उषा साहू, यूके
24 जनवरी की पुरवाई में प्रकाशित, डॉक्टर तारा सिंह अंशुल की कहानी “महिला बैरक” पढी । दिल को हिला कर रख गई । महिला सचमुच सिर्फ एक महिला ही है । उसे हर कदम पर हलाहल पीना ही है । डॉ तारा सिंह अंशुल की ये कहानी, महिलाओं के ओत- प्रोत घूमती रही और सच्ची पीड़ा से साक्षात्कार करा गई ।
निधि, अपने काम को समर्पित महिला है । लेकिन पति महोदय विचारों में समन्वय नहीं करते हैं । उत्पीड़न, बलात्कार आदि के लिए वे महिलाओं को ही दोषी ठहराते हैं । ये भी एक पीड़ा ही है ।
महिला अनाथालय को देखो, लड़कियों को नोच खाने के लिए किसी भी अधिकारी के पास भेज दिया जाता है। पुरुष, नारी को सिर्फ भोग्या क्यों समझता है । आखिर क्या हो गया है मर्दों को ?
अब बात आती है जेल की । जेल तो फिर जेल फिर जेल ही है । अनेक प्रकार की असुविधाओं के बीच जिंदगी कट रही है । कुछ महिलाएं बहू को दहेज के लिए मारने के जुर्म में, जेल में पहुंची है । मतलब महिलाओं द्वारा महिला का उत्पीड़न ।
महिलाओं में एक महिला कैदी है प्रमिला। जिसने अपने से छोटी जाति के लड़के से प्रेम किया था। तथाकथित परिवार और समाज की मेहरबानी ने उन्हें जेल पहुंचा दिया ।
महिला कितने भी अत्याचार सहन कर लेती है, क्योंकि वह धीर और गंभीर है । परंतु उसी की बच्ची केअस्मिता को बाप हाथ लगाए, कन्या जो कि देवी की तरह पूजनीय है,ये तो वह सहन नही कर सकेगी न । इस पाप की सजा हत्या से भी भयंकर होना चाहिए । उस महिला का क्या दोष। वह नर नहीं नराधम था ।
फिर भी जेल में थोड़ी सी हंसी खुशी लड़कियों की वजह से है । उन्होंने ने ही जेल में खुशहाली बनाए रखी है।
चलो मन को समझाने के लिए झूठी तसल्ली ही सही है ।