
अपने एक टीवी सक्षात्कार में तबस्सुम ने स्वयं बताया था कि उनके पिता एक हिन्दू थे जिनका नाम था अयोध्यानाथ सचदेव और माँ असगरी बेग़म एक मुसलमान थीं। पिता ने अपनी पत्नी की भावनाओं का सम्मान करते हुए पुत्री का नाम रखा तबस्सुम और पत्नी ने उसी भावना के तहत बेटी को कहा – किरण बाला सचदेव। यही नाम उनके स्कूल में भी लिखवाया गया और विजय गोविल के साथ विवाह के बाद उनके पासपोर्ट पर जो नाम अंकित है, वह है – किरण बाला गोविल।
सिनेमा और टीवी से जुड़ी शायद सबसे लंबी पारी खेलने वाली अदाकारा तबस्सुम ने 18 नवंबर 2022 को अपनी अंतिम साँस ली। वे 78 वर्ष की थीं।
शुक्रवार 18 नवम्बर की रात तबस्सुम को दो बार हार्ट अटैक आया था। उन्हें पहला हार्ट अटैक 8:40 बजे और दूसरा 8:42 बजे आया था, जिस कारण से उनका निधन हो गया। शनिवार को मुंबई में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके बेटे होशांग गोविल ने बताया कि उनकी माँ की ख्वाहिश थी कि उनके अंतिम संस्कार से पहले किसी को भी उनकी मौत की ख़बर न दी जाए। देव आनंद और राज कुमार के बाद तबस्सुम तीसरी कलाकार हैं जो नहीं चाहती थीं कि उनके मृत चेहरे को उनके चाहने वाले देखें। उनकी यही इच्छा थी कि लोग उनका हंसता मुस्कुराता हुआ चेहरा ही याद रखें।
अमिताभ बच्चन ने तबस्सुम को याद करते हुए अपने व्लॉग पर लिखा – ‘दमदार तबस्सुम, अभिनेत्री, एंकर, टीवी होस्ट… ऑलराउंडर का निधन हो गया। यह समझ से परे है… आप केवल आंखों और मन के सामने उनकी उपस्थिति और जीवन के समय को याद करते हैं… फूल खिलें हैं गुलशन गुलशन… वे सभी एक-एक कर हमें छोड़कर जा रहे हैं… अमिताभ आगे लिखते हैं- वे एक तस्वीर की तरह उनके जहन में रहेंगी, लोग हमेशा समय की एक इमेज बने रहते हैं… और फिर वे चले जाते हैं… लेकिन जीवन जारी रहता है’।
9 जुलाई 1944 को मुंबई में जन्मी तबस्सुम ने तीन वर्ष की आयु में पहली बार बड़े पर्दे पर अभिनय किया था। यानी कि उनका फ़िल्मी कैरियर करीब 75 वर्षों तक चला। 1951 में नितिन बोस द्वारा निर्देशित फ़िल्म दीदार में तबस्सुम पर फ़िल्माया गीत… “ओ ओ ओ बचपन के दिन भुला न देना / आज हँसे कल रुला न देना” आज भी सिने-प्रेमियों को याद है। इस गीत में वे घोड़े पर बैठी हैं और उनके पीछे बैठे हैं पुराने नायक परीक्षित साहनी।
अपने एक टीवी सक्षात्कार में तबस्सुम ने स्वयं बताया था कि उनके पिता एक हिन्दू थे जिनका नाम था अयोध्यानाथ सचदेव और माँ असगरी बेग़म एक मुसलमान थीं। पिता ने अपनी पत्नी की भावनाओं का सम्मान करते हुए पुत्री का नाम रखा तबस्सुम और पत्नी ने उसी भावना के तहत बेटी को कहा – किरण बाला सचदेव। यही नाम उनके स्कूल में भी लिखवाया गया और विजय गोविल के साथ विवाह के बाद उनके पासपोर्ट पर जो नाम अंकित है, वह है – किरण बाला गोविल।
