1.
साहित्यकार का व्यक्तित्व एवं कृतित्व की साहित्यिक उपादेयता एवं वृहद चिंतनसृजन के कारण उसे कालजयीता प्रदान करती है।डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक एक संस्कृत संस्कृतनिष्ठ रचनाकार हैं, जिनका साहित्य भारतीय संस्कृति, जीवनमूल्य को व्याख्यायित करने में समर्थ है। डॉ किरण खन्ना (अध्यक्ष, स्नातकोत्तर  हिन्दी विभाग,डी.. महाविद्यालय, अमृतसर, पंजाब) द्वारा संपादित पुस्तक  ‘ डॉ निशंक के साहित्य में सामाजिक यथार्थ एवं युगबोधडॉ निशंक के साहित्यिक अवदान को प्रस्तुत करने वाला अति महत्वपूर्ण पुस्तक है ।अथक परिश्रम और पूर्ण मनोयोग से लिखित पुस्तक डॉ निशंक के साहित्य के विविध पहलुओं को उजागर करने तथा उनके आंतरिक एवं बाह्य पक्षों को पाठक के समक्ष लाने में समर्थ है।

प्रस्तुत पुस्तक में लगभग 20 से अधिक अधिकारी विद्वानों ने डॉ निशंक के विविध साहित्य का विवेचनविश्लेषण किया। वैसे इनकी साहित्यिक वैविध्यता किसी से छुपी नहीं है। कहानी, कविता,उपन्यास ,संस्मरण,बाल साहित्य, यात्रा वृतांत जैसी साहित्य की विभिन्न विधाओं की श्रीवृद्धि में इनका योगदान सराहनीय है ।भारतीय समाज,संस्कृति,जीवनमूल्य, राष्ट्रीयता ही इनके संपूर्ण साहित्य का मूल मंत्र है,राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होना साहित्य की महत्ता एवं परिश्रम की सार्थकता को सिद्ध  करता है।
शिक्षक,समाजसेवक, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार की भूमिका निभाते हुए डॉ निशंक ने हिंदी साहित्य को अब तक लगभग 100 पुस्तकें दें चुके हैं। राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेकानेक मानसम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित हो चुके निशंक के द्वारा राष्ट्रीय नयी शिक्षा नीति 2020 राष्ट्र को समर्पित करना महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
2.
प्रबुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्यकार और पुरवाई पत्रिका के यशस्वी संपादक तेजेन्द्र शर्मा डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के संबंध में लिखते हैं कि उनकी कहानियों में घटनाएं बोलती हैं पात्र नहीं। इनकी कहानियां ग्रामीण, पर्वतीय जीवन की विडंबनाओं को गहराई से व्यक्त करती हैं।जिस लेखक के साहित्य में सामाजिक प्रतिबद्धता होगी,वहीं श्रेष्ठ साहित्यकार कहलाने का हकदार है। रमेश पोखरियाल निशंक के लेखक में इस प्रतिबद्धता के दर्शन होते हैं, इसलिए वे श्रेष्ठ साहित्यकार कहलाने के हकदार हैं।
भारतीय संस्कृति के वाहक डॉ निशंक प्रगतिशील, संवेदना सम्पन्न आधुनिकता बोध जनित साहित्यकार हैं। पुस्तक में संकलित विभिन्न आलेखों में उनकी सामाजिकता बोध के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करते हुए जीवन के अनुकूलप्रतिकूल, उतारचढ़ाव, अलगाव, संत्रास, निराशा,कुंठा, विसंगतियों को विश्लेषित किया गया है। परंतु साहित्यकार मानवीय संदर्भों में संघर्ष करता हुआ अंततः सकारात्मक परिणाम की ओर उन्मुख होता है। विश्व की उपभोक्तावादी संस्कृति में मानवीय संबंध एवं सरोकार संकटग्रस्त हैं। जानेअनजाने ढंग से इनमें अत्यधिक बदलाव आया है निजसुख, स्वार्थ, भ्रष्टाचार,अनाचार, संप्रदायिक हिंसा, लूटखसोट का प्रभाव अधिक बढ़ा है। शहरीकरण की प्रवृत्ति ने ग्रामीण एवं शहरी जीवन शैली तथा उनकी मानसिकता को परिवर्तित किया है।