1
ख़्वाब आंखों में अपनी सजाना नहीं।
दिल किसी से भी अब ये लगाना नहीं।
देखिए न मुझे आप मुड़ मुड़ के यूँ,
ऐसे दिल में मिलेगा ठिकाना नहीं।
बारहा कीजिये आँख से गुफ़्तगू,
ज़िक्र मेरा लबों पे तू लाना नहीं।
मैं तो बादल हूँ, बरसूंगा मैं झूम के,
मेरी तरह तुम आँसू बहाना नहीं।
ये जहाँ है फरेबी भी “गुस्ताख”भी,
इस जहाँ से मुहब्बत निभाना नहीं।।
2
लड़ रहे साँस से जिन्दगी के लिए
दिल जलाते रहे रौशनी के लिए
गम उठाता रहा उम्र भर फायदा
चंद पल की हंसी और खुशी के लिए
साहिलों से कभी नाखुदा से कभी
हमने की दोस्ती इक नदी के लिए
है बड़ा ही कठिन काम दुनिया में ये
ढूढ़ना आदमी आदमी के लिए
ये बिछड़ते हुए कह गई दिलरूबा
तुम बने हो मियां शाइरी के लिए
वक्त की थी कमी गर्दिशों के थे दिन
वक्त देना पड़ा हर किसी के लिए
याद है ना तुम्हें बात गुस्ताख़ की
बुजदिली चाहिए खुदकुशी के लिए

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