तेजेन्द्र, तुम्हारी सारगर्भित समीक्ष्य दृष्टि ने ‘कश्मीर फाइल’ जैसी फिल्म को उसकी विषय वस्तु और समय सापेक्षता के संदर्भ में अत्यंत संवेदनशीलता और सतत चैतन्य दृष्टि से देखा परखा है।
तुम्हारी परख निश्चित ही आश्वस्त कारी और तटस्थ है। क्योंकि तुम स्वयं फिल्म कथा लेखन और अभिनय से जुड़े हुए साहित्यकार हो। जिसकी अनुभवजन्यता, प्रामाणिक और निर्विवाद होनी संभव है यदि उसकी निष्पक्षता ही उसकी दृष्टि का चश्मा है। जो महसूस हो रहा है कि वह हम तक सही रूप में पहुंच रहा है।
हमें आंखों में आंसू भरने के बजाय अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए जो व्यक्ति की जा रही है बहुत से छद्मों से बाहर निकल।
तुम्हारी अभी दूसरी प्रतिक्रिया का इंतजार है क्योंकि तुम अकेले एकमात्र साहित्यकार हो, जैसा कि मैंने पहले कहा, जो फिल्म की जानकारी से गहराई से जुड़ा हुआ है।