“यार महेश !मैं अपने बेटे मुकूल की शादी बिल्कुल सादे रीति-रिवाज से करना चाहता हूं”..वैसे भी अब ज्यादा लोगों को भीड़ से परहेज ही हो रहा है.
“हमें तो बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया,कितना भी न-न करते रहे पर ….क्या कर सकते थे,उन्होनें नही माना.”
“देखो भाई, तुम्हारा पहले से रहना बहुत जरुरी है..मेहमानों के आवभगत के लिए रहना होगा.”
“अरे हाँ! ठीक है रमेश..तेरा बेटा मेरा भी बेटा है..और बेटे के पिता और चाचा की रौब तो होनी ही चाहिए.”
शादी की तैयारियाँ एक पांच सितारा होटल में चल रही थी..मेहमानों की इक्का-दुक्का आवागही धीरे-धीरे हजारों में हो गई..
“रमेश ये क्या..इतने मेहमान .?”ज्यादातर तो तुम्हारे तरफ वाले ही है.
महेश क्या करुं यार किसे छोड़ता और किसे बुलाता..अब आ ही गये है तो रहने दो..
“पर इस तरह तो अतिरिक्त बोझ लड़की वालों पर पड़ेगी..कैसे हो पायगा.?”
“तुम चिंता मत करो.उन्हें बोल दिया गया था और मेहमानों की लिस्ट भी दे दी थी.”
तभी रमेश ने देखा लड़की के पिता कुछ परेशान लग रहे थे…
क्या हुआ भाई साहब..कोई बात है तो आप मुझे बता सकते हैं..
नहीं नहीं कोई बात नहीं…वो क्या है कि महेशजी की इच्छा थी कि आज ही कार आ जाती ,पर किसी कारणवश ऐसा हो नही पायेगा.
रमेश अपने दोस्त महेश की चतुरता भरी बातें याद कर दंग रह गया…सादी रीति-रिवाज से शादी और कम मेहमान ,पांच सितारा होटल में व्यवस्था..यहाँ तक कि दहेज के नाम पर सारे अरमान पूरे कर लिए…बाकी क्या रहा फिर…
रमेश अब एक पल को भी नही ठहरना चाह रहा था…आश्चर्य हो रहा था …
आधी हकीकत आधा फसांना वाली कहावत को चरितार्थ करते अपने दोस्त को देख.
चलता हूं रमेश..एक अर्जेंट हो आया है.

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