अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम।’ यदि अमरीका के साथी युरोपीय संघ  के देश ही अमरीका की बात मानने को तैयार नहीं तो फिर भारत ऐसा क्यों करेगा। दरअसल अमरीका इस मामले में डबल गेम भी खेल रहा है। लंदन के गार्डियन समाचारपत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “अमरीका ने प्रतिबंधों के ऐलान के बाद तेल आयात के लिये45 दिनों की छूट की अनुमति दी है। इसका अर्थ यह है कि रूस से फ़ॉसिल्स फ़्यूल लाने वाले जहाज़ 22 अप्रैल के बाद अमरीकी बंदरगाहों पर लंगर नहीं डाल पाएंगे।” भला इससे बड़ा दोगलापन और क्या हो पाएगा।

जब रूस और युक्रेन के बीच युद्ध शुरू ही हुआ था, तो पुरवाई ने अपने संपादकीय में लिखा था कि इस क्षेत्र में शांति-स्थापना में भारत की भूमिका अहम हो सकती है क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रपति पूतिन एवं राष्ट्रपति बाइदेन के साथ अच्छे संबन्ध हैं। 
कुछ मित्रों ने निजी तौर पर फ़ोन करके कहा कि मैं शायद भारतीय प्रधानमंत्री को ज़रूरत से अधिक महत्व दे रहा हूं। भला अमरीका और युरोपीय संघ भारत को इतना महत्व क्योंकर देंगे? अमरीका तो वैसे ही चाह रहा है कि भारत इस युद्ध में रूस के विरुद्ध बयान दे।
मगर ध्यान देने लायक बात यह है कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री स्वयं रूस के दौरे पर जाता है और उसके रूस में मौजूद रहते रूस युक्रेन पर हमला कर देता है। वहीं संघर्ष शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आपस में टेलीफोन पर तीन बार बात कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से भी दो बार बात कर चुके हैं। 
इसके अतिरिक्त रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत के दो दिन के दौरे पर भी आए हैं। वे भारत के विदेश मंत्री जयशंकर एवं प्रधानमंत्री से मुलाकात भी कर चुके हैं। रूस और यूक्रेन के बीच भारत के मध्यस्थ बनने की संभावना पर उन्होंने कहा, भारत एक महत्वपूर्ण देश है. अगर भारत उस भूमिका को निभाना चाहता है, जो समस्या का समाधान प्रदान करता है तो भारत अपनी स्थिति के साथ अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के लिए एक न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण के साथ ऐसी प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है।
यूक्रेन युद्ध को लेकर जब सर्गेई लावरोव से सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपना मत देते हुए कहा कि आप इसे युद्ध कह रहे हैं जो कि सच नहीं है। यह एक स्पेशल ऑपरेशन है, जिसमें यूक्रेनी आर्मी के इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया जा रहा है। हमारा मकसद सिर्फ इतना है कि आने वाले वक्त में कीव की सरकार रूस के लिए कोई ख़तरा न बन सके।
ध्यान देने लायक बात यह भी है कि कुछ ही समय पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भी अचानक भारत का दौरा हुआ था और उन्होंने भी रूस और यूक्रेन की संकट भरी स्थिति के बारे में विदेश मंत्री शिवशंकर से बातचीत की थी।  भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने के बारे में वांग यी का कहना था, “मैं उम्मीद करता हूं कि भारत और चीन एक दूसरे के साथ एक रणनीतिक सहमति बनाएंगे कि दोनों देश एक दूसरे के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे और एक दूसरे के विकास का मौका देंगे, दोनों आपसी विश्वास बनाना जारी रखेंगे और ग़लतफ़हमी और ग़लत अनुमानों से बचेंगे और एक दूसरे की सफलता के भागीदार बनेंगे।”
दूसरी तरफ़ अमरीका रूस के प्रति भारत के रवैये को लेकर दुविधा में है। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने मतदान में भाग न लेकर रूस की निंदा करने से स्वयं को बचा लिया। अमरीका चाहता है कि भारत खुल कर रूस की आलोचना करे और अमरीका के साथ खड़ा दिखाई दे। 
अमरीका ने ख़ुद रूस के साथ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर सहयोग जारी रखा। यह संपादकीय लिखते-लिखते ही समाचार मिला है कि रूस ने अपने पर लगाई गयी आर्थिक पाबंदियों के चलते नासा के साथ अपने सभी संबंधों को तोड़ने का निर्णय लिया है। रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कॉस्मॉस के प्रमुख ने कहा है कि वे स्पेस स्टेशन पर नासा के साथ अब काम नहीं करेंगे। रूस की ओर से बयान में यह भी कहा गया है कि रूस युरोपियन स्पेस एजेंसी जैसे अपने भागीदारों के साथ भी काम नहीं करेगा। यद्यपि, रूस की ओर से ट्विटर पर यह भी सफ़ाई से कह दिया गया है कि प्रतिबंध हटाए गये, तो यह भागीदारी दोबारा संभव है। 
