20 फरवरी, 2022 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय ‘छुप गया कोई रे, टैंकरों से डर कर’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं

Sarjeet
He is an immature and untrained PM. He doesn’t know the diplomacy. Now he has gone in hibernation to scare from tractors protest.
रमा नलदीप्ति
Tejinder Sharma ji, पूरा लेख पढ़ा… पसंद आया आपका यूं खुल कर स्पष्ट बोलना और आइना दिखा देना। Hypocrete लोगों को जिनके मूल्य औरों के लिए कुछ अलग हैं। लेख कि सबसे मज़ेदार बात कि… 😃 ” छुप गया कोई रे.. टैंकरों के डर से.. ” हा हा हा… Great.. तेजेन्द्र 🎖️
दिलीप कुमार सिंह
“लगेगी आग तो आएंगे तमाम लोग जद में / यहाँ हमारा ही मकान थोड़े ही ना है”।
भारत के तथाकथित किसान आंदोलन के समय इस शेर के जरिये बहुत चरस बोया जाता था, किसी देश में अशांति होना खुशी की बात नहीं , लेकिन टूडो साहब इस अशांति को लेकर पत्नी सहित घर छोड़ कर भाग गए। और तीन तलाक पर भारत को ज्ञान देने वाले इमरान खान की तीसरी शरीके हयात भी उन्हें छोड़ कर अज्ञात स्थान पर चली गयी हैं जबकि इमरान चीन गए थे। उम्मीद है ये दोनों पीएम अपना-अपना देश और घर-परिवार संभालेंगे 😊
विरेन्द्र वीर मेहता
बहुत सुंदर और सटीक संपादकीय। दूसरे के घर पर होने वाली किसी समस्या पर बिन मांगे सलाह देने वाले अपने घर में समान स्थिति पैदा होने पर किस तरह बौखला जाते हैं, इसका यह एक जीवंत उदाहरण है। आपने इस मुद्दे पर खुलकर संपादकीय प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसके लिए हार्दिक सादुवाद स्वीकार करें तेजेन्द्र सर। 💐
सरोजिनी पांडेय
श्रीमान ट्रूडो जैसे महानुभावों के लिए हमारी भाषा हिंदी में कई मुहावरे बहुत अच्छे हैं जैसे-
“हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और” “मन ना रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा”
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”
जिसके के पैर न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई”
बांझ का जाने प्रसव की पीड़ा”
“आटे दाल का भाव पता लगना “आदि आदि
और भी अनेक होंगे, इस समय तो यही याद आए। बढ़िया आइना दिखाया है आपने👍🏻👍🏻👍🏻
शन्नो अग्रवाल, लंदन
जस्टिन ट्रूडो की सही तस्वीर खींची आपने, तेजेन्द्र जी।
‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाली कहावत फिट बैठती है इन पर।
ट्रूडो जैसे लोग ही पाखंडी कहे जाते हैं। किसी के दर्द का मखौल उड़ाना या संवेदनहीन होना ऐसे लोगों की फितरत होती है। लेकिन एक दिन जब खुद को कांटा चुभता है तब दर्द से तिलमिला उठते हैं। लोगों के समर्थन के लिये इधर-उधर ताकते हैं। ऐसे में लोग जख्मों पर नमक डालेंगे या सहानुभूति दिखायेंगे? इसका जबाब हर कोई दे सकता है। अब औरों की बारी होती है तमाशा देखने की। ऐसे लोगों के लिये यही कहना पड़ता है कि: ‘जैसी करनी वैसी भरनी’।
ऊपर से जनाब की ऐंठन देखिये कि ‘ट्रक ड्राइवरों की पोजिशन का कोई महत्व नहीं होता।’ अरे भइया, कुछ तो जुबान पर लगाम होनी चाहिये।
खैर….
कोई सूप तो, कोई छलनी
जैसी करनी, वैसी भरनी।
डॉक्टर तब्बसुम जहॉं
आदाब सर🌹 बहुत ही सार्थक लेख। इस विषय पर तो इतना ही कहना चाहेंगे कनाडा के पी एम के लिए कि जिनके घर खुद शीशे के हों उन्हें दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। टीका टिप्पणी वाला कंकर भी नहीं!
राजवंत राज
अत्यंत सारगर्भित व सामयिक संपादकीय ।किसी भी देश की सरकार हो उसे विदेश नीति के अनुरूप ही व्यवहार करना चाहिए वरना उदाहरण सामने है।
शैली त्रिपाठी
जो जैसा करेगा वैसा भरेगा, दूसरे का बच्चा कुँए में गिरता है तो लोगों को ‘डबाक’ की आवाज़ ही सुनायी देती है, दुःख अपने का होता है, भारत को ये विदेशी अपनी बपौती समझाते हैं, हर समय सलाह देते रहते हैं। समझ उनकी भी वैसे ही खुलेगी जैसे आतंकवाद के प्रति अमेरिका की ट्विन टावर हमले के बाद खुली थी।आपने रोचक ढंग से गम्भीर समस्याओं को उठाया है, ये आपका style है, जो प्रशंसनीय है।

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