परिणामतसामाजिक ,सांस्कृतिक मान्यताओं का ह्रास हुआ है।राजनीतिक मूल्यों का विघटन हुआ है का विघटन हुआ है। डॉ निशंक इन समस्त विसंगतियों से गुजरते हुए अपनी समस्त कहानियों में अन्याय रूपों से इनसे संघर्ष करते हुए इसका समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं और सफल भी हुए हैं।इनका कथासाहित्य आंचलिकता के मोह से स्वयं को वंचित नहीं रख पाया है तभी तो इनके यहां पहाड़ी जीवनशैली,रहनसहन, संस्कार और जीवन मूल्यों को व्याख्यायित होने का अवसर मिला है। इनका अनेक कथासाहित्य पर्वतीय जीवन  पर केंद्रित है।
निशंक के कथासृजन से राष्ट्रीयता एवं भावनात्मक एकता को प्रबलता मिलती है ।उनके संपूर्ण कथासाहित्य का केन्द्र राष्ट्र प्रेम, सामाजिक उत्थान एवं भारतीय जीवनमूल्य है। डॉ किरण खन्ना द्वारा संपादित इस पुस्तक  में 20 से अधिक ऐसे साहित्यकारों के लेख हैं जो राष्ट्रीयअन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
3.
पुस्तक का प्रारंभ डी..वी.संस्थान,नयी दिल्ली के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ पूनम सूरी और डी वी कालेज अमृतसर के तत्कालीन प्राचार्य डॉ राजेश कुमार के आशीर्वचन से होता है। प्रबुद्ध प्रवासी साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा और केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी के आलेख से डॉ निशंक के व्यक्तित्व एवं उनकी साहित्यिक विशेषताएं स्पष्ट होती हैं। प्रो. मोहन का.गौतमवाह जिंदगीकहानी की समीक्षा करते हुए लिखते हैं कि टेढ़े मेढ़े अनुभव की सार्थकता ही वास्तविक जिंदगी है।जीवन जिओ किंतु साथसाथ जिंदगी अकेली नहीं गुजारी जाती। अनिल जोशी अपने आलेखहाशिए के मनुष्य के संबंध में लिखी कहानियों का संग्रह अंतहीन में साहित्य साधना के क्षेत्र में अंतहीन को निशंक का नया पड़ाव मानते हैं। संग्रह को हाशिए पर बैठे हुए व्यक्तियों की कहानियों की संज्ञा दी है ।कहानियों में घरेलू हिंसा,आर्थिक शोषण,देह व्यापार जैसी समस्याओं को उभरने होने का अवसर मिला है। लेखक मानता है कि संग्रह में मनुष्यता के उस अंधेरे भरे कोने की कहानियां है, जहां से मनुष्यता के सिसकने की आवाज निरंतर रही है। डॉ अरुणा अजितसारियामातृभूमि के लिए डॉ रमेश पोखरियाल निशंकआलेख में कवि निशंक की बौद्धिक प्रखरता और हृदय की सहृदय भावुकता  को उद्घाटित करते हैं। संग्रह की कविताएं कवि की बहुमुखी प्रतिभा और बहुआयामी व्यक्तित्व को देश प्रेम और कर्तव्य की भावना से प्रेरित कर भारतीय जनमानस को मातृभूमि के प्रति निष्ठा और दायित्व के प्रति उदृबोधित करती हैं।संग्रह की कविताओं को अरुणा ने कई श्रेणियों में जैसे भारत के स्वर्णिम अतीत का गुणगान,स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को श्रद्धांजलि,स्वतंत्रता का अभिनंदन,नई पीढ़ी को कर्तव्य बोध कराना,विश्व को भारत की ओर से शांतिप्रियता का संदेश की कविता में बांटा है।