युरोपीय संघ के अधिकांश देश ऊर्जा के लिये रूसी तेल पर निर्भर करते हैं। इसलिये रूस से तेल न ख़रीदने के मामले में वे अमरीका की बात नहीं मान पा रहे। उन देशों की कुल खपत का 27% तेल रूस से ही आता है। जर्मनी जैसे देश अपने देश की उर्जा खपत के लिये आयातित तेल पर निर्भर करते हैं। यदि रूस तेल पर प्रतिबंध लगा देता है तो उनके यहां महंगाई बढ़ेगी और बेरोज़गारी की गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी। हंगरी ने भी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने से इन्कार कर दिया है। ऐसे में अमरीका भारत को किस तरह दबाव में ला सकता है कि भारत रूस से तेल या हथियार न ख़रीदे। 
अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम।’ यदि अमरीका के साथी युरोपीय संघ  के देश ही अमरीका की बात मानने को तैयार नहीं तो फिर भारत ऐसा क्यों करेगा। दरअसल अमरीका इस मामले में डबल गेम भी खेल रहा है। लंदन के गार्डियन समाचारपत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “अमरीका ने प्रतिबंधों के ऐलान के बाद तेल आयात के लिये45 दिनों की छूट की अनुमति दी है। इसका अर्थ यह है कि रूस से फ़ॉसिल्स फ़्यूल लाने वाले जहाज़ 22 अप्रैल के बाद अमरीकी बंदरगाहों पर लंगर नहीं डाल पाएंगे।” भला इससे बड़ा दोगलापन और क्या हो पाएगा।
दरअसल अमरीका को यह विश्वास था कि आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रूसी नागरिकों पर जो परेशानियां लद जाएंगी। हालात से परेशान लोग पूतिन के विरोध में खड़े हो जाएंगे और पूतिन अपनी गद्दी बचा नहीं पाएंगे। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि अमरीकी लोग अपने राष्ट्रपति से नाराज़ हैं कि रूस पर प्रतिबंध क्यों लगाये जा रहे हैं।
अमरीका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री दलीप सिंह ने अपनी भारत यात्रा के दौरान एक पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं करेगा कि अगर चीन LAC का उल्लंघन करता है तो रूस भारत की मदद के लिए दौड़ता हुआ आएगा। दलीप ने कहा कि भारत की रूस से ऊर्जा खरीदी फिलहाल अमेरिकी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं है, लेकिन हम चाहते हैं कि भारत रूस पर अपनी निर्भरता कम करे।
उधर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर हुए रूसी हमले के बाद रूस के विदेश मंत्री लावरोव की यह तीसरी विदेश यात्रा है। इससे पहले वे ​​​​​​अपने यूक्रेनी विदेश मंत्री से बातचीत करने के लिए तुर्की और चीन जा चुके हैं।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी कहा है कि अगर भारत चाहे तो मॉस्को कच्चे तेल की सप्लाई के लिए तैयार है… लावरोव ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मीटिंग के बाद ये बात कही…
सर्गेई लावरोव ने ये भी कहा कि रूस और भारत के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं. भारत-रूस के बीच इस हाईलेवल मीटिंग के पहले से ही इस तरह के संकेत मिल रहे थे कि भारत डिस्काउंटेड रेट पर रूस से तेल खरीदने वाला है और दोनों देश द्विपक्षीय व्यापार के लिए इच्छुक हैं. इस मुद्दे पर लावरोव ने कहा, अगर भारत रूस से कुछ भी खरीदना चाहता है, तो हम चर्चा के लिए तैयार हैं।
भारत के लिये अमरीका और रूस के बीच संबंधों का संतुलन बनाए रखना बहुत आसान नहीं होगा। मगर भारतीय नेताओं को अपनी परिपक्वता का परिचय देना होगा और जैसा कि यूक्रेन और रूस के विदेश मंत्रियों का कहना है, भारत को ही इन कठिन हालात में शांति स्थापना में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाना होगा। हो सकता है कि विश्व में अपना रुतबा और क़द बढ़ाने का यही मौक़ा है। यदि युद्ध विराम हो जाता है तो विश्व में भारत की स्थिति और मज़बूत हो जाएगी। रूस को इज्ज़त से इस युद्ध से निकलने का मौका मिल जाएगा और यूक्रेन में तबाही पर रोक लग पाएगी। विश्व को तीसरे विश्व युद्ध से बचाने की ज़िम्मेदारी अब लगता है कि भारत कि कंधों पर आ खड़ी हुई है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

