‘पतझड़ वृक्ष का अंत नहीं है’ ईशा पब्लिकेशंस मुंबई द्वारा प्रकाशित कवि प्रदीप गुप्ता का नया काव्य संकलन है। प्रदीप गुप्ता पेशे से बैंकर रह चुके हैं लेकिन दिल से यायावर हैं और अपने घूमने के जुनून की वजह से पूरा देश और पूरी दुनिया नाप डाली है, उनका यायावरपन और दुनिया को देखने का अनुभव उनकी रचनाओं को एक अलग ही कलेवर प्रदान करता है उनके अब तक कविताओं, यात्रा वृतांत , व्यंग संग्रह , प्रबंधन और फ्यूचोलॉजी की बीस से कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
यह संकलन अपने उनवान से ही नेगेटिव को पॉजिटिव की तरफ ले जाने और हर नकारात्मक चीज़ में सकरात्मकता देखने की कामयाब कोशिश है।
इस संकलन में चार हिस्से हैं। पहले हिस्से में ग़ज़लें हैं। ज़िन्दगी के तजुर्बे, मुहब्बत, सम्बन्धों का टूटना बिखरना जैसे एहसासात के रंगों को रखने की पूरी कोशिश की गयी है। ग़ज़ल के व्याकरण से ज़्यादा प्रदीप जी ने उसके रंग पर ध्यान दिया है। इसके सबब ग़ज़ल के मिसरे और अधिक चुस्त होने की मांग रखते हैं।लेकिन ये ग़ज़लें अपने पाठक तक पहुंचती हैं और अपने आप को दर्ज कराती हैं। इस हिस्से का हासिल देखिए –
सोचते रहते जो बैठे और कुछ करते नहीं
वो समय की धूल के नीचे दबे रह जाएंगे
चल पड़ा है मंज़िलों को सोचने का काम क्या
पाँव के छाले तेरी अब जूतियाँ बन जाएंगे
वो गूगल मैप से बेहतर मुझे रस्ता बताता है
भले हो भीड़ कितनी भी कहीं खोने नहीं देता
जब भी आ जाती है वो यादों के दरीचे में
खिल ही जाती है उस पल तबीयत मेरी
कितने दिनों के बाद ख़ुशी आ गयी इधर
फिर से किसी ने मुझको हंसना सिखा दिया
ख़ुश बहुत थे हम जो वादा था सुनहरी मंज़िलों का
घूम फिर के हैं वहीं हम गए फिर से छले
जब तलक रिश्ता कोई अच्छी तरह पकता नहीं
तब तलक तो प्यार का अंकुर पनप सकता नहीं
बारिश में जो पुल टूटे हैं उन पर तो विस्तृत चर्चा है
सम्बन्धों के पुल जो दरके उन पर होता नहीं विचार
किताब का अगला हिस्सा कविताओं का है। प्रदीप गुप्ता जी ने इस किताब में छंद-मुक्त कविताओं के रूप में सबसे अधिक खुलकर अपने आप को बयान किया है। लफ़्ज़ों के बहाव और विचार को बांधने की कुशलता उनकी छंद-मुक्त कविताओं में ख़ूब नज़र आयी है।उनकी कविताओं में भी रिश्ते और समाज प्रमुखता से बयान किए गए हैं। पहली कविता ‘सब कुछ अगर सामान्य रहे’ में सामान्य और असामान्य होने के बीच की घटनाओं को ख़ूबसूरती से बयान किया गया है। अगली कविता ‘सीगल’ में उन्होंने लंदन के अपने प्रवास केदौरान सीगल के ज़रिए वहां की ज़िंदगी को आसान लफ्ज़ों में बयान किया है। यह कविता इस किताब को अलग स्तर तक ले जाती है।इसी क़बील की कविताओं में ‘रफ़्तार’, ‘देश-विदेश’, ‘कहानी’, ‘अकेले-अकेले’ कविताएं हैं। इस किताब में कई कविताओं में प्रदीप जीने अपने आप से बात की है। यह ख़ुद-कलामी इस हिस्से का हासिल है। जिसमें उन्होंने अपने आप को खोजा है, अपनी तलाश की है।
