Sunday, October 6, 2024
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ज़हीर अली सिद्दीकी की कविताएँ

1-परिंदा और पर
परिंदों की परवरिश में कोई चूक तो हुई।
उड़ान की परवान थी फिर पँख क्यों रुके।।
रुके हुए पंखों पर जब तलब मैंने किया।
जख़्मी हुए, बेसहारे से टूटे हुए मिले।।
टूटे हुए पंखों से भी उड़ने की चाह में।
टूटे हुए पंखों को  जुड़ने नही दिया।।
जुड़ने नही दिया तो जमीं से ही खुश हुए।
जमीं के आशियाने को जमने नही दिया।।
उड़ान की बात तो मक्कारी का फ़साना।
परिंदों के पर नोंचने में मशगूल जमाना।।
करते रहे जो हरदम पर की नुमाइंदगी ।
ज वही कर रहे परिंदों से दरिन्दगी।।
2-क्रोध
वह बार-बार उकसाएगा
चेतनाशून्य कर जाएगा
प्यार से दूर तुम्हे लेकर
घृणा की घूँट पिलाएगा।।
क्रोध में यदि फंस जाओगे
नयनों से नयन हटाओगे
कायर बन राग अलापोगे
बिन मतलब बैर बढ़ाओगे।।
क्रोध में क्रूर नही बनना
तुम प्रेम राग में रम जाना
ईर्ष्या से दूर जरा हट कर
प्रेम राग में रम  जाना।।
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