मेरा अपना मानना है कि प्रतिबंध लगाना एक तानाशाही रवैया है। यदि सलमान रश्दी की पुस्तक ‘दि सैटेनिक वर्सिज़’ पर विवाद न उठता तो उसकी पचास हज़ार प्रतियां भी नहीं बिकतीं और न ही उसका प्रचार होता। मगर प्रतिबंध और जुलूसों ने सलमान रश्दी को सदी का महान लेखक बना दिया और उसकी लगभग अपठनीय किताब को बेस्ट-सेलर।  
वैसे तो लंदन के जर्नल स्पेक्टेटर में 2 अगस्त 2022 को यह लेख प्रकाशित हो गया था, जिसका शीर्षक था – “बीबीसी अभी भी प्रतिबंधित कंपनी हुआवी से पैसा ले रही है” – मगर इसकी चर्चा शुरू हुई भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध 2002 के गुजरात दंगों पर दो खण्डों में प्रसारित डॉक्युमेंट्री के बाद ही। 
स्पेकटेटर में प्रकाशित इस लेख के अनुसार चीन की हुआवी कम्पनी पर वर्ष 2019 में अमरीका में प्रतिबंध लगा दिया गया था और ब्रिटेन ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हे 5-जी के सिलसिले में इस कंपनी को प्रतिबंधित कर दिया था। 
मगर बी.बी.सी. सीना ठोक कर अपनी ऑनलाइन वैबसाइट bbc.com पर हुआवी कंपनी के विज्ञापनों का प्रदर्शन करती रही है। विज्ञापन में डींग मारी जाती है कि, “शिक्षा के नये आयामः हम शिक्षा के अंतर को कैसे पाट सकते हैं और तीव्र बुद्धि वाले युवाओं को कैसे उज्जवल डिजिटल भविष्य प्रदान कर सकते हैं?” विज्ञापन इस बारे में भी कहने से नहीं चूकता कि हुवाई कंपनी यूनेस्को के साथ मिल कर डिजिटल गैप को भरने का प्रयास कर रही है। 
ऐसा नहीं है कि बी.बी.सी. के तमाम कर्मचारी अपनी कंपनी के इस रवैये से ख़ुश हैं। स्पेकटेटर से बातचीत के दौरान एक कर्मचारी ने अपना नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर बताया कि, “हमें इस बात से बहुत धक्का लगा कि हमारी अपनी कंपनी चीन से पैसा ले रही है जबकि हमने ही चीन में वीगर समुदाय के मुसलमानों के हालात पर स्टोरी करते हुए हालात का अनावरण किया था।”
अब सवाल यह उठता है कि बी.बी.सी. ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध ऐसा डॉक्युमेंटरी क्यों बनाई जिसमें कुछ भी नया नहीं है। जवाब बहुत सीधा सा है। बी.बी.सी. के पास फ़ंडिंग की बहुत कमी है। ऊपर से दावा किया जा रहा है कि बी.बी.सी. ने अपने 47,000 कर्मचारियों के पेंशन फ़ंड का एक बड़ा हिस्सा चीन की कंपनियों में निवेश कर दिया है। 
भूतपूर्व वरिष्ठ वकील एवं राजनेता राम जेठमलानी के पुत्र एवं आजके सुप्रीम कोर्ट के वकील एवं राज्यसभा के सदस्य महेश जेठमलानी ने बीबीसी की नीयत पर तीखे सवाल उठाए हैं। अपनी ट्वीट में उन्होंने लिखा है, आख़िर क्यों बीबीसी भारत के इस हद तक विरुद्ध है। कारण एक ही है कि उसे पैसे चाहियें जो कि उसे चीनी सरकार से जुड़ी कंपनी हुआवी से मिल रहे हैं। और बीबीसी अपने मालिक का एजेण्डा अपने चैनल पर चला रही है।
वैसे ध्यान दिया जाए तो भारत की हर सरकार का मानना रहा है कि बी.बी.सी भारत विरोधी है। सन 1975 में कांग्रेस के करीब 45 सांसदों ने बी.बी.सी. पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। मगर आज कांग्रेस उसी बी.बी.सी. की डॉक्युमेन्टरी का सहारा लेकर नरेन्द्र मोदी को लटकाना चाहती है। 
