रोचकता, सस्पेंस थ्रिलर और मीडिया की जगमगाती रोशनियों के अंधेरों से भरी संजीव पालीवाल की पहली मर्डर मिस्ट्री
मर्डर मिस्ट्री तो वैसे एक जमाने से लिखी जा रही हैं और उनको पढ़ने वाले,  उनके दीवाने अपने प्रिय लेखकों के नए उपन्यासों का हमेशा इंतजार करते रहे हैं।  बुक स्टॉलों के चक्कर लगाते रहे हैं।  लेकिन “नैना : एक मशहूर न्यूज़ एंकर की हत्या” का विस्फोट मोबाइल की स्क्रीन पर होता है।  संजीव पालीवाल का पहला उपन्यास जो रोमांच,  रोचकता और सनसनीखेज सस्पेंस है।
उपन्यास के कवर पेज पर ही लिखा है कि नैना का यह फसाना आपको पूरी तरह थरथरा देगा।  पूरी तरह पैसा वसूल।  बैक पेज पर बयान है-नैना की कहानी या कि मीडिया की गलियों के उस कोने की कहानी है जहां मीडिया के अपने कैमरे और फ्लैशलाइट आपको नहीं पहुंचाते।  बांध के रखने वाला सस्पेंस और आईने की तरह सच से सामना कराने वाला कथानक।
जिस तरह “नैना” उपन्यास सामने आता है और हम अपने मोबाइल स्क्रीन पर दिन भर होने वाली गतिविधियों के बीच यानी कि न्यूज़ स्क्रॉल,  फेसबुक,  व्हाट्सएप,  यूट्यूब,  ट्विटर या फिर गूगल के साथ साथ चलते हैं तो बीच-बीच में नैना का कवर पेज हर जगह दिखाई देता है।  संजीव पालीवाल मीडिया का जाना माना नाम है और वह न्यूज़ चैनल और मीडिया की चमक-दमक के संसार के इंसान हैं।  तो आखिरकार संजीव ने ऐसा क्या जान लिया जो उपन्यास की शक्ल में आ गया।  और वो भी ऐसा सनसनीखेज।
तो जो लोग पहले मर्डर मिस्ट्री न भी पढ़ते रहे हैं,  साहित्य,  कविता या सोशल  ही जिनका  शौक रहा हो वह लोग भी नैना के प्रति यानी कि इस मर्डर मिस्ट्री के प्रति आकर्षित हुए,  क्योंकि मैंने ऐसे लोगों के बयान मोबाइल स्क्रीन पर देखें।  फिर अचानक से नैना साहित्यिक मंचों का हिस्सा बनने लगी।  लेखक से नैना के बारे में बात की जाने लगी।  नैना के कथानक उसके वातावरण और सापेक्षता के बारे में लोग बात करने लगे।  नैना के रिव्यूज आने लगे।  यानी नैना मर्डर मिस्ट्री होते हुए भी साहित्यक दर्ज़ा लेने लगी।
ये मेरे लिए आश्चर्य की बात थी।  क्योंकि आज तक किसी भी मर्डर मिस्ट्री के बड़े से बड़े लेखक को साहित्यिक मंच नहीं मिले हैं।  मेरे दूसरे प्रोजेक्ट में लगे होने के बावजूद भी नैना लगभग अक्सर ही आकर मेरे दिमाग में धमाल मचाने लगी।  मडर मिस्ट्रीज मैंने शायद 25 साल पहले कुछ पढ़ी हों लेकिन एक जमाने से तो विशुद्ध साहित्य ही चल रहा है। जबकि मेरा मजबूती से मानना है कि जासूसी, थ्रिलर और सामाजिक लिखने वाले राइटर जिनका  बहुत बड़ा पाठक वर्ग है जिन्हें पल्प कह दिया जाता है,  वह ज्यादातर पाठकों के पहले लेखक रहे हैं। और वह बहुत महत्वपूर्ण लेखक हैं।
