होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ मनीष कुमार मिश्रा की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत डॉ मनीष कुमार मिश्रा की ग़ज़ल द्वारा संदीप तोमर - March 30, 2024 38 3 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet महीना वही पर मौसम अलग सा है यह नवंबर कहां तुम्हारी महक सा है। सबकुछ तो है मगर जैसे फीका सा है जिंदगी के जायके में तू नमक सा है। जिसे गुनगुनाना चाहता हूं हरदम मैं हमदम तू बिलकुल उस ग़ज़ल सा है। निहारता हूं अकेले में अक्सर चांद को यकीनन वह तेरी किसी झलक सा है। मैं अब तुम्हें पाऊं तो भला पाऊं कैसे एक कतरा हूं मैं और तू फलक सा है। डॉ मनीष कुमार मिश्रा विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR HINDI CHAIR ), ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़, ताशकंद, उज्बेकिस्तान संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. दिलावर हुसैन टोंकवाला की ग़ज़लें अनिला सिंह चरक की ग़ज़लें विज्ञान व्रत की पाँच ग़ज़लें 3 टिप्पणी अच्छी ग़ज़ल है मनीष जी आपकी! जवाब दें आभार। जवाब दें अच्छी ग़ज़ल जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
अच्छी ग़ज़ल है मनीष जी आपकी!
आभार।
अच्छी ग़ज़ल