22 टिप्पणी

  1. विश्व युद्ध के इस अघोषित युद्ध के बीच संसार के सभी देश किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं। एशिया या अन्य महाद्वीपों के बीच भारत की ऐसी सशक्त स्थिति पहले कभी नहीं रही। इस संदर्भ में ये संपादकीय न केवल ग़ौरतलब है बल्कि अमेरिका की इस युद्ध के बीच चलती राजनीति और पक्षपाती पर सटीक विवेचना भी हुई है। ‘चैरिटी बिगेन्स एट होम’ के साथ की गई बात को देखा जाए या अमेरिका सहित उसके साथ के अन्य देशों के समय-समय पर आए वक्तव्य को देखा जाए, कमोबेश सभी वक्तव्य एकतरफा रहे हैं। जैसे उन्हें युद्ध विराम की अपेक्षा अपने हितों की चिंता अधिक हो।
    बहरहाल युद्ध में विभिन्न देशों और भारत की भूमिका पर विवेचना करता यह संपादकीय एक आईना है जिसका प्रतिबिंम्ब सहज ही देखा जा सकता है। बेहतरीन संपादकीय के लिए साधुवाद तेजेन्द्र सर।

    • भाई विरेन्द्र वीर जी आप निरंतर पुरवाई के संपादकीय पर सकारात्मक टिप्पणी करते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद।

  2. हम जैसे ‘लेमैन’ तो घूमते ही रह जाएंगे।
    आपके स्पष्ट,प्रबुद्ध संपादकीय के लिए अभिनंदन !

  3. Congratulations,Tejendra ji,for enumerating the advantages that India gains,as a country,as it plays a diplomatic card relating to the Russia- Ukraine conflict.
    Diplomacy has been brought into the picture,making the proverb CHARITY BEGINS AT HOME,bear political significance.
    Regards
    Deepak Sharma

  4. भारत, अमेरिका, रूस और चीन के पारस्परिक सम्बंधों को विस्तार से बताते हुए एक और सुविचारित संपादकीय के लिए आभार और बधाई।भारत का महत्व और विश्वसनीयता विश्व पटल पर उजागर हुई है, प्रसन्नता का विषय है। दो की लड़ाई में तीसरे का नुक़सान क्यों हो, भारत रूस से अपने व्यापारिक संबंधों को अमेरिका के कहने पर क्यों तोड़ेगा, जबकि अमेरिका की छवि यही है कि कि वह किसी का सगा नहीं। शान्तिवार्ता में भारत के महत्व को कोई नकार नहीं सकता। युद्ध लंबा खिंच रहा है, ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी देशों को सद्बुद्धि दे और इसका अन्त शीघ्र हो.

    • शैली जी आपने संपादकीय पर गंभीर और सार्थक टिप्पणी की है। आप ही की तरह हम सब चाहते हैं कि युद्ध और लंबा न खिंचे, बस जल्द से जल्द समाप्त हो जाए।