मेरी भी शुरुआत गुलशन नंदा,  वेद प्रकाश शर्मा, ओम प्रकाश शर्मा से ही हुई है। उनके उपन्यासों में क्या पानी जैसी रवानगी होती है कहानियों की।  इतना मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं किसी पाठक को कोई किताब, कोई टाइटल,  कोई नाम आकर्षित कैसे करता है।  नैना मुझ तक पहुंच नहीं पा रही थी या कहिए हाथ में कुछ तो प्रोजेक्ट होने के कारण मैं ही थोड़ा लटकाकर चल रहा था कि आ गयी तो इसमें लग जाऊँगा। लेकिन नैना ने दिमाग में खलबली मचा रखी थी और जब तब  किसी का रिव्यू या बयान मोबाइल स्क्रीन पर आ जाता तो दिल और तेजी से धड़कने लगता था। अन्ततः नैना हाथ में आ ही गई और जो दावा किताब की बैक  में देश के मशहूर क्राइम नैरेटर ताहिर खान ने किया है कि इसका पहला पन्ना पलटने के बाद आखिरी पन्ने में झाँके बिना नहीं रहा जाएगा तो यह सच हो गया।  नॉविल  एक सांस में ही पढ़ा गया।
मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ चार किताबें एक बार में पड़ी है।  पहली गुनाहों का देवता जो पूरी रात में खत्म की, दूसरी आपका बंटी जो रोते-रोते खत्म की,  तीसरी चित्रलेखा है जिसमें पाप और पुण्य ही  तलाशता रह गया और चौथी नैना। मैं खुद टीवी फिल्मों से जुड़ा हुआ हूं, लेकिन फिल्म सिटी के यह बड़े न्यूज़ चैनल इनके  वाररूम, न्यूज़ स्टेशंस, इनके काम, इनके दबाव,  इनकी हर क्षण चलने वाली मीटिंग्स,  दम साधे काम करता हुआ ट्रांसपेरेंट स्टाफ,  चकाचौंध, चमक,  ग्लैमर इनको मैं समझता रहता था क्योंकि बहुत से दोस्त इन चैनल में काम करते हैं। और दम साधे हुए करते रहते हैं।
यहाँ के भी काले सच हैं। किसी किसी को तो गर्दन उठाने की भी इज़ाज़त नहीं है।  और इन सब का आउटपुट तो अपने टीवी स्क्रीन पर रोज ही देखता हूं।  लेकिन संजीव तो नैना के पन्नों पर ही वह सब खड़ा कर देते हैं जो फिल्म सिटी की इन बड़ी-बड़ी इमारतों के अंदर चलता है। जो लोग न्यूज़ और टीवी की इस चकाचौंध वाली दुनिया को नहीं जानते नैना उन्हें तफ़सील से उन सब के बारे में बताती है।  नैना केवल उपन्यास ही नहीं एक ऐसी पढ़ाई भी है जो उस दुनिया के दरवाजे हमारे लिए खोलती है
नवीन और गौरव के माध्यम से आप सहज ही जान जाएंगे कि किसी न्यूज़ चैनल में डिसीजन और बड़े काम कैसे होते हैं। माहौल कैसा होता है।  कैसे इनपुट और आउटपुट के बीच स्ट्रेटजी काम करती हैऔर काम  का सिलसिला कैसे चलता है,  और टेलीविजन की स्क्रीन पर न्यूज़ चैनल का यह आकर्षण किस तरह से सामने आता है।
आइए अब नैना पर चलते हैं। एक इंसान क्या होता है, उसकी भावनाएं क्या होती है,  उसके रिश्ते कैसे बनते हैं, उसकी उड़ान कैसी होती है,  सफलता के साथ उसकी जिंदगी में और किन चीजों का प्रवेश समावेश होता है, चाहते अगर सफल हो रही हैं तो जिद कैसे बढ़ती जाती है,  एक छोटे से दायरे में सोचने वाला इंसान भी अपने जिस्म के आगे कैसे चला जाता है,  वह सुकून वह प्यार जो वह एक छोटी जगह,  छोटे घर,  छोटे दायरे में पाकर खुश था उसका दायरा कैसे फैलता चला जाता है।
