मित्रो, ब्रिटेन में सोहन राही, प्राण शर्मा, गौतम सचदेव और नीना पॉल के निधन के बाद हिन्दी ग़ज़ल में जैसे एक ऐसा रिक्त स्थान पैदा हो गया था जिसे भर पाना आसान नहीं है। वैसे तो परवेज़ मुज़्ज़फ़र, अजय त्रिपाठी, कृष्ण कन्हैया ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल की रचना निरंतर कर ही रहे हैं, मगर हाल के वर्षों में आशुतोष कुमार ने ग़ज़ल पर क़लम चलानी शुरू की है। तो लीजिये पुरवाई आपके लिये लाई है उपरोक्त चार दिवंगत ग़ज़लकारों के साथ-साथ ग़ज़ल के नये हस्ताक्षर आशुतोष कुमार की एक ग़ज़ल।

1. सोहन राही
समन्‍दर पार करके अब परिन्‍दे घर नहीं आते।
अगर वापस भी आते हैं तो लेकर पर नहीं आते।
मिरी आँखों की दोनों खिड़कियाँ ख़ामोश रहती हैं
कि अब इन से सुख़न करने मिरे मंज़र नहीं आते।
मिरी चाहत ख़लाओं में धुआँ बन बन के उड़ती है
मगर इस ख़ाक के ज़र्रे मिरे दर पर नहीं आते।
सुनहरी धूप की चादर, वो पूरे चाँद की रातें
हम इनमें क़ैद रहते हैं, कभी बाहर नहीं आते।
मिरे आँगन की छतरी के कबूतर ख़ूब हैं, लेकिन
चले जाते हैं वापस, तो कभी मुड़कर नहीं आते।
तुम्‍हारे शहर के मौसम, हमारे शहर में ‘राही’
सुनहरी धूप की लेकर कभी चादर नहीं आते।

2. प्राण शर्मा
खु़शबुओं को मेरे घर में छोड़ जाना आपका।
कितना अच्‍छा लगता है हर रोज़ आना आपका।
जब से जाना काम है मुझको बनाना आपका।
चल न पाया कोई भी तब से बहाना आपका।
आते भी हैं आप तो बस मुँह दिखाने के लिए
कब तलक यूँ ही चलेगा दिल दुखाना आपका।
क्‍यों न भाये हर किसी को मुस्‍कराहट आपकी
एक बच्‍चे की तरह है मुस्‍कराना आपका।
क्‍यों न लाता महँगे-महँगे तोहफे मैं परदेस से
वर्ना पड़ता देखना फिर मुँह फुलाना आपका।
मान लेता हूँ चलो मैं बात हर एक आपकी
कुछ अजब सा लगता है सौगंध खाना आपका।
बरसों ही हमने बिताये हैं दो यारों की तरह
“प्राण” मुमकिन ही नहीं मुझको भुलाना आपका।
3. गौतम सचदेव
अँधेरे बहुत हैं तभी हैं उजाले
बुझा दीप समझे न देखे न भाले
यहाँ कब अँधेरा मिटे कौन जाने
चलो कुछ बचा लें दिलों के उजाले
चमन आज़माइश करे मौसमों की
मगर और काँटों पे दिल न उछाले
छिपाया जिसे आप दिल ने नज़र से
निकलते नहीं आँसुओं के निकाले
किसी के लिए फूल बन जाएँ कांटे
किसी के लिए फूल बन जाएँ छाले
कहीं रेशमी ख्वाब सचमुच सजे हैं
कहीं रोज़ फाके व ग़म के निवाले
कहो मत नहीं जायका ज़िन्दगी में
मुहब्बत के अब भी बचे हैं मसाले
मुलाक़ात जब भी हुई यह हुआ है
कभी हम संभालें कभी वह संभाले
सूना है कि ‘गौतम’ ने मुँह सी लिया है
करेगा न अब और हीले-हवाले
4. नीना पॉल
सागर मेरे जज्‍़बात का छलका गया कोई।
पल में वफ़ाओं की सज़ा सुना गया कोई।
जब उनसे किया जि़क्र उनकी जफ़ाओं का
हौले से मुस्‍कुरा के तड़पा गया कोई।
ना रुक सकीं जो आँधियाँ ना बाज़ बिजलियाँ
तंग आके खु़द ही आशियाँ जला गया कोई।
आया था इक मुक़ाम यूँ उल्‍फ़त की राह में
हम चुप वो ख़ामोश संग रुला गया कोई।
जब जीस्‍त के अंधेरों से घबरा गई नीना
बन कर चराग़ राहों को सजा गया कोई
5. आशुतोष कुमार
आबाद रहे चाहत वो काम किया मैंने
सब छोड़ तुझी में बस आराम किया मैंने।
हर ओर मुहब्बत हो बस इश्क़ किया जाए
इक ख़्वाब यही यारों के नाम किया मैंने।
जब डूब के पैमाने में प्यास न बुझ पाई
ले नाम तेरे अश्कों का जाम पिया मैंने।
यूँ था तो असर तेरी ही मस्त निगाहों का,
बस जाम को तो यूँ ही बदनाम किया मैंने।
तैयार हारे को इक ताक में थी बैठी,
हर दाँव लकीरों का नाकाम किया मैंने।
आसान नहीं पाना परवाज़ फ़कीरों सी,
किस्मत का दिया सब कुछ नीलाम किया मैंने।

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