Wednesday, May 15, 2024
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सूर्य कांत शर्मा की कलम से – बाल साहित्य परंपरा प्रगति और प्रयोग

पुस्तक – बाल साहित्य परंपरा प्रगति और प्रयोग प्रकाशक – प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली लेखक – डॉक्टर सुरेंद्र विक्रम मूल्य – 170 रुपए कुल पृष्ठ – 221
अंग्रेजी भाषा के प्रसिद्ध कवि वर्ड्सवर्थ का कथन चाइल्ड इस फादर ऑफ मैन,बच्चों की अहमियत को बताने के लिए काफी है।आज भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में बच्चों किशोरों और युवाओं को केंद्र में रखकर नई शिक्षा नीति को निर्मित और किर्यांवित किया जा रहा है।
सर्व विदित तथ्य कि यदि बच्चों का प्रारंभ से ही ध्यान रखा जाए तो देश का भविष्य स्वयमेव ही स्वस्थ और बेहतर होगा और विश्व को एक जिम्मेंदार नागरिक मिल पाएंगे।विश्व के विकसित देशों की सफलता में यह बात मुख्य आधार के रूप में स्थापित हो चुकी है।बालकों के स्वास्थ्य के अतिरिक्त शिक्षा और साहित्य की उपलब्धता भी एक जरूरी आयाम है।
भारत में बाल साहित्य की परंपरा तो है पर उस पर सही सटीक और गुणात्मक शोध की गुंजाइश आज भी बनी हुई है।एक और तथ्य की शोधार्थियों और विद्यार्थियों के लिए उच्च गुणवत्ता पूर्ण अध्ययन सामग्री जो कि समग्र और तथ्यपरक दोनों हो ,,इस पर अब नई शिक्षा 2020 में फोकस किया गया है।बाल साहित्य के अध्येता प्रयासों में लगे हैं।
हाल ही में,भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने यह समीक्षित पुस्तक-बाल साहित्य परंपरा प्रगति और प्रयोग का प्रकाशन किया है।पुस्तक के लेखक पेशे से अध्यापक और अनेक वर्षों से बाल साहित्य के अध्येता रहे हैं। लेखक ने कुल बीस अध्यायों और दो सौ से कुछ अधिक पृष्ठों में बाल संसार को संजोने की अद्भूत कला और क्षमता दोनों दिखाई है।
बाल साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को बेहद सारगर्भित परंतु संक्षिप्त अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।ईस्ट इंडिया कंपनी,ब्रिटिश सरकार के काल खंड स्वतंत्रता पूर्व – पश्चात के बाद दशक दर दशक का बाल साहित्य,परंपराएं,प्रवृत्तियों की समूची प्रगति का लेखा जोखा समीचीन संदर्भ तक को कवर किया गया है।
पुस्तक बाल साहित्य क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन और अनुसंधान का वस्तुपरक ब्यौरा यथा समूचे देश में विश्वविद्यालयों में बाल साहित्य,बाल साहित्यकारों तथा बाल पत्रकारिता पर दो सौ से अधिक शोध प्रबंध को पीएचडी की उपाधि प्राप्त हो चुकी है।पचास से ज्यादा शोधार्थी विभिन्न विश्वविद्यालयों में पंजीकृत हैं।पुस्तक में इस नई प्रवृत्ति पर भी प्रकाश डाला है कि गत वर्षों में हुए विश्व हिंदी सम्मेलनों यथाजोहानिसबर्ग न्यूयॉर्क भोपाल और मॉरिशस में बाल साहित्य और संबद्ध आयामों की चर्चा जोरों शोरों से होनी आरंभ हुई है।प्रोफेसर नामवर सिंह के शब्दों में बाल साहित्य के भविष्य का अक्स हम देख सकते हैं। उनके अनुसार “अब बड़े साहित्यकारों के सोचने का समय आ गया है कि वे बाल साहित्य को अपनी जिम्मेदारी समझकर ,न केवल सहयोग करें बल्कि उसे आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाएं”।लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों की रचनाओं के उदाहरणों की बानगियां यहां प्रस्तुत हैं यूं भी पूरी पुस्तक में वर्णन के अनुसार इन रचनाओं ने अपनी छटा बिखेरी है:
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी,
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।स्वर्गीय सुभद्रा कुमारी चौहान
मां तुम कल घर पर ही रहना
बहुत बुरा लगता है मम्मी मुझे तुम्हारा दफ्तर जाना ।
डॉक्टर उषा यादव
राम नगर से राजा आए
श्याम नगर से रानी
रानी रोटी सेंक रही है
राजा भरते पानी।
शेर जंग गर्ग
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पाए तूफान में,,,
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
अच्छी तरह से अभी चलना ना आया,
कपड़ों को अपने बदलना ना आया।
लाद लिए बस्ते हैं,भारी भरकम।
– डॉक्टर जगदीश व्योम
पुस्तक में अनेकों नामचीन कवियों और बालसाहित्य चितेरों के नाम प्रसंगानुकूल वर्णित हैं यथा भारतेन्दु हरिश्चंद्र(पहली बाल पत्रिका बाल दर्पण के संस्थापक पुरोधाओं में एक),आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा,डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत,डॉक्टर राम कुमार वर्मा,द्वारिका प्रसाद माहेश्वर,श्री निरंकार सिंह देव,डॉक्टर श्री प्रसाद,,,
इसी प्रकार पुस्तक में और भी बाल साहित्य और परंपरा,प्रवृत्तियों और प्रयोग करने वाले पुरोधाओं और सम्मानीय नामों को उनके कृतित्व के साथ उद्धृत किया है,उदाहरण के तौर पर हरि कृष्ण देवसरे, डॉक्टर मस्त राम कपूर, सोहन लाल द्विवेदी जैसे दैदीप्यमान व्यक्तित्व इस पुस्तक में सहेजे गए है।कुछ अध्यायों में बाल साहित्य में गतिरोध,चुनौतियों, विसंगतियों की महज़ चर्चा ही नहीं वरन सरल सारगर्भित और रोचक समाधान भी सुझाए गए है।पुस्तक में बाल साहित्य पर शोध,शोध प्रबंध,बाल कविताओं और अन्य संबद्ध विधाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा पाठक और शोधार्थी के लिए थाती या खजाने की मानिंद उपयोगी साबित हो सकता है।लेखक से छोटी से संवाद से पता लगा कि यह पुस्तक अब महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा,महाराष्ट्र के पाठ्यक्रम में शामिल कर ली गई है।
यही तथ्य पुस्तक और उसके प्रकाशक यानी प्रकाशन विभाग,सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अहमियत और उपादेयता दोनों को साबित करता है।कुल मिलकर एक गहन गंभीर अध्ययन जो बाल साहित्य परंपरा और प्रगति का दीप स्तंभ,भविष्य में साबित होगा।
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