29 जनवरी, 2023 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय ‘आस्था, अंध-विश्वास और तर्क’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त टिप्पणियां

डॉ सच्चिदानंद
यह भी सत्य है कि ऐसी “विरुद्धों के सामंजस्य” जैसी साहसिक बातें भारत में ही घटित हो सकती हैं इसलिए इनके साइड इफेक्ट का हल की उम्मीद भी भारत के भीतर से ही की जा सकती है।
इसका दूसरा विकल्प अगर कोई है तो वह इसाई नास्तिक। मुस्लिम या इस्लामिक देशों में इस तरह के तर्क, चुनौती और साहसिक शास्त्रार्थ की उम्मीद अभी सदियों तक के भविष्य में शून्य से ज्यादा नही दिखती।
आपकी पत्रकारिता सराहनीय कार्य कर रही है।आप तो इंग्लैंड के परिवेश को अपनी आँखो से देख रहे होंगे। आपकी दृष्टि तो सातसमुंदर पार के देश से हमारे जैसे व्यक्ति से अधिक पारगामी सत्य को देख रही होगी। झाड़ फूँक और अस्थायी चमत्कारों का रहस्य तो ईसाइयों के बीच किस तरह है!आपसे छुपा न होगा।
परन्तु जनता और जनतंत्र का लोकप्रिय मुहावरा है –“पहले आत्मा फिर पीछे परमात्मा” । इसलिए परमात्मा के प्रतिनिधि पीछे रहें ,अभी आत्मा‌ के समर्थकों की बारी है। यह इस समय का सत्य है।
डॉक्टर नीलम वर्मा
बहुत अच्छा विषय तेजेन्द्र जी !
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1977 मे Carl Sagan के novel CONTACT में इसी दुविधा का दोनों पक्षों के prototypes से विश्लेषण किया गया था। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की लड़की और धार्मिक Faith के लड़के को यही प्रश्न विचलित करते रहते हैं … सुबह सूर्योदय होगा – यह वैज्ञानिक सिद्धांत भी है और जो विज्ञान नहीं जानता उसका विश्वास भी है … कोई चाहे तो यह उसका अंधविश्वास भी मान सकता है । movie में दोनों के बीच यह बहस ( तर्क वितर्क) बड़े रोचक ढंग से चलता है । मज़ा तब आता है जब लड़की को एक सनकी astro physicist Time Spaceship में भेजता है …उसके experience को कोई वैज्ञानिक स्वीकार नहीं करता , सिवाए उसके FAITH को सत्य मानने वाले मित्र के !!!
वास्तव में विज्ञान का पहला और अंतिम लक्ष्य है – सत्य की खोज और उसके लिए ठोस प्रमाण जिन्हें वैज्ञानिक मापदंडों पर सिद्ध किया जा सके !
पर मनुष्य का मन भ्रामक है । यदि वह ना चाहे तो कोई उसे hypnotise या चमत्कृत नहीं कर
सकता…. और यदि उसकी इच्छा हो जाए ( यहीं विश्वास में अंधविश्वास का मिश्रण आरम्भ हो जाता है ) तो Hypnotist या Illusionist उसे कुछ भी दिखा सकता है या उससे कुछ भी करवा सकता है।
Hypnotism को Mass Hypnotism के level तक ले जा कर Magician उसे Magic Show कह कर दिखाते है और धार्मिक तांत्रिक किसी सिद्धि के रूप में । गीता में इसका पूरी तरह खंडन किया गया है ।
पर यहां एक Catch है – ऐसा करने वाले की मंशा क्या है ? यदि उसका मन विषय वासनाओ से मुक्त नहीं तो यह ऐसा प्रदर्शन करना ढोंग या पाखंड कहा है । जबकि श्री कृष्ण ने स्वयं गीता में ही अपने विराट रूप का अर्जुन को दिव्य नेत्रों द्वारा दर्शन करवाया …वह चमत्कार धर्म संगत इसलिए है क्योंकि श्री कृष्ण अपनी किसी स्वार्थ वासना को पूर्ण नहीं करना चाहते थे… उनका लक्ष्य मानव कल्याण के लिए उस समय के धर्म के नाम पर प्रचलित अधर्म का अंत करना था । पर यह तर्क भी वही स्वीकार करते हैं जिनकी कृष्ण के प्रति आस्था है अन्यथा गीता को विनाश का कारण बताने वाले भी बहुत हैं ।
शायद भाव प्रवाह में कुछ अधिक ही लिख गई….