कविता “ मन “ का अंश देखिए –
“कुछ पाया है कुछ खोया है
जीवन के बीहड़ रस्ते में
कुछ क्षण बैठें अपने संग में
सारा लेखा जोखा कर लें
जिएँ सभी पल अपने ऐसे
ख़ुशियों से अँजुरियाँ भर लें
करें आज वैसा ही अनुभव
होमवर्क करके ज्यों रखा बस्ते में”
उनकी कविताएं कुछ इस क़िस्म की हैं हैं जो कवि या शायर दूसरों के लिए नहीं सिर्फ अपने लिए लिखता है। इन कविताओं में अपने आप को खो देने और फिर अपनी तलाश करने की ख्वाहिश भी नज़र आती है और इस ख़्वाहिश में कामयाबी भी दिखाई देती है। इन कविताओं में ‘समंदर’, ‘भीड़में’, ‘खु़द्दार’, ‘इतने बुरे नहीं थे वह सब’, ‘पल’,’अपने-अपने सच’, ‘कहानी’, ‘मन रे’, ‘क्या यही प्यार है’, ‘सोया दिन और जागी रात’ जैसी कविताएं हैं। इस हिस्से में एक कविता ‘पेड़ की व्यथा’ है जिसमें उन्होंने पेड़ के होने और उसके सुख दुख को बहुत खूबसूरती से बयान किया है। इसके अलावा भी जो कविताएँ हैं उसमें कहीं मां है, कहीं प्रेयसी है तो कहीं अध्यात्म है। यानि प्रदीप जी ने कविताओं वाले हिस्से में सारे जज़्बों, सारे अनुभवों को लफ्ज़ों के सहारे अपने पढ़ने और सुनने वालों के सामने रख दिए हैं और वह अपनी इस कोशिश में पूरी तरह कामयाब हैं।
इस संकलन के तीसरे हिस्से में बालगीत हैं। बाल गीत या बाल कविता लिखना जितना आसान नज़र आता है उतना आसानहै नहीं। बल्कि यह बड़ों के लिए लिखे गए साहित्य से ज़्यादा मुश्किल काम है। बाल साहित्य रचने के लिए किसी भी साहित्यकार को सबसे पहले बच्चा बनना पड़ता है। अपने बचपन में वापस लौटना पड़ता है। अपनी उम्र से छोटा होना तो आसान है लेकिन अपने मानसिक स्तर से नीचे उतर कर कुछ रचना मुश्किल काम है। प्रदीप जी ने इस भाग में अपनी पहली बाल कविता के शीर्षक से रचना मुश्किल काम है। प्रदीप जी ने इस भाग में अपनी पहली बाल कविता के शीर्षक से ही बाल मन को अपनी तरफ कर लिया है। यहज़बान बाल साहित्य की ज़बान है। बाल कविताओं में दूसरी कविता ‘चाकलेट’ है। दोनों कविताएं बाल मन को छूने में कामयाब है।लेकिन केवल दो बाल कविताऐं होने से यह कमी खलती है। उम्मीद है उनका बाल गीतों का पूरा संकलन जल्दी ही सामने आएगा।
चौथे हिस्से में प्रदीप जी ने विश्व भर के कुछ जाने माने और कुछ कम जाने कवियों की कुछ ऐसी कविताओं का रूपांतर कियाहै जो अभी तक हिंदी पाठकों के सम्मुख नहीं आ पायी हैं. ये अंदाज़ा देती हैं कि देश कोई भी हो वहाँ के लोगों के दुख दर्द और संवेदनाएँएक ही जैसी हैं इन रूपांतर की खूबी यह है कि प्रदीप गुप्ता ने कहीं भी उनकी मूल भावना से छेड़ छाड़ नहीं की है और अपने कवि होने को हावी होने नहीं दिया है।
संकलन एक अनुभवी साहित्यकार का महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज है जिसमें मुद्दों को बिना किसी लाग लपेट के उठाया है। कवि ने भरपूर ज़िंदगी जी है और ज़िंदगी के सभी रंग दुनिया भर में घूमकर इकट्ठा किए हैं। ये सभी रंग देखे जाने और जिए जाने लायक़ हैं।