पुस्तक – धूप की मछलियाँ (लघुकथा संग्रह) लेखिका  – डॉ. अनिता कपूर
समीक्षक
डॉ. रमा सिंह
लघुकथा में कथा है जो कथ्य से संजीवनी पाती है, यह “लघु” है इसीलिए इसमे किसी एक घटना, एक चरित्र या किसी एक विशेष बात को कम-से-कम शब्दों में अभिव्यक्त करना लघुकथाकार का दायित्व होता है। वर्तमान समय में इस आपाधापी के मध्य जहां व्यक्ति को अपने परिवार के पास बैठने का वक्त भी नहीं है ऐसे में पढ़ने का वक्त कहाँ से निकलेगा? ज़िंदगी थोड़े में बहुत कुछ जानना चाहती है, पाँच मिनट में कहानी खतम? ज़िंदगी कई खंडों में विभक्त हो गई है। ऐसे में लघुकथाओं ने कथा साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है। इसमे कथाकार अपनी सूक्ष्म दृष्टि से समाज का अवलोकन कर समाज में व्याप्त विभीषिकाओं, विषमताओं या यूं कहें जीवन से संबंधी समस्याओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है। कथाकार समस्या के कारण तक जब पहुंचता है तब वह कहानी के माध्यम से समाधान देने की चेष्टा करता है।
“धूप की मछलियाँ” लघुकथा संग्रह की रचयिता डॉ अनिता कपूर की मार्मिक दृष्टि का परिचय है। कुल तीस लघुकथाओं का संग्रह नारी के विविधरूपों का चित्रण है। कथाकार स्वयं एक महिला है, उनकी छठी इंद्रिय से उनका ज्ञान व भाव चक्षु चैतन्य है। हर कथा समस्या का समाधान करती चलती है। अधिकांश कथाएँ अमरीका जाकर बसी उन प्रवासी भारतीय महिलाओं की है जो मन से प्रवासी नहीं हो पाईं। प्रथम लघुकथा “मानसिकता” से लेकर अंतिम “आराम” तक नारी की मानसिकता, स्वार्थ, आलोचना, पुत्र से वंश का चलना आदि-आदि का चित्रण है। “इतिहास” में पुत्र का एयरपोर्ट से लेना, फिर अपने घर न ले जाकर उनकी सहेली के घर छोड़ देना और फिर सविता जी का कथन, “बेटा इतिहास कभी न कभी अपने आप को दोहराता जरूर है”, में आज के पुत्रों का स्वार्थ स्पष्ट हो जाता है। वहीं उसके बाद की कहानी “एक बेटी यह भी” जहाँ एक बेटी का भी मन जाना –“बीमारी की हालत में घर से निकालना” भी कहानी के पात्र “माँ” के मुख से कथाकार ने जैसे स्वयं अपने मन की बात कह दी है, “मैंने तो अमेरिका में रह कर भी भारतीय संस्कृति के मूल्यों को निभाया….बच्चे अमेरिका में स्थानीय लोगों के बीच रहते-रहते कब पेड़ों की जड़ों से कट गए? “एक प्रश्न खड़ा कर देता है। भारतीय संस्कृति व मूल्यों के अवमूल्यन के प्रति कथाकार की चिंता स्वाभाविक है, वे भी वर्षों से अमेरिका में रहते हुए भारतीय संस्कृति के मूल्यों का पिष्टपेषण कर रही हैं। उनकी यह चिंता स्वाभाविक है। सही तस्वीर “मेरे घर में रहना है तो सिर्फ लड़के को जन्म देना होगा” और “हैलो 911” में बुजुर्ग महिला की सहायतार्थ जिन्न सदृश्य आफिसर का पहुंचना, कथाकार से कहलवा ही देता है, “ऐसी चिप बच्चों के लिए भी बन पाए, जिसका एक तार 911 के पास नहीं उनके दिल के पास जुड़ा हो”।
डॉ अनिता कपूर के इस संग्रह की प्रत्येक कहानी या तो समाधान देती है या संदेश देती है। “दिस इस अमेरिका”, “सेवा”, “आई लव यू”, “उतरन”, “बुजुर्ग” कहाँ तक नाम गिनाऊँ सब एक से बड़ कर एक हैं। कथाकार के संवेदनशील भारतीय हृदय का पता चलना इन कहानियों का आधार है। कुछ पंक्तियाँ विभिन्न कहानियों से उद्धरत करती हूँ—
“भगवान मेरी बीबी सास तो बने पर बेटा मेरे जैसे न बने”।
“वक्त तो नंगा है उसे शर्म नहीं आती”।
“स्वार्थी सोच रखने वाली मुखौटा पहने हुए कुछ महिलायें नारी शक्ति और स्त्री-विमर्श की बात कर दोगली ज़िंदगी कैसे जी लेती हैं”।
“लॉक अनलॉक जो हुआ है… उससे झुलसे हाथ और शब्दों पर हरियाली उग आई है”।
कहानीकार की कहानी “पेट की सरहद” सुंदर है, “जहाँ देश बंटा है, अरे जमीनी सरहदे तो सियासी हैं पर पेट की नहीं। भारतीय व्यंजन का स्वाद अनूठा है, चाहे वह जालंधरी मोतीचूर के लड्डू हों या अमृतसरी हरीसा”। इनके द्वारा अनिता कपूर ने भारतीय व्यंजनों के स्वाद को भी विश्वव्यापी बना दिया।
साहित्य की प्रत्येक विधा अपने देश-प्रदेश की सुगंध लिए रहती हैं। यह लघुकथाएँ भी इनसे अछूती नहीं हैं। देश-विदेश में व मानस देश में यही पृष्ठभूमि इन लघुकथाओं की। कहानी के सभी तत्वों का समावेश इनमे स्पष्ट परिलक्षित होता है। अनिता कपूर ने इन कथाओं में मन का आति सुन्दर विश्लेषण किया है। भविष्य में भी ऐसी ही कथाओं की अपेक्षा रहेगी। यह कथाएँ मानस पर अपना प्रभाव छोड़ती ही नहीं वरन सोचने के लिए बाध्य भी करती हैं कि, आज का मानव मानवीयता से दूर क्यों होता जा रहा है। यही कहानीकार की सफलता है।
डॉ रमा सिंह(साहित्यकार)
पूर्वनामित सदस्य
केन्द्रीय हिन्दी समिति के. एम. 159,
राजभाषा मंत्रालय कवि नगर,
भारत सरकार गाजियाबाद 201002
उत्तर प्रदेश,
फोन:91-9810636121

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