समीक्षक – रमेश कुमार ‘रिपु’
चित्रा मुद्गल की कहानियों की दुनिया में विचार और विमर्श की धार तेज है। इनकी कहानियों की भाषिक संरचना गांव की मीठी जामुन सी है कहानी संग्रह हथियार में तेरह कहानियां हैं। सभी के कथ्य अलग-अलग हैं । समाज की विसंगतियों का सूक्ष्म चित्रण इनकी कहानियों की खासियत है । इसी वजह से लेखिका एक विशिष्ट पहचान रखती हैं। कहानियों में अलग-अलग पृष्ठभूमि के पात्र हैं होने से उनकी बोली ,भाषा, सोच और संघर्ष के तमाम आयाम इन कहानियों में इतने सजीव ढंग से प्रतिबिंबित होते हैं कि लगता है  जैसे सब कुछ आंखों के सामने घटित हो रहा है । कहानी जैसे-जैसे बढ़ती जाती है उसके रंगों के भाव भी दिखने लगते हैं।
संग्रह की कहानी में व्यवस्था का प्रतिकार,खामियों का चित्रण और समाजिकता की आड़ में कृत्रिम वर्जनाओं का लिहाफ है,वहीं मुक्ति की राह भी है। ‘हथियार‘ कहानी मांँ,बेटी और पहले पिता के संबंधों की सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं का बही खाता है। दूसरे पति के साथ रहने वाली मांँ के लिए बेटी उसका हथियार है। वह नहीं चाहती कि उसकी बेटी अपने पिता से मिले। लेकिन बेटी-पिता का प्यार पाने और उन्हें देने के लिए उनके ही फ्लैट में किराएदार के बतौर रहने की शर्त रखती है ताकि उसकी माँ की जिद भी पूरी हो सके कि वह पहले पिता के मकान में नहीं, किराए से रहती।
पुरुष चरित्र के प्रति समाज और व्यवस्था में दोहरा नजरिया हमेशा से रहा है । ‘प्रेत योनि’ कहानी को स्त्री विमर्श की जगह नारी क्रोध का प्रतिकार कहना ज्यादा ठीक होगा। अपनी बेटी के साथ अमानवीय कृत्य करने वाला टैक्सी चालक को पकड़वाने की जगह, अभिभावक अखबार में किसी और लड़की का नाम छपने से शुक्र मनाते हैं कि,उनकी बेटी का नाम नहीं है। घर में अपने साथ मारपीट करने से क्षुब्ध होकर बेटी खुदकुशी करने जाती है,अचानक अखबार की खबर पर नजर पड़ते ही तय करती है कि कल पुलिस मुख्यालय में विरोध प्रदर्शन करने वालों के साथ वह भी खड़ी होगी। लेखिका ने इस कहानी के जरिए स्त्री की चिंताओं के साथ ही उसकी आत्मशक्ति को स्थापित किया है।
बेटियांँ अभिभावक के ‘आंगन की चिड़िया’ जैसी हैं। उन्हें बड़ी चिंता रहती है न जाने कैसे उनकी बेटी परदेस में अकेली रहती है। जबकि आज कल की बेटियों की पसंद और विचार  मांँ के आंँचल से बंधे नहीं होते। महानगर में अकेले रहना बहुत मुश्किल है। इसलिए नौकरी कर रही बेटी अपने बाॅय फ्रेंड के साथ रहने लगती है। उसकी शादी के लिए देखे गए सपने तब फुर्र हो जाते हैं जब वो सब कुछ बताती है।
’पेंटिंग अकेली है‘ कहानी के दृश्य विचलित करते हैं। कारावास की सजा भोग रही महिलाओं के संशर्ष के उस पक्ष की ओर ध्यान खींचा गया है,जो आए दिन घटित होता है। लेखिका कहती हैं, औरत को योनि और कोख ने इतनी बड़ी संपत्ति का हक़दार बनाया है,लेकिन मूर्ख औरतें इस गुर से नावाकिफ हैं, या उनमें साहस नहीं है। जाहिर है, कि जो औरत अपनी योनि और कोख की संपत्ति को नहीं समझती उनकी जिन्दगी ‘अकेली पेंटिंग’ बनकर रह जाती है।
आधी दुनिया में विचलित करने वाली घटनाओं का सच है गिल्टी रोजेज। सलाखों के पीछे आंसुओं के संसार में डूबती उतराती महिलाओं की मनोदशा को पढ़ते हुए विचार और विमर्श की बात चुपके से हमारे मन में दाखिल हो जाते हैं। एक सच यह, कि महिलाएं मरती तब है,जब उन्हें सम्मान नहीं मिलता। बेटवा का क्या! सौ कतल करके भी बेटवा,बेटवा ही रहेगा। औरत अपनी आबरू बचाने खून कर दे तो हत्यारिन कही जाती है।
बच्चों की चाह पूरी होने और जिज्ञासा शांत होने पर खुश हो जाते हैं। एक भावनात्मक कहानी है ’जंगल’। उपभोक्तावादी संस्कृति में छोटे-छोटे सपने पूरे होने की चाह में क्या उचित और क्या अनुचित से अनभिज्ञ गरीब लड़कियों को समाज के ‘जोंक’ किस तरह उन्हें चूस लेते हैं उस ओर ध्यान खींचते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त असहमति दर्ज करती है लेखिका की कहानी ’जोंक’।
एक सर्तक स्त्री की नजर समाज के अनछुए विषयों की ओर भी जाता हैं। ठेकेदार’ में उन कमजोर आवाजों को जगह मिली है, जिन्हें पुलिस हमेशा दबाती आई है। और उन लोगों को भी सामने लाई हैं जो समाज में अपनी ठेकेदारी की एक अलग दुकान खोल रखे हैं। बेरोजगारी और गरीबी की मार गाँंव से शहर आए लोग ज्यादा जानते हैं। तीन पहिए(रिक्शा) पर टिकी जिन्दगी के कष्टों को रेखांकित करती है ‘ठेकेदार’।
तकिया’ में मेट्रो सिटी की उन कामकाजी महिलाओं दिखाया गया है जो नहीं जानती कि बच्चों को पाला कैसे जाता है। जीते जी बुजुर्ग पिता के संदर्भ में संपत्ति के लिए अनर्गल सोच रखने वाले बच्चों की बानगी है ‘तपर्ण’ है।
सेक्स वर्कर की बेटियों को अच्छे संस्कार में ढालने की कोशिश के नतीजे अच्छे न आने के पीछे वजह लेखिका उजागर करती हैं, कि हर देह अपनी किस्मत लेकर पैदा होती हैं। जरूरी नहीं है कि ‘नतीजा’ एक बार मे बेहतर आए। बहरहाल इन कहानियों के जरिए चित्रा मुद्गल समय और समाज की तस्वीर खींची हैं।
पुस्तक – हथियार (कहानी-संग्रह)
लेेखक – चित्रा मुद्गल
कीमत – 250 रुपए
प्रकाशक – प्रलेक प्रकाशन, मुंबई

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