इस विषय में बीबीसी उर्दू सेवा के सेवानिवृत्त पत्रकार परवेज़ आलम का कहना है कि बी.बी.सी. भारत के विरुद्ध न होकर समय-समय की सरकारों के विरुद्ध खड़ी दिखाई देती है। 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी तो बी.बी.सी. कांग्रेस सरकार की आलोचना कर रही थी। 
मज़ेदार बात यह है कि उस समय के जनसंघ के नेता लालकृष्ण अडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी आदि बी.बी.सी. का हवाला दिया करते थे। उन्हीं की तर्ज़ पर आज कांग्रेस के नेता बी.बी.सी. के सुर में सुर मिला रहे हैं। 
वैसे इससे पहले भी बीबीसी ने 2021 में बिना जम्मू-कश्मीर के भारत का नक्शा जारी किया था। बाद में उसने इसके लिए माफी मांगी थी। साथ ही नक्शे को सही भी किया था। बीबीसी का भारत के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने का लंबा इतिहास रहा है। पीएम मोदी के खिलाफ डॉक्यूमेंट्री का उद्देश्य शायद इसी दुर्भावना को आगे बढ़ाना हो सकता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तो चुप रहने का सबसे करारा अनुभव है। वे 2002 से केवल कानूनी लड़ाई लड़ते रहे और भारत के प्रति निष्ठा बनाए हुए देशहित के काम करते रहे। हो सकता है कि उन्हें मालूम ही न हो कि उनके सिपहसालारों ने बी.बी.सी. के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया है। सिपहसालार अपने आक़ा को ख़ुश करने का प्रयास कर रहे होंगे। और जब एक बार प्रतिबंध लग गया तो हटाना आसान तो नहीं है। 
भारत के बहुत से विश्वविद्यालयों के छात्रों ने इसे देखने के लिए हंगामा किया। अब मोदी के ख़िलाफ बनी इस डॉक्यूमेंट्री के मामले में बी.बी.सी. ख़ुद सवालों के घेरे में है। ब्रिटेन में कई सांसद मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री का मुद्दा उठाकर बीबीसी पर हमलावर हो चुके हैं।
लॉर्ड रमी रेंजर ने तो पहले एक बहुत ही लंबा पत्र लिख कर बी.बी.सी. के चेयरमैन पर, संस्था के पत्रकारों एवं संपादकों पर बहुत से तीखे प्रश्न खड़े कर दिये थे। स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि उन पर नस्ली टिप्पणियां करने का आरोप लगने लगा। ब्रिटेन के प्रमुख समाचारपत्रों में उनकी आलोचना होने लगी। 
लॉर्ड रमी रेंजर ने अपने पत्र में बी.बी.सी. के अध्यक्ष को लिखा था कि क्या उनकी कॉर्पोरेशन में काम करने वाले पाकिस्तानी पत्रकार इस बेहूदा डॉक्युमेंटरी बनाने के पीछे हैं?” रमी रेंजर का मानना है कि यह फ़िल्म नरेन्द्र मोदी की बेइज्ज़ती करने के लिये बनाई गयी है। 
उनका दावा है कि इस फ़िल्म को बनाने का उद्देश्य भारत को नीचा दिखाना भी है। आज भारत जी-20 का अध्यक्ष है और इस वर्ष बहुत से अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन भारत में होना है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आक्रमण भारत की प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने में यह फ़िल्म कारगर सिद्ध होगी। फिर 2024 में राष्ट्रीय चुनाव भी होने जा रहे हैं। यानी कि फ़िल्म दिखाने का समय बहुत महत्वपूर्ण है।
ब्रिटेन का अपना राजनीतिक संसार है। लॉर्ड रमी रेंजर को ट्वीट करके पाकिस्तानी मुसलमानों से माफ़ी मांगनी पड़ी क्योंकि उनकी पार्टी को भी चुनाव जीतने के लिए मुसलमानों के वोट चाहियें। 
