मुफलिसों की आवाज कौन सुनता है यहाँ।

हर कोई मतलबपरस्ती में जीता है यहाँ।।

बादल फट जाए आफतों का भले ही यहाँ।

कौन आकर देखता है गरीब का झोंपडा यहाँ।।

आवास कागजों में भले ही हज़ारों बन रहे होंगे।

हकीकत में  तो सर ढँकने को नहीं है छत यहाँ।।

योजनाओं के भरोसे देश का गरीब जीता यहाँ।

किसी को अन्न  भी मुफ्त में नहीं मिलता यहाँ।।

सदियों से लड़ रहे  जो दो जून की रोटी के लिए ।

उनके रोजगार की फिक ्र कौन करता है यहाँ।।

फुटपाथ पर जिनकी पीढियां गुजर गई दोस्तों।

उन गरीब लोगों की सुध , कौन लेता है यहाँ।।

कोई अपने जमीर की आवाज सुनता क्यों नहीं।

जो देती है आदमी को सदा सच का साथ यहाँ।।

लालची मन ने न जाने कितनों के अरमान छीने हैं।

रूह की आवाज को “पुरोहित” कौन सुनता है यहाँ।।

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