होम कविता ज़हीर अली सिद्दीकी की कविताएँ कविता ज़हीर अली सिद्दीकी की कविताएँ द्वारा ज़हीर अली सिद्दीकी - July 10, 2022 65 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1-परिंदा और पर परिंदों की परवरिश में कोई चूक तो हुई। उड़ान की परवान थी फिर पँख क्यों रुके।। रुके हुए पंखों पर जब तलब मैंने किया। जख़्मी हुए, बेसहारे से टूटे हुए मिले।। टूटे हुए पंखों से भी उड़ने की चाह में। टूटे हुए पंखों को जुड़ने नही दिया।। जुड़ने नही दिया तो जमीं से ही खुश हुए। जमीं के आशियाने को जमने नही दिया।। उड़ान की बात तो मक्कारी का फ़साना। परिंदों के पर नोंचने में मशगूल जमाना।। करते रहे जो हरदम पर की नुमाइंदगी । आज वही कर रहे परिंदों से दरिन्दगी।। 2-क्रोध वह बार-बार उकसाएगा चेतनाशून्य कर जाएगा प्यार से दूर तुम्हे लेकर घृणा की घूँट पिलाएगा।। क्रोध में यदि फंस जाओगे नयनों से नयन हटाओगे कायर बन राग अलापोगे बिन मतलब बैर बढ़ाओगे।। क्रोध में क्रूर नही बनना तुम प्रेम राग में रम जाना ईर्ष्या से दूर जरा हट कर प्रेम राग में रम जाना।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – फुदकती चिड़िया कुसुम पालीवाल की कविता – चाँद को देखूँ या देखूँ रोटियाँ ज़मीन पर सरोजिनी पाण्डेय की कविता – फागुनी धूप कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.