ओल्गा तोकार्चुक (साभार : ट्रिब्यून)
पुरस्कार, सम्मान, आदर-मान सभी को अच्छा लगता है और जब हम नोबेल पुरस्कार की बात करें तो किसी का भी ध्यान उस ओर आकर्षित हो जाता है। साहित्य का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार 2018 का सन् 2019 में अर्थात् 2018 और 2019 का पुरस्कार एक साथ दिया गया। ऐसा एक बार पहले भी हो चुका है। पोलैंड की पावन धरती पर सन् 1962 में जन्मी एक बेटी ओल्गा तोकार्चुक का नाम साहित्य सेवी के रूप में पहले देश में लोकप्रिय हुआ और नोबेल पुरस्कार मिलने पर यही नाम विश्व विख्यात हो गया।
आज पूरा विश्व इन्हें नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम से जानता है। इन्होंने मैन बुकर प्राइज 2018 का खिताब भी पाया है। यह सम्मान ओल्गा जी को इनके उपन्यास प्लाइट्स के लिए दिया गया। ये पोलैंड में नारीवाद की प्रमुख मिसाल है। 58 वर्षीया इस लेखिका ने गद्य साहित्य की कितनी ही विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है, इन्होंने दो कहानी संग्रह, कई उपन्यासों के साथ-साथ निबंध भी लिखे हैं। इनकी साहित्यिक रचनाओं की सराहना पोलैंड ही नहीं, बल्कि आज पूरे विश्व में हो रही है।
मेरा सौभाग्य रहा है कि इन्हीं वर्षों के दौरन मुझे भी पोलैंड में चेयर हिंदी आई.सी.सी.आर वार्सा यूनिवर्सिटी में कार्यरत होने का मौका मिला और पोलैंड कुछ समय के लिए मेरी कर्मभूमि बन गई। साहित्य सेवी होने के नाते मुझे यहाँ रहते हुए विश्व में फैले हिंदी सेवियों और अन्य भाषी साहित्यकारों के कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह आदि पढ़ने का मौका मिला।
इतना ही नहीं मैंने अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क, यूक्रेन, ब्रिटेन. मॉरिशयस आदि देशों में रहे रचनाकारों की रचनाओं की समीक्षा भी लिखी और एक वैश्विक दृष्टिकोण में साहित्य को समझने का मौका मिला। इसी कड़ी में मुझे नोबेल पुरस्कार विजेता ओल्गा जी का एक कहानी-संग्रह कमरे और अन्य कहानियाँ मारिया पुरी जी द्वारा हिंदी में अनूदित पढ़ने को मिला, कमरे कहानी को पढ़कर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मेरी कलम अपने आप ही इस कहानी संग्रह पर लिखने के लिए व्याकुल हो गई।
पुस्तक हिंदी विभाग की सीनियर डॉक्टर अलेक्सेन्द्रा तूरेक की थी, पुस्तक भी लौटानी थी यही कारण था कि कुछ लिखने में असमर्थ रहा। प्रति पर पढ़ते-पढ़ते मुख्य बिन्दुओं को रेखांकित करने की मेरी अपनी मजबूरी है। इधर दो महीने पूर्व साउथ एशियन विभाग की चेयर प्रोफ़ेसर दानूता स्ताशिक जी ने इस पुस्तक को मुझे भेंट किया। साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि मारिया पुरी हमारी छात्रा रहीं हैं। इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी सीखी है, जो मेरी मित्र भी हैं, उन्हीं के द्वारा यह प्रति मुझे मिली इसे आप पढ़िए। प्रो. दानूता जी स्वयं में आचरण की एक जीती जागती मिसाल हैं। गिनती करने वाले कुछ लोगों में मैं उन्हें मानता हूँ। अधिक न कहते हुए कमरे कहानी फिर मेरे हाथ में थी और सोचा जाए तो इस विषय पर लिखने की प्रेरणा प्रोफ़ेसर दानूता जी की ही है। 
