लेखक ने किताब लिखीबड़े नामधारी से समीक्षा लिखवाई। फिर बहुत बड़े प्रकाशन से छपवाई। फिर उसे प्रकाशन ने ढोल बजा-बजा कर प्रचारित किया। फिर बड़े भव्य आयोजन में बड़े -बड़े बैनर्स के साथ किताब का विमोचन हुआ। फिर किताब पुरस्कृत की गई और हो गयी अमेजोन फ्लिपकार्ट पर अपलोड। उसके बाद… निल बटा सन्नाटा। 
बहुत उछल रहे थे, उछाल रहे थे, हम सबको पछाड़ रहे थे। अब ख़रीद लो ख़ुद ही और पढ़ भी लो ख़ुद ही। लेखक और प्रकाशक दोनों सकते में हैं, सदमे में हैं। याद रहे पाठक वही लेखक हैं जिनसे आप प्रतिद्वंदिता कर आगे-आगे दौड़ रहे थे। और वे भौंचक्के देख रहे थे ये हो क्या रहा है। अब कह रहे हो वही हाथ पकड़ कर निकालें अब वे हँस रहे हैं। और कह रहे हैं बहुत पतंग सा उड़ लिया बड्डे वाला साहित्यकार बनकर अब आजा उतर आ ज़मीन पर। 
प्रकाशक कभी किताब को कभी अपने प्रकाशन को देख रहा है। चालू रखूँ या बंद करूँ? साला जेब से भी लगाया, लेखक को भी लगाया दोनों डूब रहे हैं। अब क्या करूँ? लेखक को फ़ोन करता है बिक न रही कुछ प्रचार प्रसार करो, लेखक पूछता है और क्या करूँ। 
यार दोस्तों को लिंक भेज, कुछ तो ख़रीदवा। लेखक जहाँ भी लिंक भेजता है वहाँ से बधाई आती है हाथ जोड़कर। कोई-कोई तो आभासी लड्डुओं का थाल भी भेज देता है। ख़रीदने के नाम पर गुम हैं। गई भैंस पानी में। प्रकाशक…! अब वह कोई दूसरा धंधा करने की सोच रहा है मगर लेखक को धंधा आता तो कलम ही क्यों उठाता। 
अब एक ही रास्ता बचा है तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी खुजाऊँ के बाद… तू मेरी ख़रीद मैं तेरी ख़रीदूँ। किसी विमोचन, मेले में फ़्री रखकर, लगाकर देखो एक न बचेगी हम भारतीय हैं। फ़्री में शुगर का मरीज भी चार रसमलाई निचोड़कर खा आता है। शादी में जितने दिए उससे दस गुना वसूल आता है। प्रसाद के नाम पर फ़्री खाने वालों की लाइन लग जाती है… क्योंकि वहाँ भिखारी वाली फ़ीलिंग नहीं होती।
सेल में क्यों भागते हैं? खैर तुम्हारी करनी तुम भुगतो हम तो पीडीएफ़ भेज देते हैं जो पढ़े उसका भी भला जो न पढ़े उसका भी भला। सरस्वती और लक्ष्मी का बैर है। साधना सरस्वती की और इनाम लक्ष्मी दे अक्ल है या नहीं। लक्ष्मी चाहिये तो अंबानी की तरह धंधा करो न। किसे पागल कुत्ते ने काटा दूसरों की दर्द भरी कहानियाँ/कविताएँ पढ़कर रोये। अपनी ज़िंदगी के दर्द कम हैं क्या रोने को? लोग तो कुछ मनोरंजन वाली ,हँसाने वाली, वाह वाह टाइप वाली, आध्यात्मिक कथा टाइप वाली चीज़ें देखना चाहते हैं… मोबाइल है न। 
बेकार चीज़ के उत्पादन में क्यों लगे हो? अब कहोगे स्वांत सुखाय तो फिर सुख ले लो अब स्वयं ही। दूसरों के दुख को खरीदकर पाठक सुख कैसे लेगा। अब आप कहेंगे यही साहित्य है। है तो, मगर इसका अचार डलेगा या मुरब्बा। आप कहेंगे मरने के बाद हम चाँद पर पहुंचेंगे। चाँद पर मरकर वे पहुँचे जिनकी कोर्स में लगा दी गई हमें मजबूरन रटनी पड़ी थी। बाकी की तो रीसाइक्लिंग हो गई। चोरों के काम आई नाम बदलकर। आप संतोष कर सकते हैं नाम रहे न रहे रचना रहेगी भले ही अदलबदल कर रहे। 
अब मोबाइल किसने बनाया, मिक्सी, फ़्रिज, ऐअर कंडीशनर किसने बनाया… बिजली किसने बनाई… ट्रेन किसने बनाई… हवाई जहाज़ किसने बनाया… कितनों को पता है। आप का उत्पाद रहे उत्पादक का नाम रहे न रहे क्या फ़र्क पड़ता है? हम तो नाती पोतों से कह देंगे मेरा लिखा अपने नाम से लिखकर लेखक बन जाना। बहुत कर ली ईमानदारी, नैतिकता, सज्जनता। भाड़ में जाएँ तीनों! ज़िंदगी ख़राब कर दी है इन्होंने… जिसके गले पड़ी हैं ये तीन देवियाँ। अब हम अपने साहब के नक्शे-कदम पर चलेंगे साहब कौन है ये आपके विवेक पर छोड़ते है ।
हम जा रहे हैं मूंग वड़ा रेसिपी देखने क्योंकि मूंग दाल भिगोकर पीसकर रखी हुई है। बाप रे! शालिनी किचन में मूंग वड़े रेसिपी पर छयालिस लाख व्यूज़…! पेट जीभ से कभी कोई चीज़ नहीं जीत सकती है। ननदों को किताब की पीडीएफ़ भेजती हूँ तो कोई रिएक्शन नहीं देतीं। मूंग वड़े भेजूँगी तो खुश हो जायेंगी। ख़ुद बनाने को वे भी रेसिपी देखकर उसके व्यूज़ बढ़ाएंगी। जिनसे ज़िक्र करेंगी वे भी बढ़ाएंगे और जो मेरा लेख पढ़ेंगे वे बीवी से कहेंगे उनकी बीवियां भी बढ़ाएंगी।
मुझे लगता है हमें लिखना छोड़ मूंग वड़े या उड़द वड़े की दुकान खोलनी चाहिये… फिर देखना क्या भर-भर नोट आयेंगे खरीदने वालों की जेब से। पकोड़ा आइडिया बुरा नहीं था मगर वो कहावत है न गधे को दिया नमक मेरी ही आँख फोड़ दी। लोग उल्टे उन्हें ही चिपट गए। पकोड़े की दुकान खोलकर तो देखते। 
मेरे पास सभी लेखकों के लिए कुछ बढ़िया वाली टिप्स है। किताब के विमोचन में खाने का इंतज़ाम न रखें। हॉल के बाहर अपनी तरफ से मूंग वड़े, उड़द वड़े, आलू पूरी आदि की पेड स्टाल लगा दें। विमोचन से छूटकर जब भूख से बेहाल लेखक स्टॉल पर जाएँ तो मनमर्ज़ी का भोजन मन-मन में गालियां देते हुए पाएँ।उ स पैसे को आप किताब की बिक्री में कन्वर्ट कर फेसबुक पर पोस्ट लगा दें… इतने की बिक्री हुई। बिक्री किस चीज़ की हुई गोल कर जाएँ। पुस्तक बेस्ट सेलर बनकर अख़बार में छपेगी तो दो चार ग्राहक और मिलेंगे।

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