पर तर्क या शास्त्रार्थ केवल भ्रम ही उपजाएंगे … इसलिए जो जिसे मानता है , मानने दीजिए ….क्योकि वह किसी अन्य को उसकी इच्छा के विरुद्ध बाध्य कर ही नहीं सकता । बल दिखा कर अथवा प्रलोभन देकर ऐसा कुछ करवाना अनुचित है और शासन नियमों के अनुसार उसका प्रतिकार आवश्यक है।
Social media पर सभी धर्मों के ऐसे Sponsored गुरु आते जाते रहेंगे … वरना Social Media का दाना पानी कैसा चलेगा ? 🙏🙏🙏🙏
डॉक्टर रुचिरा ढींगरा
प्रणाम सर
आस्था होना अच्छा है पर यही बढ़ कर अंधविश्वास हो जाती है। वहां तर्क भी खत्म हो जाते हैं। लोग हमारी मानसिकता से खेलने लगते हैं। ये व्यक्ति यही कर रहा है।🙏आपका संपादकीय हमेशा की तरह विचारणीय है 🙏
डॉक्टर सुधा आदेश
तेजेन्द्र जी, आज का आपका संपादकीय देश में चर्चा का विषय बने मुद्दे का सटीक विश्लेषण कर रहा है। दरअसल भक्ति,आस्था और विश्वास व्यक्ति के अंतर्निहित भाव हैं जबकि अंधश्रद्धा तथा अंधविश्वास उसकी बुराइयाँ। आस्था और विश्वास व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं जबकि अंधआस्था, अंधविश्वास उसके आत्मविश्वास को डिगाता है अतः हमें यथासंभव इनसे दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। आज व्यक्ति को किसी बात को मानने से पूर्ण उसका तार्किक विश्लेषण करना चाहिए, यही समय की मांग है और उचित भी है।
शन्नो अग्रवाल, लन्दन
बाबा धीरेंद्र शास्त्री के बारे में बहुत कुछ सुनने में आ रहा है। उनके चमत्कारों के बारे में इन दिनों बड़ा वाद-विवाद चल रहा है।
गजब का आत्मविश्वास है उनमें। तमाम सारी चुनौतियों का सामना करते हुये इस समय वह जोशीमठ के दरकते पहाड़ों की दरारों को भरने की चुनौती लेते हुये वह जोशीमठ में हैं (ऐसा पढ़ा है कहीं)।
जिनके जीवन में चमत्कार किये होंगे उनका क्या अनुभव है यह वही लोग जानते होंगें। क्या सच है और क्या झूठ इसका फैसला कैसे हो?
मीरा गौतम
यह जागरूक करता और प्रश्न उठाता संपादकीय है.संत रैदास और कबीर के चमत्कारों पर समाज बात करता है.उनकी सीख हम कुछ पढ़े-अनपढ़ ही बहस किया करते हैं.बंगाल का काला जादू और आदिम समाज के टोटके बरक़रार हैं. बाबा धीरेन्द्र तो अभी-अभी पटल पर आए हैं.
समय इनके बारे में बताएगा. अभी जल्दी है. हाँ इन बाबाओं ने राजनेताओं की चाँदी कटवा है. स्टीफ़न हॉकिन्स की ओजोन परत की थ्यौरी पढ़ी है मैंने. अब जहाँ भारी संख्या जो कहती है तब जिसकी लाठी उसकी भैंस की बात सामने आती है. वोट की राजनीति और साईलैंट वोटर यहीं हैं. आप आकलन करें कि इस ताज़ा बाबे के पीछे भी राजनीति ही मिलेगी. बाबाओं को तो बहनजियाँ खड़ा कर रही हैं.पुरुष भी साथ हैं.
प्रो. शशि तिवारी, आगरा
आपका सम्पादकीय असम्पृक्त व निस्पृह राजनीति का ज्वलंत उदाहरण है। काश, हमारे नेता भी इससे कुछ सबक़ लें। आदरणीय ! आपने शैलेन्द्र के गीत में निहित भारतीय दर्शन का उल्लेख सटीक रूप में किया है। जेसिंडा आर्डर्न के त्याग व ईमानदारी की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।

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