कमरे कहानी को पढ़कर मानवीय आचरण सभ्यता याद आ गई। सरदार पूर्ण सिंह का निबंध आचरण की सभ्यता याद आ गया। आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघण्टु शुद्ध श्वेत पत्रों वाला है। इसमें नाम मात्र के लिए भी शब्द नहीं है। केवल आचरण की मौन भाषा ही ईश्वरीय है। विद्या, कला, कविता, साहित्य, धन और राजस्व से भी आचरण की सभ्यता अधिक ज्योतिष्मती है। आचरण की स्भ्यता को प्राप्त करके एक कंगाल आदमी राजाओं के दिलों पर भी अपना प्रभूत्व जमा सकता है। आखिर कमरे में वह भी होटल कापितॉल के जहाँ हर वर्ग, आयु के लोग अलग-अलग देशों से आकर ठहरते हैं। इस होटल की दूसरी मंजिल के आठ कमरों की सफाई करने वाली मैं अर्थात् नैरेटर (कथावाचिका) होटल का बिम्ब इस प्रकार खींचती हैं- होटल इन्हें समेटकर लाड़ करता है, सावधानी से सुलाता है जैसे कि सम्पूर्ण दुनिया में वह एक बड़ी सीपी हो और वे लोग कोई मोती हो। (पेज- 18) अर्थात् अपने कीमती ग्राहकों की सुविधा का पूरा ध्यान रखता है, ग्राहकों को अतिथि देवो भवः मानकर हर सुविधा की सेवाओं और वस्तुओं को उपलब्ध कराता है। मिस लॉग का व्यवहार अपने सहकर्मियों के साथ कुछ ऐसा ही लगता है। मिस लॉग अपनी मेज पर बैठी हैं और नाक की नोक पर ऐनक पहन रखी है। देखने में लगती है सब सफाई करने वालियों की रानी, आठ मंजिलों की मालकिन, सैंकड़ों चादरों और गिलाफों की भंडारिन, कालिनों और लिफ्टों की वजीरन, झाडू और वाक्यूम-क्लीनर की चौधरानी (पेज- 19)
लेखिका ने स्वयं मैं को नैरेटर के रूप में चित्रित करते हुए या यह कहूँ वर्णित करते हुए पिंक और सफेद वर्दी में दिमाग में केवल कमरों के नंबर हैं। कमरे के दरवाजे के हैंडल पर टंगे डोंट डिस्टर्ब या यह कमरा सफाई के लिए तैयार है। मुझे सूचना और मेरे व्यवहार को दिशा देता है। कमरों की अपनी दुनिया है। कमरे नंबर 2 खाली हुआ। उस कमरे की बिस्तरों की चादरें सलवटों से भरी हुई थोड़ा सा कूड़ा और कड़वी सी बू किसी के जल्दी करने की उत्तेजना से सामान बाँधने। (पेज- 23) इस कमरे में रह रहें व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसकी निशानियों को हटाना वहाँ के सर्विस करने वाले किसी का भी काम हो सकता है। उस कमरे में रह रहें व्यक्ति का आचरण वहाँ झलता है।