याद रहे कि 2002 में ब्रिटेन के गृह मंत्री (होम सेक्रेटरी) जैक स्ट्रॉ थे। उनके अपने चुनाव क्षेत्र में मुस्लिम बड़ी संख्या में रहते हैं। उन्होंने अतिरिक्त सक्रियता दिखाते हुए गुजरात दंगों पर बयान दिये थे। भारत के पूर्व डिप्लोमैट कंवल सिब्बल ने इस फ़िल्म के बारे में टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया कि उन्होंने इस फ़िल्म के कुछ अंश देखे हैं। ख़ास तौर पर जैक स्ट्रॉ और गुजरात गये ब्रिटेन के राजनायिक के हवाले वाले हिस्से। इस फ़िल्म की मंशा आग लगाने वाली है और भारत में सांप्रदायिक तनाव को भड़का कर हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों में नफ़रत पैदा करना इसका उद्देश्य है। यह फ़िल्म मोदी को कलंकित करती है।  इस मामले में अंग्रेज़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
ऐसी किसी भी फ़िल्म की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि विश्व में बड़े स्तर के नेता इस पर कितना विश्वास करते हैं।
ब्रिटेन की संसद में एक पाकिस्तानी मूल के सांसद इमरान हुसैन ने प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने इस मामले को उठाया। हुसैन ने कहा कि “मिस्टर स्पीकर, बीबीसी ने कल रात खुलासा किया कि वे (पी.एम. मोदी) इस हिंसा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थे। जिसमें अल्पसंख्यकों और मुसलमानों का कत्ले आम हुआ। इसमें सैंकड़ों लोग क्रूरता के साथ मारे गए और ब्रिटेन सहित दुनिया भर में आज भी उन्हें न्याय नहीं मिला है। क्या प्रधानमंत्री सुनक विदेश कार्यालय में अपने राजनायिकों से सहमत हैं कि मोदी सीधे तौर पर जिम्मेदार थे?” 
सांसद इमरान हुसैन की टिप्पणी के बाद ऋषि सुनक ने इस मुद्दे पर बेहद सख्त प्रतिक्रिया दी। स्पीकर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “इस मुद्दे पर यूके सरकार की स्थिति लंबे समय से स्पष्ट रही है, और इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। बेशक, हम कहीं भी उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करते हैं, लेकिन इन सज्जन ने जो कुछ कहा है मैं उससे बिल्कुल सहमत नहीं हूं।”
ठीक इसी तरह अमरीका और रूस ने भी इस फ़िल्म द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगाए गये आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए उनका खंडन किया है।
यदि हम ध्यान से देखते हैं तो पाते हैं कि इस फ़िल्म में कुछ भी नया नहीं है। जो कुछ वर्षों तक दोहराया जाता रहा है वही इस फ़िल्म में भी दोहराया गया है। और सबसे बड़ी बात है कि नरेन्द्र मोदी केन्द्र में कांग्रेस सरकार के ज़माने से अदालतों एवं आयोगों के सामने पेश होते रहे हैं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए उन्हें इन आरोपों से मुक्त किया है। 
वहीं, मेरा अपना मानना है कि प्रतिबंध लगाना एक तानाशाही रवैया है। यदि सलमान रश्दी की पुस्तक दि सैटेनिक वर्सिज़’ पर विवाद न उठता तो उसकी पचास हज़ार प्रतियां भी नहीं बिकतीं और न ही उसका प्रचार होता। मगर प्रतिबंध और जुलूसों ने सलमान रश्दी को सदी का महान लेखक बना दिया और उसकी लगभग अपठनीय किताब को बेस्ट-सेलर।  
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

