बदबू
रोज की तरह नौ बजते ही अकरम अपनी रात रंगीन करने, जाने के लिए तैयार होने लगा। सबसे पहले महंगे साबुन- शैंपू से नहा कर उसने अपने बदन से पसीने की दुर्गंध और दिमाग से दिनभर अफसरों की चाकरी की खींज को दूर कर, तन और मन दोनों को तरोताजा किया। धुले हुए इस्तरी करे पेंट-शर्ट पहनकर, कोई फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए, आईने के सामने खड़े होकर करीने से बाल संवारे और गुलाब की खुशबू वाले इत्र की आधी से ज्यादा बाटल बदन पर उडेल ली।बाहर जाने के लिए जैसे ही घर के दरवाजे की कुंडी खोली, आहट पाकर उसका सात साल का बेटा हैदर हड़बड़ा कर उठ बैठा।
अम्मी…. मुझे भी जल्दी से तैयार कर दीजिए”
“नहीं बेटा सो जाओ, अभी सुबह नहीं हुई है”- शाहिदा ने उसे लिटाते हुए कहा।
“नहीं अम्मी मैं भी अब्बू के साथ, जन्नत की सैर करने जाऊँगा”
“ये तुम क्या कह रहे हो बेटा? “
“कल अब्बू फोन पर अपने दोस्त को बता रहे थे, कि दिन तो जहन्नुम की तरह गुजरता है, जन्नत तो रात को ही नसीब होती है, जब हूरों के दीदार होते हैं, इसलिए. … मैं भी अब्बू के साथ जाऊंगा”
“नहीं बेटा तुम नहीं जा सकते” अम्मी ने मनाते हुए उसे कहा।
“मास्टर जी ने बताया था कि हूर बहुत खूबसूरत होती हैं, मां मुझे भी हूर देखने जाना है”
“नहीं ..हैदर बेटा…. जिद नहीं करते”
“अम्मी मुझे हूर को देखना जाना है, देखना है, कि क्या वो अम्मी से भी ज्यादा खूबसूरत होती हैं”- हैदर ने अम्मी के
चेहरे को देखकर कहा।
बेटे की बात सुनकर देहरी पर खडा अकरम सन्न रह गया।
अचानक गुलाब के इत्र से महकता जिस्म पसीने-पसीने हो गया, बदबू आने लगी।
प्रॉमिस
सुबह से वे कितनी बार फोन लगा चुके थे, पर फिर भी बात नहीं हो पा रही थी। अब तो धीरे-धीरे उनकी प्रसन्नता, उदासी में बदलने लगी थी। कितने उत्साह से सुबह पोते से बात करने फोन हाथ में लिया ही था कि “अरे! बावले हो गए हो क्या? जो इतनी सुबह- सुबह फोन लगाने बैठ गए, वो आपका गांव नहीं, शहर है, वहां सभी लोग अभी सो रहे होंगे, परेशान हो जाएंगे, बाद में बात करना”- पत्नी की बात सुनकर वे मन मसोसकर रह गए और फोन रख दिया।
थोड़ी देर बाद फिर दोबारा फोन लगाया तो बहू ने बताया कि “राहुल तो स्कूल चला गया जब आएगा तो बात करा दूंगी”
पर इंतजार करते-करते शाम के चार बज गए, फोन नहीं आया तो उन्होंने फिर फोन किया
“राहुल कोचिंग पढ़ने चला गया है, वहां से आएगा तब ही बात हो पाएगी” – बहू ने बताया।
“अब तो रात के आठ बज गए, पोता घर आ चुका होगा” -सोच कर उन्होंने फिर फोन लगाया पर इस बार बहू ने कहा “बाबूजी वह स्पोर्ट्स क्लब से अभी तक नहीं आया है, पिछले महीने टेबिल टेनिस के स्टेट लेवल सिलेक्शन में एक स्टेप रह गया था, तो इस बार हम कोई गलती नहीं करना चाहते, आप परेशान न हों , आएगा तो मैं आपसे जरूर बात करा दूंगी”
“अच्छा बहू”- कहकर उन्होंने उदास होकर फोन रख दिया। इंतजार करते- करते रात के बारह बजने को आए पर फोन न आया। एक आखरी बार, बात करने की गरज से उन्होंने हिचकते हुए फिर फोन लगा ही लिया, इस बार फोन बेटे ने उठाया
“क्या बात है? बाबूजी, इतनी रात गए फोन किया ?”
“राहुल से बात करनी थी”
“पर वह तो सो गया है”
“अच्छा!. …बेटा अगर न सोया हो तो थोड़ा मेरी बात करा दे”
“बाबूजी उसके शेड्यूल के हिसाब से वह सो गया है”
“बेटा …आज उसका जन्मदिन है, तो. .”
“हां बाबूजी जन्मदिन था, सुबह स्कूल चॉकलेट्स और गिफ्ट्स लेकर गया था, बच्चों के साथ मनाया है, आप कल बात कर लेना”- सपाट शब्दों में बोलकर बेटे ने फोन रख दिया।
“दादाजी…. प्रॉमिस कीजिए मेरे बर्थडे पर सबसे पहले आप ही मुझे विश करेंगे” – गर्मी की छुट्टी में गांव आए पोते की कही बात याद कर उनका दिल जार जार रो उठा।