कुछ समय तक तो सफलता के टारगेट होते हैं उसके बाद उस व्यक्ति को खुद नहीं पता होता कि वह क्या चाहता है।  वह सब से कुछ ना कुछ चाह रहा होता है।  खुद को बांट रहा होता है और बहुत सेंसिटिव होकर वह फिर अपने में लौटना चाहता है।  लेकिन उसके इमोशंस पर इतने घाव हैं कि वह बार-बार छिल रहा होता है।  यह घाव दूसरों से मिले कि उसने खुद अपने लॉजिक गढ़ कर खुद को दे दिए उसे यह भी नहीं पता होता। खुद के सफर में इंसान खुद कहीं खो जाता है।  ऐसे ही नैना भी खो गई थी । इंसानी रिश्तों और चाहतों के द्वंद।
नैना मुख्यतः चार पात्रों की कहानी है।  जो इमोशनली बहुत ज्यादा जुड़े हैं।  नैना,  नैना का पति सर्वेश,  नैना के मैनेजिंग एडिटर गौरव वर्मा और नैना के बॉस नवीन।  नैना की दांपत्य वाली जिंदगी उसके पति सर्वेश से भावनात्मक दूरियों के चलते लगभग अलग-थलग हो गई है।  नैना का बहुत ज्यादा भावनात्मक और शारीरिक लगाव अपने मैनेजिंग एडिटर गौरव वर्मा से है जिससे अब वह लगभग शादी करने के लिए मन बना चुकी है।  नैना अपने इनपुट एडिटर नवीन से भी भावनात्मक रूप से बहुत करीब है।
नवीन ही नैना को नेशनल न्यूज़ चैनल में लेकर आया था। वह नैना पर अपना पूरा अधिकार समझता है और नैना भी अपने सारे काम उससे पूछ कर करती है। नवीन को नैना के पहने अंडरगारमेंट्स के रंगों का पता होता है। नैना की सफलता की जमीन पर शानदार कंक्रीट नवीन ने ही बिछाई है।  नवीन का तलाक हो चुका है और नैना पर उसकी नजर है।
नैना नवीन की बिछायी मजबूत कंक्रीट पर उछल रही है।  अब उछलते उछलते नवीन को मात्र एक लिप किस देने के बाद वह गौरव वर्मा की बाहों में जा सिमटी  है। गौरव हैंडसम है,  खूबसूरत है,  फिल्मी हीरो जैसा है। बढ़िया पगार कमाने वाला,  शानदार पेंटहाउस में रहने वाला और एक करोड़ की ऑडी में चलने वाला है। और तिस पर उसने नैना से यह भी कह रखा है कि उसने अपनी बीवी से तलाक की अर्जी कोर्ट में लगाई हुई है।
सर्वेश एक थका हारा पति है जो बीवी के पैसे से खरीदी शराब पीता है और उसके पैसे से खरीदे घर में रहता है। वह बहुत अच्छा था।  खूब कमाता था।  वही नैना को दिल्ली लाया और जब वह व्यस्त था तो उसने नैना को साथ समय न दे पाने की वजह से उसे किसी चैनल में काम करने को प्रोत्साहित किया अब नैना निकली तो निकलती ही चली गई।  परिवार के आयाम टूट रहे हैं तो क्या सफलता और पैसा तो घर में आ रहा है।
चाहत एक आदिम आदत है और चाहत ना होती तो यह संसार ऐसा ना होता।  होमो सेपियंस का जब उद्भव हुआ होगा तो उसका मस्तिष्क क्या इतना ही विकसित होगा।  चाहतों ने ही सभ्यता दी है।  आज चारों तरफ गगनचुंबी इमारतें हैं,  हवाई जहाज उड़ रहे हैं, न्यूक्लियर अस्त्र बन रहे हैं,  वायरस छोड़े जा रहे हैं,  तरह-तरह की चीजों का रोज इजाद हो रहा है तो यह सब इंसानी चाहतों का ही तो परिणाम है।  तो नैना की चाहत कहां गलत है।  उसे देश की सबसे तेज तर्रार, स्मार्ट, खोलते मुद्दों पर बहस करने वाली,  शासन-प्रशासन सरकार का मुंह पकड़ लेने वाली,  एक ऐसी एंकर बनना था जिसको करोड़ों लोग रोज़ देखते हों। प्रधानमंत्री उसका टि्वटर फॉलो कर रहे हैं।  और वह  वैसी बन भी गई ।
