Tuesday, October 15, 2024
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दिलीप कुमार की लघुकथा – देवी-देवता

बोरी संभालते हुए बटेश्वर ने गर्दन को थोड़ा झुका लिया और कांपते हुए बोला, “जागे बाढ तो उतर चुकी है, मगर राहत का सामान अब मिला”। 

“सरकारी काम है, साहब लोग टाइम लगा ही देते हैं” जागे ने चावल की बोरी को अपनी पीठ पर थोड़ा और चढ़ाते हुए कहा।

बटेश्वर छूटते ही बोला “मगर सामान तो आठ नौ दिन पहले ही आ गया था यहां गांव में ,बाढ़ उतरे भी तो 15 दिन हो चुके हैं “बटेश्वर ने निर्विकार भाव से कहा।

“तो कुछ काम रहा होगा साहब लोगों ने माल की जांच पड़ताल कर ली होगी ,तभी बटना था ,मूने बता रहा था ।”

बटेश्वर तमक कर बोला “सारी जांच पड़ताल मूने ने ही तो की है ,दिनभर माल की चौकीदारी और रात को बोरियां हल्की करता था।” बटेश्वर बात को समझ गया ,वह हौले से बोला “जाने दो ,कोई सुनेगा तो आफत आ जाएगी । मूने ने चावल की बोरी से 5 किलो दाल आधा किलो तेल नमक सब चुराया है और यहां तक कि बच्चों का बिस्कुट भी “।

जागे ने लोगों की आमदरफ्त मांपी और कहा “प्रधान कह रहे थे कि जो सामान बाढ़ राहत वालों से काटा जाएगा ,वह दुर्गा पूजा की कीर्तन कमेटी को जाएगा ‘जागे ने धीरे से कहा तो कीर्तनिया लोग गरीब गुरबा का धन खाकर गाएंगेअौर देवी देवता को खुश करेंगे “

बटेश्वर ने समझाते हुए कहा”प्रधान कहते है कि किसी देवी देवता की कृपा रही ,तभी इस भयंकर बाढ़ में इधर का बांध नहीं टूटा और गांव बच गया ,इसलिए पूजा पाठ में पूरे गांव से चढ़ावा जाना चाहिए ।जागे ने बुदबुदाते हुए कहा”ई बाढ़ भी तो कोई देवी देवता ही लाते होंगे, ऐसा ही था तो उनको पहले ही चढ़ावा दे देते इतना दुख तबाही काहे को झेलते “।

बटेसर ने भी जागे की बात को दोहराया” हां ,ई बाढ़ भी कोई देवी देवता ही लाते होंगे “।ऐसा कहते हुए बटेश्वर ने अपने घर की तरफ जाने वाली पगडंडी पकड़ ली ।जागे अभी वहीं खड़ा यह सब बुदबुदा रहा है ।

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