समीक्षक – कलावंती
अनिता रश्मि का यह चौथा कहानी संग्रह है। समर्पण में उन्होंने लिखा है – “उन्हें जो उपेक्षित हैं, पर हार नहीं मानते।“  कहानी संग्रह में इस बात को सही  बताने वाले तमाम पात्र हैं। इसमें कुल 17 कहानियाँ हैं। इससे पूर्व उनके तीन कहानी संग्रह आ चुके हैं। “उम्र दर उम्र” , “लाल छप्पा साड़ी”, “बांँसुरी की चीख”। अनिताजी की कहानियों में हमारे समाज के उपेक्षित पात्रों की पीड़ा झलकती है। उनकी भाषा सरल है और कई जगह वे पात्रों की भाषा में ही अपनी बात कहती हैं ।
“सन्यासी” कहानी किन्नरों के जीवन पर लिखी गई है। किन्नर जिन्हें दूसरे विकलांगों की तरह किसी कौशल विकास की शिक्षा नहीं दी जाती। उन्हें नाचने-गाने और भीख माँगने पर मजबूर किया जाता है। चम्पा को जब अपने ही घरवाले  बेघर कर देते हैं तो वह टूट जाती है।
“क्या उस बड़ी सी कोठी में तनिक सी भी जगह नहीं थी? चम्पा इस सत्य को अब तक पचा नहीं पाई है। परिजन ऐसा भी कर सकते हैं। सामाजिक भय ने उनके कर्तव्य को, उनके सहज स्नेह को, उनके ममत्व को पराजित कर दिया और वे कायरों की तरह भाग निकले। चम्पा लगातार सोचे जा रही है। और अचानक घृणा की एक लहर फिर उठी।“
“चिड़िया, पतंग और अंकु” कहानी बहुत दिनों तक याद रह जाने वाली कहानी है। अंकु किसी वहशी पुरुष की शिकार होकर मानसिक रूप से टूट जाती है। जीवन के प्रति उसका सारा उत्साह खत्म हो जाता है। उसकी माँ सोचती है –
‘उसके चेहरे पर अबूझ भाव। मेरी हिम्मत जबाब देने पर आमदा। आज भी मैं फेलयोर हो जाऊँगी क्या? पतंगें कट जाने पर दुबारा आकाश के दामन पर बेल–बूटे से नहीं लहरा उठती क्या? हम भारतीय ही अपनी बेटियों को इस तरह पालते हैं कि वह एक घेरे, दबाव में घिरी रहती हैं। घेरा टूटा नहीं कि सब कुछ लुट गया का भाव भरा। हममें भी, बेटियों में भी। सारी पवित्रताओं का ठेका भारत की नारी ने ही ले रखा है। यह एक हादसा है। सामान्य एक्सीडेंट। जैसे अन्य एक्सीडेंट के बाद भी सब जुड़ते, लड़ते, हँसते, जीते हैं, वैसी ही जिजीविषा चाहिए। हर बुरा के पीछे कुछ भला, यह भावना भरनी चाहिए।“
“ओस की पहली बूंद“– कहानी सांप्रदायिक सौहार्द्र पर लिखी गई है। दंगे के बाद अस्पताल में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही घायलवस्था में लाये गए हैं। रेखा कई लोगों को एक दूसरे को पानी पिलाते, हाल-चाल पूछते, सांत्वना देते हुए देख रही थी। पता ही नहीं चल रहा था कौन हिन्दू, कौन मुस्लिम, कौन सिख, कौन ईसाई है? सब अकेले थे। सब साथ थे। एक मुस्लिम घायल को देख रेखा सोचती है  –
‘वह बहुत मासूम, पवित्र लग रहा था। जैसे चाँद…जैसे सितारे…जैसे सबेरे का सूरज…जैसे मंदिर…जैसे मस्जिद। जैसे फ़जर की अजान…जैसे मगरीब की अजान…जैसे अल्लाह की इबादत।…जैसे ईश्वर की प्रार्थना।…जैसे सूरज को अर्घ्य।’ वह डॉक्टर से कहती है –
“आपको ब्लड चाहिए डॉक्टर? बी पॉजिटिव? मेरा ग्रुप भी बी पाॅजिटिव है। आप उस बच्चे की जान बचा दीजिये न…प्लीज।“
 “एक प्रेमकथा ऐसी भी” दांपत्य की प्रेम कथा है, जहाँ लेखिका जीवन में प्रेम के बदलते स्वरूप की पड़ताल करती है। प्रेम जिम्मेवारियों के बीच ही पलता है। नायिका का कथन है –
“वे कोई और होंगे, जो जिंदगी के ऐशो-आराम के तले दब खुश–संतुष्ट होते हैं। हम दोनों के लिए यह सब तो राह का रोड़ा ही है। फिर ऐसा कैसे होता गया? हमारे पास ऐशो आराम के सामान बढ़ते चले गए। हमारा सुकून, हमारा प्यार घट गया। नहीं, नहीं यह जिंदगी नहीं चाहिए हमें। जिंदगी क्या इसी तरह रंग बदलती चलती है? गिरगिट को भी मात कर दी है उसने। खुद गिरगिट बन गई क्या हमारी जिंदगी। जिंदगी बेमानी हुई जाती है/शर्म से पानी-पानी हुई जाती है।“
“अंतर” कहानी में बाढ़ की विभीषिका का वर्णन है
– किसी के पिता, किसी की माँ, भाई-बहन। किसी-किसी का पूरा खानदान लील गई थी गंगा। परिजनों, मवेशियों की मृत देह पानी पर उपला गई थी। प्रकृति पर विजय पाने के मनुष्य का अभिमान चूर। कई बड़े दंभी पेड़ भी जड़ों से उखड़ गए थे। कई आधा झुके मानो दंडवत कर बख्श देने की प्रार्थना कर उठ ही रहे थे। सुनन्दा देर तक बरगद के पेड़ से उतारने का साहस नहीं जूटा सकी। चारों ओर बिखरी लाशें, टीन-टप्पर , साइकिल, बैलगाड़ी, जुआठ, हल, फाल उसमें दहशत पैदा कर रहे थे। चारों ओर पानी ही पानी। पर पीने के लिए एक घूंँट भी नहीं। चंद लोग तो सब भूल भालकर उसी गंदे पानी को भरपेट पी गए, तब उनकी जान में जान आई।
“शरबतिया का गोप” गाँव के एक पात्र पर लिखी गई है। पंक्तियाँ देखें –
वह अब उम्र की उस दहलीज पर था, जहांँ से उसका बचपन झाँके नहीं झाँकता था। कहीं धान की फसल के बीच, तो कहीं गेहूं की पकी सुनहरी बालियों के बीच गुम गया था उसका बचपन। वैसे भी याद करने को रखा क्या था। धूसर दिनों को कोई याद करता है?
  अनिता रश्मि आम जनों की पीड़ा को अपनी कहानियों में स्वर देती हैं। वे झारखंड की बहुत पुरानी लेखिका हैं। जीवन के विविध पक्षों पर उनकी कहानियाँ एक बड़े कैनवास पर उकेरी गई हैं। इन कहानियों में जीवन का स्पंदन साफ सुनाई पड़ता है।
पुस्तक- संन्यासी,
लेखिका- अनिता रश्मि,
प्रकाशन- पूनम प्रकाशन,  नई दिल्ली
मूल्य- 395 रूपये।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.