रोहित गुस्ताख़ की दो ग़ज़लें
ख़्वाब आंखों में अपनी सजाना नहीं।
देखिए न मुझे आप मुड़ मुड़ के यूँ,
बारहा कीजिये आँख से गुफ़्तगू,
मैं तो बादल हूँ, बरसूंगा मैं झूम के,
ये जहाँ है फरेबी भी “गुस्ताख”भी,
लड़ रहे साँस से जिन्दगी के लिए
गम उठाता रहा उम्र भर फायदा
साहिलों से कभी नाखुदा से कभी
है बड़ा ही कठिन काम दुनिया में ये
ये बिछड़ते हुए कह गई दिलरूबा
वक्त की थी कमी गर्दिशों के थे दिन
याद है ना तुम्हें बात गुस्ताख़ की
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kya hi khoob Rohit bhai
congratulations