(साभार – पंजाबी ट्रिब्यून एवं श्री सुरजीत पातर)
पुस्तक: गुरु घर के ब्राह्मण सिख शहीद लेखक: गज्जणवाला सुखमिंदर सिंह
प्रकाशक: यूनीस्टार बुक्स, चंडीगढ़ पंजाबी से हिंदी अनुवाद: सुभाष नीरव
समीक्षक
सुरजीत पातर, वरिष्ठ पंजाबी साहित्यकार।

 

गुरु-घर बाबा नानक का दर है। गुरु नानक जी के शब्दों में से उदित हुई रोशनी का नाम ही सिख धर्म है। नानकता ही इसकी आत्मा है।
नानक शाह फ़कीर
हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर।
जन्मसाखी भी साक्षी है कि सूर्यादय के समय वेईं नदी में से नानक-उदय के समय भी उनके मुख पर यही वाक्य था – ना हिन्दू, ना मुसलमान।
भाई गुरदास जी लिखते हैं –
पुछनि फोलि किताब नो हिन्दू वड्डा कि मुसलमानोई
बाबा आखे हाजिया सुभि अमला बाझहु दोनों रोई
गुरु नानक बिछड़ों को मिलाने वाला है। प्रभात फेरियों में लोक मन भी बाबा को ऐसे ही याद करता है –
धन्न धन्न बाबा नानक
जिहड़ा विछड़ियां नूं मेलदा।
हमारे समय के बड़े इतिहासकार आर्नल्ड टोइनबी ने भी नानक पंथ की यही तासीर पहचानी है। वह लिखता है –
भविष्य के धार्मिक संवाद में सिख धर्म और इसकी पावन इबारत श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पास समस्य विश्व को देने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण संदेश है। आपसी द्वेष वाले पारंपरिक धर्मों के बीच यह धर्म सृजनात्मक रूहानी संवाद का स्मारक है। इसका अस्तित्व शुभ है।
इस्लामी अक़ीदे के बड़े ओजस्वी शायर अल्लामा इकबाल ने नानक की सदा को सदियों की नींद में से हिन्द को जगाने वाले प्रभाती आलाप की तरह महसूस किया –
फिर उठी आखि़र सदा तौहीद की पंजाब से
हिंद के इक मर्द-ए-कामिल ने जगाया ख़ाब से
(आखि़र पंजाब से अद्वैत की आवाज़ उठी। फिर पूर्ण पुरुष ने हिन्द को नींद से जगाया।)
अद्वैत क्या है? गुरु अरजन देव जी समझाते हैं – ये धरतियाँ, ये सागर, यह सृष्टि, इस समस्त सृजन में सृजनहार स्वयं ही रमा हुआ है। यह एक ओंकार है जो अनेक होकर पसरा हुआ है।
जलि थलि महीअलि पूरिआ सुआमी सिरजनहारु।।
अनिक भांति होइ पसरिया नानक एकंकारु।।
पीर भीखण शाह दो हाथों में दो प्याले लेकर बाल गाबिंद के पास जाता है। मन में सोचता है कि यदि इलाही बालक ने दायें प्याले पर हाथ धरा तो वह हिन्दुओं को अधिक प्यार करेगा, अगर बायें पर हाथ रखा तो मुसलमानों को।
पीर भीखण शाह दे दो प्याले अकीदत दे भरे
नन्ने नूरी हत्थ जदों तूं हस्स के दोहां ते धरे
दूर तक इंसानियत दे सुक्के रुक्ख होए हरे
जुगां तक संदेश पहुँचे, सदियां तक दीवे जगे।
नोबल पुरस्कार विजेता अमरीकन साहित्यकार पर्ल एस. बक अनुवाद में ही गुरबाणी के वाक्य पढ़कर विभोर हो गई थी। उसने लिखा –
श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक स्रोत ग्रंथ है। मानव के विरह का, एकाकीपन का, उसकी चाहतों का, उसकी इच्छा का, रब के लिए उसकी पुकार का, परमात्मा के साथ बातें करने की उसकी तड़प का प्रकटीकरण है। मैंने अनेक धर्मों के ग्रंथ पढ़े हैं। अन्यत्र  कहीं हृदय और मन को इस प्रकार स्पर्श करने की शक्ति महसूस नहीं की।
