दक्षिण भारत का एक परिवार अपने इंजीनियरिंग पास कर चुके बेटे के लिए दक्षिण भारतीय लड़की ढूंढ रहे हैं।  ऐसे में वह परिवार पहुंच जाता है गलत घर में। जहां लड़की को पसन्द है रजनीकांत तो वहीं लड़के को सिनेमा के नाम पर नींद आती है। दोनों एक दूसरे का इंटरव्यू भी लेते हैं। तभी लड़की मीनाक्षी और लड़के सुंदरेश्वर का रिश्ता पक्का हो जाता है। ऐसी कहानियां आपने-हमने कई फिल्मों में देखी हैं। लेकिन अक्सर उन कहानियों में रायता भी फैला दिया जाता है।
बस ‘मीनाक्षी सुंदरेश्वर’ इस मोर्चे पर थोड़ा बच जाती है। इस बीच यह थोड़ी पक कर निखर जाती है तो थोड़ी कच्ची भी रह जाती है। इस हफ्ते रिलीज हुई तीन बड़ी फिल्मों  ‘सूर्यवंशी’, ‘अन्नाते’ और ‘इटर्नल्स’ के बीच यह छोटी सी, थोड़ी प्यारी सी, थोड़ी रिश्तों के ऑक्सीजन माफ़िक लगने वाली फिल्म भी रिलीज़ हुई। नाम है ‘मीनाक्षी सुंदरेश्वर’ छोटी इसलिए क्योंकि इसकी स्टार कास्ट बड़ी नही, बज बड़ा नहीं बन पाया।  बल्कि यह तो आपके-हमारे आम जीवन  की छोटी-छोटी सी नज़रअंदाज़ कर दी जाने वाली चीज़ों को दिखाती है।
‘करण जौहर’ के धर्माटिक के तले बनी इस फिल्म को डायरेक्ट किया है विवेक सोनी ने। फ़िल्म को लिखा है डायरेक्टर विवेक सोनी और अर्श वोरा ने। और लीड रोल में हैं ‘अभिमन्यु दसानी’ और ‘सान्या मल्होत्रा’ सहायक कलाकारों में ‘सुकेश अरोड़ा’, ‘पूर्णेन्दु भट्टाचार्य’, ‘कोमल छाबरिया’, ‘ऋचा मोहन’, ‘त्रिशान’, ‘चेतन शर्मा’  अभिमन्यु, सान्या की कैमस्ट्री प्यारी लगती है। वे जब-जब पर्दे पर साथ नजर आते हैं आपके चेहरे पर स्माइल ले आते हैं।
मीनाक्षी मतलब माता पार्वती, सुंदर मतलब भगवान शिव। अब हमारे धर्म ग्रन्थों में भी तो पति-पत्नी के विवाह को शिव-पार्वती विवाह ही कहा जाता है न। बस वही इसमें भी हुआ। लेकिन जैसा कि फ़िल्म बताती है – ‘सब कहते हैं कोई प्रॉब्लम हो तो बैठकर डिस्कस करो। सॉल्यूशन मिल जाएगा। कोई ये नहीं बताता कि कभी-कभी प्रॉब्लम्स के सॉल्यूशन होते ही नहीं। इसलिए हर प्रॉब्लम को हल करने के लिए उसके पीछे मत भागो।’ बस वही इस फ़िल्म में हुआ कि इन दोनों मीनाक्षी सुंदरेश्वर की प्रॉब्लम सुलझाई तो सुपरस्टार, भगवान रजनीकांत ने, वो भी सिनेमाघर में ही?
दरअसल इस फ़िल्म की शुरुआत से ही इसमें लोचा हो गया था। और रिश्तों का ऑक्सीजन जिस फ़िल्म को बनना चाहिए था वह पूरी तरह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई। मीनाक्षी और सुंदरेश्वर, दोनों एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत। मीनाक्षी मुस्कुराती कम, हंसती ज़्यादा है। वहीं सुंदर हंसता नहीं, बस मुस्कुराता है। एक रजनीकांत का  फैन है तो दूसरे को फिल्मों के नाम पर नींद आती है। एक को किताबें पसंद हैं। तो दूसरे ने किताबें बस बुक क्रिकेट खेलने के लिए इस्तेमाल की हैं। वे अब एक दूसरे को जाने समझे उससे पहले सुंदर की नौकरी लग गई और उसे मीनाक्षी को मदुरई छोड़कर बेंगलुरू जाना पड़ा।
प्रॉब्लम का सॉल्यूशन कैसे होता क्योंकि जहां उसने जॉइन किया है, वहां सिर्फ सिंगल लोगों को ही तवज्जो दी जाती है। बॉस जो अपने शब्द गिनकर बोलता है। अपने कर्मचारियों के सामने बैठकर बाल कटवाता है। उन्हें ‘रैट रेस’ के लिए प्रोत्साहित करता है।  अब वहां इनके रिश्तों को ऑक्सीजन कैसे मिल पाती भला।
फ़िल्म की  सिनेमैटोग्राफी उम्दा है। कैमरावर्क कमाल का और कसा हुआ है। मदुरई की खूबसूरत लोकेशन्स, फ़िल्म के सेटअप भी अच्छे हैं। फ़िल्म की कलरिंग बेहतरीन की गई है। यही वजह है कि आप 2 घण्टे से भी ज्यादा लंबी इस फ़िल्म को बस एकटक देखते चले जाते हैं। गाने सभी ओरिजनल हैं। ‘तू यहीं है’ और ‘रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा’ सबसे प्यारे लगे।
बैकग्राउंड स्कोर भी लुभाने में सफल रहा इस वजह से भी आप फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही इस फ़िल्म को देख सकते हैं। सबकुछ अच्छा होने के बावजूद बस इस फ़िल्म में कुछ बाकी है, का जो अहसास इसे देखते हुए होता है। वह अंत तक आपके मन में खलल जरूर पैदा करता है।
अपनी रेटिंग -3 स्टार

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