Wednesday, October 16, 2024
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गीता परिहार की लघुकथा – ज़मीर

साहित्य संवेद समूह द्वारा चयनित लघुकथा

कल रात कई बार नींद टूटी हर बार ट्विंकल और उस जैसी बच्चियां याद आयीं। एक अच्छे होटल में 4 लोगों के खाने  के बिल से शायद किसी की महीने भर की रोटी चल सकती है।यह विचार आते ही मैं इस संवेदना को झटक देती हूं, “ऊह,अपनी – अपनी किस्मत ” कहकर। (ज़मीर तू ज़िंदा है ) ना , कोई जवाब नहीं मिलता।

कामवाली चिलचिलाती धूप में आंगन बुहार रही है,उसकी नन्ही बच्ची पोछा लगा रही है।मेरी बेटी सोफे पर पैर फैलाए वीडियो गेम खेल रही है।(ज़मीर सर उठाना चाहता है )फिर वही, उंह !

कल ही बेटे ने  मॉल से ब्रांडेड सूट खरीदा,बहू ने डिजाइनर साड़ियां,बाहर निकले,गाड़ी के पास चिथडों में खड़ी भिखारिन को बेटे ने दुत्कार कर परे हटने को कहा।(ज़मीर ने कचोटा) ।

दावत के बाद फेंकी गई प्लेटों पर झपटते भूखे बच्चों और कुत्तों की छीनाझपटी देखकर ,ज़मीर ने फिर गर्दन उठाई,बमुश्किल मैने दूसरी ओर घुमाई।

कल मैने सुना एक और छोटी बच्ची का रेप  और क़त्ल हुआ , मैं बहुत दुखी हुई, मुझे रात ठीक से नींद नहीं आई,बार – बार उसका चेहरा आंखों के सामने आ रहा था।

मैने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वह मेरी बच्ची नहीं थी।(मेरा ज़मीर शायद पूरी तरह मर चुका था)

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