पुरवाई के संपादकीय ‘क्या ब्रिटेन में मध्यावधि चुनाव होंगे ?’ में निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं

आलोक शुक्ला
ब्रिट्रेन की हालत जानी आपके संपादकीय से, ये भी सच कहा कि ब्रिटिश पीएम की मोदी और देश पर तल्ख टिप्पणी न करने से विपक्ष अपने को निरपेक्ष दिखा रहा है लेकिन अगर की होती तो आसमान सर पर उठा लेता, शायद यही दोहरा रवैया एक बड़ा कारण है कि विपक्ष, सत्ता कुर्सी नही हासिल कर पा रहा..
मीरा गौतम
आपका सम्पादकीय पढ़ा.आप राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं.ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इस्तीफा़ देंगे या चुनाव करायेंगे जैसा सवाल आपने खड़ा किया है.कोरोना से बिगड़ी आर्थिक और मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं की पत्नियों का टैक्स बचाने का चक्कर और यूक्रेन, ब्रिटेन रूस और भारत के परस्पर सम्बंधों में इन देशों की भूमिका. आपने समग्रता में सम्पादकीय को मुद्दों के साथ खड़ा किया.तो,इस संदर्भ में यही कहना.है कि कोरोना की मार ने हर देश की आर्थिकी को हिलाकर रख दिया है.भारत भी.भारत की तारीफ़ों के पुल बाँधने से वह सुरक्षाबोध अनुभव करते दिखायी दे रहे हैं.भारत में भीतरी संकट कम नहीं हैं.फिर भी भारत जंमीन पर पाँव टिकाए खडा है और दुनिया की मदद कर रहा है.
प्रो. चंद्रशेखर तिवारी
सर! सत्ता में जो रहता है, थोड़ी भी चूक होने पर उसकी आलोचना तो होती ही है। …..वैसे मुझे लगता है कि मध्यावधि चुनाव होगा और वर्तमान प्रधानमंत्री पुनः सत्तासीन होंगे।
डा. तारा सिंह अंशुल
आज सुबह जागने के बाद मैंने सबसे पहले पुरवाई का संपादकीय पढ़ा… “क्या ब्रिटेन में मध्यावधि चुनाव होंगे?”
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और और ब्रिटिश शीर्ष सत्ता की गतिविधियों के मद्देनजर , ब्रिटिश राजनीति के सूक्ष्म अवलोकनपरान्त ही संपादक महोदय तेजेंद्र शर्मा जी द्वारा उक्त समसामयिक एवम् महत्वपूर्ण मुद्दे पर संपादकीय लिखी गयी है।
यकीनन भारतीय राजनीति के साथ निश्चित ही ब्रिटेन की राजनीति में शर्मा जी की सकारात्मक अभिरुचि है और सहभागिता भी।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन विगत 21 अप्रैल को भारत आए थे। यूक्रेन रूस के वर्तमान युद्ध के मद्देनजर भारत की साथ द्विपक्षीय वार्ता में जैसी लोगों को अपेक्षा थी… नहीं दिखा। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने भारत के विदेश तटस्थ नीति की खुले दिल से सराहना की है… भारत को 1.3 अरब आबादी वाला एक असाधारण, लोकतांत्रिक देश बताया है।
पुरवाई के संपादकीय आलेख में भी इसका उल्लेख है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय लोकतंत्र और वर्तमान प्रधानमंत्री की सराहना सुनकर भारत के पूर्वाग्रह से ग्रसित पड़ोसी / विरोधी देशों चीन और पाकिस्तान हैरत में हैं। और यकीनन भारत की केंद्र की सत्ता पार्टी की विरोधी दलों के नेताओं को भी सांप सूंघ गया है। इन्हें भी ऐसी अपेक्षा नहीं थी।
उस पर भी बोरिस जॉनसन द्वारा वर्ष 2030 का राजनीतिक रोड मैप सामने रखकर वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को जी-7 बैठक के लिए आमंत्रण है। और कहा कि इस दौरान नि:संदेह भारत के भूमिका महत्वपूर्ण होगी। यह बात महत्वपूर्ण है, यह उल्लेखनीय तथ्य, भारतीय सनातनी संस्कृति का मूल मानवता के पोषित भाव भारत का आत्म तत्व है।
संपादकीय में लेख से स्पष्ट होता है कि वहाँ ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के 10 डाउनिंग स्ट्रीट में होने वाली पार्टियां, जिसे वहां के लोग ‘पार्टीगेट ‘. कहने लगे हैं, वाला मामला अब सिर चढ़कर बोल रहा है।
बेशक British प्रधानमंत्री द्वारा किया गया ये गैर जिम्मेदाराना कृत्य शर्मनाक है । जहाँ एक तरफ भीषण वैश्विक महामारी झेलती ब्रिटिश जनता त्राहिमाम कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ वायरस से बचाव के नियमों की धज्जियां उड़ाकर वह स्वयं साथियों सहित दावते उड़ा रहे थे… इसे पढ़कर पुरवाई के पाठकों का भी आश्चर्य आश्चर्यचकित होना लाज़मी है।
मैं कह सकती हूं कि वर्तमान ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा अपने उक्त गैरजिम्मेदाराना कृत्य से , तभी स्वयं अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए आधारभूमि तैयार कर दिया गया था , .. जिसके फलस्वरूप वर्तमान में विरोध झेल रहे हैं । ऐसी परिस्थिति में यह कयास लगना वाज़िब है कि “क्या ब्रिटेन में मध्यावधि चुनाव होंगे” और यदि चुनाव होंगे तो क्या होगा।
पुरवाई के संपादक तेजेंद्र शर्मा जी ने उक्त महत्वपूर्ण मुद्दे पर समसामयिक तथ्यपरक उल्लेख करते हुए बहुत साफ़गोई से विधिक राजनीतिक परिदृश्य पर प्रकाश डाला है।
इस संपादकीय में तथ्यात्मक आलेख पढ़ने को मिला। जिससे वर्तमान ब्रिटिश राजनीति का स्पष्ट परिदृश्य कुछ अन्य गूढ़ जानकारियों के साथ पुरवाई के पाठकों के समक्ष आया है ।
बहुत-बहुत धन्यवाद !
शन्नो अग्रवाल, लंदन
बहुत खूब तेजेन्द्र जी।
राजनीतिज्ञों की तो बात निराली है
कभी मिलती गाली, कभी ताली है
बोरिस हों या हो वित्त मंत्री की पत्नी
मास्क लगाकर भरती इनकी थाली है।
क्या कहा जाये इनके बारे में। इन लोगों का अपना ही अंदाज होता है, जनता का दिल जीतने के लिये। सब ही एक थैली के चट्टे-बट्टे। कोई सेर तो कोई सवा सेर। इनमें से कौन जनता का भला चाहता है और कौन अपना, इसका खुलासा एक दिन हो ही जाता है।
भारत के प्रधानमंत्री से दोस्ती और भारत की यात्रा में गुजराती खातिरदारी ने बोरिस जी का मन तो जीत लिया किंतु लोकतंत्र के बारे में घुमाफिराकर बात करना भी न भूले। साफ-साफ शब्दों में कहना इन राजनीतिज्ञों की विशेषता है।
सबको पड़ी है अपनी-अपनी
मन में राम बगल में ईंट
न यह कम, न वह कम
जनता रही है माथा पीट।
आगे क्या होने वाला है, इंतज़ार है उसका भी। हमेशा की तरह लोगों का मुखौटा हटाकर आप सचाई सामने लाये हैं। जिसके लिए आपको साधुवाद।

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