41 टिप्पणी

  1. संतुलित और औचित्यपूर्ण आलेख।
    चीन आज एक अमानवीय संभावनाओं से भरा पूरा स्वार्थी और विस्तावादी देश है।जो कभी पाकिस्तान तो कभी भारत के अन्य पड़ोसी देशों को मोहरा बनाया है।बीबीसी सरीखी स्वायत्त संस्था अब अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है।ज्ञान का यह स्तंभ अब ढह गया है और इसकी बची खुची राख और साख अब शैतानों और paid news के आकाओं के हाथ में रेत की तरह विनाश के सागर में गिर रही है।
    संपादक महोदय को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

  2. बीबीसी सदा से भारत विरोधी रहा है। तेजेन्द्र जी मुझे लग रहा है आज कल किसी देश को बर्बाद करना हो तो हथियारों की जरूरत नहीं उसके सांस्कृतिक मूल्य को गिरा दो उसकी आर्थिक स्थिति तजोड फो देश बर्बाद हो जायेगा। ऐसा ही कुचक्र भारत के लिए रचा जा रहा है । हिडेन बर्ग की रिजॉर्ट अडानी से ज्यादा भारत सरकार को घेरे में लेती है । विश्वस्नीयता का खात्मा मतलब सरकार का खात्मा। देखते हैं सरकार कैसे इसे टैकल करती है क्यों कि आज विश्व की सबसे शक्तिशाली सरकार भारत की है।

  3. बीबीसी की छवि निष्पक्ष पत्रकारिता की कभी नहीं रही। अपने योग्य कर्मियों, पत्रकारों की बड़ी टीम, तकनीकी कौशल और मजेदार विश्लेषण तथा प्रस्तुति के कारण लोग इसे सुनते और पढ़ते रहे हैं।
    चीन की हुआवी कंपनी का प्रचार करते जाना, ख़ासकर ऐसे समय में, जब अमरीका, इंग्लैंड तक में उस पर प्रतिबंध लगाया गया, बीबीसी की ओर शक की सुई सही घूमती है।
    जहाँ तक फ़िल्म बनाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का छवि भंजन का प्रयास है, भारत में ही इसके पहले विपक्षी पार्टियाँ इतना ज्यादा कर चुकी हैं, पर नतीजा यह रहा है कि मोदी जी लगातार चमकते गए हैं। मतलब यह है कि यह मूवी भी प्रधानमंत्री को आगामी चुनाव में और अधिक जनाधार दिलाने में सहायक होगी। इस दृष्टिकोण से देखें तो बीबीसी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रचार में जुट गया है, भले उसका लक्ष्य यह नही है।
    छवि भंजन की राजनीति अब पुरानी पड़ चुकी है। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।

    • आपकी वाणी पर सरस्वती आये और मोदी जी को 2024 पहले दो चुनावों से अधिक जनमत मिल जाये, चीन अपनी करनी का फल धीरे-धीरे भुगत रहा है, अमरीका और ब्रिटेन अपने देश को सम्भालने में लड़खड़ाते हुए से लगते हैं। रूस युद्घ से पस्त है, ऐसे में भारत सर्वाधिक शक्तिशाली देश बन सकता है।

  4. Your Editorial of today very rightly points out how the BBC documentary insinuating the erstwhile Chief Minister of Gujarat n our present Prime Minister resposible for the past riots is totally mischievous and proves nothing.
    And has been funded exclusively by India ‘ s jealous neighbors.
    Holding no truth.
    Specially when our Supreme Court has also declared clearly in its judgment that Mr Modi had nothing to do with those riots and therein this documentary further loses its validity n authenticity.
    And fortunately the present British PM n other parliamentarians have also objected to its content.
    Regards
    Deepak Sharma

    • धृष्टता क्षमा योग्य नहीं है, लेकिन प्रश्न हर बार मन में उठता है, हिन्दी की पत्रिका, संपादकीय हिन्दी में, स्वयं आप सुप्रसिद्ध हिन्दी रचनाकार, फिर अनिवार्य रूप से टिप्पणी अंग्रेज़ी में???????

  5. सुस्पष्ट और तथ्य पूर्ण संपादकीय, बधाई
    बीबीसी की इस करतूत से यह बात समझ में आती है कि भारत के स्वतंत्र होने की पीड़ा अभी तक समाप्त नहीं हुई है। कांग्रेसी नेताओं के कारण अत्यल्प हानि के साथ ब्रितानियों को यह देश छोड़ने में सफलता मिली इसलिए उस पक्ष में इनकी वफ़ादारी होनी ही चाहिए।
    बीबीसी की यह डॉक्यूमेंट्री शायद कांग्रेसियों के प्रति उनका कृतज्ञता ज्ञापन हो।

  6. नमस्कार
    बेहद संजीदा बातें हैं ,सोचने के लिए
    भारत की प्रगतिशील सोच पर चारों तरफ़ से हमला । बस देश के नागरिक जागरूक रहें ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  7. मीडिया का आर्थिक सरोकार और अवसरवादी राजनीति उजागर करता संपादकीय

