1- एक समंदर, एक सहरा और एक जज़ीरा
गीली आँखों
और सूखी प्रार्थनाओं के बीच
एक समंदर
एक सहरा और एक जज़ीरा है
प्रार्थनाएँ तपते सहरा सी हैं
बरसों बरस
चुपचाप
तपती रेत पर चलते हुए
मुरादों के पाँव आबला हुए जाते हैं
और
फिर सब्र का छाला फूटता है,
रिसती है
हिज्र की एक नदी
और उमड़ता है आँखों से
एक सैलाब
सबकुछ डूबने लगता है
बची रहती हैं
दो आँखें
नहीं डूबतीं
किसी नदी,
किसी समंदर,
किसी दरिया में
वे तैरती रहती हैं शव की मानिंद
और आ पहुँचती हैं
उस जज़ीरे पर
जहाँ प्रेम है |
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2- देवता
मैंने
तुम्हारी मनुष्यता
से प्रेम किया,
और तुम
मुझे देव से लगने लगे
मेरे प्रेम ने की
तुम्हारी आराधना
और तुम
ख़ुद को देवता मानकर
आजमाने लगे
मुझ ही पर
सर्जना और विनाश के
नियम।
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3- मौन
तुमने
जब से
मेरा बोलना
बन्द किया है
देखो,
मेरा मौन
कितना चीख़ने लगा है
गूँजने लगी हैं
मेरी असहमतियां
और आहत हो रहा है
तुम्हारा दर्प।