अपने माता पिता के बारे में तबस्सुम ने दूरदर्शन पर एक साक्षात्कार में विस्तार से बताया कि, “मेरे पिता अयोध्यानाथ पंजाबी हिंदू थे और मेरी माँ एक कट्टर मुस्लिम परिवार से थी। उनका प्रेम दोनों संप्रदायों को पसंद नही आया। तब आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानंद ने मेरी माँ को धर्मपुत्री बनाकर नया नाम शान्ति देवी दिया। इस मसले को लेकर स्वामी जी की हत्या कर दी गई। आज़ादी के बाद दोनों कलकत्ता (कोलकाता) चले गए क्योंकि लाहौर के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री का गढ़ वहीं था। बाद में पूना होते हुए मुंबई पहुंचे। जब महबूब ख़ान साहब ने गोविन्दा के पिता अरुण आहूजा को हिन्दी ठीक से न आने के कारण वापस कर दिया तो उन्हें हिन्दी और संस्कृत मेरी माँ ने ही सिखाई।
तबस्सुम के कैरियर को देखते हुए एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आमतौर पर जो एक्टर एक बाल-कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हो जाते हैं, बड़े होने के बाद वे सफल एक्टर नहीं बन पाते। डेज़ी ईरानी, हनी ईरानी, मास्टर बबलू, रतन कुमार, राजू श्रेष्ठ, महेश कुमार, बेबी नाज़, महमूद जूनियर, बेबी फ़रीदा जैसे अनेकों नाम दिमाग़ में आते हैं जो चाइल्ड-स्टार के रूप में अद्भुत लोकप्रियता हासिल करने में सफल रहे मगर बड़े होने के बाद गुमनामी के अंधेरे में खो गये।
तबस्सुम ने नरगिस, मीना कुमारी, मधुबाला जैसी बड़ी नायिकाओं के बचपन की भूमिका पर्दे पर बहुत सक्षम ढंग से अभिनीत की। चाइल्ड-स्टार के रूप में उनकी कुछ बेहतरीन भूमिकाएं नरगिस, दीदार, मुग़ल-ए-आज़म, मंझधार, बड़ी बहन फ़िल्मों में देखी जा सकती हैं।
तबस्सुम ने दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, से लेकर दारा सिंह के साथ फ़िल्मों में अभिनय किया। उनके संबंध लगभग सभी अभिनेताओं एवं अभिनत्रियों के साथ बहुत मीठे थे और वे एक तरह से जगत-बहन बन गयी थीं। उम्र में उनसे हर बड़ा व्यक्ति उन्हें छोटी बहन मानता था तो छोटे उन्हें आपा कहते थे।
उनके पति विजय गोविल अरुण गोविल के बड़े भाई हैं। अरुण गोविल ने रामानंद सागर के सुप्रसिद्ध टीवी धारावाहिक रामायण में राम की भूमिका निभाई थी। तबस्सुम और विजय गोविल का एक पुत्र है होशांग जो कि एक एक्टर, निर्माता और निर्देशक भी है।
तब्बसुम ने 1947 से 1954 तक बहुत सी फ़िल्मों में चाइल्ड-स्टार के तौर पर अभिनय किया। फिर उन्होंने कुछ समय तक ब्रेक लिया और दोबारा 1960 में अपना कैरियर एक बार फिर शुरू किया। 1960 से 1990 के बीच उनकी कुछ मुख्य फ़िल्मों के नाम रहे – कॉलेज गर्ल, मुग़ल-ए-आज़म, धर्मपुत्र, फिर वही दिल लाया हूं, दारा सिंह – आयरन मैन, ज़िम्बो का बेटा, गंवार, बचपन, हीर रांझा, जॉनी मेरा नाम, लड़की पसन्द है, गैम्बलर, अधिकार, तेरे मेरे सपने, चमेली की शादी और स्वर्ग।
दरअसल फ़िल्मों में अधिक सफलता न मिलने के कारण तब्बसुम ने छोटे पर्दे की तरफ़ रुख़ किया और 1972 में दूरदर्शन पर ब्लैक अण्ड व्हाइट के ज़माने में एक कार्यक्रम की शुरूआत की जिसका नाम था – फूल खिले हैं गुलशन गुलशन। इस कार्यक्रम में तबस्सुम बहुत ही जीवंत अंदाज़ में किसी न किसी फ़िल्मी हस्ती का इंटरव्यू करतीं। इस कार्यक्रम ने जैसे एक रिकॉर्ड सा ही बना लिया था क्योंकि यह बिना किसी रुकावट के 21 वर्षों तक चला यानी कि 1993 तक चलता रहा। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता अद्भुत थी और श्रोता इस का इंतज़ार किया करते थे।
