पन्न किए हैं। पुरुष तन में जन्म लेकर एक ट्रांसवुमेन के रूप में समाज के सामने आने तक की अपनी दर्दभरी जीवनयात्रा को वह प्रख्यात् पत्रिका ‘वाङ्मय’ सम्पादक डॉ. फ़ीरोज़ अहमद से साझा कर रही हैं। इसमें उन्होंने अपने जीवन के अनेक अनछुए और अनजाने पहलुओं को सामने रखा है।
मेरागाँवफरसगाँव, कोडागाँवबस्तरजोनमेंआताहै।राजधानीरायपुरसे 200 किमीदूरहैगाँव।बचपनकीशिक्षागाँवमेंहीहुई।बारहवींतकगाँवमेंहीपढ़ाईकी। मैं घरमेंसबसेछोटीहूँ। मेरे तीनबड़ेभाईऔरदोबहनेहैं।पिताकोनहींदेखा, माँहीसब कुछरही। हमारे घरकीआर्थिकस्थितिबहुतखराबरही।माँखेतीऔरमजदूरीकरकेजीवनचलातीथी।बड़ेभाईपुलिसकीट्रेनिंगकेलिएनिकलगए।दोनोंबड़ीबहनोंमेंएकआँगनबाड़ीमेंथी औरदूसरीबहनभाईकेपासरहकरपढ़तीथी।घरमेंमाँकाहाथबँटाना, सुबहउठकरपानीभरना, झाड़ूलगाना मुझेअच्छालगताथा।कक्षाएक–दोमेंस्कूलजानेपरसबलड़केबाहरमूत्रविसर्जनकेलिएजातेथे।मुझेबाहरजाकरउनकेसाथसूसूकरनेमेंशरमआतीथीऔरस्कूलमेंकेवललड़कियोंकेलिएहीटाॅयलेटथे।साथीलड़केमुझसेकहतेथेकिक्यातूलड़कीहैजोशरमाताहै।मैंउनसेकहतीनहीं,मैंतोलड़काहूँ।मेराबाॅयलाॅजिकलस्ट्रक्चरभीलड़कोंजैसाहीथाऔरमुझेघरमेंलड़कोंकीतरहहीरखाजाताऔरव्यवहारकियाजाताथा।तबतकमुझेअपनीफीलिंग्सकीजानकारीनहींथी।मुझेजोअच्छालगतामैंवहीकरतीथी।मैंलड़कियोंकेसाथहीखेलतीथी।मुझेलड़कोंकेसाथखेलनाअच्छानहींलगताथा।क्रिकेटखेलना, हाॅकीखेलनाअच्छानहींलगताथा। मुझेलड़कियोंवालेखेलपसन्दथे।गुड्डे–गुड़िया के साथखेलनाअच्छालगताथा।स्कूलकीछुट्टीहोनेपरमैंलड़कियोंकेसाथघरआतीथी।
कक्षाछःमेंमुझेस्कूलमेंलड़कीबनकरडांसकरनेकामौकामिला।लड़कियोंकेसाथखेलतेसमयहमलोगरेडियोंपरगानाबजाकरडांसकरतेथे।मुझेडांसकरतेदेखमेरेभाईमुझेमारनेलगतेथे।एकबारमेरेएकसीनियरनेमुझेडांससिखायाऔरमैंनेगणेशपूजा के अवसरपरडांसकिया।पहलेतोमेरेसाथकेलोगहीमुझेजानतेथेलेकिनजबमैंनेपब्लिकलीडांसकरनाशुरूकियातोबहुतसारेलोगमुझेजाननेलगे।मेरेडांसकोदेखकरलोगमुझेलड़कीसमझनेलगे।घरमेंचिंटूहैबोलतेथे।अब वेमेरेसाथज्यादाछेड़खानीकरनेलगे।जबमैंमाँकेसाथबाज़ारयाअस्पतालजातीथीतोलोगछेड़तेथेऔरबोलतेथेकिमैंलड़कीबनकरडांसक्योंकरताहूँ।कभी–कभीमैंसोचतीथीकिलोगमेरेलिएऐसाक्योंबोलतेहैं? क्यालोगोंकोपसन्दनहींआरहा? शायदयेसबलोगसचहीबोलरहेहैं।क्यासचमेंमेरेसाथकुछसमस्याहै? मैंबहुतसोचनेलगी।ज्यादासोचनेऔरमानसिकरूपसेपरेशानरहनेकेकारणमैंकक्षाछःमेंफेलहोगयी।फेलहोनेपरमैंऔरडर गईक्योंकिमुझेलगाकि जब घरमेंपताचलेगातोमुझेमारपड़ेगी।इसलिएमैंएकपहाड़परचढ़ीऔरवहाँसेकूदनेकीसोचनेलगीलेकिन फिर डरगयी। पहाड़ से मैं नीचेउतरआईऔरदूसरेगाँवभागगयी।कुछपैसेथेमेरेपास।वहाँसे 15 किमीमैंजीपमेंबैठकरगयीऔर 15 किमीपैदलचली।मेरीमम्मीनेदूसरेदिनमुझेढूँढ़लिया।तबतकथाना–कचहरीभीहोचुकाथा।मम्मीमुझेयहकहकरघरलेगईंकिचलतुझेकोईनहींमारेगालेकिनघरमेंमेरीखूबमारपड़ी।