अब पति सर्वेश छूटे तो,  नवीन का इस्तेमाल हो तो, या फिर गौरव की गोद में बैठना हो तो।  आखिर सात लाख  उसकी पगार है।  आदमी चाहत की ताजी नैना को व्हाट्सएप पर दिनभर मैसेज आते रहते हैं।  नवीन और गौरव वहां स्क्रीन पर गिड़गिड़ाते रहते हैं। बेबी,  डॉल, लव डार्लिंग, सॉरी,  एंप्लाइज,  प्लीज,  माफ कर दो, फिर ऐसा नहीं होगा,  मान जाओ ना,  सब ठीक हो जाएगा,  बात कर लेंगे ना,  गुस्सा नहीं करते ऐसे मैसेज से उसका फोन भरा रहता है।
चाहतें दिल में नहीं मोबाइल की स्क्रीन पर अलग-अलग ऍप्स की शक्ल में उतरती है।  और नैना आंखें बंद कर कभी चैन पाती है तो कभी उबलती है।  नए जमाने का सच संजीव पालीवाल ने यहां रच दिया है।  इस दुनिया के लाखों लोग आज सुबह उठते ही सबसे पहला काम ये करते हैं कि अपना मोबाइल स्क्रीन स्क्रॉल करते हैं।  और खुद को उस में ढूंढते हैं।  संजीत के उपन्यास में पूरी दुनिया की यह तस्वीर एक कोने से झांकती हुई नजर आती है।  हमारी चाहते,  हमारी भावनाएं, हमारी खुशी,  हमारे दर्द, हमारी सोच,  हमारे विचार सब अब स्क्रीन से उतरकर ही हमारे दिलो-दिमाग तक आते हैं
अब क्योंकि गौरव वर्मा ने एक प्रोग्राम दूसरी एंकर आमना चौधरी को दे दिया जिसका बेस आइडिया नैना वशिष्ठ ने दिया था।  तो लो हो गई दईया मईया । जब तक वह  माफी मन्नोवेल से वो निपटी तब तक गौरव वर्मा और आमना चौधरी की लव चैटिंग का एक स्क्रीनशॉट ऑफिस में वायरल हो गया।  अब तो भूचाल आ गया। आदिम चाहतों का समंदर पलट गया। नफरतों की सुनामी आ गई और संबंधों के चेहरे पर पड़े हुए पर्दे हटने लगे। पता लगा नवीन तो नैना से बहुत प्यार करता है और नैना के बिना रह नहीं सकता। उसने आगे तक की प्लानिंग कर रखी है।
गौरव नैना के साथ-साथ बाकी लड़कियों की भी हसरते रखता है। उसका अपना दांपत्य जीवन बढ़िया और शानदार चल रहा है।  उसको वह किसी कीमत पर भी डिस्टर्ब नहीं करना चाहता लेकिन दुनिया का हर बड़ा मजा वह खुद लूटना चाहता है। तभी तो आमना को भी वो फ्लर्ट कर रहा है।  वह खूबसूरत है,  बड़े ओहदे पर है,  तेज तर्रार बॉस है,  न्यूज़ चैनल के इरादों को पलटने का दम रखने वाला है,  सत्ता पर उसकी हनक है और खूबसूरत लड़कियों का साथ है। नैना अपनी सफलता के गुरुर से भरी बेहद आम लड़की है। नैना दिनभर शतरंज के प्यादे इधर उधर करती रहती है।