सर्विस करने वाली को उस बू को अपनी बू हीनता से गायब करना होता है, वही उसकी ड्यूटी भी है। वहाँ उसका सहकर्मियों से मिलना और अतिथि से बातचीत करना, सेवा उपलब्ध कराना, हर बात पर शिष्टाचार का कोट पहनकर मुस्कुराना उसके व्यवहार को दर्शाता है। वह व्यवहार शब्दबद्ध है। मैं द्वारा चीजों से मुलाकात होती है। वहाँ रहने वाला आदमी तो मात्र बहाना होता है। कमरे में पड़ी शायद सिगरेट, बिखरी हुई वस्तुओं का फैलाव और गंदगी की बू न होती तो मैं को उस कमरे में रहने वाले की शक्ल भी याद न आती। मेहमान द्वारा वस्तुओं का प्रयोग बिना भाषा के मौन रूप में उसके आचरण को बयाँ कर जाता है।
इस प्रकार कमरा नंबर 223 में जवान अमेरीकी लोग रह रहे हैं। उस कमरे की सफाई करना कोई पसंद नहीं करता, कारण स्पष्ट है। उस कमरे में जवान लोग जो होटल कापितॉल में ठहरते हैं बड़ी नासमझी से गंदगी मचाते हैं, गंदगी जिसकी कोई तुक नहीं बनती जिसका कोई मतलब नहीं होता। यह बेईमानी गंदगी है, क्योंकि इसे साफ करने से कोई संतुष्टि नहीं होती।
हकीकत में वह ठीक से हटायी नहीं जाती जब भी हर एक चीज अपनी जगह पर रखी जाए, कीचड़ के सारे धब्बे धुले जाएँ, जब बिछौनों और तकियों की सब सलवटें साफ की जाएँ, वह गंदगी सिर्फ कुछ देर के लिए ही गायब होगी या शायद छुप जाएगी कहीं नीचे और इंतजार करेगी अपने मालिकों का। चाबी की आवाज सुनी और वह बाहर निकलकर फिर कमरे पर हमला कर देगी। (पेज- 36) अमेरिकन बच्चों की गंदगी आधा छिला हुआ संतरा बिस्तर पर, मगों में रस, पाँव के नीचे दबा हुआ टूथपेस्ट कालीन पर, चलता हुआ टी.वी., सूटकेस का उलटाया हुआ सामान।
इन जवान अमेरिकन के कमरे का गुसलखाना और उसका अंदरूनी हिस्सा है, जिंदगी का उल्टा पहलू। बाथ-टब में नहाने के बाद बाल रह जाते हैं, त्वचा से उतारी गई गंदगी इसके किनारों पर चिपक जाती है। टोकरी में इस्तेमाल किए हुए सैनिट्री नेपकिन।—पाँव का पसीना छुपाने का पाउडर, एक छोटी पिचकारी एनिमा लगाने की और कान्डोम से भरा बटुवा। जिंदगी के दूसरे पक्षों के बारे में गुसलखाना बताने से रह नहीं पाता। (पेज- 38)
कमरा नंबर 224 में एक जापानी दम्पत्ति रहती है। जिस कमरे में ये लोग रहते हैं, वह एक खूबसूरत डबल रूम है। पर ऐसा लगता है कि इसमें कोई भी नहीं रहता। शीशे के नीचे की मेज पर कोई चीज गलती से नहीं छूटती। न वे टीवी, रेडियो इस्तेमाल करते, उनकी उँगलियों के कोई निशान तंबू के स्विच-बोर्ड पर भी नहीं हैं। बाथ-टब में पानी नहीं है, शीशे पर पानी की बूँदे नहीं हैं, न कालीन पर धूल। तकिये भी इनके सिरों के निशानों को लाड़ नहीं करते। मेरी वर्दी से इनके काले बाल नहीं चिपकते और जो परेशानी की सबसे बड़ी वजह है, यहाँ इनकी कोई महक नहीं रहती। जो भी महक है वह होटल कापितॉल की है।
मैं सिर्फ बिस्तरे की चादरें बदलती हूँ और इतने में ही मैं इतनी गंदगी फैला देती हूँ जितनी ये लोग एक महीने में शायद न कर पाएँ। (पेज- 25-26) मैं को वहाँ उस कमरे में काम करना पसंद है, उसे अच्छा लगता है। वह पलंग पर बैठकर उनकी अनुपस्थिति को महसूस करती है। उनके द्वारा चंद सिक्कों की बख्शीस को इज्जत सम्मान के साथ ग्रहण करती है।
