Wednesday, October 16, 2024
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डॉ.रेनू सिरोया “कुमुदिनी” की कविता

भारत माँ के कण कण में,हिंदी की गौरव गाथा है,
जननी है संस्कारों की ये,झुकता हर पल माथा है।
श्रृंगारित हिंदी की बिंदी,माँ का भाल सुशोभित है,
संस्कृति की ये परिचायक,इससे जग आलोकित है,
मातृभाषा ये सबसे अनुपम,इससे गहरा नाता है,
जननी है संस्कारों की ये,झुकता हर पल माथा है।
मन सागर में भाव के मोती,गीत छंद बन बहते है,
ये पहचान धरोहर अपनी,हिंदी से भाव महकते है,
छंद अलंकारों से सज्जित,स्वर व्यंजन की ज्ञाता है,
जननी है संस्कारों की ये,झुकता हर पल माथा है।
गौरव शाली हिंदी भाषा,इसका हम सम्मान करें,
भारत का सिरमौर है हिंदी,हृदय से हम स्वर गान करे,
हिंदी लिखे हम हिंदी बोले, हिंदी हमारी माता है,
जननी है संस्कारों की ये,झुकता हर पल माथा है।
कुमुदिनी का प्राण है हिंदी,हिंदी वतन की शान है,
नेह समर्पण प्रीत सिखाती,आदर्शों का मान है,
वेद पुराण ग्रंथों में समाहित,हिंदी जीवन दाता है,
जननी है संस्कारों की ये,झुकता हर पल माथा है,
भारत माँ के कण कण में,हिंदी की गौरव गाथा है।
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