  5. का आरंभिक विश्लेषण और कहावत “चैरिटी बिगिन्स एट होम” इसमें सारे आशय स्पष्ट होते हैं।
    भारत सरकार ने तेल के खेल और प्रतिबन्धों की प्रतियोगिता को मौन रहते हुए सोचा विचारा है, पश्चिमी ताकतों के पक्षपात की सजा भारत क्यों भोगे, एक तरफ पाक की ज़मी पर फैलता आतंकवाद, दूसरी ओर चीन काविस्तारवाद और अमेरिका की ताजा हक़ीक़त कि उसने अफगानिस्तान को बीच मंझधार में छोड़ा और अब यूक्रेन को
    ऐसी स्थिति में भारत राष्ट्र की सुरक्षा, गौरव और आत्मनिर्भरता का चिंतन रख रहा है, वर्तमान सरकार अपने हितों का त्याग करे बगैर गुटनिरपेक्षता के उसूलों का पालन कर रही है।
    अच्छी सूझबूझ स्वाभिमान, गम्भीर कूटनीति के चलते आज का भारत महाशक्तियों के मध्य समझौता कराने की स्थिति में इसलिए है कि वह निर्विवाद हैऔर तृतीय विश्वयुद्ध को
    रोक पाने में समक्ष होता नज़र आ रहा है ।
    अन्तराष्ट्रीय राजनैतिक विचारों से पूर्ण संपादकीय पढ़कर अपने देश को आपकी नज़र से देख लिया।
    साधुवाद
    डॉ प्रभा मिश्रा
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी तबीयत नासाज़ होने के बावजूद आपने संपादकीय को पढ़ने और टिप्पणी करने के लिये समय निकाला। बहुत बहुत शुक्रिया।

  6. भारत की संभावित भूमिका को ले कर यह सामयिक और सारगर्भित टिप्पणी है।

  7. संपादक महोदय ! नमस्कार
    आपने अपने संपादकीय में रूस यूक्रेन युद्ध के संबंध में सुचिंतित टिप्पणी की है। मानवता के समक्ष उत्पन्न हुए संकट में राजनीति/रणनीति/कूटनीति क्या करेगी। अमरीका खेल रहा है, उसकी खेलने की प्रवृत्ति है। हथियारों का ज़खीरा बनाने और बेचने वाले मुदित होंगे। रूस के मुखिया पुतिन अपनी शक्ति का अहसास यूक्रेन को करा रहे हैं। यूक्रेन निवासी बहुत बहादुरी से अदूरदर्शी जेलेन्स्की के नेतृत्व में अपनी अस्मिता और राष्ट्रीयता के लिए लड़ रहे हैं। ये सारी बातें अपनी जगह हैं।
    हम साहित्य से जुड़े लोग असंख्य निरपराधों के बेघर होने, मारे जाने, वियोग-विछोह से पैदा होने वाली असह्य पीड़ा से मर्माहत हैं। यह युद्ध की आग शांति के जल से कैसे शीतल होगी। काश ! भारत शांति के लिए किसी पहल या मध्यस्थता में कामयाब होकर गौरव प्राप्त करे और तबाही रुके।
    आदमी ने तबाही के इतने सरंजाम कर लिए हैं। हिंसा के इतने रास्ते बना लिए हैं कि प्रेम, सद्भाव और मानवीयता के लिए स्पेस कम होता गया है।
    बच्चों की दंतुरित मुस्कान, प्रकृति का अजस्र आनंद राग, रमणी की मोहक छवि, कविता/गीत, कहानियां, संगीत और कलाएँ एक ओर हैं, जो किसी भी तरह की हिंसा का प्रतिकार करती हैं।
    दूसरी ओर है – अपरिमित लालच, वासना, नफ़रत, हिंसा, कराह-चीत्कार, रुदन, विलाप, सिसकियाँ, हत्या, आत्महत्या, प्रतिशोध
    यह धरती प्रेम के महाराग से कब रंजित होगी ? लोग कब सुखी और सानंद होंगे ? यह जलता सवाल चिढ़ा रहा है।

  8. युद्ध को लेकर भारत की स्थिति को देखते हुए ब्रिटेन में मीडिया ने यह मुद्दा भी उठाया कि भारत को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद की जाय। मुझे लगता है कि विश्व भ्रमण कर के मोदी जी ने जितना अनुभव जुटाया है उन्हें यह निर्णय लेना ज़रा आसान हो जाएगा कि आगे क्या करना है। भारत के दो ताकतवर दोस्तों में भारत का ज़्यादा वफ़ादार दोस्त कौन है यह सारा विश्व जानता है।

  9. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना …..
    …… (भारत )
    दो जासूस करें महसूस कि दुनियाँ बड़ी ख़राब है
    कौन है सच्चा कौन है झूठा यहाँ हर चेहरे पे नक़ाब है ……
    ……. ( अमरीका और नाटो )

  10. यह सम्पादकीय रूस- यूक्रेन युद्ध
    के सन्दर्भ में भारत की भूमिका का महत्त्व रूपांतरित कर रहा है।
    अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कूटनीतिक दाँवपेंच पर आपकी पैनी दृष्टि की पकड़ अति सराहनीय है। आदरणीय तेजेन्द्र जी ! हृदय से साधुवाद स्वीकारें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.