अभी पैरों के प्लास्टर कटे दो दिन ही हुए थे l रवि धूप में बैठकर अखबार के पन्ने पलट रहा था l इधर सड़क दुर्घटना में दोनों पैर टूट गये थे l
तभी जया  की आवाज रवि के  कानों में गूँजी – ” रवि ,  तुम   कमलेश  भैया के कामों में हाथ क्यों नहीं बँटाते ?  जया  कपड़ों को तह करके अलमारी में रखते हुए बोली l वीणा  हमारी पड़ौसी है l योगेश आजकल ससुराल में ही रह रहा है l वीणा कह रही थी l जब से माँ- बाबूजी से योगेश लड़कर आया है l ससुराल वाले लोग उसे भाव ही नहीं देते l मैं नहीं चाहती कि यहाँ भी लोग तुम्हारे साथ ऐसा ही व्यवहार करें l अब तो तुम्हारे  पैरों का प्लास्टर भी कट गया है  l और तुम्हें यहाँ रहते  दो महीने से ज्यादा हो गये हैं l कल को कोई योगेश की तरह ही  तुम्हारे बारे में ऐसी – वैसी बात  कह दे ,  तो मुझे तो बहुत ही बुरा लगेगा l   “
रवि को ये बात काँच के किरचें की तरह  चुभीं l उसे आश्चर्य हो रहा था कि उसकी पत्नी जो उसकी सबसे करीबी थी l आज उसे भी लग रहा है कि उसका पति  ससुराल में बोझ बन गया है ! और बैठकर खा रहा है l  वो ,रवि जो दिनरात हाड़तोड़ काम करके हमेशा अपने परिवार और बाल- बच्चों के लिये जीने  वाला आदमी थाl ये औरत और इसके घरवाले कितने एहसान-फरामोश हैं l ये रवि को साफ – साफ दिख रहा था l
रवि की आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं l कछ देर रवि , जया को  अपलक घूरता  रह गया। l सहसा उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था l कि इस तरह से स्थितियाँ बदल जायेंगीं l अभी दो साल पहले तक जब चारों तरफ कोरोना अपनी प्रचंड वेग से आदिम सभ्यता को मिटाने के लिये आतुर दिख रहा था l ऐसे गाढ़े समय में उसने अपने ससुर और साले की मदद की थी l रवि ने  दो – लाख रूपये  कमलेश  को जया के एक बार कहने पर दे दिया था l और कभी लौटाने की बात नहीं की थी l कोरोना में होटल लाइन पूरी तरह से चौपट हो गया था l कमलेश और उसका परिवार रोड पर आने को हो आया था l ऐसे गाढ़े वक्त में उसने उनकी  मदद की थी l
” ठीक कहती  हो तुम जया l आदमी कितने दिनों तक दूसरों पर बोझ बना रह सकता है l  मेरी परिस्थिति जब तक ठीक थी l तुम्हारे सारे खर्चे  और बच्चों के खर्चे मैं उठाता रहा l आज एक छोटे से एक्सीडेंट ने मुझे मेरी औकात दिखा दी कि आदमी कितना स्वार्थी हो सकता है l लेकिन मैं एक बात तुमसे कहना चाहता हूँ कि कमलेश को कह देना कि लाॅकडाउन के समय जो पैसे मैंने लोन पर लेकर तुम लोगों की दिया था l उसका मैं इन दो सालों में बहुत ब्याज भर चुका हूँ l उनको कहना की जो दो लाख रूपये उन्होंने मुझसे लिये थे l उनको बैंक को लौटाना भी होगा l एक एक्सीडेंट ने लोगों के चेहरे से  शराफत के   सारे नकाब उतारकर फेंक दिया हैl कौन कहता है कि दुर्घटनायें बुरी चीज होती हैं l इस दुर्घटना ने मेरी आँखें खोल दीं हैं l “
” मेरे कहने का वो मतलब नहीं था l ” जया ने सफाई देनी चाही l
” मैं खूब समझता हूँ l तुम्हारा मतलब l मेरा  जब चिकेन खाने का मन करता था l  तो तुम लोग बैंगन बनाते थें l दाल में कभी  पानी ज्यादा होती थी l तो कभी नमक ज्यादा l कभी दाल में नमक ही नहीं होती थी l रोटियाँ मोटी- मोटी जली हुई और सूखी होती थीं l चावल मार्केट से सबसे घटिया क्वालिटी का खरीदकर तुम लोग मेरे लिये लाते थे l तुम्हें क्या लगता है l मैनें इन चीजों को नोटिस नहीं किया था  l मेरी नजर इन दो महीनों में  तुम लोगों की सारी गतिविधियों पर बनी हुई थी l   “
शाम धीरे- धीरे आँगन में उतर आई थी l रवि धीरे से कुर्सी पर से उठा l और अपने जेब से ए . टी. एम. कार्ड़ निकालकर जया की ओर बढ़ाते हुए कहा -”  मेरे इस ए. टी. एम . कार्ड़ से हर महीने बीस हजार रूपये निकाल लेना l इससे तुम्हारा और  तुम्हारे बच्चों का खर्चा  चल जायेगा l पैसे घटेंगें  तो  मुझे बताना  l हर महीने बढ़ाकर डाल दूँगा l “
” मैं अपने भी कपड़े पैक कर लूँ l मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ l ”  जया ने  मौके की नजाकत को समझते हुए कहा l
” नहीं अब मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है l  तुम्हारा स्वार्थी चेहरा मैंने देख लिया है l रहने दो l “
प्लास्टर कटे अभी दो दिन ही हुए थें l  रवि के पैरों में तकलीफ अभी भी बनी हुई थी l उसने चलने  की कोशिश की तो उसका संतुलन बिगड़ गया l  और वो गिरने को हुआ  l जया आगे बढ़कर रवि को संँभालने के लिये  आई  l तभी रवि बैसाखियों की मदद से   धीरे – धीरे उठ खड़ा  हुआ l  ओर हाथ के इशारे से जया को रोकते हुए बोला -” अभी – अभी गिरकर सँभला हूँ l और अब जमाने  में  लोग गिरे हुए लोगों को उठाने का हुनर भूलने लगे हैं l  हमारे बीच के  लोगों  से ये हुनर जाने लगा  है l अब और गिरने की ताकत नहीं है  मुझमें l तुम बहुत दूर तक  मेरा साथ नहीं दे सकती l ये दुनिया ऐसी ही है l सबल लोगों का साथ देती है l लाचार लोगों को कोई नहीं पूछता l हमारे रिश्तों में भी यही बात लागू होती है l आज सारे रिश्ते मतलब के हो गये हैं l  ” उसने बैसाखी संँभाली l   और धीरे – धीरे लँगड़ाते हुए  अँधेरे में गली के अंँदर  गायब हो गया l
महेश कुमार केशरी झारखण्ड के निवासी हैं. कहानी, कविता आदि की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. अभिदेशक, वागर्थ, पाखी, अंतिम जन , प्राची , हरिगंधा, नेपथ्य आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. नव साहित्य त्रिवेणी के द्वारा - अंर्तराष्ट्रीय हिंदी दिवस सम्मान -2021 सम्मान प्रदान किया गया है. संपर्क - keshrimahesh322@gmail.com

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