मैंइतनाडरगयीकिकिसीकोबोलूँगीतोऔरमारपड़ेगी।फिरमेरादूसरेस्कूलमेंएडमिशनहुआ।मुझेसमझायागयाकिखूबपढ़नाहै।मुझेभीलगाकिमैंपढ़ूँगी।दूसरास्कूलहाईस्कूलथा।हायरसेकेन्ड्रीभीथा।लेकिनअभीभीमेरीसहेलियाँलड़कियाँहीथीं।लड़केमुझेदेखकरकहतेथेकिदेखछक्काआयाहै।लेकिनमैंपूराध्यानपढाईपरदेनेलगी।वहाँभीबाथरूमजानेकीसमस्याआई।रिसेसकेसमयलड़केखेतकीतरफजातेथे।मैंरिसेसखत्महोनेकेबादबाथरूमजातीथी।वापसआतीथीतोकईबारटीचर्सकीडांटऔरमारभीपड़तीथी।कईबारदिनदिनभरबाथरूमरोककररहतीथीतोतबीयतभीखराबहोजातीथी।पढ़ाईकेसाथमुझेयहभीडरलगताथाकिकोईमुझेछक्कायामामूनबोले।मेरेसाथजोनारीत्वथायाशारीरिकसमस्याथी,उसकाकोईनामनहींथा।जोनामथेवेअपशब्दथेऔरमुझेअपशब्दोंसेडरलगताथा।मैंनेयहदेखाथाकिमेरेगाँवमेंएकफूलबाई नामक किन्नरथी, वहकिन्नरबाज़ारउठातीथी।एकदीगाकरकेथा,वहकपड़ेकाकामकरताथा।वेलोगकम्युनिटीसेथे।उन्हेंदेखकरडरलगताथा।लोगमुझेभीबोलतेथेकिये कभी तुझेलेजाएँगे।मैंबाज़ारमेंउन्हेंदेखकरबहुतडरतीथी।घरकीमार, लोगोंकेकमेंटसेमैं और अधिक अकेलीहोती चलीगयी।यहसबसोचते–सोचतेऔरडरनेकेकारणमैंडिप्रेशनमेंचलीगयी।मेराआत्मविश्वासपूरीतरहसेखत्महोगया।मुझेलगताथाकिमैंखुदको हीखत्मकरलूँ।मुझेकुछसमझमेंहीनहींआताथा। थोड़ा सा भीकान्फिडेंस नहीं था मेरे अन्दर।मैंअपनेअन्दरकीबातोंको भीशेयरनहींकरपातीथी।बहुतडरतीथी।मुझेकोईलड़कामिलताथातोलगताथाकिमैंअपनेअन्दरकीबातेंउससेशेयरकरूँलेकिनहिम्मतनहींपड़तीथी।
…उसकेबादयहरातकीक्लासखत्महुईमैंपासभीहोगयी।फिरमैंजबआगेक्लासमेंगयीतोमैंबड़ी हो रहीथीऔरलोगोंकोमैंज्यादाविजुअलहोरहीथी। इसीलिए लोगमुझेज्यादाटारगेटकरतेथे।किन्नर, छक्का, मामूऔरऐसेहीबहुतसारेशब्दबोलकरमुझेचिढ़ातेथे।मेरीमाँभीमुझेनहलातेसमयअक्सरकहतीथीकितूलड़कियोंकेसाथमतखेलनानहींतोबालाहोजाएगा।मुझेसमझनहींआताथाकिसबमुझेऐसाक्योंबोलरहेहैं।यदिमुझेलड़कियोंकीतरहरहनेमें, काजललगानेमें, कपड़ेपहनननेमेंअच्छालगरहाहैतोलोगमुझेटारगेटक्योंकररहेहैं।ऐसेहीसोचते–सोचतेदिनगुजरजाताऔरमैंअगलेदिनकाइन्तजारकरतीथी।हरदिनमैं यही सोचतीथीकिकलसुबहउठकरमेंआत्महत्याकरलूँगीलेकिनअगलेसुबहउठतीथीतोमाँघरकाकामकरनेकोकहती, पानीभरनेकोकहती, झाड़ूलगानाकपड़ेफैलानाआदि सब काम सामने होते।यहसबकरतेहुए मेरा मनबदलजाताथा।मैंसोचनेलगीकियदिमैंमरजाऊंगीतोमाँकाख्यालकौनरखेगा।इससेतोअच्छाहैकिमैंबड़ीहोकरनौकरीकरकेमाँकोअच्छेसेरखूँगी, उसेकुछकामनहींकरनेदूँगी।मेरेघरकीहालतअच्छीनहींथी।मजदूरीकरके, साइकिलकिराएपरलेकर,लकड़ियाँबीनकर हम बेचतेथे,तब जाकर हमलोगों कागुजारा होता था।माँशराबभीबनातीथी।घरमेंपपीतेहोतेथेउसेहमलोग सड़क परबेचतेथे।खेतबहुतकमथा हमारे पास लेकिनखेतीभीकरतेथे।घरमेंसहीसेपढ़नेकोभीनहींमिलताथा।मेरेभाईलोगबहुतलड़ाईकरतेथे।इसलिएमैंदूसरेकेघरपढ़नेजाती।