इन महान व्यक्तियों के शब्द हमें हमारे गुरु साहिबान के प्रति गर्व, प्रेम और श्रद्धा से भर देते हैं। साथ ही, यह सोचकर दुख भी होता है कि सिख धर्म के कई जोशीले प्रचारक नानक के निर्मल पंथ के मूल अमृतमयी सरचश्मे से बहुत दूर चले जाते हैं। छोटे साहिबजादों की शहादत की गाथा सुनाते समय वे मुखबरी करने वाले गंगू के नाम के साथ ब्राह्मण लगाना कभी नहीं भूलते, पर यह हमेशा भूल जाते हैं कि भाई सति दास और भाई मति दास जो नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर जी के साथ उनकी आँखों के सामने शहीद हुए, वे भी ब्राह्मण ही थे। मगर उनके नामों के संग ब्राह्मण नहीं जोड़ते।
गज्जणवाला सुखमिंदर की पुस्तक ‘गुरु-घर के ब्राह्मण सिख शहीद’ में गुरु दर के सिख ब्राह्मण शहीदों की लंबी सूची देखकर और उनके सिक्खी श्रद्धा की गौरव गाथाएँ पढ़कर मैं अचंभित हो गया कि इसको पढ़ने से पहले मैं भी कितने अँधकार में था और सिख ब्राह्मण शहीदों के केवल चार नाम ही जानता था। यह पुस्तक मेरी तरह अन्य अनेक पाठकों को भी रोशनी देगी।
इस पुस्तक को पढ़कर सिख ब्राह्मण शहीदों की शहादतों और सिख धर्म की साझेदारी वाली परंपरा के सम्मुख तो सिर झुकता ही है, साथ ही सुखमिंदर गज्जणवाला की इस पुस्तक के महान महत्व का भी बड़ी शिद्दत के साथ अहसास होता है। इस पुस्तक में लेखक ने भट्ट कीरत, भाई सिंघा पुरोहित, भाई पैड़ा, भाई मथरा, भाई पिरागा, भाई जट्टू, भाई मति दास, भाई सति दास, भाई साहिब चंद, भाई राम सिंह कश्मीरी, भाई किरपा सिंह, भाई सनमुख, भाई अड़ू राम, भाई मुकंद सिंह (सुपुत्र भाई मति दास), भाई मुकंद (सुपुत्र भाई सति दास), भाई लाल चंद, भाई चंदन राव, भाई सुंदर सिंह, भाई बूड़ सिंह, भाई केशव, भाई जादो, भट्ट भाई केसो, भट्ट भाई हरी, भट्ट भाई देसा, भट्ट भाई नरबद, भट्ट भाई तारा, भट्ट भाई सेवा, भट्ट भाई देवा, भाई राय सिंह, भाई भीम सिंह, भाई वसावा सिंह, भाई चैपत राय जी और भाई कोइर सिंह आदि तैंतीस सिख ब्राह्मण शहीदों की जीवनगाथा लिखी है।
गज्जणवाला सुखमिंदर सिंह ने बड़े विस्तार के साथ गुरु-घर से जुड़े चार ब्राह्मण घरानों, भट्ट, छिब्बर, दत्त और भाई सिंघा का जिक्र किया है और हर शहीद की पूरी पृष्ठभूमि को विस्तार से बयान किया है।
भट्ट ब्राह्मणों की लिखी ‘भट्ट बहियों’ के बड़े महत्व को रेखांकित करते हुए लेखक लिखता है – भट्ट बहियाँ भट्टों की निजी जानकारी पर आधारित ठोस दस्तावेज हैं। इनमें से गुरु साहिबान और उनके परिवार संबंधी, प्रसिद्ध सिखों और उनके घरानों को लेकर बहुत लाभदायक जानकारी प्राप्त होती है। कई ऐतिहासिक दुर्घटनाओं का नामों, स्थानों और तिथियों सहित आँखों देखा हाल इन में दर्ज़ किया गया है। स्तुति करते हुए कुछ अतिकथनी अवश्य करते रहे होंगे, पर वे नामों, स्थानों का विवरण गलत नहीं देते थे।
इस पुस्तक के प्रारंभ में मंगल कामना करते हुए हरपाल सिंह पन्नू लिखते हैं – “बाणीकार ब्राह्मण भगतों के सम्मुख तो हम नित्य ही नमस्कार करते हैं। इतिहास में सैकड़ों गुरसिख ब्राह्मण ऐसे हुए हैं जो शहीद भी हुए और जिन्होंने साहित्य रचना की बहुमूल्य सेवा भी की। गुरु तेग बहादुर जी ने दिल्ली रवाना होने से पहले गोबिंद राय की विद्या की जिम्मेदारी कश्मीरी पंडित भाई किरपा राम को सौंपी जो 1699 ईसवी में अमृत छककर भाई किरपा सिंह कहलाए और चमकौर के युद्ध में शहीद हुए।“
