व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के आज से लगभग 50 साल‌ पहले के रचित, अलग-अलग व्यंग्य लेखों से कुछ लाइनें चुन कर आपके समक्ष पेश हैं,जो‌ आज भी बेहद मौजूं हैं और  मिर्ची से भी तीखी लगेंगी।
लेकिन यदि परसाई जी के शब्द-भेदी बाणों को आज के समय की नजीर में देखा जाए तो शायद ये दास्तान कुछ और दिलचस्प लगेगी । तो पेश है उस दौर से इस दौर तक की कुछ हाज़िर नाजिर व्यंग्य की सदाबहार रवायतें।
मुलाहजा फरमाएं ख़्वातीनो-हजरात जिसमें लाइनें व्यंग्य के उस्ताद परसाई साहब की हैं और नजीर व्यंग्य के शागिर्द इस व्यंग्यकार की-
1- लडक़ों को अपना ईमानदार बाप निकम्मा लगता है ।
नजीर – लड़के को बाप तभी तक निकम्मा नजर आता है, जब तक कि वह ख़ुद बाप न बन जाएं और उसे इस बात का इल्हाम न हो जाये कि उसके बाप ने उसे पाल-पोस कर इतने काम लायक तो बना ही दिया कि लड़का अपने बाप को निकम्मा कह सके।
2- “दिवस”  कमजोर का ही मनाया जाता है,  जैसे कि “हिंदी दिवस”, “महिला दिवस”,  “अध्यापक दिवस”, “मजदूर दिवस”। कभी “थानेदार दिवस” नहीं मनाया जाता।
नजीर –
आम आदमी हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन के किसी भी दिवस में उसे थाने न जाना पड़े और अगर कभी जाना भी पड़े तो उसी दिवस में ही घर वापसी हो जाये। बड़े बुज़ुर्ग फ़रमा गए हैं कि थाने में बिताई गई एक रात जेल में बिताई गई एक वर्ष की रातों से भी ज्यादा कष्टकारी होती है। 
3- व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।
नजीर –
व्यस्तता एक मार्गी होती है। एक काम को करना कोई मुश्किल कार्य नहीं। जबकि खाली दिमाग में शैतान के घर होता हैं, उनसे जूझना आसान कार्य नहीं है।
4-  जिनकी हैसियत है वे एक से भी ज्यादा बाप रखते हैं। एक घर में, एक दफ्तर में, एक-दो बाजार में, एक-एक हर राजनीतिक दल में।
नजीर – पाकिस्तान इसका सटीक उदाहरण है, जो अमेरिका को काबू में रखने के लिए चीन से पैसा लेता है और चीन को काबू करने के लिए अमेरिका से पैसा लेता है। आतंकवाद फैलाने के लिए सऊदी अरब से काल्पनिक जेहाद के नाम पर पैसा लेता है, फिर पश्चिमी देशों से जेहाद का डर दिखाकर पैसा लेता है। वैसे तो ये देश भारत से ही पैदा हुआ है पर भारत के अलावा इसने कर्ज़ा देने वाले हर देश को बाप बना रखा है।
5- आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का। लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
नजीर – हिंदी का लेखक इस मूर्खता में लिखता-छपता जाता है कि वह लिखकर मानवता पर कोई एहसान कर रहा। जबकि आमतौर समाज उसे अनुग्रह एवं दया की दृष्टि से देखता है कि इसे लिख लेने दो नहीं तो ये मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जायेगा।
6- सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे  क्रिकेट  या कबड्डी के मैच।
नजीर –
यदि आप भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए बिना टिकट रेल में जा रहे हों तो यदि टीटी ने पकड़ लिया हो तो आप अपना मिशन बताएं ।  बिना टिकट के बाकी लोगों से अगर टीटी पांच सौ रुपये लेता है तो आपको ढाई सौ में ही राजधानी पहुँचा देगा। आखिर उसे भी तो भ्रष्टाचार का विरोध करना है। करप्शन में इसीलिए डिस्काउंट दे देता है। 
7- हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलखाने में रहना चाहिए वे जिन्दगी भर संसद या विधानसभा में बैठते हैं ।
नजीर –
अब ये फ़र्क मिट चुका है। दिल्ली के एक मुख्यमंत्री सफलतापूर्वक जेल से सरकार चला चुके हैं। उनके लिये दिल्ली सचिवालय और तिहाड़ जेल समान रूप से कार्यालय के समान रहे हैं।
8- विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान  हुल्लड़ या गुंडागर्दी  ले  लेती है ।
नजीर –
हिंदी के 75 पार के व्यंग्यकार दूसरों के परिवार से ली गई पुरस्कार राशि अपनी यारी दोस्ती पर उन लेखक- लेखिकाओं को दे देते हैं जो जीवन भर कविता या कहानी लिखते रहे हैं। इससे बड़ी वैचारिक दरिद्रता क्या होगी और इस पर तुर्रा ये कि हम तो निस्वार्थ व्यंग्य को ऊँचाई पर ले जा रहे हैं । तो फिर व्यंग्य को रसातल में ले जाना क्या होता होगा ? महज कल्पना करें।
9- धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को  जिस दिन “महा-जन”  कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई ।
नजीर – 
