ठप्पा

“अडोप्शन की बस कुछ औपचारिकताएँ बाकी हैं, फिर आप इन्हें कानूनी तौर पर घर ले जा सकते हैं।” आश्रम के संचालक ने कहा।

“धन्यवाद! आज आपकी वजह से मेरा परिवार पूरा होने जा रहा है।” भावविह्वल होकर आदित्य बोला।

“धन्यवाद आपको, अगर आप जैसे लोग समाज में होंगे तो ये विसंगतियां धीरे धीरे समाप्त होने लगेंगी…कैसे कोई इतना कठोर हो जाता है कि इन्हें यहाँ छोड़ जाता है.. हाँ आया..” कहते हुए संचालक अंंदर चले गए।

आदित्य पेशे से इंजीनियर, अनाथालय में पला बढ़ा एक होनहार लड़का। छात्रवृत्ति के आधार पर उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। अनाथालय की ही अपनी बचपन की साथी से उसका विवाह हुआ। दोनों ने मेहनत और लगन से अपनी दुनिया सजाई है। सारी सुख-सुविधाओं के बीच दोनो को कमी खलती है तो बस एक बात की बचपन से माता-पिता के स्नेह से वंचित रहे। सब कुछ होते भी “अनाथ” शब्द का एक ठप्पा लगा था उनके साथ।

और आज, आदित्य वृद्धाश्रम से कानूनी तौर पर शर्मा जी और उनकी पत्नी की देखरेख का अधिकार लेकर उन्हें अपने घर ले जा रहा है, “अनाथ” शब्द का ठप्पा अपने जीवन से पूरी तरह से मिटा देने के लिए।

मेरा जवाब

“ओहो! बेटी हुई..!चलो, पहली बेटी धन की पेटी”

“एक चाँस और ले लो, एक बेटा तो होना चाहिये”

“अरे! ऐसी हर ख्वाहिश पूरी करेगा तो हाथ से निकल जाएगी लड़की, तूने तो उसे सर पर चढ़ा रखा है”

“कॉमर्स दिलवा दिया!..अरे इसमें अवसर कम है, साईंस दिलवाना था”

“सी.ए. करना हर किसी के बस की बात नही..”

“कितनी दुबली पतली सी है, कुछ खिलाते नही हो क्या अपनी बेटी को.. इतनी पढाई करने के लिये शरीर भी तो स्वस्थ होना चाहिए..” परिवार और समाज के लोगों की कही बातें प्रमोद के दिमाग में गूँज रही थी..उसकी आँखें बंद थी।

तभी विमानतल पर हुई उद्घोषणा से उसकी तंद्रा टूटी। उसने अपना सामान समेटा और फेसबुक पर एक “स्टेटस अपडेट” किया, “फीलिंग प्राऊड विथ सी.ए. प्रशस्ति जोशी* बिटिया द्वारा दिया गया सबसे अनमोल उपहार: ४ दिवसीय सिंगापुर यात्रा!!”

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