Saturday, July 27, 2024
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मुर्दे का मजहब बताती ‘मंटो न मरब’

हिंदी साहित्य में कहानी लिखना आरम्भ हुआ 19वीं सदी के प्रारंभ से। पहली कहानी किसे माना जाए इसको लेकर साहित्येतिहासकारों में बहस भी हुई। तमाम वाद-विवाद से छुटकारा पाकर इंदुमती को पहली कहानी होने का गौरव मिला। इसके बाद पहली लघुकथा बनी ‘झलमला’ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की। यह कहानी सर्वप्रथम सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। और आज यह दौर भी है जब हर कोई हिंदी का लेखक होना चाहता है। हिंदी से किसी न किसी तरह से जुड़ना चाहता है।
लेखक केदारनाथ जो अपने नाम के बाद ‘शब्द मसीहा’ नाम से उपनाम भी लगाते हैं। मंटो न मरब इनका लघुकथा संग्रह है। लेखक केदारनाथ को ‘शब्द मसीहा’ उपनाम गीतों के एक कार्यक्रम के दौरान हैदराबाद के सेवानिवृत्त प्रोफेसर गंगेश गुंजन तथा विष्णु प्रभाकर के पुत्र अतुल कुमार प्रभाकर ने दिया था। इनके इस कथा संग्रह में एक सौ उन्नीस कहानियां शामिल हैं।
कहानियों का आरंभ होता है ‘राम से बड़े’ कहानी से और अपनी पहली ही कहानी से लेखक पाठकों का मूड सेट कर देते हैं। राम की मूर्ति को गंगा में प्रवाहित कर रहे लोगों से जब सवाल किया जाता है कि इन्हें क्यों ले जा रहे हो तब मात्र चार पंक्तियों की इस कहानी में अंतिम वाक्य आता है – “राम जी ने शबरी के बेर खाए थे। और ससुर आज के लोग राम से बड़े हो गए।” यह मर्यादा पुरुषोत्तम की दलितों से जुड़ी कहानी का स्मरण दिलाती है तो वहीं राजनीति पर भी व्यंग्य कसती है।
आगे कहानी आती है – ‘गंदे खिलौने दुनिया के’ यह कहानी भी दलितों को लेकर चलती है। और सड़क पर पड़ी गंदगी की उपमा इन्हें दी जाती है। एक गंदगी उठाने वाली का बच्चा जब जिद करता है महंगे खिलौने लेने की तब उसकी मां का कथन है – ‘हमारे पास इतना पैसा नहीं कि हम खिलौने खरीदें… हम तो खुद खिलौने हैं… गंदे खिलौने दुनिया के।’ दलितों के जीवन पर खूब साहित्य रचा गया है। दलित जाति के व्यक्ति वाल्मीकि ने राम कथा का गुणगान किया तो कई लोगों ने उसे सराहा भी तो कई ने उसकी आलोचना भी की। दरअसल ये सब हमारे समाज के वो गंदे खिलौने हैं जिनकी ओर कोई देखना भी नहीं चाहता।
‘इरादे नहीं’ कहानी ‘उसने कहा था’ कहानी की याद दिलाती है। इसमें भी देशभक्ति और देश प्रेम के संवाद नजर आते हैं। नया नवेला दूल्हा कुड़माई के बाद सीधा सीमा पर आ जाता है और नफरतों के तूफान में जान गंवा बैठता है। ‘बीबी समझा है क्या’ कहानी स्त्री चेतना की कहानी है अपने स्वरूप व ढांचे से। लेकिन यही कहानी एक पुरुष पर बलात घटना का झूठा आरोप मढ़ने का भी इशारा करती है अप्रत्यक्ष रूप से। साथ ही यह घर की उन महिलाओं के लिए भी आवाज उठाती है जिन्हें तथाकथित मर्द जात रोजाना बिस्तर पर किसी चींटी की भांति मसलने के बाद यूं ही छोड़ देता है। जो कभी उससे उस बात के रुपए भी नहीं मांगती ऊपर से उसके दिए बच्चों को भी पालती आ रही है।
कीड़ा कहानी परोपकार करने वाले परोपकारियों की बात करती है और बताती है कि परोपकार का कीड़ा पालने के लिए मन को मजबूत रखना ही पड़ेगा। ओवरटेक कहानी रिश्तों और प्यार में ओवरटेक कर जाने वालों की बात करती है। भुना भविष्य दहेज प्रथा पर व्यंग्य करती हुई कहानी है। कसाई मसीहा भी इस संग्रह की बेहतरीन कहानियों में से एक है। इसमें एक ऐसे कसाई के बारे में उल्लेख है जो दिन भर जानवरों को हलाल करता है। लेकिन बच्चे हुए गोश्त को जो उसके किसी काम का नहीं होता उसे चील, कौवे आदि को खिला देता है। इस तरह से वह हत्यारा होकर भी किसी के लिए जीवनदायी अन्न उपलब्ध करवाने वाला मसीहा भी बनकर उभरता है।
