8 जनवरी, 2023 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय ‘रूस यूक्रेन युद्ध का हल क्या है ?’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त टिप्पणियां
शैलजा सक्सेना, कनाडा
बहुत अच्छा संपादकीय तेजेन्द्र जी! आपने इस युद्ध के मूल कारणों, इतिहास और भविष्य सभी के बारे में बहुत अच्छा लिखा। अब यह बात राष्ट्राध्यक्षों को समझ आए तो है अन्यथा भविष्य का संकट गहराता जाता है।
संजय चौहान
नमस्कार सर।
आपका संपादकीय अत्यंत महत्वपूर्ण है। जितनी गंभीरता से आपने विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है,वह अन्यत्र दुर्लभ है। युद्ध की विभिषिका के संकट को लेकर आपका चिंतित होना जायज है। विश्व समाज को इस चिंता करते हुए समाधान का प्रयास करना चाहिए। इस दिशा में भारत का रुख सराहनीय है।
डॉक्टर भारती अग्रवाल
तेजेन्द्र जी,
असल में रूस को भी नहीं पता था कि यूक्रेन उसके सामने इतने लंबे समय तक टिका रह पाएगा। उसने सोचा था कि आप 10 दिन में ही मामला खत्म हो जाएगा और यूक्रेन नैटो का सदस्य नहीं बनेगा या फिर अमेरिका आश्वासन दिला देगा कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बनेगा परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और युद्ध आज भी चल रहा है। ऐसा लगता है कि इस युद्ध से यूक्रेन ही नहीं रूस भी त्रस्त है यही कारण है कि उसने 36 घंटे का युद्ध विराम लिया है।
सुदर्शन प्रियदर्शिनी, अमरीका
तेजेन्द्र जी,
राजनीतिज्ञों का मानवता से कोई दूर का भी सम्बन्ध नहीं होता। आप रेत में मोती ढूँढ रहे हैं।
युद्ध विराम के लिये भारत की और देखना होगा।
आप का लेख बड़ा ज्ञान वर्द्धी है। मुझे नहीं मालूम था कि आप के अन्दर इतना बड़ा राजनीति का जानकार बसा हुआ है ।आप का नये वर्ष में भविष्य उज्ज्वल हो।
किरण खन्ना
मुझे ऐसा लगता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने अगर किसी देश की विश्वसनीयता को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है तो वह अमेरिका ही है अमेरिका ही वह देश है जिसने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता के सपने दिखाए और संकट के समय यूक्रेन के साथ खड़े होने के वादे किए, लेकिन वह न तो युद्ध रोक सका और न ही प्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन की कोई सहायता कर सका। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होते ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को कठोर भाषा में चेतावनी दी और अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ मिलकर रूस को सबक सिखाने की धमकी भी दे डाली। परंतु वह केवल धमकी ही साबित हुई जो रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने तक ही सीमित रह गई। इस घटना की वजह से अमेरिका अपने सहयोगी देशों के बीच एक ऐसी छवि वाले राष्ट्र के रूप में भी उभरा है जिस पर संकट के समय यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह अपने मित्र देश की रक्षा कर पाएगा। अमेरिका के साथ ही नाटो जैसे संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं जिसका गठन ही रूसी शक्ति का मुकाबला करने के लिए किया गया था। रूस-यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मूल उद्देश्य ही युद्धों को रोकना और शांति की स्थापना करना था जिसमें यह संगठन सफल होता नहीं दिखाई दे रहा।
(यह टिप्पणी मैंने एक आलेख पढ़ा था, वहां के विचार को सांझा करते हुए लिखी है 🙏)