तबस्सुम का सवाल पूछने का अंदाज़ कुछ इतना प्यारा होता था कि सामने वाला अपने तमाम राज़ उनके सामने खोल देता था। और टीवी दर्शक तो भाव-विभोर हो कर उनका कार्यक्रम देखा करते थे।
इस कार्यक्रम के कारण तब्बसुम को स्टेज पर संचालन का काम भी मिलने लगा। उन्होंने संपादन के काम को भी बहुत कुशलता से अंजाम दिया। वे 15 वर्षों तक गृहलक्ष्मी (महिलाओं की पत्रिका) की संपादक रहीं।
तबस्सुम को इस बात का हमेशा अफ़सोस रहा कि उनके कार्यक्रम फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में राज कपूर और देवेन वर्मा का इंटरव्यू कभी नहीं कर पाईं। मगर अपने जीवन के बाद के वर्षों में उन्होंने तबस्सुम टाकीज़ के नाम से एक यू-ट्यूब चैनल शुरू किया था जिसमें वे अलग-अलग फ़िल्मी हस्तियों के बारे में जानकारी दिया करती थीं। इस कार्यक्रम का निर्देशन उनके अपने बेटे होशांग किया करते थे।
1985 में तब्बसुम ने अपने पुत्र होशांग को लॉन्च करने के लिये एक फ़िल्म का निर्माण भी किया था जिसका नाम था – तुम पर हम कुर्बान। मगर उस फ़िल्म को अधिक सफलता नहीं मिली।
पुरवाई परिवार तब्बसुम की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना करता है।

तबस्सुम जी के बारे में एक ही बात हम जानते थे कि वे ” फूल खिले हैं गुलशन गुलशन” नामक कार्यक्रम का पर्याय बन गयीं थीं ंं.. उनका वो ख़ूबसूरत खिलखिलाता चेहरा देखने वालों को सम्मोहित कर देता था । बाकी जानकारियां इस संपादकीय से हासिल हुई हैं ।
विक्रम गोखले जी जी एक गंभीर मंजे हुए कलाकार थे ।
दोनों ही दिवंगत आत्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि
धन्यवाद रचना।
विशिष्ट व्यक्तित्व,आकर्षक’तबस्सुम’ वाली अभिनेत्री का पूर्ण परिचय देने वाले संपादकीय के लिये धन्यवाद!
मेरे मन में वे ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ और ‘तबस्सुम हिट परेड'(उनका एक स्टेज शो) की यादों में सदा जीवित रहेंगी।
सादर श्रद्धांजलि !!
धन्यवाद सरोजिनी जी।
सदाबहार खूबसूरती वाली हंसती, खिलखिलाती, चुलबुली तबस्सुम का अंदाज ए बयां बेहद खास था। उन जैसा फिर कोई दूसरा नहीं आया। उनके बाद यह जगह कोई ले नहीं पाया।दूरदर्शन पर दोपहर में आरंभ हुई 1 घंटे वाली मनोरंजन श्रंखला में भी वह बच्चों को कहानी सुनाने के लिए आती थी। उनकी खनकती आवाज हमेशा कानों में गूंजती रहेगी।
दीपा बहुत बहुत धन्यवाद।
सुंदर आलेख। फिल्मी हस्तियों पर आपके आलेखों की मैं प्रतीक्षा किया करता हूँ।
तबस्सुम के बारे में ज़्यादा जानकारी मुझे नहीं थीं। मैं उनके कार्यक्रम फूल खिले हैं गुलशन गुलशन को महज़ उनके कारण ही देखता था। आपका यह संपादकीय मुझे तब की याद दिला गया। बरसों पुरानी बात है।
जितेन्द्र हम बीच-बीच में फ़िल्मी विषयों पर लेख प्रकाशित करते रहे हैं। इस सुंदर टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