मनुष्यता हार कर पशुता में बदलने में देर नहीं लगती । हाल ही एक धनकुबेर के वनतारा नामक स्थान में एक पत्रकार ने धनकुबेर को खुश करने के लिए हाथी को दिया जाने वाला भोजन मांग कर न सिर्फ खाया बल्कि भूरि-भूरि तारीफें भी की। किसी मनुष्य के हज़ार करोड़ के पशुओं के चारा घोटाले की खबरें बरसों तक इनके चैनल पर चलती रहीं और अब ये खुद हाथी का भोजन खाने लगे और वाह-वाह भी करने लगे।
10-  हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूंजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं ।
नजीर-
हिंदी का सम्पादक शराब की बोतल लाने पर टैक्स बचाने के लिए बनाए गए साहित्यिक ट्रस्ट की पत्रिका में शराब बंदी पर कविता छापता है और उसी शराब बंदी पर छपी कविता से मिले मानदेय से शराब बंदी के खिलाफ लिखने वाला देसी कवि अंग्रेजी शराब पीकर फिर शराब से हुई बर्बादी पर कविता लिखने की प्रेरणा लेता है।
11-  फासिस्ट संगठन की विशेषता होती है कि दिमाग सिर्फ़ नेता के पास होता है, बाकी सब कार्यकर्ताओं के पास सिर्फ शरीर होता है।
नजीर -कम्युनिस्ट पार्टी के आला लीडरान जल,जंगल,जमीन की बात करते हैं। ये मूलमंत्र सिर्फ कार्यकर्ताओं के लिए है, जो कि शरीर की तरह हैं। जबकि आला लीडरान अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेज देते हैं और पार्टी के युवकों को सशस्त्र क्रांति का मार्ग बताते हैं, ताकि सिलसिला चलता रहे।
12- बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है। 
नजीर – 
अपने घर में मियां बीवी में झगड़ा और मार कुटाई हो रही हो और पड़ोस के काफी सारे लोग देख -देख कर लुत्फ ले रहे हों उसी समय यदि पड़ोस में भी किसी घर में जूतमपैजार शुरू हो जाये तो खुद को महसूस होने वाली बेइज्जती और फजीहत आधी ही महसूस होती है कि सरेआम जूतमपैजार वाले होने वाले हम अकेले नहीं हैं ।
13- दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है । इस देश में दंगे के काम आती है।
नजीर – कश्मीर के अलगाववादी नेता जब दिल्ली में किसी सार्वजनिक समारोह में आते हैं तो इंसानियत वगैरह की बात करते हैं लेकिन वही नेता कश्मीर में जब जाते हैं तो अलगाव, मारकाट और दंगे करने की भाषा बोलते हैं ।
14-जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढिय़ा चल रहा है।
नजीर –
भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह और भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जैसे भारत विरोधी नारे लगाने वाले लोगों को जब कोई राष्ट्रीय या अतीत की बड़ी राष्ट्रीय पार्टी न सिर्फ चुनावी टिकट दे दे बल्कि उसके कुकृत्यों का बचाव भी करे और इसे लोकतंत्र की आजादी कहते हुए बोले कि देश विरोधी नारे लगाना देशद्रोह नहीं है । तो वाकई ये जनतंत्र में ही चल सकता है ।
15-जो  पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं ।
नजीर –
हाफिज सईद जैसे लोग जो भारत मे हजारों लोगों की मौत बम और गोलियों के जरिये करवा देते हैं वह दिन भर तस्बीह घुमाते हुए खुद को धर्म प्रचारक कहते हैं और दिलचस्प बात ये है कि, भारत के ही जाकिर नाईक जैसे लोग इस हाफिज सईद की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं और उसे नाम देते हैं पीस टीवी, यानी कत्लोगारत की तालीम पीस यानी शांति नामक चैनल पर प्रसारित करते हैं
16-  सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं ।
नजीर- 
जैसे मुंबइया फ़िल्म मेकर खुद तो बिना सोचे समझे फिल्में बनाते हैं फिर छाती ठोंककर कहते हैं कि आप अपना दिमाग घर छोड़कर ही थियेटर में फ़िल्म देखने आयें। फिल्मकार ख़ुद तो इस ‘न सोचने’ के रोग से पीड़ित हैं मगर जनता समझदार है। इसलिए पायरेटेड फ़िल्म देख लेती है और थियेटर नहीं जाती।
17- हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है।
नजीर-
यदि अपनी टाटा नैनो पंचर हो जाये और उसे खींचकर बनवाने ले जाना पड़े और उसी समय यदि किसी की मर्सडीज भी सड़क पर चलते चलते खराब हो जाये तो उसे खींचकर बनवाने ले जाना पड़े तो ये देखकर सस्ती कार होने की हीन भावना तुरंत आधी हो जाती है।
18-  नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।”
नजीर – 
नारी मुक्ति का झंडा बुलंद करने वालियाँ कमाई में समानता और कार्य क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधाओं की महती पैरोकार होती हैं ।
19- एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना । 
नजीर –
ताकि किसी और से असुरक्षा न रहे। एक बड़ी लकीर ही दूसरी लकीर को छोटा कर सकती है ।

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