Sunday, October 6, 2024
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डॉ प्रतिभा त्रिवेदी की लघुकथा – एक सम्मान यह भी

रात के निविड़ एकांत में घनघोर जंगलों के बीच बस घरघराती हुई रुक गयी थी। नींद में डूबी मेरी आंखें खुल गयी थीं। इतनी रात गये झय्यम झय्यम गाजे बाजे के साथ पूरा गांव ही बस को रोक कर खड़ा था। बस कंडक्टर से किसी ने तत्काल सीट व्यवस्था को कहा था। अब तो बस के अंदर की पूरी सवारियां ही नींद से जाग गयी थीं। सभी देखना चाहते थे कि वो सम्मानित यात्री आखिर कौन है?
रहस्य से पर्दा उठा, पहले सारंगी, तबला  हारमोनियम वादक मय साज सामान के बस में चढे और उसके बाद जो सवारी चढ़ी, वह नर्तकी थी। शायद किसी शादी ब्याह के समारोह से लौट रही थी। कंडक्टर ने पीछे की  खाली सीट की ओर बैठने का संकेत किया था। तभी गांव का प्रधान जो बुजुर्ग लग रहा था, वह बैठक व्यवस्था का जायजा लेने अंदर आ गया। उसने तत्काल ही रोष करते हुए कहा,
नहीं नहीं, बाईजी पीछे की सीट पर नहीं बैठेगी। वो सबसे सामने डिरायवर के बगल की सामने वाली सीट में बैठेगी। तब तक दो चार युवा भी बस में आ गये। “अरे भैया, ई  बाईजी आज हमारे गांव की मेहमान रही हैं और पूरे सम्मान के साथ ही बाईजी की बिदाई होगी। आओ बाईजी आप सबसे सामने बैठोगी।”
बाईजी भी पूरी नाजो अंदाज के साथ सामने जा पहुंची। एकदम सुर्ख लाल लंहगे  चुनर में  सस्ते  बाजारू गहनों  और मेकअप से सजी संवरी नर्तकी को देखने को  सवारियों की लोलुप दृष्टि को निराश होना पड़ा। बाईजी भले ही नाच गाकर आजीविका चला रहीथी लेकिन मर्यादा भी बखूबी निभा रही थी अर्थात बस में सवार होते ही उन्होंने  हाथ भर लंबा घूंघट  तान लिया था। जैसे ही बस चलने को हुई एकाएक प्रधान फिर दो  युवकों के साथ आया और बोला,
“बाईजी आज मेरे न्योते पर आप लोग आये और आप लोगों ने अपने नाच गाने से पूरे गांव वालों को खुश कर दिया। इन दो लडकों ने आपके साथ  गुस्ताखी की है, इसीलिए ये आपके पांव छूकर माफी चाहते हैं।”
ऐसी अटपटी बात सुनते ही नर्तकी का घूंघट मर्यादा की सीमा भूलकर सहसा ऊपर उठ गया, वो कह रही थी,
“नहीं काका, हम नाचने गाने वाले लोगों के साथ तो रोज ही ऐसा होता है। नाहक ही माफी मंगवा रहे हो। हम अपनी इज्ज़त की सोचेंगे तो भूखे मर जायेंगे। आप रहने दो।”
“नहीं बाईजी, आप हमारी मेहमान थी और मेहमान तो भगवान के बराबर होता है। चलो लडकों बाईजी से पांव छूकर माफी मांगो।”  प्रधान का आदेश होते ही उन युवकों का नशा हिरन हो चुका था और बाईजी के चरणों में दोनों झुक गये थे।
अभी तक फिल्मों में जो देखा या दिखाया जाता था, आज सर्वथा विपरीत दृश्य देखकर सभी सवारियां हतप्रभ रह गयीं। आज   भारत भूमि की अतिथि परंपरा सही मायने में साकार हो गयी थी और इस अनोखे सम्मान को पाकर उस नर्तकी की आंखे भी संयम का बांध तोड़कर बह निकली ।
डॉ प्रतिभा त्रिवेदी
डॉ प्रतिभा त्रिवेदी
प्राचार्य, हाईस्कूल नौमहला हजीरा ग्वालियर. प्रकाशित कृति - मत छीनो आकाश (कहानी संग्रह). संपर्क - [email protected]
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