सही कहा दीपा।
तब्बसुम नाम लेते ही आँखों के सामने एक
शरारत भरी मुस्कुराहट छा.जाती है । अद्भुत अदाकारा के जीवन पर विस्तार से लिखकर
श्रध्दांजलि दी है ।
पुरवाई पत्रिका के संपादकीय में बताए गए दोनों कलाकारों को मेरी श्रद्धांजलि
Dr Prabha mishra
धन्यवाद प्रभा जी। आप निरंतर हमारे संपादकीय पर अपने विचार भेजती हैं।
तब्बसुम जी के बारे में अनेक जानकारियां मिलीं। तब्बसुम जी का खिला खिला चेहरा ही हमेशा जेहन में तैरता है। उनकी हंसी बहुत जीवंत थी। उनका चुलबुला व्यक्तित्व और खनकती आवाज हमेशा याद रहेगी। सादर नमन
धन्यवाद सुधा। वे हम सब की प्रिय थीं।
आदरणीय तेजेन्द्र जी,
बहुत आकर्षक लेख है। तबस्सुम जी बेबाक़ अंदाज के कारण उस समय बहुत सारे लोगो ने अपने बच्चीयों का नाम तबस्सुम रखा था। उनका नाम सुनकर एक खिलखिलाता चेहरा हमेशा याद आता रहेगा। मुझे थोड़ा थोड़ा याद आता है अंधेरी में हमारे घर के सामने नरगिस जी के बंगले पर कभी कभी तबस्सुम जी को देखा है पर उस वक्त हम बच्चे थे कौन आता है कौन जाता है इतना ध्यान नही देते थे।खूबसूरत जानकारी के साथ लिखा हुआ लेख रच हुआ है।
विक्रम गोखले और तबस्सुम जी को भावपूर्ण श्रंद्धांजलि।
भाई सूर्यकांत जी इस भावपूर्ण श्रद्धांजलि के लिये धन्यवाद।
ख़ूबसूरत चेहरे और खनकती आवाज़ की मलिका तब्बसुम को शायद ही कोई हो जो प्यार न करता हो।
‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ के लिए कैसे प्रतीक्षा करते थे हम ! जिजीविषा की जीती जागती मिसाल तब्बसुम का चेहरा सामने आते ही जैसे सकारात्मक वातावरण सर्जित हो जाता।उन्हें कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
विक्रम खोखले भी सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी सुंदर कलाकार जो सहज ही प्रभावित कर जाते थे।
जीवन की वास्तविकता को झेलना ही पड़ता है।
दोनों समर्थ कलाकारों को हार्दिक श्रद्धांजलि
इस सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद प्रणव जी।
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन – मेरा भी पसंदीदा कार्यक्रम था। उनकी मनमोहक मुस्कान और चुलबुली हंसी आज भी जेहन में व्याप्त है। आपके आलेख से उनके बारे में जानने का अवसर मिला।
कभी न भूल पाने वाली शख्शियत तब्बसुम जी तथा सशक्त अभिनेता विक्रम गोखले जी को विनम्र श्रद्धांजलि
सही कहा सुधा जी।
Thank you for sharing this valuable information about Tabassum.
Very sad Vikram Gokhley has also passed away
Regards
Deepak Sharma
आपने सही कहा… दो लीजेंड कलाकार चले गए।
बॉलीवुड से बचपन से ही कोई ख़ास सरोकार नहीं रहा। कुछ पारिवारिक माहौल ऐसा था कि जानकारी सीमित रही। आपके के लेख पढ़ कर और ऑनलाइन कार्यक्रमों को देख कर बॉलीवुड की, फिल्मी गानों की जानकारी बढ़ी। हार्दिक धन्यवाद। पिछला संपादकीय श्रद्धा काण्ड पर था, हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा दोनों ही जगह दिखा। लेकिन दोनों के अन्तर को जानकर सोचना पड़ा कि समय बदला, समुदाय बदला या सोच?
