Monday, October 14, 2024
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‘भुज’ द-अनप्राउड ऑफ़ बॉलीवुड फ़िल्म

हमारे देश ने कई संकटों का डटकर सामना किया है और न केवल सामना किया बल्कि विजय भी हासिल की। और तो और पड़ोसी मुल्कों या विदेशों में होने वाली अहम घटनाओं में भी अपनी बड़ी भूमिका निभाई है। ऐसी ही एक कहानी है पूर्वी पाकिस्तान की यानी आज के बांग्लादेश की कहानी। हर कोई जानता है कि साल 1947 में भारत पाकिस्तान के बंटने के कुछ सालों बाद ही पाकिस्तान में दो धड़े तैयार हो चुके थे। एक पूर्वी पाकिस्तान तो दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान। कारण कि पश्चिमी पाकिस्तान प्रांत में रहने वाले महसूस करते थे कि पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का रहन-सहन , खान-पान उनसे अलग है। इतना ही नहीं वे उर्दू की जगह बांग्ला बोलते हैं। लिहाजा पश्चिमी पाकिस्तान उन्हें पराया मानकर उन पर जुल्मों सितम ढाने लगा।
ज़ुल्म सहते हुए कई साल गुजरे और आखिरकार 1971 में युद्ध हुआ बगावत के सुर छेड़ने वाले तत्कालीन तीसरे राष्ट्रपति याह्या खान अपनी इस तानाशाही सरकार के साथ मिलकर उस वक्त के पाकिस्तानी जनरल एवं राज्यपाल जनरल टिक्का के साथ से ऑपरेशन सर्च के तहत करीबन 30 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया। हिंदुस्तान से पूर्वी पाकिस्तानियों का दर्द देखा न गया। हमारे यहां कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सशक्त भूमिका निभाई और पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करवाया।
अब ऐसी बहादुरी भरे किस्से वाली फिल्म आजादी के पावनपर्व पर पर्दे पर न आए ऐसा हो सकता है भला? हम कैसे यह मौका भुनाने से चूक सकते हैं जी! बॉलीवुड हमेशा से ऐससी कहानियों को भुनाता आया है लेकिन हर फिल्म ‘बॉर्डर’ सरीखी या हाल की ‘उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी कैसे हो सकती है। इस फ़िल्म के साथ भी कुछ ऐसा हुआ है कि इसे देखने के बाद थियेटर से निकलने वाले दर्शक तथा डिज़्नी प्लस हॉट स्टार ओटीटी पर भी आई इस फ़िल्म को देखकर फारिग होने वाले लोग यही कहेंगे कि इस भुज को देखकर प्राउड फील क्यों नहीं होता। क्यों यह ‘द-अनप्राउड ऑफ़ बॉलीवुड’ फिल्म बनकर रह गई है। तो ठहरिए और रुकिए जरा हम बताते हैं।
सबसे पहले वीएफएक्स –  भाई ये वीएफएक्स बड़ा मासूम सा है तुम्हारा।
दूसरा एक्टिंग – ये एम्मी विर्क और दक्षिण भारतीय बाला को लेने की क्या जरूरत थी। दोनों को अपने-अपने वुड यानी टॉलीवुड (तमिल-तेलुगु सिनेमा) और पॉलीवुड (पंजाबी इंडस्ट्री) में वापस चले जाना चाहिए।
तीसरा राईमिंग – अजय देवगन साहब ने राईमिंग तो अच्छी की लेकिन उसे बोलने के अंदाज और राईम का जो रायता फ़ैलाया है उसका तो फालूदा बनाकर न खाए कोई।
चौथा निर्देशन – भाई अभिषेक दुधैया या तो तुम टेलीविजन कि दुनिया में ही फिर से विचरण कर लो। क्यों इस बड़े पर्दे पर बड़ी कहानियों का गला घोंट रहे हों।
तो भाई चार बड़े कारण तो बता दिए क्यों है ये द-अनप्राउड ऑफ़…. बाकी कुछ अच्छा नहीं बना है ऐसी बात नहीं है। तो सुनिए अच्छा क्या है।
पहली बात अच्छी है इसकी लोकेशन।
दूसरी बात अच्छी है इसमें ‘कविता तिवारी’ एक बड़ी मंचीय कवयित्री की लिखी, गाई गई कविता। “जब तक सूरज चंदा चमके तब तक ये हिंदुस्तान रहे।”
तीसरी अच्छी बात है इसमें कैमरा और ठीक-ठाक सा गीत-संगीत, बैकग्राउंड स्कोर।
चौथी अच्छी बात है नोरा फ़ातेही की बढ़िया एक्टिंग और अच्छा रोल। बाकी एम्मी विर्क तो फौजी ड्रेस में ठीक तो लगे लेकिन डायलॉग डिलीवरी में उनकी हवा निकल गई। इसलिए वे देशभक्तिका उफान जगाने के बजाए हंसाकर ही चले गए। वहीं अजय देवगन चिंटू से लगे। सोनाक्षी सिन्हा अच्छा कर सकती थी।
आजकल वैसे भी देश में देशभक्ति और अंधराष्ट्रवाद की लहर चहूँ ओर बह रही है। इसलिए जो बना सको बना लो। जितनी झोलियाँ और जेबें अपनी भर सको भर लो। लेकिन जैसे जाते-जाते फ़िल्म कहती है – हमने भाई को यानी बंटवारे के बाद पाकिस्तान को जाते समय अलविदा के दो आंसूं और 75 करोड़ रुपए उनके हाथों में रख दिए। आज उन्हीं पैसों से लोहा-बारूद खरीदकर वे हमारे ऊपर बरसा रहे हैं। दुनिया के इतिहास में शराफ़त की इतनी बड़ी कीमत किसी ने नहीं चुकाई।
तो हम भी जाते-जाते कहना चाहते हैं कि – ‘हे बॉलीवुड वालों तुम्हारे आस-पास हजारों ऐसे किस्से और कहानियां हैं देशभक्ति की जिनपर तुम फ़िल्म बना सकते हो। तो कायदे की रिसर्च , गहन-शोध क्यों नहीं करते? क्यों आम जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से अपनी जेबें भर रहे हों। शर्म करो थोड़ी या तो सन्यास ले लो फिल्मी दुनिया से या कुछ समय तुम भी भटको इधर-उधर खोजबीन करो जरूर तुम्हें अच्छा मिलेगा।
कविता तिवारी की जिस कविता की लाइन तुमने डाली हैं वह तुम्हें ही समर्पित करता हूँ। अंतिम पंक्ति पर जरा गौर-फरमाइयेगा।
हे ईश्वर, मालिक, हे दाता, हे जगत नियंता दीनबंधु ।
हे परमेश्वर प्रभु हे भगवन हे प्रतिपालक हे दयासिंधु ।।
सच्चिदानंद घट घट वासी , हे सुखराशि करूणावतार ।
हे विघ्नहरण मंगलमूर्त, हे शक्तिरूप हे गुणागार ।
कुछ तो दो इनको (बॉलीवुड) सकल ज्ञान।
कुछ भर दो इनके दिमाग में सुविचार।
हालांकि सुविचारों वाली फिल्म है यह ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए ताकि देश के भीतर बैठे हम 132 करोड़ देशवासियों को यह सनद रहे कि हम कितनों के त्याग-बलिदान के कारण अपने घरों में चैन की नींद ले पाते हैं।
 रेटिंग – 1.5 स्टार
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