नवीन का इस्तेमाल वज़ीर की तरह तो सर्वेश का इस्तेमाल घोड़े की तरह कि ढाई घर चला कर छोड़ देती है।  शराब,  टीवी और अंगद जो नैना का बेटा है।  गौरव का इस्तेमाल वो राजा की तरह करती है कि उस तक कोई नहीं पहुंच सकता।  अगर पहुंचा तो नैना का गेम खत्म।  सिर्फ रानी ही है जो उसकी बगल में खड़ी रहेगी।  जो कि नैना खुद है। और आमना चौधरी वह तो केवल प्यादा भर है।  ऐसे कई हैं। नैना का एक मानवीय रिश्ता भी संजीव दिखाते हैं क्योंकि कोई इंसान सिर्फ एक सा ही तो नहीं हो सकता।  लेकिन नैना इस शतरंज को अपने ऑफिस से दूर भी खेल लेती है।  शतरंज का एक मोहरा राजस्थान के मंत्रालय में भी है “राजा साहब। ‘इस मोहरे का पता तो इस्पेक्टर समीर लगाते हैं।  इस्पेक्टर समीर जो इस पूरे केस की पड़ताल कर रहे हैं।
 अरे केस क्या है यह?केस यह है कि जब नैना की जिंदगी में रिश्तो की सुनामी आ जाती है।  गौरव की बेवफाई नैना के सामने और नवीन के सामने नैना की बेवफाई और सर्वेश के सामने नैना का फ्लैट छोड़ने का अल्टीमेटम और नैना की जिंदगी से दूर निकल जाने की बात।  तो बहुत देर तक यानी दो दिन तक मोबाइल स्क्रीन पर यह भावनाएं हिलोरें मार रही होती है।  और फेसबुक व  ट्विटर के पेज इस बात का इंतजार कर रहे होते हैं कि नैना इस पर कोई भंडाफोड़ करेगी।  गौरव का कैरियर तहस-नहस कर देगी।  उस पर यौन शोषण का आरोप लगा देगी।  इससे पहले ही नैना की एक पार्क में जॉगिंग करते हुए हत्या कर दी जाती है।  और नैना का शव पेड़ से चिपका हुआ मिलता है।  पेड़ पर लगी एक बड़ी सी कील जिसमें नैना का माथा धंसा हुआ होता है।  इंसपेक्टर समीर इस केस की तफ्तीश कर रहे हैं।  उन पर दबाव बहुत है क्योंकि यह एक बहुत हाई प्रोफाइल न्यूज़ एंकर की हत्या का केस है।  अब नैना को मारा किसने?
संजीव यहां अपनी लेखनी से खेलते हैं। एक लेखक की भूमिका का यानी कि क्राइम राइटर होने का।  और एक मर्डर मिस्ट्री में जितना रस, सस्पेंस,  ड्रामा, मंजर,  बेचैनी,  इत्तेफाक,  सनसनी,  कौतूहल भरा जा सकता है तो वो अब संजीव बूंद बूंद डालना शुरू करते हैं।  उस ट्राईट्रेशन की तरह जो हम लोग केमिस्ट्री लैब में करते थे।  हिलाते हिलाते सफेद द्रव्य गुलाबी हो जाता था।  जिस तड़प और बेचैनी के सुख के लिए मर्डर मिस्ट्री पढ़ी जाती है कलम से स्याही की जगह यह सब टपकाना ही मिस्ट्री राइटर का काम होता है।  और संजीव पहली बार में ही इस भूमिका में बखूबी उतरते हैं।  अपना कान इधर लाइए तो दोस्तों मैं आपको बता दूं संजीव ने एक छोटी बूंद इरॉटिका का इस्तेमाल भी इसमें किया है।  राइटर नवीन चौधरी लिखते हैं कि सुना है कि संजीव पालीवाल सर का उपन्यास पढ़ने के बाद न्यूज़ एंकर,  प्रोड्यूसर इत्यादि संजीव सर से ‘नैना”मिलाने से बचते हैं। जाने कौन अगला पात्र बन जाए।  तो भाई मिस्ट्री राइटर के लेखक के तौर पर संजीव ने अपने पहले उपन्यास से यह धमक तो बना ली यानी उनके लिखे को स्वीकार किया गया है।