शैली जी, आपने संपादकीय को अलग दृष्टि से देखा है। धन्यवाद।
कुछ कलाकार ऐसे होते हैं, जो अपने अभिनय और व्यक्तित्व से हमें पारिवारिक अनुभूति देते हैं,वे हमसे ऐसे जुड़ जाते हैं जैसे कोई पारिवारिक सदस्य।हमारे बचपन के कलाकारों में सर्वाधिक प्रिय, बच्चों सी मासूम तबस्सुम जी के जाने का दुख न जाने क्यों मन को विचलित करता है.. एक-एक करके अपने प्रिय कलाकारों का जाना मन को अशांत कर देता है, ये कलाकार ही तो है, जो अपने अभिनय से हम सभी से सहजता से जुड़ जाते हैं, दुख सुख बांटते हैं और यही कारण है कि वे अपनी जीवन्त अदाकारी से सदैव अमर रहेंगे.. आपके माध्यम से हम सबकी चहेती तबस्सुम जी के जीवन से संदर्भित अनेक अनछुए पहलुओं से भी हम अवगत हुए, जिसके लिए आपको धन्यवाद और आभार टीवी सिनेमा और मराठी रंगमंच के अनुभवी और बेहतरीन अभिनेता विक्रम गोखले जी का भी जाना मन को साल रहा है… बचपन का धारावाहिक उड़ान मेरे ज़हन में अभी भी उनके जैसे प्रेरणास्पद व्यक्तित्व की छाप को संजोए हुए है..अपने सशक्त और बेजोड़ अभिनय के लिए वे भी सदैव अविस्मरणीय रहेंगे।
पुरवाई पत्रिका के आपके इस श्रद्धांजलि स्वरुप संपादकीय के माध्यम से दोनों ही दिग्गज कलाकारों को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि और नमन
डॉ. ऋतु माथुर
प्रयागराज।
ऋतु आप अपनी अंततः पोस्ट कर पाईं। इस ख़ूबसूरत टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
तबस्सुम जी के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं की आपके सम्पादकीय से जानकारी हुई। बहुत जीवंत कलाकार एवं व्यक्तित्व की मालिक थीं। विक्रम गोखले जी का दमदार अभिनय कई फिल्मों में देखने को मिला। दोनों के निधन पर हार्दिक श्रद्घांजलि।
धन्यवाद उषा। आप हमेशा पुरवाई के संपादकीय पर अपनी राय भेजती हैं।
तबस्सुम के मायने उर्दू में मुस्कुराहट है, जो जानकारी इस संपादकीय द्वारा किरणबाला सचदेव जी के बारे में दी गई है बहुत रोचक है। आज के दौर में ज्यादातर लोग जो तबस्सुम को जानते और याद हैं वो tv के फूल खिले हैं गुलशन गुलशन और रेडियो सिलोन पर अमीन सयानी जी के साथ दिए कार्यक्रम हैं, उनका खूबसूरत नख्श नैन, खनक दार साफ़ आवाज़ और उसके साथ उर्दू का तलफ्फुज़ जो उनके बोलने के अंदाज में चार चांद लगा देता है। उनकी बातचीत में मेलोडी आवाज़ में उतार चढाव विरल रूप से ही मिलता है। अंततः तबस्सुम यानी किरणबला सचदेव को एक अलग अंदाज में सदैव याद किया जाता रहेगा। वास्तविक रूप में अब वो हमारे बीच नहीं मगर उनकी आवाज़ सदियों तक लोगो के ज़हन में ज़िंदा रहेगी । ईश वर उनकी आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करें ।
कैलाश भाई आपकी इस प्यारी सी टिप्पणी के लिये विशेष धन्यवाद।
अच्छा आलेख, बहुत सी नई जानकारी
तबस्सुम जी को भावपूर्ण नमन ,श्रद्धांजलि
धन्यवाद रश्मि। हमारा प्रयास हमेशा बना रहेगा कि आपको अच्छी सामग्री संपादकीय के माध्यम से मिलती रहे।
बेहतरीन अभिव्यक्ति दोनों श्रेष्ठ कलाकार को विनम्र श्रद्धांजलि उनकी कला आज भी तरोताजा है तबस्सुम जी की अदाकारी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में उनके जो भाव भंगिमा हैं वह आज भी हम सबके जहन में हैं और विक्रम गोखले जी के धारावाहिक और फिल्म के जीवंत अभिनेता रहे दोनों को भाव पूर्ण श्रद्धांजलि