जबमैं 9 मेंथी तब एक लड़केसेमेराएट्रेक्शनहुआ।मैंउससेबोलनहींपाई।वहमेरीएकसहेलीकोपसन्दकरताथा।वहविकलांगथी।वे दोनोंअच्छेदोस्तबने।मैंउसलड़केसेअपनेमनकीबातनहींकहपाईक्योंकिमेरेमनमेंडरथाकिमैंलड़काहूँतोलड़कीजैसाक्योंसोचरहाहूँ।मैंयहीसोचतीथीकिमैंलड़काबनूँ।मुझेस्काउटलेनाहै, एनसीसीलेनाहैयहमैंसोचतीथी।मुझेब्वायजग्रुपमेंरहनाहै, लेकिनउसमेंमेराशोषणहोताथा।अपशब्द, कमेंट्सआदिबहुतहोतेथे।क्लास 12 केबादमैंनेएकजाॅबकीटीचरशिपकी, एक साल तक।उससेमुझेबहुतहेल्पमिली।वहाँमैंलड़कियोंकेसाथखेलतीथी,डांसकरतीथी।लेकिनबहुतसमयतकनहींकरपाई।घरमेंमारपड़तीथी। 9-10 केबादमैंनेवह सबबन्दकरदिया।मेरीबहुतइच्छाथीकिमैंकत्थकडांससीखूँ, बालीवुडडांससीखूँलेकिनघरमेंइतनीबंदिशेंथींकिनहींकरपायी।मेरीचार–पाँचसहेलियाँथीं,वेबहनेंथीं।उनकेसाथमेरेभाईदेखलेतेथेतोमुझेकुल्हाड़ीयाकुछभीलेकरमारनेदौड़तेथे।एकबारतोमैंपेड़परसोईथी।मेरीएकसहेली थी जो ग़ज़ललिखतीथी।मैंउसकेसाथहीज्यादासमयबितातीथी।उसकानामदर्शनकौरथालेकिनउसेबरखाबोलतेथे।वहअभीभीमेरीसहेलीहै।उसकीशादीहोगयीथी।उसकाहसबैंडसीओहै। एकलड़काथा,वहमेरादोस्तबना।वहमुझेछेड़तानहींथामैंजैसीहूँवैसाहीएक्सेप्टकरताथा।वहबहुतबड़ाबिजनेसमैनहैआजकीडेटमें।दोनोंकेदो–दोबच्चेहैं।उसकाससुरालनागपुरमेंहै।वहजबभीआताहैमुझसेमिलताहै।आजभीहमारीहरदो–चारदिनमेंबातचीतहोतीहै।
विद्या राजपूत के जीवन की इन सच्ची घटनाओं ने मेरे मन के भीतर उथल-पुथल मचा दी । यह समाज, जो आदर्शों के ढकोसले पालता है, वह कितना नृशंस और निर्मम है। विद्या राजपूत जैसे ट्रांसवूमेन या दूसरे एलजीबीटी अपनी इच्छा से अपना जीवन व्यतीत करने के हकदार हैं ।लेकिन समाज की बंधी बधाई परिपाटी उनकी इच्छा और स्वाधीन चेतना का गला घोंटने पर उतारू है। ऐसे में विद्या की लड़ाई जीवन जीने की लड़ाई है, अपने हकों को छीनने की लड़ाई है।
इस तरह की लड़ाई आज के दिन में जरूरी हो जाती है।
यह इंटरव्यू अत्यंत प्रेरणादायक है और साहस के साथ अपनी बात एक खुले प्लेटफार्म पर रखने की कोशिश है । इसके लिए डॉक्टर फिरोज जी को भी धन्यवाद जिन्होंने हाशिए के बाहर ठेले गए इस समाज को मुख्यधारा का हिस्सा बनाने का उद्यम लिया है।
अन्तर्मन को झकझोर देने वाला साक्षात्कार। फ़ीरोज़ जी और विद्या राजपूत का यह वार्तालाप कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। यह कहानी तन और मन के संघर्ष को झेलते एक ऐसे व्यक्ति की वेदना की सच्ची कहानी है जिसने अपने अद्भुत साहस और पराक्रम से अपना स्वप्न साकार किया और अपने नाम का परचम लहराया। फ़ीरोज़ जी और विद्या जी को बहुत बहुत बधाई।
This interview help us to understand the psychee of transgender and straight persons, which clears and help us to know our human inside . This human, in our core of personality, helps everyone one to see and understandthe things biologically, scientifically, psychologically and socially. This attitudes helps to clear the thinking to see the structure of human behaviour in the light of science of human nature and Anatomy of human body…
