होम ग़ज़ल एवं गीत रोहित गुस्ताख़ की दो ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत रोहित गुस्ताख़ की दो ग़ज़लें द्वारा रोहित गुस्ताख़ - October 23, 2022 207 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 ख़्वाब आंखों में अपनी सजाना नहीं। दिल किसी से भी अब ये लगाना नहीं। देखिए न मुझे आप मुड़ मुड़ के यूँ, ऐसे दिल में मिलेगा ठिकाना नहीं। बारहा कीजिये आँख से गुफ़्तगू, ज़िक्र मेरा लबों पे तू लाना नहीं। मैं तो बादल हूँ, बरसूंगा मैं झूम के, मेरी तरह तुम आँसू बहाना नहीं। ये जहाँ है फरेबी भी “गुस्ताख”भी, इस जहाँ से मुहब्बत निभाना नहीं।। 2 लड़ रहे साँस से जिन्दगी के लिए दिल जलाते रहे रौशनी के लिए गम उठाता रहा उम्र भर फायदा चंद पल की हंसी और खुशी के लिए साहिलों से कभी नाखुदा से कभी हमने की दोस्ती इक नदी के लिए है बड़ा ही कठिन काम दुनिया में ये ढूढ़ना आदमी आदमी के लिए ये बिछड़ते हुए कह गई दिलरूबा तुम बने हो मियां शाइरी के लिए वक्त की थी कमी गर्दिशों के थे दिन वक्त देना पड़ा हर किसी के लिए याद है ना तुम्हें बात गुस्ताख़ की बुजदिली चाहिए खुदकुशी के लिए संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ पुष्पलता की ग़ज़ल – प्यास बैठी है पास पानी के गज़ाला तबस्सुम की ग़ज़ल – बच्चों पे कुछ तो रहम किया कर ऐ मुफ़लिसी डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का गीत – कभी सोचा नहीं था 1 टिप्पणी kya hi khoob Rohit bhai congratulations जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
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