मनों पर से असहमितयों के दाग धोने वाली ऐसी पुस्तकों की हमें बहुत आवश्यकता है। ऐसी पुस्तकें ही नफ़रत और फिरकापरस्ती की ज़हरीली राजनीति की चढ़त के दौर में भले लोगों की शक्ति बन सकती हैं। इस विषैले समय में शब्द अमृत ही हमारा मसीहा बन सकता है।
यह पुस्तक हमें ऐतिहासिक ज्ञान भी देती है, सिक्खी की रूह के साथ जोड़ने वाली रूहानी रोशनी भी। इस पुस्तक के अंदर का ज्ञान उस अंजन सरीखा है जिसका जिक्र पंचम पातशाह गुरु अरजन देव जी करते हैं –
गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु।।
हरि किरपा ते संत भेटिया, नानक मनि परगासु।।
धर्मों, जातियों, नस्लों, देशों, कौमों में बंटी, बार बार भटकती, बार बार लहुलूहान होती मानवता को इस ‘परगास’ अर्थात प्रकाश की बार बार ज़रूरत पड़ती है। खोटी राजनीति के अलंबरदार अपने निजी हितों के लिए दिन रात अंधी प्रजा को छलने के लिए झूठ का प्रसार करते रहते हैं। नेक रूहों, दानिशवरों, साहित्यकारों, पत्रकारों और खरी राजनीति करने वालों का यह कर्तव्य है कि इस झूठ को अपने शब्दों की रोशनी से क्षीण करते रहें ताकि हम समस्त मानव मनों के ज्योति-स्वरूप अस्तित्व की पहचान कर सकें जिससे मानवता, सहिष्णु राज निर्मित करने के मार्ग पर चलती रहे।
गज्जणवाला सुखमिंदर हमारा कोमल और विशाल हृदय वाला विवेकशील, प्रतिभावान लेखक और कॉलम नवीस है। इससे पहले 2019 में गुरु-दर के मुसलमान मुरीदों को लेकर लिखी किताब ‘गुरु साहिबान के मुसलमान मुरीद’, भाषा विभाग (पंजाब) द्वारा प्रकाशित की गई। उसकी इस नई रचनात्मक प्राप्ति पर उसको बहुत बहुत मुबारकबाद देता हूँ।
हमारी सोच के क्षितिजों को विशाल करने वाली, दिलों को पसीजने वाली, नज़रों को निर्मल करने वाली और तपते मनों पर रिमझिम बरसात करने वाली है गज्जणवाला सुखमिंदर सिंह की यह पुस्तक। यूनीस्टार बुक्स, चंडीगढ़ की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक का टाइटल हमारे अज़ीम चित्रकार सिद्धार्थ द्वारा तैयार किया गया है। इस चित्र में भाई मति दास को आरे से चीरे जाने का प्रतीकात्मक चित्रण है। माथे पर लाल निशान एक बारगी रक्त की फुहार, तिलक और कलगी का प्रभाव पैदा करता है। लगता है, पुरखों का तिलक आरे के चीर में बदल गया और उस चीर में से निकलती रक्त की फुहार शहादत की शान जैसी कलगी बन गई।
ऐसी पुस्तकें नफ़रतों की राजनीति के युग में जलते जगत को शीतल करने में सहायक होती हैं और हमें सच और प्रेम के लिए जान न्योछावर करने के लिए प्रेरणा देती हैं।
सुभाष नीरव, वरिष्ठ लेखक ने इस समीक्षा का पंजाबी से अनुवाद किया है। 

 

3 टिप्पणी

  1. आदरणीय सुभाष नीरव जी का लेख
    विस्तृत ज्ञान का कोष है ।
    अनुवाद न होता तो हिंदी भाषी लोगों को किताब की जानकारी नहीं होती ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

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