Saturday, July 27, 2024
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जीतेंद्र शिवहरे की लघुकथा

झूठ

रविना की आखें अखबार की एक खबर पर जमी थी। पहले पन्ने पर बीती रात हुये एक सामुहिक दुष्कर्म का ब्यौरा था। उसे याद आया कि ऐसा ही कुछ तो हुआ था उसके साथ भी। उसकी शादी के पहले। हालांकि उसने कभी किसी को यह घटना बताई नहीं। लेकिन आये दिन हो रहे महिलाओं पर यौन शोषण को देखते हुते उसने भुतकाल की यह घटना सार्वजनिक करने का विचार किया। क्योंकि उसे लगा कि यही उचित समय है। उसे याद है किस प्रकार एक झुठ ने उसके शील को भंग होने से बचाया था।

सायंकाल तरकारी खरिदकर रविना घर लौट रही थी। यकायक एक कार उसके सम्मुख आकर रूकी। दो नकाबपोश उस कार से बाहर निकले। रविना संभल पाती इससे पूर्व ही दोनों युवकों ने जबरन रविना को कार में थकेल दिया। नाक-मुंह पर बेहोशी की दवा का छिड़काव हो जाने से उसकी चेतना शून्य हो गयी। कुछ घण्टों के बाद जब उसे होश आया तब उसने स्वयं को एक बंद कमरे में कैद पाया। कमरे में तीन युवक रविना के जागने की प्रतीक्षा कर रहे थे। रविना डर से कांप रही थी। उसकी अस्मत खतरे में थी।

“मुझे एड्स है।” रविना ने उस युवक से कहा जो धीरे-धीरे उसके करीब आ रहा था। युवक के पैर वहीं जम गये।

“हमसे बचने के लिये ये लड़की झुठ बोल रही है।” एक अन्य युवक बोला।

तीसरा युवक भी सोच में पढ़ गया। रविना पर तीनों को बहुत गुस्सा आ रहा था। मगर वे कर भी क्या सकते थे। रविना का इतना भर कह देना कि उसे एचआईवी एड्स है, तीनों को विचारमग्न करने के लिए पर्याप्त था। अंततः तीनों युवकों ने रविना को सकुशल छोड़ दिया। रविना प्रसन्न थी। विभु से विवाह के बाद उसे दो बेटीयां हुई। जो धीरे-धोरे बढ़ी हो रही थी। बेटीयों के बढ़ने के साथ ही रविना की चिंता भी बढ़ने लगी। उस पर दिनों-दिन बढ़ते बेटियों पर यौन शोषण के अपराध भी उसके माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रहे थे। ‘एक झुठ से यदि सबकुछ बचाया जा सकता है, तब उस झुठ को कहने में बुराई ही क्या है?’ बढ़बढ़ाते हुय रविना अंदर किचन में जाकर व्यस्त हो गई।

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