उपन्यास में रोचकता,  ताजगी,  रचनात्मकता,  सरल भाषा और वो सारे तत्व है जो एक उपन्यास को मुकम्मल करते हैं।  लेकिन इस उपन्यास को पढ़ते हुए मेरे जेहन में जो बात बार-बार आती है वो इन चार मुख्य पात्रों की भावनाओं का वही वैसी बातों का बार-बार रिपीटेशन । अगर भावना और कथ्य का यह रिपीटीशन नहीं होता तो शायद उपन्यास के पचास पन्ने  कम हो गए होते।
यह मैंने उपन्यास की कमजोरी मानी लेकिन मेरा दिल अपनी ही इस बात को पूरी तौर पर मानने नहीं दे रहा था तो मैंने इस पर गौर किया फिर मुझे दो कारण नजर आये। एक तो मैंने यह समझा कि जब हमारा कोई झगड़ा होता है ऑफिस या घर पर ही।  या हम भावनात्मक तरीके से कुचला हुआ महसूस करते हैं।  जो कि इनमें से तीन पात्र नैना, नवीन और सर्वेश हैं जिनकी भावनाएं बेहद कुचली हुई महसूस हुई है। ( गौरव को मैं नहीं मानता।  वह शुरुड है।  वह तो खेला चला रहा है।  चैनल का भी और अपना भी) तो हम बार बार उन बातों का रिपीटेशन अपने दिल और दिमाग में करते हैं।  बल्कि वह एक रील की तरह चलता ही रहता है।
बार-बार घूम घूम कर हम उस थॉट की तरफ ही आते हैं उस जुमले की तरफ आते हैं।  उस आवाज़ की तरफ आते हैं जिसने हमें हर्ट किया है।  और वही ख्याल बार-बार हमारे दिल दिमाग में घूमता है। वह सब जहन दिल में जैसे घूम रहा होता है।  तो जितनी बार यह पात्र सामने आते हैं तो उनके साथ वही वही वही बातें,  भावनाएं, बयान,  सोच सामने आती है। उनका फ्रस्ट्रेशन सामने आता है।  और दूसरा कारण मैं सोचता हूं कि दूसरा कारण भी दमदार है लेकिन यह लेख पढ़ने वालों का उस बात से कोई लेना-देना नहीं।  वह कारण मै संजीव को खुद ही बता दूंगा ।
अब बात यह कि नैना की हत्या की किसने।  असल बात तो  ये है भइया कि इसके लिए आप उपन्यास पढ़िए। यह गारंटी है कि उपन्यास मजेदार है,  रोचक है,  भरपूर आनंद देता है।  उपन्यास में पात्र और भी बहुतेरे हैं। कहानियां और भी बहुत है।  राजा राघवेंद्र के साथ शायराना इश्क़ की कहानी है।  तीन साल से नैना की चोरी छुपे सैकड़ों वीडियो बनाने वाले शिवम की कहानी है।  जो नैना से सोलीमेट का रिश्ता बना चुका था।  गौरव की बीवी और बहन की कहानी है।
नैना के बेटे अंगद और नौकरानी रीमा की कहानी है। इंसपेक्टर समर की भी अपनी एक कहानी है। आमना चौधरी का भी एक इश्क़ चल रहा था लेकिन गौरव से नहीं।  तो गौरव आमना के बीच ऐसा क्या चल रहा था जिसने नैना के जीवन में सुनामी ला दी। नैना के बयानों ने गौरव और उसकी बीवी राशि के बीच सुनामी ला दी। तो इन सभी मजेदार कहानियों के लिए नैना पढ़नी जरूरी है।  कातिल का नाम बता कर मैं बेमन्टी नहीं कर सकता। और पता है नैना प्रेगनेंट भी थी। उसके पति से उसके रिश्ते बिगड़े हुए थे। नवीन ने सिर्फ एक किस ही किया था। गौरव ने अपनी बच्ची के सिर पर हाथ रख कर कसम खा ली। और राजा साहिब का भी कोई कसूर था क्या। और हाँ और हाँ वो बेला कौन थी।
पुस्तक – नैना (उपन्यास)
लेखक – संजीव पालीवाल
प्रकाशक – वेस्टलैंड

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