मैं भी उनके बिस्तर पर बिछी चादर को प्यार से सँवार कर अपनी सहानुभूति, अपनी अनुपस्थिति को दर्ज कराना चाहती है। उनके आचरण की इस सभ्यता को मैं सूँघती रहती है। इस कमरे की ठंडक और खालीपन से उसका मन श्रद्धा से उन दम्पति के प्रति भर जाता है। अभौतिक रूप में वह वहाँ मौजूद नज़र आते हैं। पर मुझे जल्दी जाना है इस छोटे मंदिर से। मैं चुपचाप चली जाती हूँ जैसे कि मैं लंबी साँस छोड़ती हूँ और आधी रात मंजील नीचे उतरती हूँ….क्योंकि अभी…।
229 नंबर कमरे का वर्णन करते हुए लेखिका लिखती हैं कि, जहाँ दो प्रेमियों का जोड़ा या शायद एक नया दम्पति रहा जिन्होनें पूरा बिस्तर उल्टा-पुल्टा कर दिया, सब जगह तौलिये फैलाये, शैम्पैन गिराई।— दो हफ्ते पहले इसमें रहते लोग गुसलखाने में पानी का नल बंद करना भूल गए थे। पानी गलियारे तक पहुँच गया, दीवारों का सुनहरा रंग बदरंग कर दिया। डरे हुए मेहमान चादरें ओढे खड़े हुए थे और होटल में काम करने वाले पोंछे लिये इधर-उधर भाग रहे थे। (पेज- 42) लेखिका को ऐसे लोग बेवकूफ, नासमझ लोगों की कहानी लग रही थी।
लेखिका ने आखिरी कमरे में रहने वाले स्वीडन दम्पति को दिखाया है। कमरा नंबर 228 से एक बुजुर्ग जोड़ा निकल रहा है। आदमी लंबा और उसके बाल सफेद, थोड़ा सा झुकता है और अपनी बीवी से ज्यादा चुस्त है। उसकी बीवी छोटी सी सिकुड़ी हुई, काँपती हुई। —- वह बूढ़ा उसे कुछ ज्यादा सहारा दे रहा है, वह उसको उठाए चल रहा है। अगर वह हट जाता तो वह जरूर ज़मीन पर गिर जाती। दोनों के बाल सफेद हैं, इस तरह की सफेदी से जो हर पाप को भूल चुकी है। मुझे उनके कमरे में सफाई करना अच्छा लगता है। इस में ज्यादा काम नहीं है, सब चीजें अपनी जगह रखी हैं जैसे कि वे जड़े पकड़ रही हों।
हवा में खराब सपने, फूलती साँसे और उत्तेजना नहीं हैं। तकियों में सिर की हल्की निशानी शांत नींद का संकेत दे रही है। (पेज- 53-54) लेखिका को ऐसा आभास होता है उनके आचरण से मानों वह बुजुर्ग दम्पति बिनी किसी उत्तेजना, पाप और विद्रोह के शांत भाव से जीवन के अतीत काल याद करते हुए वृद्धावस्था की शांति में शांत हो जाना चाहते हैं। अपने अतीत की संपूर्णता को याद करे बिना, किसी हलचल के बिना, भविष्य की किसी योजना के सपनों में खुदा को देखते हुए उस वक्त शरीर दुनिया में अपनी महक नहीं छोड़ता। त्वचा बाहर की महक अपनाती है और आखिर वक्त उसका स्वाद लेता है। (पेज- 54)
लेखिका ने इस प्रकार कमरे कहानी में अलग-अलग देशों और अवस्थाओं के लोगों का होटल के कमरे में रखे हुए सामान का किस प्रकार प्रयोग अलग-अलग तरीके से करते हैं को दिखाने का प्रयास किया है। साथ ही इसके माध्यम से उन लोगों के आचरण को उनकी अनुपस्थिति में बिना किसी शब्द के, बिना किसी संप्रेषण के, मौन रूप में उनकी क्रियात्मक गतिविधियों से प्रस्तुत किया है। निश्चित रूप से यह कहानी संग्रह और इसमें सम्मिलित कहानी कमरे मानव आचरण और मानव व्यवहार को बड़ी सूक्ष्मता से वर्णित चित्रित करती है। हर कमरा अपने आप में बिम्ब है, उसमें रहने वाले अतिथियों के आचरण का, जिसे बिना किसी भाषा के चित्रित किया गया है। उत्तम पुरूष की शैली में रची गयी यह कहानी एक नहीं कई व्यक्तियों, देशों के आचरण सभ्यता को दर्शाती है।
