साहित्य संवेद समूह द्वारा चयनित लघुकथा

“क्या वर्मा जी कल आपने छुट्टी ले ली, मुझे दो सीटों का काम करना पड़ा।”

“तीज थी न मीना।”

“तीज तो संडे को थी आपने तो मंडे की छुट्टी ली,पर आपका तीज से क्या लेना देना।”

“मैने व्रत रखा था। रात्री जागरण की वजह से नहीं आ सका।”

मीना चौंककर,”क्या आपने व्रत रखा। यह तो औरतें अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है।”

“दरअसल दो साल पहले की बात है मेरी सास की तबीयत बिगड़ गईथी। उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, साले साब के विदेश में  होने के कारण पत्नी को मायके जाना पड़ा। पहले जब भी जाती थी,तो बच्चे उनके साथ में जाते थे। पर इस बार बच्चों को छोड़ कर गई।”

“बच्चों और घर की जिम्मेदारी दो दिन में ही मेरी हालत खराब हो गई ऊपर से शिकायत रोज रोज टिफिन में  सेंडविच,सारा घर अस्त व्यस्त। मैं और बच्चे दोनों ही परेशान, सात दिन सात साल जैसे लगे। मैं तो यह सोचकर ही घबड़ा गया कि सात दिन में यह हालत, अगर वह न हुई तो…”

उसने आकर कुछ ही घंटों में घर पहले जैसा कर दिया, मुझे एहसास हुआ कि घर का स्तंभ वही है मैंने उसी क्षण उससे कहा “तीज का व्रत अब मैं भी रखूँगा क्योंकि मुझे तुम्हारी लंबी उम्र चाहिए।”

“इस घर का अस्तित्व तुमसे ही तो है। “

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