भारतीय संस्कृति का संवाहक इंडोनेशियापुस्तक पर केंद्रित अर्चना पैन्यूली का आलेख इंडोनेशिया का भौगोलिक परिचय के साथसाथ भारत और इंडोनेशिया के आंतरिक संबंधों को उजागर करता है। डॉ निशंक ने इंडोनेशिया के सामाजिक बनावट और आर्थिक स्थिति की बारीकियों को चित्रित किया है विपदा जीवित हैसंघर्ष की कहानियां हैं। जीवन के कटु यथार्थ को दिखाना और यथार्थ को बदलने का सार्थक प्रयास ही कहानी का मूल उद्देश्य है। डॉ शैलजा सक्सेना का मानना है कि भारतीय मूल्यों की प्रतिष्ठा यहां है तो समसामयिक स्थितियों की विभिषिका भी। किसान, युवा, स्त्री,पुरुष ,पत्रकार ,अध्यापक, दहेज लोभियों से लड़ती लड़की सभी का चित्रण इनकी कहानियों में हुआ है डॉ सीमा अरोड़ामील के पत्थरकहानीसंग्रह की आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता को उकेरती हैं भूमंडलीकरण के प्रभाव में जहां रिश्ते अस्तित्वहीन हो रहे हैं,यहां संबंधों की तलाश बलवती दिखती है। डॉ अतुला भास्करटूटते दायरेऔरअंतहीनकहानीसंग्रहों के माध्यम से मूल्यों की तलाश करती हैं , जो भारतीय जीवन के आधार स्तम्भ  हैं समकालीनता में नवीन एवं प्राचीन मान्यताओं का द्वंद एवं अंतर्विरोध के बीच संतुलित स्थापित करने का प्रयास है। प्रो. किरण ग्रोवरअंतहीनकहानी संग्रह के माध्यम से ग्रामीण और शहरी मानसिकता, लोकव्यवहार,रहनसहन , संस्कार का तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया है।  उनका आलेख सविस्तार एवं साक्ष्यों के आधार पर लिखा गया अत्यंत महत्वपूर्ण है उनका मानना है कि संग्रह की कहानियों के कथ्य में वेबस,गरीब लाचार मजदूर वर्ग का संघर्ष, बच्चों का मांबाप के प्रति असंवेदनशील व्यवहार, शहर की चकाचौंध में गुम होते रिश्तों का रेखाचित्र, स्त्री के प्रति सामाजिक तानेबाने में रची बसी विभिन्न विसंगतियों पर सटीक प्रहार, शासन तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलता स्वर प्रतिध्वनित हुआ है।
डॉ.कमलेश सरीन ने डॉ निशंक के कथा साहित्य में पर्वतीय परिवेश का समग्रता से पड़ताल किया है।पहाड़ के विभिन्न रीतिरिवाजों ,संस्कृति एवं परंपराओं का चित्रण इनकी कहानियों में सर्वत्र विद्यमान है। वे मानती हैं कि लेखक पर्वतीय परिवेश में रचा बसा है जिसे पर्वतीय प्रदेश की संस्कृतियों ने संवारा , पर्वतीय संस्कारों ने पाला और मान्यताओं ने सिंचा है।        ‘ विपदा  जीवित हैकहानीसंग्रह में समाज और उसमें घटित अनेक समस्याओं एवं स्थितियों का विवेचन करते हुए डॉ पठाना रहीम खान ने संग्रहित कहानियों की सार्थकता को प्रमाणित माना हैं। यहां लेखक ने कई कहानियों का मनोवैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया है जो अति महत्वपूर्ण है।