चिकन कहानी अन्य कहानियों की तरह ही लघु आकार में है लेकिन पांच से छह पंक्तियों की इस कहानी का अंतिम वाक्य मारक है। “चखना चाहिए… लाशों का। स्वाद बदल गए हैं… आदमी अब चिकन हो गए हैं।” यह कहानी शहरों के नए नामकरण तथा सत्ता के गलियारों में बनने वाले सत्ता के जाम में लाशों के चखना चाहने वालों पर करारा तमाचा है। कोई जवाब नहीं, डसने का डर, अव्वल से कम, गर्व है,  इंसान इंसान में फर्क नहीं होता भाई!  जैसी कहानियां दलितों, स्त्रियों, समाज, राजनीति पर सवाल उठाती हैं। लगता है जैसे मंटो मरा नहीं है। इस कथा संग्रह का शीर्षक भी लेखक ने अपने प्रिय लेखक मंटो को याद करते हुए ही रखा है। इससे पहले शब्द संधान, शब्द-शूल, जिंदा है मंटो, नाविक के तीर, राहों की बातें, मीता एक प्रेम कथा, अमृता लव एट 50, न-औरत जैसी रचनाएं कविता संग्रह, कहानी संग्रह तथा उपन्यास की शक्ल में साहित्य जगत को प्रदान करने वाले लेखक केदारनाथ शब्द मसीहा ‘भारतीय रेल द्वारा युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा मुंशी प्रेमचंद पुरुस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं तथा दिल्ली में विद्युत विभाग में इंजीनियर हैं।
ओल्ड माइंडेड स्टुपिड्स कहानी एक प्रेम विवाह करने वाली लड़की की कहानी कहती है। जिसने माता पिता की मर्जी के खिलाफ शादी तो कर ली लेकिन वह पति से खुश नहीं। अब वह माता पिता के समझाने पर ही वापस चली जाती है एक संकल्प लेकर वह संकल्प इस कहानी का शीर्षक ही है। मंगल-अमंगल, बालिका दिवस, लघुकथा की पन्नाधाय, बड़े लेखक कैसे बनें, मां का चुम्बन, प्रेम की जवान किलकारियां कहानियां भी अपने अपने विमर्शों तथा विमर्शों के ढांचे से इतर दोनों ही स्वरूपों में लघु होने के पश्चात भी  बखूबी विस्तार तथा ज्ञान का प्रकाश फैलाती है।
हाफीजा कहानी एक स्त्री का खुद की सुरक्षा तथा देश के लिए अपनी जान तक दांव लगा देने की कहानी कहती है। इस कहानी की नायिका हाफीजा स्वयं की रक्षा भी कर लेती है और नापाक दुश्मनों की गिरफ्त से एक परिवार को सुरक्षित लिवा लाती है। अदृश्य कातिल कहानी पुनः एक बार राजनीति की बातें करती हैं। ऐसी राजनीति जिसने लोगों के दिलों में नफरती संसार को जन्म दिया है। माई सी दीखत है कहानी एक बुजुर्ग महिला को गरीब मजदूर द्वारा भोजन करवाने तथा उसमें अपनी मां के दर्शन करने की अनुभूति दे जाती है।
आज के संत, जीनियस की हत्या, गरीब कौन है, जे रामहू न भये हमारे, स्वच्छता विचारों की, दैवीय फूल, अंतिम इच्छा, शेर कहाँ गया? , मुहब्बत के जश्न में, राम उसका भला करें, फ्रेंड रिक्वेस्ट, शुद्धिकरण, औरों के लिए जो जीता है, राहू, राम की हत्या आदि जैसी तमाम कहानियां साहित्य, समाज, राजनीति, अर्थ, धर्म, विमर्श इत्यादि पर करारा प्रहार तथा प्रश्न चिन्ह खड़ा करती हैं। लघुकथाओं की पहली शर्त उनका आकार लघु होना है। इस शर्त तो बखूबी पार करते हुए लेखक कम से कम शब्दों में मारक बातें कह जाते हैं। यहीं से उनका लेखकीय धर्म भी आरम्भ तथा अभिव्यक्ति पाता है। मंटो को सर्वाधिक पसन्द करने वाले इस कथा संग्रह के लेखक ‘मंटो कहाँ मरा’ नाम से भी एक किताब के साथ शीघ्र कथा संसार में वापसी करने वाले हैं।
पुस्तक – मंटो न मरब
विधा – लघु कथा संग्रह
लेखक – केदारनाथ शब्द मसीहा
प्रकाशक – मचान , पश्चिम बंगाल
मूल्य – 150 रुपए
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