  8. आपका ये आलेख मौजूदा परिवेश में बहुत महत्त्वपूर्ण है। जब बी बी सी के हवाले से कोई भी खबर आती है तो तो पता नहीं क्यों देश की अधिकांश जनता उसे परम सत्य मान लेती है। ऐसी इल्स्थिति में आपका ये आलेख बहुत सी गुत्थियों को खोलने में मदद करेगा।

    • पल्लवी मेरा प्रयास रहता है कि संपादकीय के माध्यम से स्थिति को स्पष्ट कर सकूं।

  9. सच्चाई तो दिखाई गईं हे अब वो हलक से न उतरे तो अलग बात है
    आज कल मसला यह है की मोदिबजी को हिंदुस्तान समझ लिया गया है जब की वो भी हिंदुस्तान का एक हिस्सा हैं
    जब इंसान को देवता समझने लगो तो यही होता है
    मजहब के तूफ़ान में अच्छे अच्छे बुद्धिजीवी बह गए हैरानी की क्या बात है. Cataract is a biggest cause of blindness and other remaining two are politics and religion. Modi जी ने दोनों को मिक्स कर के उस का खूब फायदा उठाया और रिजल्ट हमारे सामने है की अच्छे अच्छे बुद्धिजीवी भी मोदी जी को हिन्दुस्तान समझ बैठे जैसा मोदी जी हिंदुस्तान में कर रहे है उस पर हमारे बहुत से हिंदुस्तानी दोस्त वाह वाह कर रहे हैं अगर यही बात ब्रिटेन की सरकार कनाडा या ऑस्ट्रेलिया की सरकार हम एशियन के साथ करने लगे तो हम फौरन नाराज़ हो जाएंगे गाली गलौच करने लगेंगे तब हमारा रवया और सोच दूसरी होगी…… ताजुब हे ताजुब

    • “हम एशियन के साथ करने लगे”… यानी कभी किया ही नहीं?
      आपकी दृष्टि में भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी भी अन्धे हो गये हैं… धर्मान्धता तो मात्र भारत में है? बाकी के देश अति उदारवादी हैं और उदारवाद के ऐतिहासिक साक्ष्य रहे हैं, बिल्कुल सही।
      क्रिया की प्रतिक्रिया वैज्ञानिक सत्य और तथ्य है।

  10. सच्चाई को उजागर करने वाला एक तथ्यपूर्ण व बेबाक संपादकीय। बहुत सी बातें सोचने को विवश करता है

  11. सलमान रुशदी की पुस्तक, चीन की हुवाई कम्पनी और बी. बी. सी. का सम्बन्ध उजागर करते हुए गुजरात दंगों पर डॉक्यूमेंटरी पर आपका आज का आलेख एक सारभौमिक सत्य को सिद्ध करता है कि जिस चीज का हम विरोध करेंगे वही लोग ज्यादा देखना या पढ़ना चाहेंगे।
    बी. बी. सी. को आज भी कुछ लोग सत्य का पुलिंदा मानते हैं। कुछ लोग तो बड़े गर्व से कहते हैं कि हम बी. बी. सी. और सी. एन. एन ही देखते हैं क्योंकि या सच दिखाते हैं।

    इसके साथ ही एक सत्य और है कि आज के लोग ऐसी डॉक्यूमेंटरी पर आँख मूंद कर विश्वास नहीं करेंगे। वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए उसकी मंशा जानने का भी अवश्य प्रयत्न करेंगे कि ज़ब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों पर नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है इतने वर्षो पश्चात् इस मुद्दे को उठाने का क्या औचित्य है ?
    वैसे भी कुछ लोगों, टी . वी. चैनलों का काम सत्य न परोसकर सिर्फ सनसनी फैलाना है। जाति धर्म से उठकर इस बात को देश के सभी नागरिकों को समझना होगा जिससे देश विकास के रास्ते पर बढ़ सके।