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डॉ संजय चौहान ने मानवीय सरोकारों के संदर्भ में निशंक को भारतीय जीवन मूल्य, भारतीय संस्कृति एवं मान्यताओं से संबद्ध माना है।उनकी कहानियां भौतिकवादी , भोगवादी मानसिकता में भी मानवमूल्यों एवं पारंपरिक मान्यताओं के प्रति आशान्वित हैं इनके यहां परंपरा और समकालीनता का सुंदर संयोग देखा जा सकता है डॉ दीप्ति साहनी नेअंतहीनकहानीसंग्रह को वैश्विकता के संदर्भ में मूल्यांकित किया हैं ।भारत कीवसुधैव कुटुंबकमकी धारणा में विश्व एक परिवार है,इनकी कहानियों में उसको बल मिला है ।भूमंडलीकरण और बाजारवाद के प्रभाव में परिवार और समाज की मान्यताएं परिवर्तित विखंडित अवश्य हुई है परंतु निशंक अपनी कहानियों में मजबूती के साथ मूल्यों की सार्थकता  एवं संवर्द्धन करते हैं ।डॉ सरोज बाला नेवाह जिंदगीकहानीसंग्रह में वर्णित घटनाओं, समस्याओं का उल्लेख अवश्य किया है किंतु शैली वैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से डॉ निशंक की कहानियों की कई परतों को खोलने का सुंदर प्रयास किया है। भाषा, शब्द और बनावट की दृष्टि से निशंक के कथा साहित्य के महत्व को चित्रित किया है। डॉ दीपक बल्लगन पहाड़ी जीवन की विसंगतियों एवं वहां की जीवन शैली को उजागर करते हुए स्पष्ट किया है कि लेखक बेसहारा, गरीब, शोषक के प्रति कितना सजग हैं ,उसकी कहानियों में स्पष्ट देखा जा सकता है डॉ सीमा शर्मा नेअंतहीनकहानीसंग्रह के संदर्भ में मानव मन और समाज के बीच अटूट संबंध को उजागर किया है। स्त्री समाज के विकास के लिए कितनी आवश्यक है  इसका उल्लेख इनके आलेख में स्पष्टतया देखा जा सकता है।
             डॉ अनुपाल भारद्वाज माननीय संवेदनाऔर सामाजिकता के संदर्भ मेंअंतहीनकथा संग्रह का विशेषण करते हुए डॉ निशंक को प्रेमचंद की परंपरा का कहानीकार मानते हैं। डॉ रुपाली दिलीप चौधरी नेअतीत की परछाइयांका अध्ययन करते हुए मानवीय मूल्यों का उल्लेख किया जिसके माध्यम से चरित्र निर्माण तथा संस्कारवान व्यक्ति का निर्माण होता है। रवि कुमार गोड़खड़े हुए प्रश्नका पुनर्पाठ करते हुए सामाजिक, आर्थिक स्तर पर व्याप्त अनेक समस्याओं का बारीकी से चित्रण किया है। समसामयिक यथार्थ बोध के संदर्भ में इनकी कहानियों का  सूक्ष्मता से  चित्रण करने में समर्थ हैं। डॉ ज्योति गोंगिया ने डॉ निशंक को प्रेमचंद की परंपरा का लेखक माना है जिनके पास संवेदना की गहराई ,व्यापक दृष्टि संपन्नता,सामाजिक दायित्वबोध सब कुछ है। डॉ किरण खन्ना का लेख सामाजिक यथार्थता को केंद्र में रखकर लिखा गया है। साथ ही निशंक का साहित्यिक परिचय और उपलब्धियों पर केंद्रित है।इसके पूर्व भूमिका में डॉ किरण खन्ना ने जिस ढंग से पुस्तक का समग्र सार प्रस्तुत किया है वह सराहनीय एवं गुननीय है। डॉ रमेश  पोखरियाल निशंक के साहित्यिक अवदान में यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संग्रहरणीय है पुस्तक के माध्यम से डॉ निशंक का साहित्यिक पक्ष उभर कर सामने तो आता ही है साथ ही समाज के प्रति समर्पित व्यक्तित्व भी उभरा है।यह पुस्तक निश्चित रूप से साहित्य के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।
डॉ संजय चौहान
सहायक प्रोफेसर
सरुप रानी राजकीय महिला महाविद्यालय,
अमृतसर, पंजाब
संपर्क – 9478440472, 7986171220

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