इसमें लेखिका का उद्देश्य किसी संप्रदाय, जाति और देश की सभ्यता को छोटा-बड़ा, गुणी-अवगुणी, भला-बुरा करके दिखाना नहीं है। वह तो मात्र मानव आचरण की सभ्यता को दिखाकर व्यवहार को छद्म रूप से बचाने का प्रयास कर रही है। निश्चित रूप से जापानी दम्पति का आचरण उस लंबी सोच, चिंतन को दर्शाता है, जो जिज्ञासा, चिंतन और पर्यटन की समूची विशेषताओं को समेटे हुए है। यह कहानी तो कमरे एक होटल के विभिन्न कमरों के बहाने इंसानी जीवन के स्याद-सफेद उसके व्यक्तित्व की सच्चाई को ज्यों का त्यों उतारती चित्रित करती है। मारिया पुरी द्वारा पोलिश से हिंदी अनुवाद शब्दानुवाद नहीं है, यह अनुवाद लेखिका के मूल उद्देश्य को प्रकट करता हुआ, भाषिक-भाव भंगिमाओं को भी सही तरीके से दर्शाता है।
आचरण को समझने के लिए हिंदी जगत में प्रेमचंद की कहानी परीक्षा का नाम लिया जा सकता है। देवगढ़ रियासत के दीवान सरदार सुजान सिंह नए दीवान की परीक्षा, उसके आचरण की परख के लिए बूढ़े किसान का रूप धारण कर बैलगाड़ी नाले में फँसा देते हैं और गाड़ी निकलवाने वाले के साहस, दया को देखकर दीवान उसे ही बनवाते हैं। उसके बाद मन्नू भंडारी की कहानी कमरे कमरा कमरे पाँच कमरों में रहने वाले लोगों के अस्त-व्यस्त, अव्यवस्थित आचरण को दर्शाने वाली कहानी है। मानव दूसरों के समक्ष किए गए व्यवहारों की क्रिया-प्रतिक्रिया को ही आचरण मानकर बार-बार हंस के धोखे में बगुला पकड़ लेता है। ऐसे बगुले अपने साथ-साथ समाज और देश का अहित करते हैं।
वाणी की नम्रता और मिठास शिष्टाचार की कसौटी हो सकती है, आचरण की नहीं यही कारण है कि संतों का आचरण सब जगह एक समान होता है। वह देशकाल की सीमाओं से परे होता है, उन्हें किसी की प्रभुता किसी का भय प्रभावित नहीं करता है। चाणक्य और विवेकानन्द इसके अद्भुत उदाहरण है। अनजान लोगों की रक्षा करने वाले आचरणबद्ध होते हैं। लेखिका ओल्गा जी ने बहुत सुंदर तरीके से कमरे कहानी के द्वारा आचरण और व्यवहार को व्याख्यायित किया है। अलग-अलग कमरों की अलग-अलग लोगों द्वारा उनकी कहानी बयाँ करने का अनूठा अंदाज देखने को मिलता है। निश्चित रूप से यह कहानी संग्रह पढ़ने को ही नहीं प्रभावित करेगा, सोचने को भी मज़बूरी करेगा।

1 टिप्पणी

  1. बेहतर होता कि कहानी का अनुवाद भी इस समीक्षा के साथ होता। तब इस समीक्षा का महत्व दुगुना हो जाता। मैंने यह कहानी पढ़ रखी है, इसलिए मुझे यह समीक्षा बड़ी ऊपरी-ऊपरी सी लगी। कहानी में गोता लगाकर यह मोती नहीं खोजा गया है।

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