  12. BBC को केवल पैसों से वास्ता है और इसी के चलते आज वो एक भारत विरोधी चैनल के रूप में फल फूल रहा है, जिसे गलत तथ्यों की खादपानी कौन मुहैया करवा रहा है ये किसी से छुपा नहीं है। भारत विरोधी गैंग जिनकी दाल गलनी बंद हो गई है, अब वहां काठ की हांडी में दाल गला रहे हैं। आपका विश्लेषण सटीक और सराहनीय है क्योंकि आपने बीबीसी को नज़दीक से देखा जाना है। चीनी जब कड़वी हो जाए तो ज़हर बन जाती है।

  13. “सलमान रुश्दी की लगभग अपठनीय पुस्तक”… इसे पढ़ कर कितनी प्रसन्नता हुई, बता नहीं सकती। मैं स्वयं की रुचि पर प्रश्न चिन्ह लगाती रही, जैसे-जैसे, रुश्दी की विश्व भर में ख्याति बढ़ती रही। आप सरीखे मान्य व्यक्तित्व का मत भी मेरे से मेल खाता है, जानकर तसल्ली हुई।
    आपने सभी मुद्दे बेबाकी से रखे हैं, उनपर वाह-वाह के अतिरिक्त कुछ कहने की योग्यता नहीं है। चीन की नीतियों का इतिहास, चीन की दीवार की तरह अंतरिक्ष से दिखाई देता है। अपने को चालक, विशेष और सभी से अलग मानना परंपरा रही है। आपके संपादकीय तथ्यों को उजागर करते हैं और रोचक भी रहते हैं अतः हमेशा ही विशेष रहते हैं।

  14. अपठनीय पुस्तक ! कितना सच है।
    तेजेन्द्र जी मुझे आपके बेबाकी संपादकीय से बहुत कुछ सीखने, सोचने को मिलता है।
    राजनीति तो यत्र-तत्र सर्वत्र है। ऊपर बहुत अच्छी, स्पष्ट टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं।
    साधुवाद

  15. बीबीसी के विषय में सच्चाई को बेबाकी से लिखा है पढ़ कर आपकी निष्पक्ष विचार दृष्टि आपकी सकारात्मक सोच को बयान कर रही है।विगत में भारतवर्ष नामकरण पर भी बीबीसी द्वारा बनाई गई विडियो जारी हुआ जो प्रमाण रहित जानकारी देकर भ्रम पैदा करने वाला है। मीडिया का जिम्मेदार होना अनिवार्य है और आवश्यक भी। तेजेन्द्र जी सच्चाई को प्रस्तुत करने हेतु बधाई

  16. बहुत ही सारगर्भित लेख है सर। मुझे आपके लेख पढ़कर अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं।

  17. अच्छा और संतुलित संपादकीय! कुछ तथ्यों की मुझे जानकारी भी नहीं थी, विशेष रूप से हुवावे वाले संदर्भ का इससे बीबीसी की नीयत को समझने में सहूलियत हो गई। आपका आभार!

    • कमलेश भाई, मेरा प्रयास रहता है कि मैं हमेशा तथ्यों की तह तक जाऊं। सादर आभार।

  18. आपकी बहुत ही संतुलित और बेबाक संपादकीय पढ़ने को मिलती है । जिसे पढ़कर मीडिया के घिसे पिटे चेहरे पर एक कोने में ठहराव लिए एक सुन्दर रंग उभरता हुआ दिखाई देता है । कोई जमाना था जब BBC को विश्वसनीय माना जाता था। किन्तु आजकल की करतूतें उसके सुन्दर चेहरे को घिनौना बनाने पर तुली हुई हैं । कोई भी संस्था जब पैसे के लिए बाजार में खड़ी हो जाती है वह उस सोच तक पहुंचती ही बिकाऊ होने के कारण है। डॉक्यूमेंट्री छलावा भर है। पहले विश्वास खोया है फिर चीन से पैसा लेना… अब दौलत की कमी…. मतलब वो अपने पतन की ओर अग्रसारित है। इस प्रकार की फ़िल्म के माध्यम से बीबीसी हमारी न्याय प्रणाली पर उंगली उठाती हुई दिखाई दे रही है जो उसके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता।

    • विजय लक्ष्मी जी बहुत बहुत धन्यवाद। आपने बीबीसी के बदलते चेहरे पर सार्थक टिप्पणी की है।

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