होम लघुकथा दिव्या शर्मा की लघुकथा – मन के फफोले लघुकथा दिव्या शर्मा की लघुकथा – मन के फफोले द्वारा दिव्या शर्मा - November 21, 2021 92 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet “क्या देख रहे हो विवेक?” खिड़की से बाहर झांकते अपने बेटे को टोकते हुए गरिमा ने कहा। “कुछ नहीं मॉम…।” विवेक हड़बड़ा कर बोला। “लेकिन मुझे लगता है तुम त्रिशा को देख रहे थे!” गरिमा ने सख्ती से कहा। “वो…मॉम्म…वो…।” शब्द विवेक के गले में अटक से गए। “त्रिशा अच्छी लगती है तुम्हें?” “वो…नहीं ऐसी बात नहीं मॉम…।” “अच्छा… मतलब बुरी लगती है… हाँ वैसे दिखती भी कुछ खास नहीं।” विवेक के मन को टटोलने की गरज से गरिमा ने हँसते हुए कहा। “ऐसी बात नहीं… मॉम…वो …।”विवेक की हकलाहट सुनकर गरिमा जोर से हँस पड़ी और फिर गंभीर होकर बोली, “माँ हूँ तुम्हारी।तुम्हारी नजर पहचानती हूँ और यह जानती हूँ कि तुम त्रिशा को देख रहे थे।” “……” “मैं तुम्हारी चुप्पी को क्या समझूँ!” “मॉम मैं उसे देख रहा था लेकिन… लेकिन… ऐसे नहीं।”विवेक ने कहा। “ऐसे नहीं मतलब!कैसे देख रहे थे फिर?”गरिमा के चेहरे पर नाराजगी थी। मॉम…मैं उससे दोस्ती करना चाहता हूँ…वह मुझे अच्छी लगती है।”कहकर विवेक ने मुँह घुमा लिया। “तो कर लो दोस्ती…इसमें इतना घबराने की बात क्या है!यदि तुम्हारे मन में कुछ और न चल रहा हो तो…।”गरिमा ने शंकित होकर विवेक को देखा। “क्या सच में मॉम!!” “इसमें इतनी हैरानी वाली कौन सी बात है?” गरिमा की आँखें अब भी उसके मन को टटोल रही थी। “मॉम…मुझे लगा आप मुझे गलत समझोगे…।” “क्यों गलत समझूंगी!” “क्योंकि… वो…आजकल सबको लगता है कि…।”विवेक चुप हो गया। “सबको क्या विवेक…! बताओ।” “सबको लगता है कि ब्यॉज और गर्ल्स बस अपनी फिजिकल …।” “और तुम ! क्या तुम ऐसा नहीं सोचते!!” गरिमा के मन में शंका फन उठाने लगी। “नो मॉम…” “क्यों? आजकल तो यह फैशन है… शादी से पहले….तुम कैसे बच सकते हो?” गरिमा की आवाज़ में अजीब स्वर था। “आई लव हर…मॉम…आई लव त्रिशा…।”विवेक की दृढ़ आवाज़ ने गरिमा के अजीब स्वर पर ठंडा पानी डाल दिया। फफोले उठ ही न पाए। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं सरोज बिहारी की लघुकथा – आज का एकलव्य बालकृष्ण गुप्ता गुरु की तीन लघुकथाएँ डॉ. सपना दलवी की लघुकथा – झलकारी का सपना Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.