So, thanks to Vidya Rajput and Firoj Sir to draw their line bigger than that of other’s without …
ज्ञानवर्द्धक
धन्यवाद
This interview clears most of the confusions about transgenders and would help a lot to research scholars…
Thanks to Firoj sir to bring such valuable and most precious knowledge before all of us..
–Ajit University of Delhi
Thanks
विद्या राजपूत के जीवन की इन सच्ची घटनाओं ने मेरे मन के भीतर उथल-पुथल मचा दी । यह समाज, जो आदर्शों के ढकोसले पालता है, वह कितना नृशंस और निर्मम है। विद्या राजपूत जैसे ट्रांसवूमेन या दूसरे एलजीबीटी अपनी इच्छा से अपना जीवन व्यतीत करने के हकदार हैं ।लेकिन समाज की बंधी बधाई परिपाटी उनकी इच्छा और स्वाधीन चेतना का गला घोंटने पर उतारू है। ऐसे में विद्या की लड़ाई जीवन जीने की लड़ाई है, अपने हकों को छीनने की लड़ाई है।
इस तरह की लड़ाई आज के दिन में जरूरी हो जाती है।
यह इंटरव्यू अत्यंत प्रेरणादायक है और साहस के साथ अपनी बात एक खुले प्लेटफार्म पर रखने की कोशिश है । इसके लिए डॉक्टर फिरोज जी को भी धन्यवाद जिन्होंने हाशिए के बाहर ठेले गए इस समाज को मुख्यधारा का हिस्सा बनाने का उद्यम लिया है।
धन्यवाद, रेशमी जी
अन्तर्मन को झकझोर देने वाला साक्षात्कार। फ़ीरोज़ जी और विद्या राजपूत का यह वार्तालाप कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। यह कहानी तन और मन के संघर्ष को झेलते एक ऐसे व्यक्ति की वेदना की सच्ची कहानी है जिसने अपने अद्भुत साहस और पराक्रम से अपना स्वप्न साकार किया और अपने नाम का परचम लहराया। फ़ीरोज़ जी और विद्या जी को बहुत बहुत बधाई।
थैंक्स भाई
This interview help us to understand the psychee of transgender and straight persons, which clears and help us to know our human inside . This human, in our core of personality, helps everyone one to see and understandthe things biologically, scientifically, psychologically and socially. This attitudes helps to clear the thinking to see the structure of human behaviour in the light of science of human nature and Anatomy of human body…
So, thanks to Vidya Rajput and Firoj Sir to draw their line bigger than that of other’s without …
Ajit Kumar Singh
University of Delhi
Thanks you
बहुत शानदार साक्षात्कार है सर! इसके जरिए लोग विद्या राजपूत जी के साथ-साथ पूरे किन्नर समाज के जीवन-संघर्ष को जान पाएंगे।
जी। थैंक्स